सबरीना - 14 Dr Shushil Upadhyay द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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सबरीना - 14

सबरीना

(14)

यहां अय्याश ही आते हैं

रात ढल रही थी, पर शहर अभी गहरी नींद में सोया हुआ था। ताशकंद ने अपनी धरोहरों को करीने से समेटा हुआ था। साम्यवादी ढंग की इमारतों के बीच पुराने दौर के इक्का-दुक्का गुंबद, मदरसों की इमारते और इसलामिक संस्कृति के केंद्र इस शहर में कोई नया रंग भरने में नाकाम दिखते थे। सबरीना ने खुद को सुशांत के कंधे से अलग करने की कोई कोशिश नहीं। शून्य में देखते-देखते सुशांत को कल रात का वाकया याद आ गया, जब वो दिल्ली से उड़कर ताशकंद इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर उतरा था, पहली निगाह में उसे निराशा हुई थी। जैसे भारत में किसी दूरदराज के एयरपोर्ट पर पहुंच गया हो। एयरपोर्ट से बाहर आने में ज्यादा वक्त नहीं लगा। उसके मेजबानों ने एयरपोर्ट पर टैक्सी भिजवाई थी। टैक्सी ड्राइवर कम उम्र का लड़का था। वो धाराप्रवाह उर्दू बोल रहा था, टैक्सी में बैठने के कुछ ही पलों में उससे दोस्ती हो गई, उसने अपना नाम दानिश बताया। दानिश ने इसी साल अपनी ग्रेजुएट डिग्री कंपलीट की थी। वो भी एक-दो नहीं, बल्कि पांच भाषाओं के साथ। जब उसने बताया तो सुशांत को यकीन नहीं हुआ, गे्रजुएट लेवल पर पांच भाषाएं! हिन्दुस्तान में तो दो से ज्यादा भाषाएं एक साथ नहीं पढ़ सकते। दानिश हाजिर जवाब था।

‘हिन्दुस्तान में ब्रिटिश पैटर्न से पढ़ाई होती है, जबकि हम रशियन पैटर्न फोलो करते हैं। भाषांए पढ़ रहे हैं तो फिर भाषाएं ही पढ़ते हैं, और कुछ नहीं।’

‘तुमने कौन-सी भाषाएं पढ़ी हैं दानिश‘ सुशांत ने पूछा।

‘ रूसी, अंग्रेजी, उर्दू, अरबी और उज्बेकी।‘

‘ वाह, तब तो तुम आधी दुनिया से सीधे बात कर सकते हो‘ सुशांत ने शाबासी के अंदाज में कहा।

‘ नहीं, मैं तीन चैथाई दुनिया से बात कर सकता हूं। उर्दू पढ़ी है तो फिर हिन्दी बोलने और समझने में दिक्कत नहीं होती।’

‘ हां, ये भी सही है। अब पढ़ाई के बाद क्या करते हो ?‘ सुशांत ने बात आगे बढ़ाई।

‘ रात में टैक्सी चलाता हूं और दिन में बराक खान मदरसा, टीला शेख मसजिद और बुखारी के इसलामिक संस्थान में दुभाषिये का काम करता हूं। वैसे मेरा मन तो इनडिपेंडेंस स्क्वायर और मान्यूमेंट आॅफ करेज पर काम करने का करता है, लेकिन वाले आने लोग पैसे ही नहीं देते।’

‘ अच्छा! ऐसा है क्या!’ सुशांत ने आश्चर्य जताया।

‘ हां, ऐसा ही है। उज्बेकिस्तान में हमारे आसपास के गरीब मुल्कों के लोग ही घूमने आते हैं या फिर नाइट-लाइफ के दिवाने आते हैं। और इनका वश चले तो ये हम जैसों से ही पैसा छीन लें।..........आप तो प्रोफेसर हैं ना?’ दानिश ने अचानक अपनी बात बदलते हुए सुशांत से पूछा। सुशांत ने हल्की मुस्कुराहट के साथ सहमति में जवाब दिया। दानिश बातों का शौकीन था। विदेशियों को लेकर कोई झिझक भी उसमें नहीं दिख रही थी। वो एक बात खत्म करता और दूसरी शुरू कर देता। उसके पास जानकारियों का भंडार था। इस बातचीत में सुशांत की भूमिका कुछ शब्दों में जवाब देने तक ही सिमटी हुई थी।

‘ वैसे, एयरपोर्ट से होटल टाशकेंट के रास्ते में बहुत कुछ आएगा। मैं आपको ऐसे रास्ते से ले चलूंगा कि आप आधा शहर आज ही देख लेंगे।‘ सुशांत थका हुआ था, लेकिन दानिश की बातों से उसे लगा कि ताशकंद को समझने के लिए इससे बेहतर आदमी नहीं मिलेगा।

