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नागफनी के काँटे


              ॥   नागफनी के काँटे ।।


      ऑफिस के काम से सृष्टि को बेंगलुरु से बरेली आना पड़ा था । बरेली पहुंचते ही वह सीधे अपने होटल गई जो उसने पहले से ही बुक करा रखा था । सृष्टि फटाफट तैयार होकर  अपने ऑफिस के काम से निकल गई । ऑफिस के काम निपटाते उसे शाम के 4:00 बज गए । सृष्टि होटल वापस आ गई सोचने लगी, काम तो मैंने आज ही सारा खत्म कर लिया है ,अभी 2 दिन की छुट्टी और शेष है तो क्यों ना अपने गृह नगर शाहजहांपुर निकल जाऊ । दो साल से वहां गई भी नहीं थी । सृष्टि ने  सोचा अपना घर भी देख लूंगी और अपने मित्रों और परिचितों से भी मुलाकात कर लूँगी । सृष्टि ने घड़ी की तरफ देखा शाम के 4:30 बज रहे थे उसने सोचा अभी निकलूँगी तो शाम के 7:00 बजे तक घर पहुंच जाऊंगी । उसने तुरंत टैक्सी बुक की ,जब तक गाड़ी आती इतनी देर उसने स्नैक्स का आर्डर कर दिया क्योंकि दिन भर काम के चक्कर में कुछ भी खा नहीं सकी थी। स्नैक्स खा कर मैं सामान निकाल ही रही थी तब तक टैक्सी आ गई । सृष्टि  गाड़ी में बैठकर शाहजहांपुर की तरफ निकल पड़ी । घर पहुंचते शाम के  7 बज गए थे । घर खोला तो घर की हालत देखकर उसका माथा घूम गया  । सारा घर अस्त-व्यस्त पड़ा था । मैं सोच ही रही थी कि क्या किया जाए ? तभी सामने से सान्या आती हुई  दिखाई दी। सान्या मेरे चाचा की बेटी थी जो  घर के पास में ही रहती थे । 
            सान्या  पास आकर खुशी से चहकती हुईं बोली – “अरे दी आप कब आई ?,आपने बताया भी नहीं , आप अपने आने की खबर कर देती तो घर की साफ -सफाई ही करा दी जाती ।  अच्छा दी, कोई बात नहीं अब आप  हमारे घर चलिए  । आज आप हम सबके साथ रुकिए, कल किसी को भेजकर  सफाई करा दूंगी । वह एक ही सांस में धारा प्रवाह बोलती चली गई और मेरा हाथ पकड़ कर अपने घर की तरफ खींचने लगी। उसके अभिन्न प्यार को देख कर मैं मुस्कुरा उठी ।
           मैं भी बहुत थकी हुई थी इसलिए मुझमे ना - नुकुर करने की हिम्मत नहीं बची थी । मुझे उसका प्रस्ताव मान लेना ही बेहतर लगा । मैंने भी अपना सामान उठा कर उसके साथ अपने चाचा के यहां घर आ गई जो पास में ही था दरअसल सान्या मेरे चाचा की बेटी थी । चाचा जी के तीन बेटे और दो बेटियां थी सान्या और उनमे सबसे छोटी थी या यह कहें कि वह हम सभी भाई- बहनों में सबसे छोटी थी । सान्या की शादी के भी 15 साल हो चुके थे । सान्या से भी मिले मुझे कई साल हो गए थे शायद 3 साल पहले किसी पार्टी या फंक्शन में मिली थी तब से आज मैं उसे देख रही थी । सान्या जो हर दम हसती खिलखिलाती रहती थी हमेशा उसके होठों पर हंसी रहती थी । वह हमेशा बेफिक्र और बिंदास रहती थी । उसके जीने का अंदाज बिल्कुल अलग  और निराला था ।
