बड़ी बाई साब - 18 vandana A dubey द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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बड़ी बाई साब - 18

नीलू का जवाब सुन के गौरी के होश उड़ गये थे. नीलू बोली- “ मां, प्रताप और उसके घर वाले किसी भी हद तक उतर जाने वाले लोग हैं. अगर मैं बहुत दिनों तक यहां रही तो मम्मी जी मेरे ऊपर ससुराल में न रहने का आरोप लगा के तलाक भी करवा सकती हैं. रही बात प्रताप की, तो वो वही करेगा, जो उसकी मां कहेंगीं. और मां, मैं नहीं चाहती कि एक बेटे के साथ मैं वापस यहां आऊं. जब तक चल रहा है, चलाउंगी, जिस दिन लगा, अब बहुत हो गया, उस दिन अपने सामान सहित आ जाउंगी.” नीलू की आवाज़ का दर्द महसूस कर पा रही थी गौरी. कितनी मजबूर हो जाती हैं बेटियां!!
नन्दिनी, यानी शीलू का एम.बी.बी.एस. पूरा हो गया था. इधर उसकी इंटर्नशिप शुरु हुई, उधर दादी ने रिश्ते खोजना शुरु कर दिये. गौरी ने फ़िर विरोध किया, लेकिन उसकी सुनता ही कौन है? आज पचास साल की उमर में भी कल की आई बहू जैसा बर्ताव करते हैं सब. लेकिन इस बार गौरी ने भी ठान लिया था, कि जो ग़लती नीलू के साथ हुई, वो अब दोहराई नहीं जायेगी. नीलू के वक़्त शीलू और रोहन छोटे थे, सो गौरी किसी भी मोर्चे पर अकेली पड़ जाती थी. लेकिन अब ये दोनों बड़े हो गये हैं और गौरी के साथ खड़े होने की ताक़त भी रखते हैं. दादी को तमाम लड़कों की तस्वीरें छांटते देख रोहन ने ही टोक दिया-
“दादीसाब किसके लिये लड़का देख रहीं?”
“अरे! घर में दो-चार लड़कियां हैं क्या जो पूछ रहा?” दादी ने अपनी रोबीली आवाज़ में रोहन को फटकारा. लेकिन रोहन भी कहां रुकने वाला था?
“ ओहो…. तो ये शीलू के लिये तैयारी चल रही है…. उससे पूछ लिया है न दादी?”
“पूछना क्या? नीलू से पूछा था क्या? शादी के लायक़ उमर हो गयी अब उसकी. बाक़ी पढ़ाई ससुराल में कर लेगी. अब यहां का दाना-पानी पूरा हुआ समझो.”
“ हाहाहा…. दादीसाब आप भी न! शीलू चिड़िया है क्या, जो दाना-पानी पूरा हुआ? नीलू दीदी से न पूछ के आपने ग़लती की थी दादी. अब नीलू दीदी ही झेल रहीं न उस परिवार को? ऐसा बेमेल ब्याह आपने करवाया न, कि पड़ोसी तक आपस अचरज करते हैं, आपसे भले ही कोई न कहे.” एक सांस में अपनी सालों से जमी पड़ी भड़ास निकाल दी रोहन ने.
दादी अवाक हो अभी रोहन का चेहरा देख ही रही थीं कि गौरी भी हाथ पोंछते हुए वहीं आ गयी.
“ हां मांसाब. रोहन ठीक ही कह रहा. नीलू ने तो पता नहीं कितनी बातें आपसे बताई ही नहीं. हम भी छुपाये रहे. लेकिन अब उन सब बातों को बता देने का वक़्त आ गया है शायद, वरना घर में एक बार फिर वही कहानी दोहराई जायेगी. हमारी नीलू भी कम पढ़ी-लिखी नहीं है, लेकिन आज बातें उनकी सुनती है जो कहीं से भी उसके लायक़ नहीं हैं. ऐसे डर के रहती है, जैसे वे सब उस पर एहसान कर रहे हों. अब नहीं होगा ऐसा मांसाब. शीलू का जब मन होगा, और जिससे ब्याह करने का मन होगा, हम उसी से उसका ब्याह करेंगे.

(क्रमशः)