बड़ी बाई साब - 16 vandana A dubey द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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बड़ी बाई साब - 16

हद करती है लड़की! ये भी नहीं बताया कि कब आना चाहती है? रोहन को भेजें भी तो कब? फोन लगाया तो स्विच्ड ऑफ़ आने लगा. परेशान हो गयीं बड़ी बाईसाब. ससुराल पहुंचने के बाद भी नीलू का अनुभव अच्छा नहीं रहा था. अजब स्वभाव की थी नीलू की ससुराल. हर व्यक्ति जैसे तंज कसने को ही बैठा रहता था. नीलू जैसी शान्त स्वभाव की लड़की भी जब उनकी शिकायत घर में कर रही, मतलब मामला उससे कहीं बहुत ज़्यादा है, जितना नीलू ने बताया था. वे लोग बेहद संकीर्ण मानसिकता के लोग थे, ये बात तो उनकी समझ में तभी आ गयी थी, जब रिश्ता तय हुआ था, लेकिन नीलू की बढ़ती उम्र की चिन्ता में उन्होंने सोचा, लड़का भला तो सब भला. उनका ऐसा सोचना भी ग़लत साबित हुआ क्योंकि लड़का ही भला न निकला. लड़का अपने मां-पिता के आदेश के खिलाफ़ कोई काम नहीं कर सकता था. उनकी ग़लत बात को भी सही ठहराने का अद्भुत गुण (!) था उसमें. होली पर चार दिन की छुट्टी थी, सो रोहन घर आया हुआ है ये नीलू जानती थी. लेकिन त्यौहार के समय अचानक दिल्ली तक आने-जाने का रिज़र्वेशन कैसे मिलेगा? किसी प्रकार समझाया था दादी ने नीलू को.
बाद में शीलू ने बताया कि मसला प्रताप के ट्रान्स्फ़र को लेकर हुआ था. प्रताप का तबादला बैंगलोर हो गया था. उसकी माता जी ने आदेश दिया था कि नीलू को तत्काल मायके भेज दो, ताकि तुम सुविधाजनक तरीके से बैंगलोर शिफ़्ट कर सको. न नीलू समझ पाई थी और न ही उसके परिवार वाले कि पति के तबादले पर जाने में पत्नी किस प्रकार असुविधा पैदा कर सकती थी? लेकिन मां का आदेश था, सो बेटे को मानना ही था. इसीलिये नीलू ने अचानक फोन किया था. गौरी तो समझ ही न पाई नीलू की सास का फ़रमान. बड़ीबाईसाब भी भौचक्की थीं. खैर उन्होंने ब्रोकर से टिकट करवा के रोहन को भेज दिया था. नीलू आ भी गयी थी लेकिन दादी द्वारा ससुराल हो आने के प्रस्ताव को पहली बार लड़की ने सिरे से खारिज़ कर दिया. साफ़ बोली- “ उन्होंने मायके चले जाने का आदेश दिया है दादी. ये नहीं कहा कि घर आ जाओ. जब नहीं कहा तो जाने का प्रश्न ही नहीं. अब उतना ही काम होगा, जितना आदेश होगा. आखिर मेरा भी आत्म सम्मान है या नहीं?” नीलू के सपाट स्वर ने फिर कोई और सवाल नहीं करने दिया किसी को. नीलू के यहां पहुंचने के चार-पांच दिन बाद उसकी सास का फोन आया था-
“ हेहेहेहे….. नमस्कार दादीजी. नीलू ठीक से पहुंच गयी न? उसे कहिये घूम जाये यहां भी.”
“ ससुराल घूमने की नहीं, रहने की जगह होती है मिसेज परिहार. घूमने के लिये तो शहर में काफ़ी कुछ है, जो हम नीलू को घुमा ही देते हैं. “ जवाब , वो भी तल्ख आवाज़ में देने का मन था बड़ीबाईसाब का, लेकिन प्रत्यक्षत: कहा यही कि – “ हां क्यों नहीं. घर है वो तो उसका. कल ही भेजती हूं.”. मिसेज परिहार के मुंह से तब भी न निकला कि हमारी बहू को भिजवा दें, या हम आ रहे लेने. आखिर इतनी बड़ी गाड़ी रखने को तो दी नहीं थी बड़ीबाईसाब ने. दादी का ये नया रूप देख रही थी नीलू. अब तक तो पूरी दबंगई से बोलते और दमदारी से सारे काम करवाते देखा था उन्हें, लेकिन किसी ग़लत बात पर वे चुप भी रह सकती हैं, ये नहीं मालूम था नीलू को. अच्छा नहीं लगा था उसे. दादी पर दबंगई ही जमती है.

(क्रमशः)