            घर में चाचा – चाची, भैया -भाभी सभी मुझे अचानक आया देखकर चौंक गए किंतु  काफी समय के बाद मिलने से खुश भी हुए ,क्योंकि मैं आज 2 साल के बाद वापस घर आई थी । वैसे जब माँ और पापा थे तो मेरा  महीने दो महीने मे आना -जाना लगा रहता था । उनके ना रहने के बाद ऑफिस से छुट्टी लेने की  और यहां आने की कोई वजह ही नहीं रह गई थी । शादी के बाद मेरा ट्रांसफर भी बैंगलोर हो गया था तो मैं वहां चली गई थी ऑफिस के काम से आज बरेली आना हुआ तो यहां आने से खुद को रोक नहीं पाई । सभी लोग काफी देर तक बात करते रहे हम सबने बचपन की ढेर सारी बातें भी की। इन सबके बीच चाचा -चाची के चेहरे पर एक अजीब से दर्द की परछाई देखी जैसे कोई गम उन्हें खाएं जा रहा हो । मैंने उन्हें टटोलने की कोशिश भी की लेकिन उन्होंने टाल दिया ।
           चाची भी घर परिवार की ढेर सारी बातें बताती रहीं किंतु आज उनकी बातों में खालीपन व दुनियादारी ज्यादा  थी । वरना सारे रिश्ते - नाते और मोहल्ले भर का प्रपंच उनकी बातों में रहता था । मेरी भारी पलकों को देखकर चाची जी ने कहा –“जा सृष्टि तू भी थकी हुई होगी सान्या के पास तुम भी सो जाओ जाकर ।
      “ “ठीक है कहकर मैं सान्या  के कमरे में चली आई । सन्या की बारह वर्षीय बेटी सो चुकी थी । सान्या खिड़की पर खड़ी होकर दूर अंनंत में तारों का टिमटिमाना देख रही थी । मैं हौले से उसकी पीठ पर हाथ रखते हुए बोली –“और सुनाओ यहां  खिडकी पर आसमान में क्या देख रही हो ?“
  
    संक्षिप्त किंतु  बुझे स्वर में-“ कुछ नहीं दी।“
   “
“ अच्छा बताओ तुम यहां कब आई थी” ?
“चौकते हुए “ क्या आपको नहीं पता दी  ?” हां दी , पता भी कैसे होगा आप तो काफी समय के बाद हमसे मिल रही हैं । बुझे स्वर में कहा उसने ।
“नहीं तो ,क्या हुआ “? हैरानी से
“ दी मुझे आए तो डेढ़ साल के ऊपर हो गया “ ॥
“लेकिन क्यों तुम्हारे सुदेश तो कभी आने नहीं देते थे यदि तुम आती भी तो साथ में वह भी आते थे और दो या तीन दिन रुक कर साथ में ही वापस ले जाते थे फिर ढेड साल से तुम्हें यहां कैसे रुकने दिया ?” मैंने चौकते हुए सान्या पर सवाल दाग दिया ।“
         “ यही नहीं  तुम दोनों में तो इतना प्रगाढ़ प्यार था जैसे कि” मेड फॉर ईच अदर “कि हम सब को भी तुम्हारे इस प्यार पर फक्र होता था तो रस्क भी होता था । “
       मैंने जैसे उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया हो वह तिलमिलाती सी बोली –“ हाँ दीदी, शुरू में तो हम दोनों में बहुत प्यार था  ,लेकिन इधर कुछ सालों में वह प्यार ना जाने कहां खो गया था ?  बस दी , अब प्यार नहीं एक दिखावा था  ।  मैं तो आज भी सुदेश को  तहे - दिल से प्यार करती हूं । काश ! वह सुधर जाए इसी उम्मीद में इतने साल काट दिए, लेकिन वह नही  सुधरे । उनका प्यार तो बस दिखावा ही था वह नाटक करते थे ।“ ना चाहते हुए भी मुझे उस नाटक में दिल से शामिल होना पड़ता था ।
       “ तुम्हें क्या जरूरत थी नाटक करने की ,तुम कोई किरदार तो निभा नहीं रही थी किसी प्ले का । यह तो असली जिंदगी थी ।“मैंने आश्चर्य से उसे देखते हुए “।
