रोहन बहुत सुस्त इंसान था । उसके घरवालों को यही चिंता सताती थी कि रोहन भविष्य में कुछ नही कर पायेगा।। रोज़ सुबह उसी ताने से होती थी, " किस मनहूस घड़ी में ये लड़का हमारे घर मे पैदा हुआ , इसके सभी दोस्त आज ऊँचे ऊँचे पद पर नौकरी कर रहे हैं "
हालात ऐसे थे कि घर के मुर्गों को भी अब बांग देने में शर्म आने लगी थी। सुबह के 10 बजे तक सोने वाला रोहन , नाश्ता कर फिर सोने की तैयारी में लग जाता था , ये बोलकर की " माँ थोड़ी देर में निकलता हूँ , आज दोपहर में एक जगह interview देने जाना है"।
बिस्तर पर पड़े पड़े शाम हो जाया करती थी , ऐसा नही था कि रोहन को चिंता नही थी , लेकिन ना जाने उसकी सुस्ती क्यों बीच मे आ जाती थी!! परेशान माँ - बाप दुनियाँ के तानों से तंग आ चुके थे लेकिन करते क्या उन्हें भी कुछ समझ नही आ रहा था।।
रोहन अब 28 साल का हो चुका था , उसकी सुस्ती ने एक और बेरोजगार तैयार कर दिया था , जो हर आने वाली सरकार से नौकरी की उम्मीद लगाए बैठा था। लेकिन सुस्ती का क्या उसका इलाज परिवार या सरकार कैसे करे , ये तो रोहन को ही समझना था और उसका समाधान निकलना था।।...........................................
......................................और फिर एक दिन रोहन की खुशी का ठिकाना नही था। नौकरी जो मिल गयी थी। हर तरफ खुशी का माहौल था, जिसे देखो नाच रहा था, गा रहा था, जैसे रोहन को नौकरी न लगी हो बल्कि कोई त्योहार आया हो। ??????
रोहन की आंखों में चमक थी, वो भी सिर उठाकर सबका अभिवादन कर रहा था। आखिर college पास होने के बाद ये पहला ऐसा मौका था जब रोहन के माता पिता का सिर गर्व से उठा हुआ था।।
और नौकरी भी सरकारी मिली थी बाबू वाली। अब तो काम भी रौब के साथ करना था । बताया गया 6 महीने बाद सरकारी गाड़ी भी मिलेगी और साल भर के बाद सरकारी बंगला भी मिलेगा।। पूरे गाँव मे ऐसी नौकरी किसी की नही लगी थी। ?️?️?
कल तक जो लोग रोहन को नकारा कहते थे आज हैरान थे, लेकिन सबसे बड़ी बात हर कोई रोहन को लेकर बहुत खुश था। नौकरी रोहन की लगी थी और बधाइयों के साथ लोग मिठाई लेकर रोहन के घर आ रहे थे।।????✨रोहन भी खुश था, नाच रहा था। खुशी ही ऐसी थी।
अचानक से रोहन की शादी के लिए रिश्ते भी आने लगे । रोहन की शादी होने वाली थी, घरवाले लड़की देखने जाने वाले थे। माँ बोल रही थी , ""बेटा उठ नहा ले , बहु को देखने जाना है, अरे उठ भी जा अब तो मेरा बेटा शादी करेगा। चल जल्दी से नहा ले ।। ""????
अब तो नौकरी लग गयी थी, रोहन भी मजे ले रहा था, बोला माँ चल मैं चौकी पर बैठ जाता हूँ और तू नहला दे । माँ भी खुश!!।। रोहन चौकी बे बैठ जाता है और माँ एक बाल्टी पानी रोहन के ऊपर डालती है ।
तभी???????
रोहन की आंख खुल जाती है , और जो वो सपना देख रहा था वो टूट जाता है, रोहन वही बिस्तर पर खुद को पाता है, और माँ रोज़ की तरह बोल रही होती है, " न जाने तू कब समझेगा , मेरा तो चलना मुश्किल हो गया है गाँव में" ............
..........................रोहन को काफी बुरा लगा जब माँ ने ऐसा कह दिया।
लेकिन फिर वो उस ख्वाब के बारे में सोचने लगा। उसको एहसास हुआ कि सपने में जब उसकी नौकरी लगी तो सब कितने खुश थे । सबसे बड़ी बात उसकी सुस्ती का नामोनिशां नही था।
एक सपना रोहन को प्रोत्साहित कर गया। लगातार महीनों तक रोहन नौकरी की तलाश में भटकता रहा। अखबारों में जो भी नौकरी उसके लायक लगती वहां आवेदन करने लगा । सुस्त रोहन अब अब सुस्त न रह। गाँव वाले ये सब देख काफी खुश थे। जिसको जहां भी कुछ पता चलता वो रोहन की मदद करने लगा।
फिर एक दिन गाँव से थोड़ी दूर रोहन की एक छोटी सी नौकरी लग जाती है। ये सरकारी तो नही थी , न गाड़ी मिलने वाली थी न कोई बंगला। लेकिन जो खुशी रोहन को और रोहन के माता पिता और गाँव वालों को थी वो गाड़ी और बंगले से भी ज़्यादा थी।
रोहन के लिए रिश्ता भी आया और जल्द ही रोहन की शादी भी हो गयी। और सबसे अच्छी बात जिस लड़की को देखने सपने में रोहन जाने वाला था , इत्तेफ़ाक़ से वही लड़की आज उसकी पत्नी है। ?????
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तो कहानी का अंत यही होता है। लेकिन एक बात याद रखने वाली है कि प्रोत्साहन कहीं से भी मिल सकता है । अगर समय रहते हम जागरूक हो जाये और अपने सपनों को जीने लगे तो मंज़िल खुद ही नज़र आ जाती है।
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ये एक कल्पनिक रचना है। इस कहानी के सभी पात्र काल्पनिक हैं ।
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©सतेंदर_तिवारी