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प्रति ध्वनि

Namita Gupta

namitag1964@gmail.com

प्रतिध्वनि

राघव को शीघ्र ही गोमुख पहुँचना था उसके और साथी भी वहाँ पहुँच रहे थे | वो लोग ऋषिकेश से टैक्सी लेकर गोमुख की ओर निकल पड़े | वहाँ उसे सिमटते ग्लैसियर और बदलते पर्यावरण पर रिपोर्ट तैयार करके सरकार को भेजनी थी | वो भी उसी जांच की टीम का एक मुख्य सदस्य था |

सूखी टॉप से उतरते हुए उसे रास्ते काफ़ी जाने पहचाने से लगे | एक झटके से उसे तीन वर्ष पूर्व आए जल प्रलय की याद आ गयी | ओह! “क्या भयानक मंजर था वह ?” खुद से बुदबुदाया और आंखे बंद कर सर सीट से टिका दिया |

केदारनाथ जाते वक़्त इसी रास्ते में घनघोर बारिश ने उसका रास्ता रोक दिया था | बारिश से पहाड़ दरक रहे थे ,सड़कें फट रही थी| इसी बाढ़ में सड़क धसने से उसकी गाड़ी बहती हुई चट्टान में फँस गयी ,खुद को बचाने के लिए प्रयास करते हुए वो बेसुध हो गया | जब होश आया तो खुद को एक कमरे में पाया |उसने पानी मांगा तुरंत ही किसी लड़की ने उसे पानी पिलाया |धीरे-धीरे उसकी चेतना लौटी-“मैं कहाँ हूँ?” उसने उठना चाहा |

“नहीं ,आप लेटे रहिए, अभी आप अस्वस्थ है |”

“मैं कहाँ हूँ ?कैसे यहाँ आया ?”

“मेरे सब साथी लोग कहाँ गए?” एक साथ ढेर सारे प्रश्न पूंछ डाले |

“आप झाला गाँव में है | एक गाड़ी में बेसुध पड़े थे| हम सब गाँव वाले केवल आपको ही निकाल सके लेकिन किसी और को नहीं बचा सके |”

ये सुन कर उसके आँसू निकल आए धीरे –धीरे उसके सेवा से उसके स्वास्थ्य में तेजी से सुधार होने लगा | उस लड़की के अथक परिश्रम से वह शीघ्र ही स्वस्थ होने लगा |

एक दिन राघव उसका हाथ पकड़ कर बोला –“तुम कौन हो ?” “तुम्हारा क्या नाम है ?”

“प्रज्ञा” धीमे से वह बोली | मैं इसी गाँव में रहती हूँ| मेरे पिता जी की यही पर दुकान है |

“मेरी इतनी सेवा करके तुमने मुझे एक नया जीवन दिया”|

बड़े ही प्यार व अधिकार से उसके मुंह पर हाथ रखते हुए –“बस आप बहुत बोलते है |”

“मैं कबसे यहाँ पर हूँ ?”

“आज 10 जुलाई है आप 24 दिनों से यही पर है”|

“ओह” अब घर कैसे जाऊंगा मेरे पास कुछ भी नहीं है, मुझे रास्ता भी नहीं मालूम है | अब मैं घर कैसे जाऊंगा ,घर वाले मुझे ढूंढ रहे होंगे |

प्रज्ञा ने कहा –“पहले आप स्वस्थ हो जाए फिर घर चले जाइएगा |”

वही पर उसे मालूम हुआ की केदारनाथ के साथ ही पूरे उत्तराखंड में भयानक तबाही हुई है | सारे रास्ते टूट गए थे ,नदियों ने भी रुख बदल दिया था | उसके जाने के सारे रास्ते बंद थे |

किसी न किसी बहाने से प्रज्ञा और राघव साथ में घूमते रहते | कभी वो सेब के बाग़ दिखाती ,और तोड़ के उसे खाने को देती | कभी पहाड़ी पर सूर्योदय और सूर्यास्त दिखाती | बेहद खूबसूरत नजारे और प्रज्ञा का साथ दोनों ही उसे अच्छे लगते थे | कब वो दोनों नजदीक आ गए उन्हें पता ही नहीं चला |

