ब्लाइंड डेट
गीताश्री
वह मुस्कुराने की कोशिश कर रहा है। चेहरे पर स्याह रंगत वह देख समझ सकती है। क्या ईशान भी उसके चेहरे को पढ़ पा रहा है। विदा की बेला में वह ज्यादा बात नहीं करना चाहती। न खुद बोलना चाहती है न उसे बोलने देना चाहती है। बिन कहे विदा मुश्किल तो होती है पर...
“आई मिस यू टू माई डियर स्ट्रैंजर...”
ईशा ने हाथ बढ़ाया जिसे ईशान ने थाम लिया। दोनों की हथेलियों की ऊष्मा एक दूसरे के नसों तक पहुंच रही थी। ऊष्मा में कुछ ध्वनियां थीं--
“ मैंने बहुत नज़दीक से देखा तुम्हें, क्या हम कुछ लम्हें जी सकते हैं, एक साथ! इतने दिनों से हम जिस अहसास को आत्मा का हिस्सा बनाए बैठे हैं, क्या उसे मैं छू सकता हूँ” ईशा.... इतने दिनों में तुम मेरा हिस्सा बन गयी हो, मैं तुम्हारे साथ ही जैसे चला जाऊंगा, तुम्हारे अहसास के बिना ही, मैं तुम्हारा अहसास चाहता हूँ”
“नाजुक रगें बातें भी करती हैं कभी कभी...
“ईशान, तुमने मेरे लिए क्या किया, तुम्हें भी नहीं पता। मैं हर उस दर्द और जकड़न से आज़ाद हो चुकी हूँ, जिसने मुझे इस हद तक जकड़ लिया था, कि मैं शायद खुलकर सांस भी नहीं ले पा रही थी। तुम्हारे साथ मैंने खुद को खोजा है। पर इसे केवल यहीं तक रखो।“
””ईशा!””
“”हाँ ईशान, अलविदा ”
चलते चलते खुलकर कुछ पूछना चाहती है उससे। सवाल होठों तक आकर अटक रहे हैं। विदा के पल में कटु सवाल कैसे पूछे। इतनी मुश्किल से तो यायावरी के लिए एक साथी मिला है। सवाल के बाद क्या पता, रवैया कैसा हो। कौन-सा उसे अगली बार जाना है उसके साथ। असमंजस में पड़ी ईशा को गौर से देख रहा था ईशान। रगें अब चुप हो चुकी थीं। बाहरी शोर में उनकी बतकहियां दब गई थीं।
”ईशान तो उसकी खोज है। इस खोज से उसे इश्क नहीं हुआ। बेचैन रुहें अपनी खोज किया करती हैं। उनके तरीके अलग होते हैं। ईशा ने अपनी खोज का यही तरीका निकाला था कि खुद को कहीं भटक जाने दे। खुद को भटकने ही तो दिया था। इतना बड़ा रिस्क कौन लेता है वो भी किसी अजनबी के साथ। यह और बात है कि जब अलग हो रही है तो दोनों बाहरी तौर पर अजनबी नहीं रहे।
इस खोज की कथा उसे याद आ रही है...
स्कूल से लौटते समय ईशा के कदम अपने आप ही पारंपरिक वेशभूषा वाली उन लडकियों के समूह की तरफ चले गए। शुरू में तो उसे भी सुदूर उत्तर पूर्व के पहाड़ी क्षेत्र का एक-एक नृत्य बहुत अच्छा लगता था, पर अब अरुणाचल प्रदेश में इस नौकरी से मन ऊब चला था। दो सालों में यहाँ की सुन्दरता उसके मन में इतनी बस गयी है कि उसे लगता था कि जैसे वह तो कहीं है ही नहीं। वह खुद भी एक अकेली पहाड़ बन गयी है, उसमें भी एक घाटी है, उस घाटी में कोहरा है, वह उस कोहरे को छांटना चाहती है पर कैसे? उसका मन होता कि जैसे मैनपुरी में उसके घर में जब कोहरा उसके आँगन में आने लगता था और वह एक लंबा बांस लेकर उसे काटने निकल जाती थी, अपने सीधे पल्ले की साड़ी संभाले अम्मा उसे खूब डांटती, पर उसे बहुत मज़ा आता, काश वह अपने मन की घाटी का कोहरा भी एक बांस लेकर हटा लेती। ऐसे में मैनपुरी के घर में आंगन में बैठी माला फेरती अम्मा कहती हैं- “ब्याह कर लो”