           सान्या तड़पती सी बोल उठी-“ हां दी ! जब मैं वहां ब्याह कर गई थी  तो मेरे भी बड़े सपने और अरमान थे कि मैं अपने पति को बहुत ही प्यार करुंगी और  प्यार की बगिया बनाकर  उस फुलवारी में  हंसते  खिल खिलाते हुए  पूरा जीवन बिताऊंगी  । उस प्यार के चमन में  प्यारा सा मंदिर बना कर  सुदेश को  उस मन मंदिर में  बिठाकर  अपने  सुदेश को अपने दिल की गहराइयों से प्यार किया । दिन और रात मैंने उनकी औंर उनके परिवार की तन- मन से सेवा करती रही । मैं उनका हर कहना मानती  और वह भी मुझे प्यार तो करते थे लेकिन  उनके प्यार का तरीका कुछ अलग ही था । जरा सी भी बात पर यदि नाराज हो जाते या उनके मन का कोई काम ना होता तो वह बहुत ही  निर्दयता से मारते पीटते थे  , लेकिन मैं अपने प्यार के आगे उस व्यवहार को अनदेखा करके उन्हें बदलने की कोशिश करती रही ।“
    एक आह भरते हुए ,-      “ धनाढ्य घराने,में ब्याह होने के कारण झूठा दंभ ,अभिमान और समाज मे प्यार का दिखावा करना मेरी मजबूरी थी । आज भी उस घर में कोई भी औरत पुरुषों द्वारा किए  गए किसी भी अन्याय का विरोध नहीं कर सकती थी तो भला मैं कैसे कर पाती ? मै भी इसे परंपरा समझ कर बर्दाश्त करने लगी ।“यह  सुनकर मेरी नींद कोसों दूर भाग गई ।“ 
     वह  दर्द और दुख से तड़प रह थी  । चेहरा आँसुओं से तर था । मैंने उसे पास में पड़ी कुर्सी पर बिठाया और खुद  भी पास में कुर्सी पर बैठ गई ।उसको एक ग्लास पानी दिया उसके आंसू पूछते हुए उसे शांत कराया । जब वह थोड़ा शान्त हुई तो कहीं दूर अतीत मे समाती हुई बोली –“ लेकिन दी !अब मैं कुछ नहीं छिपाऊंगी । अब मैं आपसे हर नाटक का पटाक्षेप जरूर करूंगी । 
       आपको तो मालूम ही है कि मेरा विवाह शहर के सबसे धनाढ्य परिवार में हुआ था जिनकी  घी औंर तेल की कई मिलें थी । प्रॉपर्टी का भी बिजनेस था और भी कई अन्य काम होते थे । सुदेश के परिवार में पांच भाई - बहनों में दो भाई बड़े और दो बड़ी बहनें थी और सुदेश सबसे छोटे थे । छोटे होने की वजह से इनका लाड़ - दुलार कुछ ज्यादा ही किया गया था ,  जिससे यह  बहुत ही जिद्दी और हठधर्मी हो गए थे । अपनी हर बात को  अपनी हठधर्मिता से मनवाना और उसको पूरा करवाना उनकी आदत में शामिल था । नतीजा यह हुआ की इनका मन किसी भी काम में टिकता नहीं था । सुदेस ने अपनी जिंदगी हमेशा अपने शर्तों पर ही जी । घर में इनका अलग ही रौला रहता था । पहले सारा परिवार एक साथ रहता था तो कुछ पता नहीं चलता था लेकिन मेरी शादी के पाँच साल के बाद ही मेरे परिवार में चाचा -ताऊ व परिवार के सभी सदस्यों के बीच में बटवारा हो गया । देवर, जेठ सभी को अपनी -अपनी फर्म देकर अलग कर दिया गया । सुदेश को भी तेल मिल दी गई शुरु में तो यह मिल मे बैठते थे लेकिन फिर इन्होंने मिल को नौकरों के सहारे छोड़ कर नेतागिरी करने लगे कुछ समय बाद में उसमें घाटा होने लगा तो उन्होंने मिल बेचना चाहा ,तब वह तेल मिल हमारे  जेठ ने खरीद ली ।  