गाँव में राशन का सारा सामान खत्म होने से सभी लोग गाँव छोड़ के जाने लगे | उन्हें भी गाँव छोड़ कर राहत शिविर जाना पड़ा | वहाँ पर भी काफी संख्या में लोग अपनी बारी के प्रतीक्षा में थे, उसे भी एक हफ्ते के बाद का नंबर मिला |

प्रज्ञा और सभी लोग मिलकर वहाँ पर बीमार लोगों की सेवा करते है और उनके खाने पीने का इंतजाम करते और सांत्वना देते है | बाकी समय वो पहाड़ों की खूबसूरत वादियों में घूमते ,कभी वो ऊपर चड़ कर ‘राघव-राघव’ बुलाती | उसकी प्यारी मीठी सी आवाज़ में वो खो जाता |

एक दिन वह नदी के किनारे बैठे थे, तभी राघव बोला – “प्रज्ञा अब मुझे जाना होगा ,कल मैं चला जाऊंगा” |

यह सुनते ही उसकी आंखे गीली हो गयी | बड़ी बड़ी आंखों में झिलमिलाती बूंदें मुझे भी द्रवित कर रही थी |

अचानक वो बोली –“मैं याद आऊँगी ?”

“हाँ क्यूँ नहीं | इस घटना के साथ तुम्हारा भी जिक्र होगा तुमने मेरी कितनी सेवा की, मुझे नया जीवन दिया |”

“राघव कुछ और महसूस नहीं हुआ तुम्हें”|

“शायद”

दूसरे दिन जाते समय उसका भी दिल भारी होने लगा और वो अपने आँसू छिपाने की कोशिश करने लगा |

उसने धीरे से पूछा -“राघव कब आओगे ? जल्दी आना मैं तुम्हारा इंतज़ार करूंगी |”

एक झटके से गाड़ी रुकी और ड्राईवर ने कहा-“सर ,गंगोत्री आ गया |”

मैं फौरन गाड़ी पैक करवा कर अपने साथियों के साथ गोमुख चला गया | वहाँ घटते ग्लैसियर सिकुड़ती गंगा की धारा का अध्ययन कर रिपोर्ट तैयार कर वापस आ गए | मैंने ड्राईवर से झाला की तरफ गाड़ी मोड़ने को कहा | वहाँ पहुँच कर मालूम हुआ की नेगी साहब तो दुकान बंद करके देहरादून में रहने लगे | मैं फौरन देहरादून के लिए निकल गया |

राघव ने देहरादून में हर जगह उनकी तलाश की ,लेकिन उनका कहीं भी पता नहीं चला ,अब उसे बहुत ही घबराहट और बेचैनी हो रही थी |

“मैं तीन साल क्यूँ अपने काम में इतना व्यस्त रहा| प्रज्ञा की मैंने खबर भी नहीं ली की वो कहाँ है ?कैसी है ?” मन ही मन वो अपने को दोष देने लगा |

यही सोचते हुए वो मसूरी जाने वाले रास्ते पर शंकर जी के मंदिर में एक किनारे बैठ कर एक टक मूर्ति को देखने लगा |

आज आँसू राघव की आंखों से झर रहे थे| तभी अपने कंधे पर किसी का स्पर्श पाकर उसने घूम कर देखा तो अवाक रह गया | प्रज्ञा सामने खड़ी थी |

भावातिरेक में उसने उसके दोनों हाथ कसकर पकड़ लिए | दोनों की आंखों से बहते आँसू शिव जी का अभिषेक कर रहे थे |

बिना देर किए राघव बोल उठा –“मुझसे शादी करोगी ?”

प्रत्युत्तर में उसने मुसकुराते हुए स्वीकृति प्रदान कर दी | फिर उनकी शादी हो गयी |

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