‘ अगर आपकी रुचि इसलामिक इतिहास में हो तो यहां सातवीं शताब्दी की विशाल आकार की कुरान आपको देखने को मिलेगी और वास्तु के नमूने देखना चाहते हैं तो हम टीला शेख मसजिद और अल बुखारी चल सकते हैं। वैसे, मैं आपको पहले मान्यूमेंट आॅफ करेज दिखाता हूं। ये इंसानी जीवटता की तस्वीर है। काले पत्थरों से मां-बाप और बच्चे को तराशा गया है। मेरे अब्बा बताते हैं कि 50 साल पहले आए जलजले में पूरा शहर बर्बाद हो गया था। तब, नए सिरे पूरा शहर बना। रूसियों ने अपने ढंग से बनाया। अब उज्बेक की बजाय रूसी शहर ज्यादा लगता है। मान्यूमेंट आॅफ करेज ताशकंद के दोबारा उठ खड़े होने का सबूत भी है।‘

सुशांत ने दानिश को टोका, ‘ तुम ऐसे ही हर किसी को बताते होगे, मुझे ये गाइड वाला ढंग कुछ जमता नहीं है। मुझे ऐसे बताओ जैसे तुम्हारा कोई दोस्त पहली बार ताशकंद आया हो और तुम उसे अपना शहर दिखाना चाहते हैंै। मुझ पर तथ्यों की बमबारी मत करो।’ दानिश ने सुशांत की ओर देखा और बोला-‘ठीक है।’

‘ आपको पता है, हम दुनिया के सबसे गरीब मुल्कों में से एक हैं। हमारे पास रूसियों द्वारा बनाए गए एक लाख से ज्यादा मकान हैं, हम पढ़े-लिखे हैं और आजादी भी है। पर, हम अमीर लोगों के लिए रेड-लाइट एरिया में तब्दील हो रहे हैं। दुनिया के अय्याश लोग यहां आते हैं, उज्बेक लड़कियों को ले जाते हैं, फिर आते हैं और नई लड़कियों को ले जाते हैं। ये है उज्बेकिस्तान का नया चेहरा, ये ताशकंद की असली सूरत है। आपने मुझे अपने दोस्त माना है इसलिए बता दिया, ये ही सच है।‘

‘ पर, मैंने तो उज्बेकिस्तान के बारे में ऐसा कुछ नहीं सुना।’ सुशांत ने प्रतिवाद किया।

‘ अच्छा है, नहीं सुना। पर, अब आप अपनी आंखों से देखोगे, तब सुनने की जरूरत नहीं पड़ेगी। बेकारी इतनी ज्यादा है कि बाजार सामानों से भरे हैं, पर खरीददार नहीं है। एक डाॅलर के बदले हमारी करेंसी के तीन हजार नोट मिल रहे हैं। आप देखना, यहां चाय पीने के लिए भी थैले में नोट ले जाने पड़ते हैं। अभी तो सब कुछ सोवियत संघ द्वारा छोड़े गए ढांचे पर चल रहा है। जब वो नहीं रहेगा तब मुल्क के हालात बहुत खराब होंगे।’

अपने देश, समाज और आर्थिक हालात को लेकर दानिश की समझा बहुत अच्छी थी। सुशांत उसे सुनता रहा और बीच-बीच में कुछ पूछता रहा, दानिश के पास शहर से जुड़ी हर बात का जवाब था।

‘ आपको बताऊं, इस शहर का उज्बेकी उच्चारण तोशकंद हैै और इसका अर्थ है पत्थरों का शहर! मेरे अब्बा अक्सर कहते हैं-दानिश, ये पत्थरों का शहर है। यहां संभलकर रहना। पर, मैं कहता हूं-अब्बा, तोश का अर्थ दोस्ती भी होता है। मेरे लिए ये दोस्ती का शहर है। मैं निराश नहीं हूं, पर अपने मुल्क को दानिशवरों का मुल्क बनाना चाहता हूं, अय्याशों की सैरगाह नहीं।’ गाड़ी चिरचिक नदी के पास से गुजर रही थी। नदी को देखकर दानिश खुश हो गया-‘ ये ताशकंद की लाइफ लाइन है। ये चिमगन पहाड़ों से आती है। ये न हो तो ताशकंद प्यासा कर जाए। हमारे चिमगन पहाड़ बहुत खूबसूरत हैं। आपके हिमालय की तरह। आप जाइये, आपको हिमालय की याद आ जाएगी। जाइयेगा जरूर!’

‘ मुझे और क्या देखना चाहिए दानिश ?‘ सुशांत ने पूछा।

‘ आपके पास जब आधे दिन का वक्त हो, मुझे फोन कीजिएगा। मैं आपको यहां की साप्ताहिक हाट ले चलूंगा। आप असली उज्बेकिस्तान देख पाएंगे।’ अचानक सुशांत की तंद्रा टूटी और उसने अपने आप को दानिश की बजाय सबरीना के साथ पाया। जैसे, उसने खुद को बताया, एक उज्बेकिस्तान वो है, जिसमें दानिश है और एक ये है जिसमें सबरीना है और उसका अतीत है। दिन भर की थकान और भावनात्मक उतार-चढ़ाव से दो-चार हुई सबरीना की आंख लग गई थी। सुशांत को एक पल के लिए लगा कि वो सबरीना का विस्तारित हिस्सा ही है। सबरीना की सांसें सम चल रही थी, सुशांत अपनी गरदन पर सबरीना की सांसों से उपजी गर्माहट को साफ-साफ महसूस कर रहा था।

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