पर उस तक उस आँगन की आवाज़ नहीं पहुँचती क्योंकि उसे लगता है ब्याह के बाद तो यह कोहरा और घना ही हो जाएगा। शादी उसका अभी करने का मन नहीं है। अम्मा को अकेली छोड़े भी तो किस पर। पापा की रहस्यम मृत्यु के बाद अम्मा से सारे नातेदारों ने पल्ला झाड़ लिया था। अकेली अम्मा और ईशा। बेनूर जीवन से ऊबी ईशा का मन फिलहाल फ्रेश होने का, रिफ्रेश होने का है। इंस्टेंट रिफ्रेशमेंट चाहिए, जो उसके मन से दो सालों की नौकरी में अकेले इस शोरशराबे वाले पर निर्जन कस्बे में रहने से उसके मन में बसी पहाड़ों की काई वाली फिसलन को हटा सके। उसकी निर्जनता को हटा सके। अम्मा चीखती है-
“नौकरी छोड़ दो।“
”वह नौकरी छोड़ना नहीं चाहती। क्या करेगी नौकरी छोड़कर। खेती के पैसे से कहां जीवन कटेगा। रिश्तदारों के मुंह मोड़ लेने के बाद शादी में न जाने कितने व्यवधान आएंगे। कौन पड़े इस पचड़े में। वह जीवन की दिशा बदल देना चाहती है। उसे रोमांच चाहिए! उसे एडवेंचर चाहिए! वह घूमना चाहती है, अकेले! वह खुद को जानना चाहती है, एक्सप्लोर करना चाहती है! पर कैसे? इस खामोश जगह पर न तो कोई दोस्त, न ही कोई परिचित! कहाँ जाए? वह पूरब की वादियों से निकल कर दक्षिण में जाना चाहती है। पर अकेले? न, क्या मज़ा आएगा? अकेले क्या खाक इंजॉय करेगी? अम्मा से कहती है.
वह कहती है- ““ब्याह के बाद, हनीमून में चली जाना” अरे, सब कुछ ब्याह और हनीमून ही होता है क्या?”
तो क्या करे? वह रूह की जड़ों तक ताजा होना चाहती है, वह रूह में बसे अकेलेपन की घाटियों से उबरना चाहती है! पर यहाँ तो न नेट, न ही कोई साथी? फिर? क्या करे, क्या करे!
“ब्लाइंड डेट”! ब्लाइंड डेट पर चला जाए? दक्षिण के हरे भरे रास्तों का सफर किसी अनजान के साथ तय किया जाए! वाऊ, हाउ एडवेंचरस! यहाँ पर आने वाले कुछ लोग ब्लाइंड डेट पर आए थे, वे दूसरों को जानते जानते खुद को जानने की प्रोसेस से होकर गुज़रे थे। क्या करे, जाए क्या? और अम्मा? उनकी साड़ी के सीधे पल्ले में कई सारे मूल्य बंधे हैं, जिन्हें पोटली बनाकर उसके साथ ही भेज दिया है! उस पोटली से कुछ न खोने की हिदायत भी दे दी है। पर वह अम्मा को बताकर ही जाएगी।
“”हाय, मौडी, जे काय बोल रही! अकेरी? अनजान आदमी के साथ?, जे का कर रही, इत्तो बड़ा गजब न करियो, तुम्हाओ दिमाग खराब होय गयो है”...”
उधर अम्मा चीख रही है, और इधर उसका मन दक्षिण की वादियों में भटकने लगा है। जैसे कोई प्रेतात्मा... हा हा। रोज़ा का दिल है छोटा सा, उसके जेहन में चल रहा है ““दिल है छोटा सा, छोटी-सी ईशा… मस्ती भरे मन की भीगी- सी ईशा..” हा हा...।
अम्मा का फोन रखकर उसने ट्रेवल एजेंसी से दक्षिण का सफर एक अनजान व्यक्ति के साथ करने के लिए कहा। रोमांच, डर सब का एक अलग ही अनुभव, एक अलग ही अहसास! पर क्या यह सुरक्षित होगा? अम्मा का अनकहा डर कहीं सच तो नहीं हो जाएगा? चलो जाने दो, जो भी होगा, देखा जाएगा! अभी तो उसका मन बस अनजाने साथी के बारे में यह सोच-सोच कर ही रोमांचित है कि कैसा होगा वह? उसे गूजबंप हो रहा है! उसके बाजुओं के रोएं खड़े हो रहे हैं! वह सिहर रही है! बत्तीस साल की उम्र में उसने पिछले तीन चार साल में कई सफर किए पर ये सफर बिल्कुल अलग। यह सफर उसके लिए कुछ लाएगा, कुछ नया ही! ये उसे पता था। तय रहा कि ट्रेवल