उस मिल से मिले पैसे से सुदेश ने दूसरा बिजनेस शुरू कर दिया लेकिन इनकी नेता नगरी में बढ़ती हुई पैठ का नतीजा यह हुआ कि नेताओं के ढेर सारे अवगुण इनमें आने लगे ।  एक तो ‘करेला ऊपर से नीम चढ़ा ‘तो वैसे भी इनका स्वभाव इतना सख्त था दूसरे नेताओं के चक्कर में आकर और भी बर्बाद हो गए । एकदम से बड़ा आदमी बनने की चाहत में और नेताओं के संग सहयोग से इन्होंने दो बैंकों से लंबा कर्ज ले लिया । उन रुपए से उन्होंने एक साथ कई बिजनेस शुरू कर दिए । मैंने मना भी किया  कि पहले एक बिजनेस करो और उसके सफल होने पर ही दूसरा बिजनेस स्टा्र्ट करो  लेकिन इन्होंने  मेरी बात नहीं मानी । नतीजा यह हुआ कर्जे बढ़ते चले गए  और बिजनेस ठप होने लगे । इस बीच में हमारे दो बच्चे हो गए और हमारी खर्चे बढ़ते गए खर्च करने के लिए कर्जा लेते या बिजनेस में पैसा लगाते । अनुभव की कमी और लापरवाही के चलते  और बिजनेस भी बंद हो गए । 
         परिवार की परिस्थितियों को देखते हुए मैंने  अपनी पढ़ाई का उपयोग करते हुए एक प्राइवेट स्कूल में नौकरी कर ली । इसी बीच इनका संबंध एक अन्य स्त्री से हो गया और  सुदेश उसके साथ अपना अधिक से अधिक समय गुजारने लगे । अब जादातर समय सुदेश का उस औरत के साथ गुजरने लगा था ।  मैंने कई बार प्यार से , तो कभी इशारों में समझाया  कि अब बच्चे बड़े हो गए हैं इन पर भी गलत असर पड़ेगा अब आप अपने घर परिवार पर ही ध्यान दीजिए किंतु इन्होंने मेरी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया । मैं घर मे काम करके  स्कूल जाती वहां से पढ़ा कर जब वापस आती तो बच्चों से पति की शिकायतें सुनती कि आज पापा ने क्या किया मुझे यह सुनकर बहुत बुरा लगता था  ।  मेरे बड़े होते बच्चों पर उनकी गलत हरकतों का  असर पड़ रहा था ,इसलिए मैं उसका विरोध करती थी । जब मैं ज्यादा विरोध करने लगी तब मुझे बेल्ट औंर लात ,घूँसो से पीटा जाने लगा । “ सान्या पीठ औंर पैरों पर पडे निशान दिखाने लगी । जिसे देख कर मुझे सिहर गई ।
     मैंने बीच में ही रोकते हुए – “जब सुदेश यह सब हरकत करता था तब तुम उसका विरोध क्यों नहीं करती थी? जब कभी भी कहीं मिलती थी तो सबके सामने सुदेश की इतनी तारीफ क्यों करती थी ? कभी तुमने चाचा- चाची या भाइयों से सुदेश के बारे मे  क्यों नहीं बताया ?  आज तक कोई भी तुम्हारी इस परिस्थित को जान ही नहीं सका ? अपने सास-ससुर से शिकायत करती ताकि वह सुदेश को समझाते और तुम्हारी परिस्थिति को भी समझते ?” मैंने एक साथ कई सवाल दाग दिए ।
     मैंने ,मां और भैया से कहा था । जब भी यह लोग कुछ  समझाते तो सुदेश हमेशा मेरी ही गलती देते थे । खुद को हमेशा सही साबित करते थे होता यह था कि मुझे ही समझा बुझाकर शांत रहने को कहा जाता था । कुछ दिन के बाद फिर वही सब शुरू हो जाता था ।जब यह लोग को समझाते तो हमेशा पैसे का रोना रोते कई बार मेरे भाइयों ने पैसा दिया ,उनको सहयोग किया । मायके मे खबर करने की वजह से  मुझे बाद में  मार भी खानी पडती थी । 
