उजरिया ALOK SHARMA द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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उजरिया

शहर से दूर एक जंगल के बीच मे कुछ अनुसूचित जनजाती के लोगो का एक छोटा सा कस्बा होता है उसी कस्बे में नारो नाम का व्यक्ति अपने परिवार के साथ रहता है,साथ मे उसकी एक 15 वर्षीय बेटी उजरी तथा एक छोटा बेटा और उसकी पत्नी होती है। उजरी को सभी प्यार से उजरिया बुलाते ।उस कस्बे के सभी लोगो को हमेशा प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ता है, आंधी तूफान में या भारी वर्षा के कारण उन लोगो के घर बार बार कई बार उजड़ जाते है और वे लोग अपने घर को फिर से बनाते हैं क्योंकि प्राकृतिक घर बनाने की उनमें अच्छी कला होती है ।यही कई वर्षों तक चलता रहता है साथ मे जीवन यापन के लिए उन सभी के पास कोई ठोस व्यवस्था भी नही है। अपनी रोजी रोटी केलिए कुछ लोग शहर जाकर मेहनत मजदूरी करके अपने परिवार का पालन पोषण करते है।

नारो भी अपने परिवार के पालन पोषण के लिए शहर जाता है। निरंतर काम न होने से कभी कभी ठीक प्रकार से खाना भी नही नसीब हो पाता जिसके चलते नारो का स्वास्थ्य दिन ब दिन गिरता चला जाता है चिन्ताओं के कारण वह शारीरिक रूप से बहुत कमजोर हो जाता है और काम करने में अक्षम हो जाता है। उसकी बेटी उजरी शिच्छा का अभाव और आर्थिक तंगी होते हुए भी बहुत रचनात्मक बुद्धि वाली लड़की होती है। उसका सपना होता है अपने माता पिता के साथ शहर में जाने का वहाँ रहने का खुल कर जीने का अच्छे विद्यालय में पढ़ने का परंतु भाषा रहन सहन आदि में भिन्नता होने से वो असहाय है और वो अपने पिता की उचित आय न होने से चिंतित भी रहती है । फिर भी उजरिया अपने पिता से शहर के बारे में रोज कुछ न कुछ पूछती रहती है और उसके पिता उसकी जिज्ञासाओं को शांत करते रहते है ।

