बारिश के दिन थे लेकिन वर्षा नही हो रही थी, पर घने काले बादल मंडरा रहे थे । उसके पास रेन कोट नही था, उसने सिर बचाने के लिए केवल प्लास्टिक का एक टुकड़ा साथ रखा था ।
उसे पहुचने में देर हो गयी थी। उसे उसके मालिक ने याद किया था ।
चेहरे पर बेचारगी का भाव लिए वो हमारे सामने गिड़गिड़ाता खड़ा था और मेरा दोस्त था कि उसे बात बात पर गाली दे रहा था । उसकी हजार कमियॉं निकाल कर उस पर बरस रहा था । वो उसके गाली से भरे डायलाग सुनता रहा, क्योंकि वो उसकी नौकरी करता था और उस जैसे लाखों लोग बेकार पड़े थे जो उसकी जैसी नौकरी के मोहताज थे । ऐसे में यदि वो जरा भी प्रतिकार करता तो उसके सामने बेराजगारी और भूख खड़ी थी ।
कभी कभी आदमी सब कुछ सहने और सुनने के लिए किस कदर मजबूर होता है यह देखकर मेरी ऑंखें भर आई थीं । मैं चाह कर भी उनके बीच हस्तक्षेप करने में असमर्थ था ,क्योंकि उस मामले में मेरा वहॉं कोई अधिकार नही था और मैं भी अपने उस रईस दोस्त की मेहरबानियों का कर्जदार था, जिसके कारण उसकी हॉं में हॉं मिलाकर उसके अहंकार का पेट भर रहा था ।
मैं अपने दोस्त के ऐसे व्यवहार पर तरस भी खा रहा था क्योंकि जो कुछ भी उसे हासिल हुआ था, उसकी वजह से उसके भीतर अहंकार की गर्मी थी, जो उसे बार बार उबाल रही थी और जो उसके क्रोध भरे बर्ताव की कढाई में उबल रहा था। वो हालात का मारा गरीब और मजबूर नौकर था। आर्थिक विषमता के इस संसार ने एक को सबकुछ दे रखा था और एक को सबसे वंचित कर रखा था। आहत मन के साथ वो मायूस बैठा था, उसकी ऑंखों में ऑंसू थे और उसे दी गई हर गाली को याद कर वो उन्हे किसी तरह पी रहा था और जबरन ढीठ बनने की कोशिश कर रहा था । क्योंकि यदि वो ढीठ और बेशरम नही बना तो उसका जीना मुश्किल हो जाएगा । पर वो लाख ढीठाई दिखाए उसके भीतर मेरे उस दोस्त के प्रति चिंगारी कहीं न कहीं जल रही थी । और समय ने पल्टा खाया तो हो सकता है कि वो अपना हिसाब बराबर कर ले । और हुआ भी यही वहाँ से निकाले जाने के बाद उसने सरकारी नोकरी के लिए परीक्षाओं की खूब तैयारी की और आखिरकार एक दिन उसका चयन आयकर विभाग में हुआ । और उसी शहर में उसकी नियुक्ति हुई जहाँ उसने अपमान,उपेक्षा और तिरस्कार सहे थे ।
और एक दिन जिस सेठ ने उसे बेइज्जत कर नोकरी से निकाला था, उसी के व्यवसायिक प्रतिष्ठानो में आयकर का छापा पड़ा । बहुत जांच हुई और उनकी बेहिसाब चोरी और आमदनी पकड़ी गई । उनकी फाइलों की रिपोर्ट बनाने की जिम्मेदारी उसे ही मिली थी और वो एक एक वाउचर,लेन- देन की रसीद सब देख रहा था ....उसके सामने वही सेठ बेचारगी का भाव लिए उसकी ओर देख रहा था, वो उम्मीद कर रहा था कि पुराने सम्बंध से कुछ काम निकल जाए । पर शर्म से उसकी नजर झुकी थी क्योंकि उसने उसका बेहद अपमान किया था ।
पर इन सबसे उन फाइलों में कुछ भी नही किया जा सकता था, वे जो थीं सो थीं और उनके आधार पर उसे फाइन ओर सजा दोनो होने वाली थी ।
वक्त ने हिसाब ले लिया था ......
इस घटना से मुझे एक पंक्ति याद आई - कि लोग भूल जाते हैं कि आपने क्या कहा था,लोग भूल जाते हैं कि आपने क्या किया था,लेकिन लोग यह कभी नही भूलते कि आपने उनके साथ कैसा बर्ताव किया था ।
बर्ताव आखिर क्या है ऑंखों और जुबान से किसी दूसरे के लिए निकला भाव और शब्द ही तो है । अपने बर्ताव पर नजर रखें ,क्योंकि यही ज्यादा महत्वपूर्ण है यदि यह महत्वपूर्ण नही होता तो आज तक जितने भी महाभारत हुए हैं उनमें बहुतों का कारण बदजुबानी और अपमान भरा बर्ताव रहा है । दूसरों को दुःखी करने,चिढ़ाने,नीचा दिखाने और अपमानित करने के लिए प्रयोग किया गया व्यवहार एक दिन लौट के मिलता है । इसलिए कभी अपने बर्ताव से किसी का दिन खराब न करें और
आपका बर्ताव तभी बदल सकता है ,जब आप वक्ता और श्रोता दोनो बनने की आदत डाल सकें । कोई भी व्यवहार यदि हम किसी के साथ करते हैं तो सामने वाले की ओर खुद को रखकर उस व्यवहार के खुद पर असर की कल्पना करनी चाहिए फिर भी अहंकार सामने आए तो सोचना चाहिए कि ये दुनिया आखिर जादू का खिलौना ही तो है कभी रंगत किसी पर चढ़ती है कभी किसी पर, इस रंगत से जो मदहोश हो गया उसके गिरने की संभावना ज्यादा होती है, जो इस रंगत में अपने होश कायम रखा वो हालात की ऑंधी में गिरकर भी फिर उठ जाता है ।
इसलिए क्यों ना सफर के हर मोड़ पर मिलने वाले हर हमराही के लिए प्यार भरी दुआ निकले। और भरोसा इस बात पर कायम रहे कि मीठी जुबान और मुस्कान जिंदगी की बहुत सी मुश्किलों को आसान कर देती है ।