जीवन पर 8 कविताएँ ALOK SHARMA द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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जीवन पर 8 कविताएँ

दुनिया इतनी सरल नही

दुनिया इतनी सरल नही जो नज़र आये
अक्सर नए राही को दूर के ही डोल सुहाए

बड़ो की बातों का अब वो सम्मान रहा कहाँ
उल्टी ज़ुबाँ कैंची जैसी, माँ-बाप को सिखाए

दर्द तो होगा ही जब मारोगे पैर पे अपने कुल्हाड़ी
ज़िद में रहते अपनी धुन में सही राह कैसे दिखाए

नही है कोई मार्ग लघू , ऊँची चट्टानों पे चढ़ने का
अड़ियल बुद्धि ठोकर खाकर, वापिस लौट आये

जोश-उमंग है भरी कूट कूट कर जो अंदर तक
तोड़ हैं देती जर्रा जर्रा कठिन स्थिती जब आये

लगी है ठोकर जब , मुँह के बल गिर कर चले आये
खुद ही इतने जानिसकार थे तो कौन तुम्हे समझाए


सोंचते तो हैं
सोचते तो है मगर
जाना है किस डगर
हर सुबह तो है नई
पर शाम ए वही शहर

भीड़ से तो भरा है नगर
पर खाली है मन का घर
जादू है दुनिया माया मई
गुरदा है फिर भी लागे डर

चंचल चितवन जो भागे इधर -उधर
मिलती है कहीं क्यों शांत नही, ठहर
स्थूल पड़ा रहेगा, दिन बीते जो कई
हर्ष है पलभर का जीले हर घड़ी हर पहर


वक्त खरीद लो

वक्त खरीद लो आज हो सकता है बहुत सस्ता पड़े
भागदौड़ की ज़िंदगी में कल शायद बहुत महंगा पड़े

रफ़्तार दुनिया की दिन पर दिन देखो कितनी बढ़ रही
टर्बो चार्जर है जिसके पास उसी में तेज़ बैटरी चढ़ रही

भाग सको तो भागो तेज़, इस दुनिया मे सबके साथ
वर्ना घर मे बैठो बेगारीउल्फ़त में हाथ पे रख कर हाथ

जीवन है सिर्फ़ कुछ ही दिनों का स्मार्ट 3d गेम, अच्छे से खेलो
हम तुम हैं कैरेक्टर इसके, जितने टास्क मिले उन सबको झेलो

जितना जीते उतना हर एक कठिन घर आगे ही पहुँचना है
रिस्क लेते रहो और बढ़ते रहो वैसे भी एक दिन वोवर होना है


मैं हारा नही

मैं हारा नही बस थोड़ा मायूस हुआ
जीवन की कुछ तकलीफों से जो घिर गया
मैं गिरा नही बस थोड़ा महसूस हुआ
जीवन की कुछ अड़चनों से जो भिड़ गया
राहें बदली कितनी पर जीवन है वही
अभी समय शायद मेरे अनुकूल नही
मैं रोया नही बस थोड़ा दुःख हुआ
रुकावट की कुछ दीवारों से जो लड़ गया
मैं जाना नही बस थोड़ा आभास हुआ
अपनो के कुछ उम्मीदों से जो भर गया
मैं हारा नही बस थोड़ा मायूस हुआ

मंजिल की चाहत में

मंजिल की चाहत में न जाने कहाँ भटक गए
निकले थे जोश में पर रास्ते मे ही अटक गए

कई तो चलते रहे ,कईयों ने तो चाहत ही छोड़ दी
मंजिल न मिलने पर कईयों ने ज़िन्दगी ही मोड़ दी

जो डटे रहे आख़िर दम तक मंजिल पाने के लिए
प्रेरणा बन गए स्वयं इस दुनिया मे औरो के लिए

क्या क्या करना रहगया बाकी, बस इतना बता दे
बहुत भटक लिया गुमनामी में ऐ ज़िन्दगी तेरे लिए

