बड़ी बाई साब - 15 vandana A dubey द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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बड़ी बाई साब - 15

शादी के बाद ससुराल में सबकुछ था, सिवाय अपनी इच्छा के. जो चाहो खाओ, पहनो, जहां चाहो जाओ, मिलो-जुलो बस अपने विचार पेश मत करो. बड़ी बाईसाब यानि गौरी की सास जो कहें उसे अन्तिम सच मानो. यदि ऐसा नहीं हुआ, तो आप अपनी स्थिति कमज़ोर कर सकते हैं. गौरी की भी तमाम मुद्दों पर उनसे असहमति होती थी, जिसे वो ज़ाहिर भी कर देती थी, और इसीलिये बड़ी बाईसाब ने उसे ’मुंहफट’ के विशेषण से नवाज़ा था. धीरे-धीरे गौरी ने खुद ही समझौता कर लिया. अकेली कब तक लड़े? पति भी गाहे बगाहे समझा देते थे कि चुप रहा करो. क्या दिक्कत है तुम्हें? सब तो है तुम्हारे पास? फिर मांसाब क्या नहीं करतीं? सब कर रही न? अपनी बात कहने के बाद वैसे भी घर में जो बवाल मचता था, गौरी का उससे कई दिन तक मन उद्विग्न रहता था. उसे भी पति का सुझाया रास्ता ही रास आया. अब गौरी सास के सामने विरोध न करती, लेकिन करती वही जो उसे ठीक लगता. नीलू का हश्र देखने के बाद गौरी नंदिनी और रोहन के समय तो अड़ ही गयी . दोनों बच्चों को उनकी पसंद के विषय दिलाये और बाहर भी भेजा, पढ़ने के लिये. नीलू के लिये उसका मन कभी-कभी बहुत खराब होता है. उसी की बेटी है, लेकिन कुछ कर नहीं पाई गौरी अपनी पहली बच्ची के लिये. दादी ने भी उसका बुरा कभी नहीं चाहा होगा लेकिन लाड़ की अति ने अन्तत: उसका बुरा ही किया, दादी के न चाहते हुए. वे तो खैर इस बात को मानती भी नहीं कि नीलू की कोई ख्वाहिश अधूरी रह गयी, या वो अपने मन का कुछ नहीं कर पाई या उसका कुछ बुरा हुआ. ये तो बस नीलू जानती है या गौरी कि नीलू ने कितनी बार अपना मन मारा….. !
० ० ०
रात बारह बजे अचानक ही फोन की घंटी बजने से बड़ीबाईसाब के मन में खटका हुआ. मोबाइल उठाया तो नीलू का नाम चमक रहा था. अब तो और परेशान हो गयीं बड़ीबाईसाब. शादी के दो महीने बाद, पोती-दामाद को दिल्ली में शिफ़्ट हुए अभी दो महीने ही तो हुए थे. पता नहीं क्या हुआ होगा……
“हैलो नीलू, क्या हुआ बेटा? सब ठीक न?” बड़ीबाईसाब एक साथ सारे सवाल कर लेना चाहती थीं.
“ हां सब ठीक है दादी लेकिन मैं घर आना चाहती हूं.”
“अरे! क्यों? क्या हुआ? दामाद से झगड़ा हुआ क्या? क्यों आना चाहती हो?” एक सांस में पूछ डाला उन्होंने.
“अरे कुछ नहीं हुआ न दादी. मैं बस आना चाहती हूं. रोहन आ सके तो ठीक, वरना यहां से प्रताप बिठा देंगे मुझे ट्रेन में. मैं आ जाउंगी.”
यानी ये तो तय था कि कैसे भी नीलू को आना ही है. कोई लेने आये तो, न लेने आये तो. दूसरी तरफ़ से फोन कट गया. हद करती है लड़की! ये भी नहीं बताया कि कब आना चाहती है? रोहन को भेजें भी तो कब? फोन लगाया तो स्विच्ड ऑफ़ आने लगा.

परेशान हो गयीं बड़ी बाईसाब. ससुराल पहुंचने के बाद भी नीलू का अनुभव अच्छा नहीं रहा था. अजब स्वभाव की थी नीलू की ससुराल. हर व्यक्ति जैसे तंज कसने को ही बैठा रहता था.

(क्रमशः)