एजेंसी द्वारा दिया गया साथी उसे दिल्ली एयरपोर्ट पर मिलेगा! वहां से कोच्ची और फिर वहां से बाई रोड कोट्टायम, एलेपी, त्रिवेंद्रम होते हुए कन्याकुमारी पर यह एडवेंचरस ट्रिप ख़त्म होगी। उसका दिल अब अजीब-सी रूमानियत से भर गया है। पर ट्रेवल प्लान के अनुसार वे मिले दिल्ली एयरपोर्ट पर। लगभग झपटता हुआ एक मस्तमौला टाइप जवान चला आ रहा था। लाल टीशर्ट और लीवाइस की नीली जींस में वह स्मार्ट लग रहा था। उसके चेहरे पर नई आभा थी, सहज औत्सुक्य से भरी हुई। वह थोड़ा उत्तेजित था, उसके माथे पर छिटक आई बूंदे ये बता रही थी। रूमाल से माथे का पसीना पोंछने के बाद, उसने हाथ बढ़ाया:
“”हाय, माई सेल्फ ईशान””
“”ओह, व्हाट अ को-इन्सिडेन्स, माई नेम इज ईशा””
“”ओह वाऊ, मतलब सेम टू सेम “”
और उनकी हँसी उसके डियो की महक में घुल गयी। डियो और कपड़ों से वह काफी कुछ उसके बारे में पता चल रहा था। ईशा का डर अब जैसे कहीं खो रहा था। सुबह की फ्लाइट में एक साथ दो अजनबी! सब कुछ ईशा के लिए अद्भुत अनुभव! ईशान बहुत कुछ पूछने के लिए व्यग्र था। ईशा संयत थी। यात्रा के चंद पलों में ही सबकुछ बताना उचित नहीं समझ रही थी। उसने हौले से समझा दिया कि दस दिनों का साथ है। बातें होंगी, इतनी जल्दी भी क्या है। फ्लाइट में सीट को पीछे करते हुए ईशा बहुत सुकून में आ गई थी। ईशान पहली नजर में भला लगा था। इतना समझ में आ गया था कि लड़का बहुत हड़बड़िया है और इसे हर चीज की बहुत जल्दी है। ईशा को लगा कि नियंत्रित करने की जरुरत पड़ती रहेगी। वह निर्भय हो मुस्कुराई। ईशान कनखियों से उसकी तरफ देख रहा था। कई कई यात्राएं एक यात्रा के साथ शुरु हो जाती हैं। बाहर भीतर हर तरफ। ईशा फिलहाल बाहर की यात्रा पर फोकस कर रही थी जो उसे एक अजनबी के साथ अजनबी रहते हुए तय करनी थी। कई पहाड़ पार करने थे।
चाहे कुछ हो जाए, कितना भी करीब आने की कोशिश करे, वह रुम नहीं शेयर करेगी। वह दबाव बनाए तो भी। झिड़क देगी या जरुरत पड़ी तो रास्ते वहीं से अलग भी कर सकती है। मन ही मन ईशा ऐसा करने पर होने वाले आर्थिक नुकसान के बारे में सोचने लगी।
ऊंह...अपनी सोच को झटक दिया। सारी डील तो पहले हो चुकी है। चिंता काहे को करनी। किसी अजनबी से न रुम शेयर करना था, अपनी नींदें, अपना बाथरुम और अपनी रातें...। ये तीनों नितांत उसकी अपनी रही हैं। जिस पर अब तक सिर्फ उसका हक। इन तीनों को उसने बंटते खूब देखा है। इन्हीं तीनों को तो बचाना है अपने लिए।
कुमारकोम के रिजार्ट में चेक इन करते समय अपने अपने रुम की चाबियां लेते हुए वह खुद जितनी इत्मीनान में थी, ईशान उतना नहीं। वह घसीट रहा था खुद को रुम तक। कार्ड से ताले खोलते समय ईशान बोल ही पड़ा--
“ये कैसा अजीब डेट है न...सबकुछ साथ पर कमरे अलग...दिस इज नौट ब्लाइंड डेट...”
“मि. अजनबी...ये हमारे बीच पहले से तय था..नथिंग न्यू..डोंट एसपेक्ट प्लीज...”
मुस्कुराती हुई कमरे में घुस गई। आधी बाहर निकली-
“दस मिनट में तैयार होकर नीचो मिलो..हम बोट राइड के लिए जाएंगे..।“
ईशान कमरे के बाहर ठिठका हुआ खड़ा था।
ईशा हंसी।
“ये लड़के भी न...तुरत लड़की से फ्रेंडली होना चाहते है...इतनी जल्दी भी क्या है मेरे अजनबी दोस्त...?”