      “दीदी मैं ससुराल में किससे कहती सभी तो इनकी साइड के थे । मेरी साइड लेने वाला वहां कोई नहीं था ? सुदेश का विरोध करने का साहस किसी में नहीं था ।  हर समय तो यह रिवाल्वर लेकर घूमते थे जरा सा भी बोलने पर  रिवाल्वर की नली  मुंह में रख देते थे । दीदी कैसे बोल पाती  यह देखकर मुझे बहुत दहशत होती थी । मैं वहां घुट- घुट कर जी रही थी ।  कोई भी बोलता  तो उसको भी  सूट करने की धमकी देते थे । सबके सामने खुश रहने और केयरिंग हसबैंड का दिखावा करती कि शायद कभी तो सुदेश को मेरे प्यार का अहसास हो । मैं बड़े घर परिवार की बहू हूँ यह दिखावा करना मेरे लिए जरूरी था ऐसा सुदेश का आदेश भी था । इस व्यवहार से इनका मन बदल जाए यह सुधर जाए और सारी गलत हरकतें छोड़ दें , किंतु हुआ इसका उल्टा मेरी टोका - टाकी से उन्होंने  मेरे चरित्र पर लांछन लगाते हुए मेरी नौकरी छुड़वा दी । नौकरी छूटने के बाद मैंने  घर में ही सुदेश के साथ   कैटरिंग का काम शुरू कर दिया  औंर छोटी  पार्टियों के आर्डर लेने लगी  । मेरा काम चल निकला । नेता नगरी में होने की वजह से इनको भी बड़ी पार्टियों के ऑर्डर मिलने लगे । मैंने भी अपने काम को  ईमानदारी बरती और देखते ही देखते 2 साल में मैंने छोटे-मोटे कर्ज अदा  कर के जमीन -जायदाद बना ली । एक बड़ा सा कारखाना मैंने लगा लिया जहां पर आर्डर का माल बनने लगा था ।  मैंने फिर से बिजनेस मे अपने पैर पास जमा लिए थे  शायद  किसी औरत का बढ़ना  इन्हें पसंद नहीं आया मैंने  खुद को बिजनेस में खपा दिया । पैसा सुदेश के ही हाथ में रहता था । सारा हिसाब-किताब सुदेश ही रखते थे नतीजा यह हुआ कि उन पैसों से वह दूसरी औरत के खर्चे पूरे करने लगे ।“ 
             मैंने पूछा – “क्या वह अनमैरिड है ।“
          सान्या , नहीं ‘दी ‘वह शादीशुदा दो बड़े बच्चों की मां है । उसका पति भी यह सब कुछ जानता है लेकिन नकारा है पति अपनी पत्नी की कमाई खाता था ना जाने कौन सा जादू उस औरत ने इनके ऊपर कर दिया कि मैं बुरी होती गई । उस दर्द और तकलीफ की हद तब हो गई जब मैंने उस औरत के घर जाकर उसे समझाना चाहा तब पता नहीं सुदेश को  कैसे खबर लग गई ? उसी समय सुदेश भी वहीं पर आ गए और मुझे वहां से घसीटते और मारते हुए घर ले कर आए मेरे कपड़े जगह-जगह से फट गए थे ।
               रोते -रोते उसकी हिचकियां बध गई । मैंने उसे चुप कराया और पानी पीने को दिया ।पानी पीकर थोड़ा शांत हुई । उसकी कहानी सुनकर मुझे बहुत क्रोध आ रहा था –“ ऐसे जल्लाद आदमी के साथ तुम कैसे सहती रही  इतने साल तक ?”सुदेश तुम्हारी बेइज्जती करता रहा ।तब उसे ग्लानि नहीं हुई थी ऐसे आदमी पर मुझे घृणा होती है ।“