एक दिन नारों बहुत बीमार पड़ जाता है 3,4 दिन होने के बाद भी ठीक नही हो पाता घर मे कुछ खाने को भी नही बचता है तब मजबूरन नारो की पत्नी को शहर जाकर मजदूरी करनी पड़ती है और वह मजदूरी पर जाने लगती है।कभी कभी उजरिया भी अपने माँ के साथ मे काम पर जाने की जिद्द करती है। जिससे उसकी माँ उसे ले जाती है। उस दिन माँ के साथ उजरी शहर पहूँच कर बहुत खुश होती है वहाँ उसे जन्नत सा प्रतीत होता है माँ को मजदूरी अड्डे पर काम मिल जाता है और वह चली जाती है उसके जाने के बाद उजरी रास्ते भर सबकुछ देखते हुए जाती है उसे बाजारों में कुछ खिलौने कपड़े बर्तन खाने पीने की चीजें आदि दिख जाते हैं और भी कई लुभाउनी वस्तुए जो उसका मन ललचाती है पर कुछ ले नही सकती क्योंकि उसके पास पैसे नहीं थे। पूरा दिन वहीँ आस पास बड़े गौर से सबकुछ देखते हुए कब शाम हो गई उसे पता ही नही चला । काम करने के बाद शाम के वक्त उसकी माँ मजदूरी के पैसों से कुछ भोजन सामग्री खरीदती है। माँ के साथ उजरी उन सभी दूकानदारो को ध्यान से देखती है और उनकी बातों को सुनती है समझने का प्रयास करती है। घर वापिस आकर नारो की पत्नी भोजन बनाती है और अपने पति को दवाई देती है । उजरिया पूरी रात शहर के सपनो में खोई रहती है और सोचती है कि वो भी कुछ ऐसा करे जिससे कुछ पैसे आये और अपने माँता पिता को किसी के पास मजदूरी न करनी पड़े।कुछ ही दिनों में नारो की तबियत पहले से बेहतर हो जाती है । फिर भी उसकी पत्नी काम पर चली जाती है पर आज उजरी को नही ले जाती है। उजरी अपने पिता से पूछती है कि यदि वो भी शहर जाकर कोई सामान बेचे तो क्या बिकेगा इसपर उसके पिता को बहुत आश्चर्य होता फिर भी कहते हैं हाँ पर क्या ? उजरी कुछ बोले बगैर वहां से चली जाती और अपने छोटे भाई की मदद से जंगल से कुछ टहनियां पत्ते लकड़ी और घास फूस बटोर कर लाती है । और एक सुंदर सा छोटे घर का खिलौना बनाती है । अगले दिन वो अपनी माँ के साथ फिर शहर जाने का आग्रह करती है और उस घर को बाज़ार में बेचने के लिए कहती है जैसे सभी अपने सामान को बेंचते हैं । नारो और उसकी पत्नी को ये बड़ा अजीब लगता है फिर भी उजरी की जिद्द के कारण उसकी माँ उसे ले जाती है । शहर में माँ जहाँ काम करती है वही पास में स्थानीय बाजार भी लगता है। उजरी को एक खिलौने वाली महिला के पास थोड़ी सी जगह चिरौरी विनती करने पर मिल जाती और उसकी माँ उसको वही पर छोड़ कर काम पर चली जाती है । पूरा दिन उजरी अपने उस घर को लिये बैठी रही पर घर नही बिका और शाम को अपनी माँ के साथ मुँह लटकाये चली आती है और चुप चाप जाकर अपनी चारपाई पर लेट जाती है सोंचते सोंचते वह कब सो जाती उसे पता ही नहीं चलता। अगले दिन उजरी फिर जाने के लिए तैयार होती है लेकन इस बार उसकी जिद्द पर उसके पिता डाँटते है ये देख आस पास के 2, 3 लोग भी उजरी को समझाते पर वो अपनी ज़िद पर बनी रहती है जबरन उजरी की माँ उसे समझा कर चली जाती है उस दिन उजरी पूरा दिन अपने घर को निहारते हुए मायूस बैठी रहती है और अपने ही आप से बाते करती है । शाम को माँ जब घर आती है तो नारो उसे अगले दिन काम पर जाने से मना कर देता है क्योंकि वो अब ठीक हो चुका होता है । सुबह होते ही नई उम्मीद के साथ उजरी सबके जगने से पहले ही शहर चली जाती है।और उसी बाज़ार में किसी दूसरे स्थान पर अपने घर को लेकर बैठ जाती है घर पर उजरी न मिलने पर उसकी माँ समझ जाती है कि वो कहाँ होगी फिर क्या वो शहर जाकर उजरी को खोजती है जो बाज़ार में बैठी है अपने घर को लिए।माँ आकर उससे जबरजस्ती करती है लेकिन उजरी नही मानती वो वही पर डटी रहती है । अब माँ अपनी बच्ची के ज़िद के कारण हार जाती है और गुस्से में घर चली आती है लेकिन उजरी को कोई फर्क नही पड़ा वो वही पर बैठी रही। कुछ देर में एक बुजुर्ग महिला को उस बाजार में उसका घर भीड़ से अलग दिखाई देने पर अच्छे दामो पर बिक गया।उजरी का मानो बहुत बड़ा सपना पूरा हो गया हो उसने अपने पिता,माँ और छोटे भाई के लिए कुछ चीज़ें ख़रीदी और घर वापिस आई।घर मे नारो अपनी बेटी की इस सफलता पर बहुत खुश हुआ मानो बहुत दिनों के बाद कुछ बदला हो ज़िन्दगी में । अगले दिन उजरी 2,4 घर और कुछ छोटे मोटे खिलौने बनाये और उनको अपने पिता की मदद से बाजार ले गई ।बाज़ार में उसके सभी खिलौने अच्छे दामो पर बिक गए ।अब तो उत्साह और उमंग की कमी न थी उजरी में, नारो को भी समझआ गया था, इसलिए वो भी अपनी बेटी के साथ उसी काम मे लग गया,मानो सभी को एक नया जीवन मिल गया हो । कुछ समय गुजरा और अच्छे अच्छे खिलोने बनाना और बेचना पेशा हो गया नरो का।धीरे धीरे उजरी और उसके परिवार की हालत में काफी सुधार हुआ ।कस्बे वाले उनके काम को देखकर प्रभावित हुए और उन लगो में भी इस कार्य को करने की एक जिज्ञासा जगी, फिर क्या कुछ लोग मिलकर इसको करने लगे और इस काम को अपना रोजगार बना लिया।कस्बे के कई लोग समूह में रचनात्नक खिलौने बनाते और नारो उजारिया मिलकर उसे बाज़ार में बेचते और उससे हुई आमदनी से सभी को फायदा होता जिससे सभी का घर अच्छे से चलने लगा । एक दिन बाजार में उजरी के पास क्राफ्ट का टीचर आया उसे उसकी कला बहुत पसंद आई तो उसने अपने विद्यालय में उस कला को अपने छात्रों को सीखाने की उजरी से अपील की, इस पर उजरी ने ये शर्त रखी कि यदि वो उसे शिच्छा देंगे तो वो ये कर सकती है इस पर वह टीचर राजी हो गया । उजरी को मानो वो सब मिलने वाला था जो वो सोंच रही थी । अगले ही दिन से वो विद्यालय जाने लगी और अपनी पढ़ाई के साथ साथ वहाँ के छात्र छात्राओं को उस कला को सीखाने लगी । समय गुजरा कुछ दिनों बाद शिक्षा ज्ञान होने पर उजरी ने अपनी कला को और प्रसारित करने के लिए उसमे तकनीकी सामग्री का प्रयोग करना शुरू किया जिससे उसके कलात्मक खिलौनों में जान आने लगी ।और उसके छोटे से प्रयास से उसके साथ साथ कस्बे के अन्य कई लोगो का भी विकास होने लगा । खिलौना बनाना और उसे बेचना नारो का मुख्य काम बन गया था जो वह अपने साथियों के साथ मिलकर करता था और उजरिया को जो शिक्षा मिलती अध्यापक से वह अपने कस्बे के छोटे बच्चों में बाटना शुरू कर दिया । कस्बे के सभी लोग और उजरिया का परिवार अब पहले से बेहतर जीवन जीने लगे थे । साथ ही उजरिया ने अपनी उड़ान जारी रखी।