ईशा बुदबुदाई।
उसे जल्दी फ्रेश होकर लौबी में पहुंचना था। यात्रा का असली आनंद इसी पल से शुरु होना था।
दस की जगह बीस मिनट लगाकर ईशा आराम से नीचे आई। ईशान के चेहरे पर जैसे झुंझलाहट-सी थी। ये लडकियां भी न ! ईशा के मन में न तो हड़बड़ाहट थी और न ही झुंझलाहट। दिन में उन लोगों को इस विशाल बैकवाटर में बोट राइड के लिए जाना था। अरुणाचल प्रदेश की निर्जनता अभी भी उसके साथ थी, और ऐसा लग रहा था कि जैसे उसके चेहरे पर भी। ईशान उसे पढ़ने की फिराक में था, और लगातार असफल हो रहा था। ईशा उसे जरूर पढ़ पा रही थी और मन ही मन हंस भी रही थी।
“”चलें” “
गुलाबी रंग के टॉप और काली लॉन्ग स्कर्ट में वह बहुत ही सुन्दर लग रही थी। ऐसी ड्रेस उसने खरीद कर तो खूब रखी थी, पर पहन नहीं पाती थी। बचपन से तो एक ड्रेस कोड उसने फॉलो किया था, उसे लग रहा था कि आज वह सारे कोड ऑफ कंडक्ट तोड़ दे। उसने दरिया की तरफ देखा...
ताजे पानी की सबसे लंबी झील पर बसे कुमारकोम की ख़ूबसूरती देखते ही बनती थी। शायद तभी इस शहर को गायक पॉल मैककार्टनी ने ईश्वर का अपना घर बताया था। उसके मन भी हरियाली बसने लगी थी। उसका मिस्टर अजनबी उसका खूब ख्याल रख रहा था। गाइड के लिए पूछने पर दोनों ने ही मना कर दिया। ये उनके दिन थे, बोटिंग करने के दिन, एक दूसरे का साथ बिताने के दिन। आतुरता और संयम के दिन. वह मन ही मन हँसी. ईशान के मन में कुछ हुआ। आज हँसी तो कम से कम । पर ये ईशा ही जानती थी कि उसका मन क्या कह रहा है...वह पत्थर की नहीं थी। एक स्मार्ट लड़का उसके एकांत का सहचर है। हर तरह से उपलब्ध और वह..अपनी आंतरिक जकड़बंदी से मुक्त नहीं।
ठंडी सांस निकली।
“”हाँ, तो मिस्टर अजनबी, हाउस बोट में चलें या ट्रेडिशनल बोट में?””
“”हाउसबोट में!””
“”पर उसका बजट? वह भी तो देखना ही है””
“”ओह हाँ, ठीक है अपन नार्मल बोट से ही चलते हैं””
कनखियों से ईशान ने ईशा को देखा और रोमांचित हो उठा, नाव में, इतने गहरे पानी में, वह और ईशा केवल! वैसे भी यहाँ बहुत हनीमून कपल आए थे और बहुत ही अतरंग फोटो खिंचवा रहे थे। जैसे ही बोट आगे बढ़ी, ईशा के मन में जैसे चप्पू चला। क्या करे? आँखें बंदकर इस अजनबी के साथ आ तो गयी है, इस हरियाली को भी इंजॉय कर रही है, ये मिस्टर अजनबी उसका ख्याल भी रख रहा है सब कुछ एकदम परफेक्ट सा। कुमारकोम किसी जमाने में रबर के लिए जाना जाता था पर अब पक्षियों के लिए जाना जाता है। यहाँ पर पूरी दुनिया में न जाने कहाँ कहाँ से पक्षी आते हैं, अपनी दुनिया बसाते हैं और चले जाते हैं। उसे वह भी एक पक्षी ही लगी जो अपनी निर्जनता से भाग कर यहाँ आ गयी। बोट हिल रही थी और वह भी और पक्षियों की ख़ूबसूरती की फोटो लेते हुए वह गिरने को हुई, पर ईशान ने थाम लिया। उसकी बांहें ईशा को घेरने के लिए बेचैन हो रही थीं ।
“”अब ठीक हूँ मैं, छोड़ दो!””
“”हाँ, पर फिर न गिर जाओ इसलिए तुम्हें पकड़ लिया है””
“नहीं.. अब नहीं गिरूंगी, गिरकर सम्हलना आता है””
“”वैसे तुम्हें तैरना आता है?””
“”नहीं!””