          तभी सान्या बोल उठी – “अरे दी इस गंदे इंसान ने मेरी गलती ना होते हुए भी उस औरत के पास ले जाकर मुझसे माफी मंगवाई । उसके पति ने मुझ पर व्यंग कसे और अश्लील शब्द कहे । जिसे सुनकर सुदेश बेशर्मी से हंसता रहा । सुदेश ने मेरे ही चरित्र पर ढेरों लांछन लगा दिए और झूठी कहानियां बना कर कहने लगे कि सारे लांछन आरोप को स्वीकार करो कि मेरे भी अनेक लोगों से नाजायज रिश्ते व संबंध है जब मैंने यह मानने से मना कर दिया तो उसने मुझे बहुत मारा और मुझे घर से बाहर निकाल दिया । मैं रात भर घर के बाहर बरामदे में ही पड़ी रही । सुबह जब मैंने सुदेश के पैरों पर गिडगिडा कर सैकड़ों बार माफी मांगी , तब मुझे अंदर आने दिया ।
                 उस दिन तो बात औंर हद से गुजर गई एक दिन मैं अपनी बहन  के साथ बाजार गई मुझे एक सूट पसंद आ गया तो मैंने भी अपने लिए एक सूट खरीद लिया ।  जब मैं घर में लाकर बड़ी खुशी हुई सुदेश को दिखाने लगी  जिसे देखते ही  सुदेश का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया और उसने उन कपड़ों पर  पेट्रोल डालकर  आग लगा दी  और खुद ही सब को बुला कर शोर मचाते हुए, सबको बताने लगा कि देखो सान्या ने आग लगा ली है ताकि वो हम सब ससुराल वालों को  जेल भिजवा सके । उसकी बात सुनकर तो मेरे होश उड़ गए । ,जैसे - तैसे बच्चों औंर जेठानी ने मिलकर आग बुझाई । तब ससुराल मे मुझको काफी डाँट पडी ।मैं अपनी सफाई देती रही लेकिन सुदेश की बातों पर सब ने यकीन किया और मुझ पर किसी ने विश्वास नहीं किया इधर मेरे मायके में फोन करके कहा कि “देखो  तुम्हारी बेटी ने हमें वह पूरे परिवार को फंसाने के लिए अपने कपड़ों पर मिट्टी का तेल डालकर आग लगा रही थी इसे यहां से ले जाओ ।उनके इस कथन को सुनकर मैं तो जड़ से हिल गई । मेरी जेठानी ने इस झूठ का विरोध किया तो उसे भी मार कर भगा दिया औंर चुप रहने का  निर्देश दिया । मेरे मन में यह बात घर कर गई कि सुदेश कभी भी ,कोई भी हादसा मेरे साथ घटित कर सकता है। ।
       “ लेकिन तुम्हारे सास – ससुर  या किसी बडे ने सुदेश को कुछ नहीं कहा या समझाया नहीं । उसकी हरकतों से रसूख व बड़प्पन क्या तब रसातल में नहीं जा रहा था ?”
      “   कोई उसका कुछ नहीं कर पाता था  क्योंकि  उस की दबंगई से सब कोई डरता था , दूसरे उसकी नेता नगरी में रहने की वजह से आडे वक्त मे  सुदेश ही सभी की समस्या का समाधान करवाता था  इसलिए कोई भी उससे बोलने की हिम्मत नहीं कर पाता था । सबके उल्टे -सीधे कामों को रफा-दफा करवाना यह सब उसके बाएं हाथ का खेल था था इसलिए कोई भी उसका विरोध नहीं कर पाता था । सुदेश की इस धाक ने उन सब के मुंह पर ताला लगा दिया था । “
