‘दबंग 3' फिल्म रिव्यू ’- स्वागत करें या नहीं..? Mayur Patel द्वारा फिल्म समीक्षा में हिंदी पीडीएफ

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‘दबंग 3' फिल्म रिव्यू ’- स्वागत करें या नहीं..?

'दबंग' और 'दबंग 2' की ब्लोकबस्टर सफलता को दोहराने आई 'दबंग 3' पूरी तरह से सलमान खान की फिल्म है. और हो भी क्यों न..? आखिर वो ही तो है 'दबंग' फ्रेन्चाइजी के पारसमणी. बताया जाता था की 'दबंग 3' जो है वो 'दबंग' की प्रीक्वल है, पर ये बात केवल आधा सच है. हां, 'दबंग 3' में 'दबंग' से पहेले की कहानी जरूर दिखाई गई है लेकिन वो सिर्फ 20-25 मिनिट तक चलती है, बाकी तो पूरी 'दबंग 3' वर्तमान समय में ही बनी है. लिहाजा इस फिल्म को प्रीक्वल तो कतई नहीं कहा जा सकता. कुछ मिनटों के लिए चुलबुल पांडे की बेक-स्टोरी दिखा देने से कोई फिल्म प्रीक्वल नहीं बन जाती.

शुरुआत करते है फिल्म की कहानी से, जो की ना के बराबर ही है. विलन जो है वो हिरोइन की हत्या कर देता है और हीरो उसका बदला लेता है… एक ऐसी घिसिपिटी कहानी जिसे हम करोडो दफा देख-सुन चुके है. इतनी सी बात को ज्यादा से ज्यादा देढ-दो घंटे में निपटाया जा सकता था लेकिन श्री प्रभुदेवा है की मानते नहीं. उन्होंने बेफिजूल के दृश्यो को जबरन ठूंसठूंस कर फिल्म को करीब पौने तीन घंटे तक खींचा है. खींचा तो खींचा पर कोई नयापन देने के बजाय उन्होंने वही एक जैसे गाने, एक जैसे एक्शन सीन और एक ही जैसी सिच्युएशन बार बार लगातार परोसी है की दर्शक उब जाए. विलन हिरोइन को पकड लेता है, कहीं बांध देता है या लटका देता है. पांडे जी आते है, गुंडो की जमकर धुलाई करते है, हिरोइन को छुडाते है, विलन भाग जाता है और हीरो-हिरोइन नाचने-गाने में बिजी हो जाते है. पूरी फिल्म में बस यही होता रहेता है. दो बार, तीन बार, चार बार… हद है यार, दर्शक सहे तो कितना सहे… इतनी महान कहानी का आइडिया खुद सलमान खान का है और उस पर से स्क्रिनप्ले लिखने का कारनामा भी सलमान ने प्रभुदेवा के साथ मिलकर किया है. ये वही समलान है जिसने 1993 की ‘चंद्रमुखी’ जैसी महा-बंडल फिल्म की कहानी लिखी थी.

'दबंग 3' की कहानी जिस बेतूके एक्शन सीन से शुरु होती है उसी से अंदाज लग जाता है की पूरी फिल्म में क्या होगा. माना की एक मसाला हिन्दी फिल्म में लोजिक ढूंढना कानून के खिलाफ है लेकिन एक्शन और कोमेडी के नाम पे कुछ भी दिखा दोगे तो कैसे चलेगा. और सारी जद्दोजहद ‘मनोरंजन’ नाम की जिस चिडिया के लिए की गई है वो तो होती ही नहीं है. फिर क्या फायदा इस प्रीक्वल या सिक्वल या जो भी है उस 'दबंग 3' का..?

प्रभुदेवा कोई ग्रेट डिरेक्टर नहीं है, लेकिन उन्होंने भी ‘वॉन्टेड’ और ‘राउडी राठोड’ जैसी सच मायनों में दर्शक का मनोरंजन करनेवाली फिल्में दी है. यहां, 'दबंग 3' में वो निर्देशक के तौर पर असफल रहे है. एसा लगता है की उन्होंने सभी कलाकारों को पूरी छूट दे दी थी की, जाओ भैया, जिसे जो करना है करो. सल्लुमियां है तो हमारी नैया तो वैसे भी पार लगनेवाली है ही. सभी कलाकार बिना किसी बात के कुछ भी बोलता है, कुछ भी करता रहेता है. डायलोग इतने खराब है की किसी से भी कोई कोमेडी नहीं हो पाई है. चुलबुल पांडे विलन को धमकाते हुए डायलोग बोलता है, और बेकग्राउन्ड में ढेंटेणेणेन… म्युजिक बजता है. जैसे कोई बहोत महान डायलोग बोला गया हो. पर लिखावट इतनी कमजोर है की एक-दो पंच को छोड के कोई भी डायलोग असरदार नहीं लगता. फिल्म के एडिटिंग के लिए एक ही शब्द है- खराब. कोई नौशीखिया भी इस फिल्म को कांटछांट कर दो घंटे में निपटा सकता है इतने फालतू सीन इस में ठूंसे गए है. फिल्म में छोटे छोटे सामाजिक संदेश देने की भी कोशिश की गई है जैसे की, पानी बचाओ, दहेज हटाओ… वगेरा वगेरा… लेकिन वो ज्यादा असरदार साबित नहीं होता.

