नार, तू उठा हथियार Namita Gupta द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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नार, तू उठा हथियार


॥। नारी अब तू उठा हथियार ॥

नारी ! अब तू उठा हथियार ,
अब जो करे तुझ पर अत्याचार।
यहां नहीं है कोई तेरा,
जो तुझे बचा पाएगा,
वासना की आग में तप कर,
सहज निवाला बनाएगा ।
उसकी हवस के आगे
अब ना तू होना लाचार।
कितना क्रूर ,पाषाण हुआ
शैशव को भी ना बख्सा है ,
धात्री ! तेरे हाथों ही,
उसका होगा संहार है ।
कोई कृष्ण, न आएगा,
जो दुशासन से तुझे बचाएगा,
पाप किया था इंद्र ने
किन्तु –
सजा अहिल्या ने पाई थी,
हठधर्मी रावण की कीमत
मां सीता ! ने चुकाई थी।
यह कैसी बीमारी?
अब कैसी लाचारी है?
अब तक जो हुए अन्याय
तुझको न कभी मिला न्याय है ।
जितने भी कानून बने ,
अपराधी फिर भी बचता है,
शारीरिक, मानसिक , वैचारिक,
है आखिर यह बलात्कार,
क्यों भोगी ही सजा भोगे ?
अपराधी क्यों छूटे?
सागर में मंथन जारी,
वैचारिक चिंतन जारी,
शारीरिक क्रन्दन जारी,
यह फैली महामारी
जो है व्यभिचारी ,
उसको तो सजा भारी
कानून के हाथ है छोटे,
बिना सबूत के दोषी छूटे।
बहनों !खुद ही इस को
सरेआम सूली पर लटका दो,
कामपिपासू ,वहशी और दरिंदा
पर हथियार उठा लो
वह बच ना पाए जिंदा।
कोई क्यों हो ?
वह खुद हो
अपने कृत्यों पर शर्मिंदा ।।


(2)
॥माँ! क्यों तू चली गई ?॥

छोड़ अकेला इस जग में,
मां ! तू क्यों चली गई ?
शैशव से अब तक तूने
माँ !मुझे दुलराया था ,
अनसुलझी हर गाँठों को ,
पल भर में सुलझाया था ।।
जितना प्यार दिया तूने ,
फिर क्यों ममता भूल गई ?

मेरे नन्हे कदमों को
तूने चलना सिखलाया था।
कांटो भरे सफर में हंसकर ,
पाँवों को सहलाया था ।।
पथरीली राहों में ठोकर ,
खाने को अकेला छोड़ गई ।

जब तक तू थी साथ मेरे ,
हर मुश्किल आसान लगती थी।
तेरे एहसासों के बीच ,
हर शाम सुहानी लगती थी ।।
तेरे बिन मैं कुछ भी नहीं,
क्यों प्रीत तोड़ कर चली गई ??

मां ! तेरे होने से जग सारा ,
अनमोल खजाना लगता था ।
बस एक तेरे ना होने से ,
अपना भी बेगाना लगता है।।
ढूंढ रही मैं हर एक शिवाला ,
जिसके धाम तू चली गई ।
तुम कहां चली गई ।।

माँ ! मैं हर मूरत मे ,
तेरी छाप ढूंढती रहती हूं ।
कहां रूठ कर चली गई ,
मन ही मन मैं रोती हूँ ।।
एक झलक दिखला दो ,
उम्मीद मेरा दम तोड़ गई ।
माँ !क्यों तू उस धाम चली गई ।।

नमिता गुप्ता (मौलिक ,स्वरचित रचना )


(3)
अब तो हम . …!!
**************
अब तो हम गा ले ,
कुछ दर्द भरे गीत ।
मन को जो सुकूँ दे,
बजाओ ऐसा संगीत ।।
अपनी ही धुन में,
सब आ जा रहे हैं,
कुछ ना किसी से कहे ,
सब झूम रहे हैं ।
दुनियाँ है खूबसूरत ,
देखो मन भर मनमीत ।
अपने - अपने सपने,
सब खोए हुए हैं ।
हो कर अलमस्त ,
खुद में खोए हुए हैं ।
इतने ऊंचे हो गए ,
खो गई है प्रीत ।
अब तो हम गा ले ,
कुछ दर्द भरे गीत ।
नेताओं के ऐसे हैं,
कुछ बेतुके बोल ,
सत्ता के आगे हैं,
बेबस ,बेडौल ,
गिर के वो ढूंढते,
एक दूसरे का अतीत ।
अब तो हम गा ले ,
कुछ दर्द भरे गीत ।
सपनों की अब तो ,
झींज गई है चादर,
उत्सुक हैं भरने को ,
अपनी ही गागर ,
दशकों से चली
आ रही है यह रीत ।
अब तो हम गा ले,
कुछ दर्द भरे गीत ।