जाना है कहाँ सपनो की ख़ातिर बस वो राह दिखादे
दर दर झुकाया सिर ग़ैरों के आगे ऐ ज़िन्दगी तेरे लिए

हिम्मत है अब भी अंदर बस थोड़ी सी और बढ़ा दे
बिना रूके निरंतर चलता रहा ऐ ज़िन्दगी तेरे लिए

मिल जाये थोड़ी सी खुशी बस उमीदों के दीप जलादे
काटे हैं दिनरात आफ़त गर्दिश में ऐ ज़िन्दगी तेरे लिए


मौत उड़ा ले गई मेरी ज़िदंगी

सबकी ढाल और मजबूत सहारा था, घर में भी सबसे प्यारा था
ज़िद थी पाने की सपनो को ,उम्मीदें थी मुझसे कई अपनो को

दर्द की अंतिम सीमा पर , मरते छोड़ चली यूँ ज़िन्दगी
थी जरूरत मुझसे जिनको, कर गई जुदा उनसे ज़िन्दगी

काफ़िला था चारों ओर से घेरे,जा रहे थे साथ कई लोग मेरे
भरे थे सबके आँसूवों से चेहरे,सब दिखते जैसे उजालो में अंधेरे

जी करता है सबको अभी हँसा दूँ ,चादर ओढ़े सफ़ेद अभी हटा दूँ
आये जो साथी हमदर्द हमारे मन करे उठकर सबको गले लगा लूँ

मेरा रोना किसको दिखे और घर मे भी रो रहीं थी कई ज़िन्दगी
कल तो बैठे थे साथ में सबके आज मौत उड़ा ले गई मेरी ज़िंदगी


अपनी दुनिया मे

खुला है चारो ओर उड़ते ऊँचे नील गगन में
मग्न हैं पंछी सारे अपनी अपनी दुनिया में

फैला है उपवन बाग बगीचे घर और आँगन में
फूल हैं खिलते सुंदर अपनी अपनी दुनिया में

चलती हवाएँ जब जब सुर ताल शांत लहर में
खिल उठती हरयाली अपनी अपनी दुनिया में

प्रकृति हो उठती नवजीवित बरसे जब सावन में
बीज अंकुरण होता रहता अपनी अपनी दुनिया में

क्या क्या नही बदला इस पावन धरती के परिवर्तन में
चन्द्रसूर्य और तारे आज भी हैं अपनी अपनी दुनिया में

झूट, कपट, ईर्ष्या और लालच जो है केवल इंसानो में
जीव जंतु तो ऐसे ही खुश हैं अपनी अपनी दुनिया मे

बचपन मे जाना चाहता हूँ

मैं वापिस अपने उस बचपन मे जाना चाहता हूँ
भूल गया हँसना जो मुस्कान वो पाना चाहता हूँ

कुछ परेशान सा रहता है दिल न जाने क्यों
न चिन्ता न फिक्र वो सकूँन पाना चाहता हूँ

भाग-दौड़ की लाइफ में दोस्त भी हैं रहते सारे व्यस्त
फुरसती नटखट नन्हे मित्रों से बस मिलना चाहता हूँ

भीड़ है चारो तरफ लोगो की फिर भी क्यों अकेला हूँ
बस मम्मी पापा के संग मे वैसा मेला घूमना चाहता हूँ

मनोरंजन के साधन कई यहाँ, पर व्यर्थ हैं सारे के सारे
रंगीले मन को लुभाते उन खिलौनों से खेलना चाहता हूँ

क्या खाना है क्या है पीना बीमारी के हुए लक्षण हज़ार
माँ जो खिलाती अम्रत हो जाता बस वो खाना चाहता हूँ

अब काम से फुर्सत ही नही मिलती, रोटी जो है चलानी
स्कूल की वो छुट्टी में दादी , नानी के घर जाना चाहता हूँ