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फीस

फीस

प्रखर का M.B.B.S. कम्प्लीट हुए साल भर हो गया था | उसने सरकारी नौकरी के लिए आवेदन किया था | आज ही उसके चयन की सूचना आई कि उसका चयन मेडिकल आफिसर के लिए हो गया | घर में सभी लोग माता-पिता भाई-बहन सभी खुश थे | सभी उसके डा० बनने की प्रतिक्षा में थे | प्रखर के पिता भी आज फूले नहीं समा रहे थे | बड़े अरमानो से बड़ी ही मेहनत करके उन्होने प्रखर को डॉक्टरी की पढाई कराई थी | यूँ तो प्रखर नाम के अनुरूप पढ़ने में भी तीव्र बुद्धि का था उसने भी अपने व अपने पिता जी के सपने को पूरा करने में जी-जान लगा दी तभी तो वह हमेशा अपनी कक्षा में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होता था | हाई स्कूल व् इंटर परीक्षा में उसने विज्ञान में टाँप किया था | उसने दिन-रात अपने प्रशिक्षको के संरक्षण में पढाई करके नीट की परिक्षा में मेरिट में पाँचवे नंबर पर आया था | इसलिए उसने अपने जनपद बनारस के प्रतिष्ठित सरकारी मेडिकल कालेज से M.B.B.S. के लिए आवेदन कर दिया जहाँ उसे तुरन्त चुन लिया गया |

अपने ही जनपद में रहकर पड़ने की वजह से उसका रहने व खाने-पीने आदि का खर्चा भी बच गया | अब मेडिकल ऑफिसर बनने पर उसका सपना सच होने के करीब था |

उसके मित्रों ने कहा- “यार बाबू से सेटिंग कर लो तो तुम्हारी पोस्टिंग भी यही पास के जनपद में ही मिल जाएगी | मगर प्रखर में साफ मना कर दिया- “नहीं मै अपनी प्रतिभा के बल पर यँहा तक पहुँचा हूँ तो मुझे पोस्टिंग भी अच्छी जगह हीदेंगे | मै किसी से कोई सेटिंग नहीं करूँगा |

प्रखर ने C.M.O. ऑफिस जाकर पता किया तो उसे ज्ञात हुआ कि उसे बरेली की पोस्टिंग मिली है, और उसे तत्काल ही ज्वाइन भी करना होगा | मै भी साथ में जाने को तैयार हो गया क्योकि बेटा कभी भी अपने शहर से बाहर नहीं गया था और फिर उसे वहाँ जाकर रहने व खाने-पीने की व्यवस्था भी करवानी होगी, शायद वो अकेले मैनेज न कर पाए यह सोच कर मैंने उसके साथ मेंनेअपना सामान भी पैक कर लिया | उसने अपनी विक्री में से जो भी पैसा मिला उन्हें निकल कर गिना तो वो पूरे 6000 रु० निकले | उसने उसे बड़े ही कायदे से सहेज कर अन्दर की जेब में रख लिया |

प्रखर के पिता एक छोटे से लकड़ी के खोखे में दुकान रखे थे जिसमे छोटा-मोटा सामान व पैकेट वाला नमकीन इत्यादी प्रतिदिन की जरुरत का सामान मिल जाता था | उसके पास इतना पैसा नहीं था जिससे वो कोई दुकान किराए की ले सके और उसमे सामान भर सके | वह बेहद साधारण तरीके से रहते हुए एक निचले तबके का ही गरीब व्यक्ति था | उसकी कमाई से उसके छह जनो के परिवार का पालन-पोषण व पढाई-लिखाई आदि जरूरते ही जैसे-तैसे पूरी होती थी |

कहाँ बनारस और कहाँ बरेली काफी दूर था | दूसरे दिन दोनों लोंग बरेली पहुँच गए | वहाँ स्वास्थ्य भवन C.M.O. ऑफिस जाकर पता किया, तो मालुम हुआ कि बेटे की मेडिकल जाँच वगैराह होगी और एक एफेड़ेविट आदि बनवाना होगा | उसने यह सारा झटपट कराया, फिर भी सारा दिन उसी में लग गया | रात उन्होंने स्टेशन पर बारी-बारी से सोकर गुजारी | सुबह फिर शीघ्र ही तैयार होकर C.M.O. ऑफिस में जाकर सारे डॉक्यूमेंट अप्रूव कराने के लिए बाबू के पास गया |

बाबू कागज देखते हुए बोला- “डा० साहब फीस जमा कर दी आपने |”

“अब कौन सी पढाई करनी है भैइय्या, ज्वाइनिंग ही तो लेनी |” इसमे कैसी फीस ?

“डा० साहब ! आपको नहीं पता फीस भी जमा होती है |

“नहीं मुझे नहीं मालूम |” प्रखर ने कहा |

“जाइए सामने काउन्टर पर जाइए वो आपको सब बता देंगे | आज वो C.M.O. साहब नहीं है अब कल ही कुछ पता चल पायेगा | कहते हुए उसने फाइल बंद करके नीचे रख दी |

मैंने सामने काउन्टर पर क्लर्क से बात की तो उसने बताया कि पोस्टिंग लगवाने के लिए भी रूपये देने होंगे नहीं तो फाइल साहब तक नहीं पहुँचेगी | प्रखर को यह सुनकर बहुत बुरा लगा अब तक मैं भी समझ गया कि यह कौन सी फीस है |

प्रखर – “पापा मैं नहीं दूँगा फालतू के पैसे | वैसे भी कल ही काफी रूपये खर्च हो गये काम करवाने में, ऊपर से इनकी भी पूजा करो |

