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तोहफा

तोहफा

घर आते- आते सहज को रात के आठ बज गए थे | उसने अपने फ्लैट का ताला खोलकर दरवाजा लॉक करके वो सीधे अपने बेडरूप में गया और बिना कपड़े उतारे ही बिस्तर पर पसर गया | आज उसे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था | उसका किसी काम में मन नहीं लग रहा था | उसे कुछ खाने की इच्छा भी नहीं थी इसलिए वो सीधा घर पर चला आया | न जाने क्या आज उसका मन बेहद उदास था | वो सोने की कोशिश करने लगा लेकिन नीद भी उससे जैसे कोसो दूर थी जो आने का नाम ही नहीं ले रही थी | आखिर वो क्यों इतना बैचेन व परेशान है ?

अभी उसे पाँच महीने ही तो हुए थे बैंगलोर आए | एक मल्टी नेशनल कम्पनी में बढ़िया जॉब डेढ़ लाख रुपये महीने सैलरी किसी भी चीज की उसे कमी नहीं थी, फिर भी सहज उदास था । हाँ ! यह जरुर कि वो पहली बार दिल्ली से बाहर निकला था | दिल्ली आई-आई-टी से बी-टेक और दिल्ली आई-आई एम से एम. बी. ए करने की वजह से उसे कही बाहर जाना नहीं पड़ा | नहीं वह हास्टल में रहा घर से कालेज और कालेज से घर, बस पढाई और पढ़ाई इसी पर उसने पूरा ध्यान दिया था तभी तो उसे हमेशा अच्छे सस्थान से पढ़ने का भरपूर मौका व फायदा मिला |

इसी बीच उसका परिचय सगुन से हुआ | सगुन ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से M. S. C किया और वही उसे फिजिक्स मे पी. एच. डी. भी करने का मौका हाथ लग गया । सगुन को रिसर्च के सिलसिले में अक्सर आई. आई. एम में उसका आना होता था तभी उसका परिचय सहज से हुआ था | सहज की फिजिक्स बहुत अच्छी थी । सर ने सहज को सगुन की सहायता के लिए लाइब्रेरी से फिजिक्स के पेपर ढूंढने मेंअक्सर उसे जाना होता था । यूँ तो वह देखने में बेहद शांत शालीन और हसमुख थी | जादातर वह अपने काम में ही खोई रहती थी | सहज को एक ही नजर में वो भा गई | एक दिन कैन्टीन में कॉफी पीने क्या बैठे.. फिर अक्सर ही दोनों की कैन्टीन में कॉफ़ी के बहाने मुलाकात होने लगी | धीरे-धीरे न जाने कब से वो आम से खास हो गई सहज को पता ही नहीं चला |

सहज के माता-पिता जब भी उसके विवाह की बात करते तभी वो टाल देता, लेकिन अब जब उसकी जॉब लग गई तब उसने घर मे बताना जरुरी समझा | जब सहज के पिता ने एक से एक अच्छे- रिश्ते आने की बात कही और लड़कियों की फोटो उसके सामने रखी तो उसने स्पष्ट विवाह करने से मना कर दिया |

पिता ने पूछा – “बेटे अब तो नौकरी भी करने लगे हो तो शादी क्यों नहीं करते हो ?”

पिता जी ! मै सगुन से प्यार करता हूँ और उसी से शादी भी करूँगा |”

यह सुनकर बोएकाएक सन्न से रह गए फिर भी अपने आप को समालते हुए – क्या करती है वो ?”

पापा वो P.H.D कर रही है |”

“ ठीक है ” लेकिन वो अपनी जाति की तो है न |”

सहज डरते, सकुचाते हुए – “नहीं पापा, वह एक एक नीची जाति की है |”

यह सुनते ही उनका पारा एकदम साँतवे आसमान पर जा पहुँचा | वो चीखते हुए से – कहाँ हम ठाकुर और वो नीची जाति की यह नहीं हो सकता है | क्या अपनी जाति मे लडकियों की कोई कमी है ? सैकडो रिश्ते आ रहे है | अपनी ही बिरादरी की पद और प्रतिष्ठा में ऊँचे रसूखदार परिवार की लड़कियों की कोई कमी नहीं है ।” कान खोलकर सुन लो उस लड़की से तुम्हारी शादी नहीं हो सकती | यह मेरा आखिरी फैसला है । पापा के फैसले को कोई बदल नहीं सकता था और न ही कोई उन्हें समझा सकता था क्यों कि वह बहुत ही सख्त स्वभाव के थे ।

फिर भी साहस बटोर कर सहज ने कहा “पापा जाति औंर धर्म को आज के जमाने मे कोई नहीं मानता फिर आप क्यों इन बातों को महत्व देते हैं ? सगुन बहुत ही अच्छी लडकी है । एक बार उससे मिल तो लेते आप लोग ।‘

ठाकुर साहब पुनः दहाड़े –“जानते हो किसी अन्य बिरादरी मे शादी करने से मेरी इज्ज़त मे बट्टा लग जाएगा ।नहीं मैं नहीं कर सकता अन्तरजातीय विवाह ।शादी तुम्हें मेरी पसंद की लडकी से ही करनी होगी ।‘