  “  मैंने ननद व ससुर से सुदेश के बारे मे जब कहा तब वह लोग ने मुझे ही दोषी करार देते हुए कहा –“  ज्यादा प्रोपेगेंडा मत करो जैसे और औरतें अपने घर में सब कुछ बर्दाश्त कर के रहती हैं वैसे तुम भी रहो अच्छे घरों की औरतें यह तमाशा नहीं करती हैं । तुम्हें खाने ,पहनने औंर रहने को तो मिल रहा  है और तुम्हें क्या चाहिए ? सुदेश जहां भी जाता है उसको जाने दो , तुम अपना घर व अपने बच्चों को देखो ।“ यह सुन कर दी ,मेरा दिल छलनी  हो गया । मेरा मोह उस परिवार से टूट गया और मैं समझ गई  यहाँ मेरा अपना कोई नहीं है । मैं यह सब जुल्म सह लेती ,सब बांट देती दो कपड़ों में भी गुजर कर लेती , लेकिन मैं अपने सुदेश को नहीं बांट पा रही थी क्योंकि मैंने उसे दिल से प्यार किया था ।“
        “   तो तुम उसे अपने  स्त्रियोंचित गुणों से आकर्षित करती । तू ही हर तरह की पहल करती । “ 
      “मैंने यह प्रयास भी किया लेकिन सुदेश तो मुझे हाथ तक नहीं लगाने देते थे पैरो से धकेल कर पलंग से नीचे गिरा देते थे । सच तो यह थ कि 6 साल से हम दोनों के बीच में पति पत्नी के संबंध थे ही नहीं । 6 साल से मैं रोज  यही सब बर्दाश्त कर रही थी । रोज-रोज के झगड़े औंर मारपीट से बच्चे भी सहमे- सहमे से रहते थे । जरा सा भी बच्चों से गलती हो जाती तो उनको भी बेल्ट से पीटते थे । इस सब बातों से बच्चों पर भी गलत असर पड़ रहा था । एक दिन जब सुदेश ने मुझे बेल्ट  से बहुत मारा और मेरे मुंह में पिस्तौल की नली रख दी औंर मेरे आगे ढेर सारे स्टाम्प पेपर रखदिए औंर  पेन देते हुए कहा “-- इन सभी  पेपर्स पर साइन करो नहीं तो मैं गोली मार दूंगा ।“ तब बच्चों के सब्र का बांध टूट गया ।   बच्चे  रोते हुए गिडगिडाने लगे –“पापा आप रोज मम्मी को मारते हो । ‘प्लीज ‘पापा आप ऐसा क्यों करते हो ? “ इतना सुनते ही बच्चों को पीटा । 
    दीदी मैं थक गई थी रोज-रोज की मार खाते हुए । ब सब कुछ मेरी बर्दाश्त से बाहर हो गया था । मैं हारकर टूट चुकी थी , ना चाहते हुए भी मुझे  उन सारे पेपर्स में साइन करना पड़ा ।  जहां  भी सुदेश ने कहा मैंने सब जगह साइन कर दिया । इस पर भी सुदेश का दिल नही भरा उसने मुझे घर छोड़कर चले जाने को कहा ।जब मैं नही निकली तो उसने अपने दरवाजे बंद कर लिए । मैं रातभर बरामदे में पडी रोती रही ,लेकिन सुदेश पर कुछ भी असर नहीं हुआ ।
       दूसरे दिन सुबह होते ही उसने एक औंर बखेड़ा खडा कर दिया । अब वो मुझे जिद करके मजबूर करने  लगा कि –“तुमने’ उसके’  बारे में सब को क्यों बताया  ? तुमने कहा है तो उसका खामियाजा भी तुम्हें ही भुगतना पड़ेगा । तुम्हें  एक स्टांप पेपर पर हमें यह लिख कर देना होगा कि मैं चरित्रहीन हूं और मेरे कई लोगों से नाजायज संबंध है । यही बात तुम्हें सबके सामने हाथ जोड़कर, पैर छूकर ,माफी मांगते हुए कहना होगा –" कि मैं चरित्रहीन हूं, सारी गलतियां मैंने की हैं । सुदेश की कोई गलती नहीं है । मैं तभी तुम्हें माफ करूंगा , और भी बहुत कुछ । मैं तभी तुम्हें माफ कर सकता हूं ।“
     दी , इतना अपमान , इतनी जलालत ,मलालत सहने और लिख कर देने के बाद भी क्या सुदेश मुझे रखता ?