ऐक्टिंग की वात करे तो रॉबिनहुड उर्फ चुलबुल उर्फ करु पांडे के रोल में सलमान का कोई विकल्प नहीं है. उनका स्वॅग, उनकी बॉडीलेंग्वेज, उनकी संवाद-अदायगी सभी कुछ एक नंबर है. उनकी फालतूगिरी, उनकी अच्छी-ओछी सारी हरकतें बडी ही प्यारी लगती है. अपने रोल को उन्होंने पूरी शिद्दत से निभाया है. फिल्म की दोनों हिरोइन सोनाक्षी और सई ने अच्छी अच्छी साडीयां पहेनने, खूबसूरत दिखने, स्माइल करने और नाचने-गाने के अलावा और कुछ नहीं किया है. अब सलमान की फिल्म है तो जो कुछ भी करने को मिले उसी में गनीमत समजनी चाहीए, है ना..? दोनों हिरोइनों ने अपने हिस्से में जो भी आया है उसे अच्छे से निभाया है. तीनो प्रमुख कलाकारों के कोस्च्युम्स और स्टाइलिंग इतना बढिया है की तीनों बडे ही सुंदर लगे. महेश मांजरेकर की बेटी सई मांजरेकर ने अपनी पहेली ही फिल्म से उम्मीदें बढा दी है.

सुदीप किच्चा की विलनगिरी ठीकठाक है. चुलबुल के भाई मक्खी के रोल में अरबाज खान ने भी कुछ खास नहीं किया है. इनके अलावा महेश मांजरेकर, नवाब शाह, राजेश शर्मा जैसे कलाकारों ने भी पिद्दु से छोटे छोटे रोल किए है. चुलबुल की मां की भूमिका में डिंपल कपाड़िया को देखकर दुःख होता है. पूरी जिंदगी अच्छा काम करके जो सन्मान कमाया उसे ऐसे कचरे जैसे रोल करने धो डालना है क्या, डिंपलजी..? फिल्म में ‘डोली बिन्द्रा’ भी है और उन्होंने वही किया है जो बिगबोस में करने के लिए वो नामचीन उई थीं. सभी सहायक कलाकारों ने जितनी हो सके उतनी बेवकूफियां की है. यहां तक की सेन्सिबल लगनेवाले पात्रों से भी बेअसर डायलोग बुलवाए गए है, बेकार हरकतें करवाई गई है.

फिल्म का ऐक्शन और VFX अच्छे है. स्लो मोशन शोट्स कहीं कहीं प्रभावशाली है, लेकिन उन में भी कोई नयापन नहीं है. सिनेमेटोग्राफी बढिया है. कोरियोग्राफी और ज्यादा अच्छी हो सकती थी. फिर भी कहेना पडेगा की सलमान के स्टेप्स बहोत ही मजेदार है. उन्हें नाचते हुए देखना भी एक ट्रीट है. बेकग्राउन्ड स्कोर जबरदस्त है. खास कर के एक्शन सीन्स में. साजिद-वाजिद के संगीत में कुल 6 गाने बने है. आधे गाने फिल्म में बस ऐसे ही कहीं से भी टपक पडते है. 'मुन्ना बदनाम हुआ…' देखने-सुनने में बढिया है, लेकिन ‘दबंग’ के ‘मुन्नी बदनाम…’ और ‘दबंग 2’ के ‘फेविकोल…’ गाने में हुस्ने के जो हसीन जलवे मलाइका अरोडा और करिना कपूर ने दिखाए थे उनकी कमी ‘मुन्ना बदनाम…’ में साफ खलती है. इस गाने में दिखी वारिना हुसैन कोई छाप नहीं छोड सकी. उनकी जगह ‘जेक्लिन फर्नान्डिस’ या ‘नोरा फतेही’ जैसी कोई पटाखा होती तो ये गाना आग लगा देता. अफसोस, ये नहीं हुआ… फिल्म के बाकी गानों में ‘हुड हुड दबंग…’ अच्छा है. बाकी के गाने उसी तर्ज पर बने है जिस तर्ज पर पहेली दो फिल्मों के गाने बने थे. कह सकते है की म्युजिक के मामले में भी ‘दबंग 3’ पीछली दो फिल्मों के मुकाबले थोडी कमजोर है.

कुल मिलाकर देखें तो ‘दबंग 3’ एन्टरटॅनमेन्ट के मामले में ‘दबंग’ और ‘दबंग २’ के मुकाबले फिकी लगती है. मेरी ओर से 5 में से 2 स्टार्स. सलमान के डायहार्ड फेन हो तो इसे देखें क्योंकी शुरु से लेकर आखिर तक ‘दबंग 3’ को सलमान खान के फैन्स को ध्यान में रखकर ही बनाया गया है. मुजसे तो नहीं हुआ इस फिल्म का स्वागत; आप अपना देख लो…