मैंने उसे शांत करते हुए क्लर्क से – अभी आता हूँ भइया |” कह कर बाहर निकल आया |

बाहर आकर प्रखर तैश में बोलने लगा – “पापा इतनी मेहनत से पढ़ाई करो | नीट पास करो, आरक्षण वालों से लड़ो, मेरिट में आओ तब कहीं अच्छे प्रतिष्ठित मेडिकल कॉलेज से डॉ० की पढ़ाई करने के बाद भी अच्छी जगह, ढंग कि पोस्टिंग नही दे सकते | सही काम करने के भी पैसे देने पड़ेंगे | पापा मैं आपको पैसे नहीं देने दूँगा | यदि पैसे दे दिए तो अन्य खर्चे कैसे होंगे ? और आप घर कैसे जायेंगे ?”

मैंने बेटे को समझाते हुए कहा – बेटा यहाँ तक का सफर तूने बड़ी मेहनत से पार किया तो क्या अब मैं तुम्हारी तरक्की रुकवा दूंगा ? नहीं अब मैं तुम्हारी राह में कोई भी रोड़ा नहीं आने दूँगा वो जो भी फीस कहेंगे मैं दूँगा |

फिर बेटे को दुनियादारी समझाते हुए – “बेटे क्या कर सकते हैं ? जब इन सब को ऊपर की कमाई कि आदत पड़ गयी है तो वो मांगेंगे जरुर |”

लेकिन पापा मैं उपर से कोई भी रुपया नहीं देने दूँगा | आपके खून-पसीने की कमाई को मैं यूँ ही व्यर्थ नहीं करने दूँगा | यह गलत है, यह तो भ्रष्टाचार है |”

मैंने उसे धीरे से शांत किया |

तीसरे दिन फिर हम लोग C.M.O. ऑफिस पहुँच गए और बाबू से पोस्टिंग के लिए पूछा |

उसने घूरती निगाहों से पान चबाते हुए बड़ी ही बेफिक्री से कहा – “ डॉ० साहब अभी तो फाइल ही जमा नहीं हुई है |”

फिर घूरते हुए – “आपने फीस तो जमा नहीं की, पहले फीस जमा करिए नहीं तो पोस्टिंग भूल जाइए |”

मैं झट बोल पड़ा – “ठीक है सर” बेटे को खींचते हुए किनारे बैठा दिया और खुद क्लर्क के पास आकर – “सर कितनी फीस जमा करनी है ?”

उसने अगल-बगल देखते हुए बोला – “2000 रु० यहाँ जमा कर दीजिये |” और कुछ फॉर्म देते हुए – “ और इनमे भी अन्य विभाग से मुहर लगवा कर जमा करिए |”

मैंने झट से अन्दर की जेब से 2000 रु० निकाल कर उसके हाथ में थमा दिए जिसे वह गिनते हुए बोला – “ साहब अगर आपने फीस पहले जमा कर दी होती तब यह एक दिन के काम में तीन दिन नहीं लगते |”

“और हाँ” गहरी आँखों से घूरते हुए और समझाते हुए – “आगे भी फीस जमा होगी तभी अन्य कागज पर मुहर लग पाएगी |” यह कहकर मुस्कुराने लगा |

ज्ञान देते हुए – “लगता है आपने अपने यहाँ के बाबू से सेटिंग नहीं की तभी तो इतनी दूर फेंक दिया बेटे को वहीँ से सेटिंग कर लेते तो इतनी दूर न आना पड़ता और न ही इतनी परेशानी उठानी पड़ती |”

उसके इस ब्रम्ह वाक्य को सुनकर मुझे बुरा तो बहुत लगा लेकिन मैं अपने बेटे की नौकरी से कोई समझौता नहीं करना चाहता था |

अब हर विभाग में फॉर्म भरवाकर और मुहर लगवाने की फीस जमा करके सारे फॉर्म बाबू को जमा कर दिए |

बाबू ने कागज उलट-पलट कर देखे और संतुष्ट होते हुए मेज के नीचे से बेटे की फाइल निकाली और उस पर मुहर लगाते हुए – “डॉ० साहब मेरी भी फीस बनती है |”

बाबू को 500,500 के दो नोट उसकी मेज पर रखते हुए हाथ जोड़ दिए – “ साहब अब और रूपए मेरे पास नहीं है, सारे पैसे फीस देने में ही खत्म हो गए |” लाचार सा उसकी तरफ देखने लगा |

बाबू भी बड़ा घाघ था जेब में नोट रखते हुए मुझेसे कहने लगा – “भाई साहब, डा० साहब लगता है आज का चलन नहीं जानते है | लगता है अब तक उन्होंने खाली किताबो का ज्ञान ही पाया है, किन्तु आप समझदार लगते है | यही समझदारी यदि आपने अपने जनपद के बाबू से बात करके सेटिंग करके फीस भर दी होती तो आपके बेटे को मनचाही जगह, यानी आपके शहर के पास की ही पोस्टिंग मिल जाती, लेकिन आपने फीस नहीं जमा की इसीलिए आपके डा० साहब को इतनी दूर भारत की सीमा के पास का गाँव मिला है | यहाँ से नेपाल करीब पड़ता है | दाँत निपोरते हुए – “अरे जब चाहेंगे तब डा० साहब नेपाल भी घूम आया करेंगे | कहते हूए ठहाका मारकर वह हंसने लगा ।

उसके इस अभूर्तपूर्व ज्ञान और सलाह से मैं और मेरा बेटा दोनों ही हतप्रम रह गए |

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