सहज मन मारकर अपनी नौकरी पर बैगलोर चला आया | तब से न पापा ने उससे बात की और न ही सहज की हिम्मत | पडी पापा से बात करने की । हाँ, माँ औंर भाई - बहन से जरूर उसकी बात होती रहती थी | न तो वह सगुन को भुला पा रहा था औंर न वह अपने परिवार को छोड़ सकता था । इसी उधेड़बुन मे खोया हुआ था ।

तभी उसके फोन की घंटी बजी | उसने फोन रिसीव किया | फोन उसके मित्र का था सभी उसे उसकी जन्मदिन की शुभाकामनाएं दे रहे थे | रात के बारह बज गए थे । आज पन्द्रह नवम्बर हैआज तो उसका जन्मदिन है | मित्रो के फोन आए लेकिन घर से किसी का फोन नहीं आया | उसका मन टूट गया | ऐसा पहली बार हुआ कि छह महीने से ऊपर हो गया था जब पापा से उसकी बात नहीं हुई । सहज अपने घर में सबसे बड़ा था इसलिए वह सभी का प्यारा था । लेकिन मेरे इस एक फैसले से पापा को बडा धक्का लगा । मैंने उनके सारे सपने तोड़ दिए थे किंतु मैं भी क्या करता ? मैं भी तो सगुन को नहीं भुला पा रहा था, रह-रह कर उसका प्यार ,उसकी छवि, उसकी बातें सब कुछ चलचित्र की तरह नजरों मे घूमने लगता था और फिर वह तडप उठता था सगुन के लिए ।

आज पहली बार ऐसा हुआ था कि वो अपने जन्मदिन पर घर व शहर से इतनी दूर था | वरना हर साल उसका जन्मदिन मम्मी – पापा बड़े ही उत्साह से मनाते थे | दोस्तो के साथ भी पार्टी होती थी और घर में पार्टी होती थी | उसे बहुत अच्छा लगता था | किन्तु इस बार ऐसा कुछ भी नहीं था | आज वो सभी को बहुत ही मिस कर रहा था । न तो वो माता –पिता को छोड़ पा रहा था और न ही वो सगुन को | यही सब सोचते- न जाने कब उसकी आँख लग गई और वो सो गया |

आँख खुलते ही उसने घड़ी देखा तो देखा सुबह के दस बज गए थे | खैर आज रविवार था इसलिए ऑफिस की जल्दी नहीं थी |

उसे फिर से रात की सारी याद आने लगी, वो फिर उदास हो गया | तभी उसे याद आया अरे, आज तो मेरा जन्मदिन है कुछ नहीं तो आज कही घूम आता हूँ शायद थोड़ा मन ही बहल जाए । सहज जल्दी से, तैयार हो गया | रात उसने कुछ खाया भी नहीं था इसलिए उसे भूख भी लग रही थी | उसने ब्रेड पर बटर लगाया और चाय बनाकर नाश्ता किया | वह बाहर जाने की सोच ही रहा था कि तभी दरवाजे की कॉल बेल बजी – “उसने सोचा इस समय कौन आया है ? यूँ तो कोई घर पर आने वाला नहीं था |” यह सोचते हुए उसने दरवाजा खोल – सामने देखकर आश्चर्यचकित हो गया | “पापा, मम्मी आप लोग अचानक कैसे ? मुझे बताते मै स्टेशन आ जाता आपको लेने |” यह कहते उसका गला रुद् गया | माँ ने आगे बढकर गले लगते हुए – आज पहले तो तुम्हे जन्मदिन की मुबारक हो |” फिर हमेशा तो तुम अपना जन्मदिन हम सबके साथ मनाते थे तो आज अकेले कैसे रहते ?

सहज ने आगे बढकर माँ, पापा के पैर छुए तो उन्होंने भी उसे गले लगाते हुए ढेर सारे आशिर्वाद दिए ।

सहज ख़ुशी से उन्हें अन्दर लाता इससे पहले ही पापा ने बाहर देखते हुए-आइए भाई साहब |”

तभी सगुन के माता-पिता भी अन्दर आ गए |

उनकी तरफ इशारा करते हुए – “बेटे आज के दिन तुम्हारे जन्मदिन का इससे अच्छा तोहफा और नहीं हो सकता था | ” पापा ने कहा - “बेटे तुम्हारी पसंद ही हम सबकी पसंद है ।

अब सगुन से ही तुम्हारी शादी होगी |’ सहज स्वतः उनके पैरों मे झुक गया, पिता ने पुनः अपने सीने से लगा लिया । उसने देखा कि माँ भी हौले-हौले मुस्कुरा रही थी । सहज समझ गया कि यह माँ के प्रयास का ही परिणाम है ।

पापा उसे अपने से अलग करते हुए - बेटा ! यह लोग भी आज तुम्हारा रोका करने आए हैं |

सगुन के माता-पिता ने आगे बढकर सहज का तिलक किया और उसे नारियल देते हुए- “आज से मै तुम्हे अपनी बेटी के लिए दामाद का चयन करता हूँ |”

अब सहज भी खुश था । उसका मन भी उड़ान लेने लगा था | वह मन में सोच रहा था कि सच में इससे अच्छा उपहार आज के दिन हो ही नहीं सकता था ।

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