नहीं ,कतई नहीं , मैंने कहा-“ अगर मैंने गलती की होती तो मैं जरूर ऐसा कर लिख देती और अपने बड़ों से भी माफी मांग लेती , किंतु जो मैंने नहीं किया है कि मैं चरित्रहीन हूं । यह मैं कदापि नहीं कहूंगी और ना ही लिख कर दूंगी ।“
      मेरे इस अप्रत्याशित व्यवहार सुदेश तिलमिला उठा था । उसे तो कुछ भी करने का बहाना चाहिए था । उसने चिढकर मुझे बेल्ट से पीटा औंर मुझे  बाहर निकाल दिया । बेटी भी सुदेश के इस व्यवहार से इतना नाराज हो गई कि वह भी मेरे साथ चली आई । बेटा वह भी आना चाहता था लेकिन उसे उसने सुदेश ने अपने पास ही रोक लिया ।  आंसुओं की धार से सान्या का चेहरा गीला हो गया था । हिचकियाँ लेती हुई –“ सृष्टि दी !  मैंने हर कोशिश की अपना घर बचाने की,  मैं 6 साल से दूसरी औरत  की मेरी घर में चलती रही ।  डेढ़ साल से ऊपर हो गया , ना मुझे बुलाया ,औंर ना,मुझे कोई लेने आया । मेरे भाइयों ने भी बहुत समझाने की कोशिश की तो उन्हें भी जान से मारने की धमकी देकर भगा दिया ।“

       उसकी कहानी सुनकर मेरी भी आंखें भीग गई  और यातनाओ को सुनकर मेरे सारे शरीर के रोए खड़े हो गए थे । मन में तो बवंडर उठ रहा था कि घर में सबसे छोटी थी सान्या उसको इतने कष्ट उठाने पड़े । सुदेश भी पूरा जल्लाद है किंतु दिखने में इतना सीधा -साधा सरल स्वभाव का लगने वाला भी क्या ऐसा हो सकता है । मन ही मन सोचते हुए कि सच में किसी को देखकर उसका आकलन नहीं किया जा सकता है । सान्या के प्रति मेरे दिल मे  प्रेम , करूणा औंर सहानुभूति से मेरा मन भर उठा ।
      सान्या जिस परिवार में औरतों की इज्जत ना हो , उन पर जुल्म  ढाए जाते हो ।  औरतों की बेज्जती की जाती हो , पुरुषों की सारी गलतियां माफ हो , तो ऐसा रसूख , ऐसा बड़ा परिवार किस काम का । जो अपने बेटे की गलतियों को समर्थन करें और बहुओं को दोष दे ,ऐसे लोगों का पर्दाफाश जरूर होना चाहिए ।“ मैं गुस्से में तमतमा कर एक सांस में ही सब कुछ कह गई । 
    मैंने से पूछा –“ अब क्या मन है तुम्हारा ?”
         “ दी ! मैंने इंटर कॉलेज में टीचिंग के लिए ज्वाइन कर लिया है और वही पर बेटी का एडमिशन भी करवा दिया है। कालेज से लौटने पर शाम को कोचिंग भी कर लेती हूं । अब मैं अपनी बेटी को पढ़ा लिखा कर काबिल बनाऊंगी । वहीं कॉलेज में मैं कैंटीन का काम भी देखती हूं और भी किसी भी प्रोग्राम की ऑर्गेनाइजिंग मैनेजर भी  हूं मैं सारा दिन बिजी रहती हूं । कॉलेज का प्रशासन भी मेरे काम से काफी खुश रहता है ।
    “     सुदेश उसका क्या ? “
   “    वह तो दी ! नागफनी है , जिसमें सिर्फ कांटे ही कांटे हैं । उससे किसी भी प्रकार की शीतलता की मुझे कोई उम्मीद नहीं है । मैंने सब उम्मीदें छोड़ दी है ।“
 “     कितना संघर्ष किया है दी ! जिसके दिल में , जिस घर में मेरा सम्मान नहीं है वहां उस घर व परिवार में मेरा क्या काम है ? अब मैं सुदेश के पास वापस नहीं जाऊंगी । मेरा केस कोर्ट में चल रहा है । मैं इन्हें न तो तलाक दूँगी औंर न इस आदमी को सजा दिलाने में कोई कसर  छोडूंगी ।“आज मैं सान्या के इस फैसले से चकित थी ।
         सान्या की पलके तो शांति की चाह में भारी होने लगी थी किन्तु मेरी आंखों से नींद बहुत दूर हो चुकी थी रह-रहकर सान्या की कहानी ही मेरे आंखों के सामने घूम रही थी और मन में सोच रही थी क्या ऐसे भी लोग होते हैं जो दूसरों के चक्कर में अपना घर व अपने परिवार को तबाह कर लेते हैं ? किताबों में पढी हुई कहावत याद आ रही थी “ हर चमकने वाली चीज सोना नहीं होती है । “ सान्या का फैसला सही है ,ऐसे आदमी को  सजा मिलनी ही चाहिए थी ।
              ॥ नमिता ‘प्रकाश’॥

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