“”तो ठीक है, इस बार गिरना, जब तुम डूब रही होगी, तब उठाकर लाऊँगा””
वह अचकचा गयी पर ईशान नहीं। वह जैसे मन में उस गीलेपन को जी रहा था और समेट रहा था ईशा के काल्पनिक गीले शरीर को।
ताड़ के पेड़ झील के आसपास थे। ये ताड़ के पेड़ ही यहाँ के स्थानीय नागरिकों के लिए आय का एक साधन थे। आने से पहले पूरा रिसर्च करके आई थी कि यहां छोटे छोटे “टोड़ी” शॉप होते हैं। वहां ताजा खट्टी “टोड़ी” (स्थानीय भाषा) यानी ताड़ी मिलती है। साथ में छोटी छोटी मीठे पानी की फ्राई मछलियां। केले के पत्ते में मसालेदार भुनी हुई करीमीन फीश तो जैसे उसके चेतना में पैठ चुकी थी।
शाम को नाव से उतरते ही वे दोनों टोड़ी शाप में घुस गए। छोटे छोटे हट जैसे बने हुए, साफ सुथरे किसी रिजार्ट के बार से कम चमक दमक नहीं। उन हट्स में फैमिली बैठी दिखीं। ईशा का संकोच जाता रहा। बीयर के स्वाद तक सीमित रहने वाली ईशा ने पहली बार टोड़ी का स्वाद लिया और उसका खट्टापन उसे भा गया। ईशान नहीं पी पाया। ईशा का साथ देने के लिए घूंट भरता रहा। मिट्टी के बड़े मग में सफेद पानी को ईशा ने संभल कर पीया। फिर भी हल्का खुमार हौले हौले रगों में उतरता रहा। इसी खुमारी में ईशान का हाथ थामा।
“”तुम तो एकदम बिगड़ रही हो डियर”
” ईशान ने कहा.
“”ओह रियली !! तुम्हारे साथ चली आई यहाँ पर इतनी दूर, ताड़ी पी रही हूँ वगैर वगैर”…”
झेंपा-सा ईशान ।
ये लड़की तो उसे मर्दवादी साबित कर देगी। उसे कुछ भी ऐसा बोलने से परहेज करना चाहिए। वह संभला।
रात की हल्की हल्की ठंडक में भीगते हुए, उसी पिनक में ईशा ने कहा-
““यार ये बिगड़ना और सुधरना कुछ नहीं होता, सबकी अपनी अपनी लाइफस्टाइल होती है। कोई पानी भी छान कर पीता है तो कोई बीयर इसलिए पीता है कि पेट के कीड़े कुछ देर तो नशे में रहें। किसी को कुछ पसंद तो किसी को कुछ! अब तुम्हारी पसंद, मेरी पसंद नहीं, तो क्या मैं बिगड़ गयी!, हा हा!””
“”नहीं ऐसा नहीं, बस मैंने तो ऐसे ही कह दिया, नहीं तो तुम्हारा बिगड़ना मेरे लिए तो वरदान ही है””
““ओ मिस्टर अजनबी, मुझे अपने बिगड़ने की सीमा पता है, तुम्हारे साथ ताड़ी पीकर अपने कमरे में जाकर सो जाना है जिससे कल बैकवाटर्स में घूम सकें””
“”ओह, नो!””
“”ओह यस डियर””
ताड़ी के साथ बिताए कुछ नशीले पलों के साथ वह चली गयी थी रिसोर्ट में अपने कमरे में और ईशान अपनी सिगरेट के धुंए में उसे तलाशने की कोशिश कर रहा था।
और ईशा के जाने के बाद ईशान सुलगता रहा, एक तरफ उसकी सिगरेट सुलग रही थी तो दूसरी तरफ वह। उसे कोवलम बीच याद आ रहा था और ईशा के साथ की गयी छेड़छाड़! गजब लड़की है ये यार, देखो तो कहीं से एक झोला उठाकर चली आई है मेरे जैसे लडके के साथ, और स्विमिंग कॉस्ट्युम में आ जाती है, उसे शर्म नहीं, झिझक नहीं। पर उसके मन में तो उसे झुरझुरी दौड़ ही गयी थी, सिगरेट के धुओं में वह बीच के पल दोहरा रहा था।
“अरे, ईशा! तुम इस रूप में!”
“हाँ, तो क्या समन्दर में साड़ी या बुर्के में आऊँ?”
“ओह नो, नहीं यार! मतलब, हो तुम बढ़िया ही! वैसे हाथ भी न लगाने दो और अब इस ड्रेस में मेरे सामने मेरे साथ, गजब! मतलब दूर दूर से ही...”
“ओ मिस्टर, ये दूरी टूर के पैकेज डील में थी...
“हाँ पर पैकेज इतनी टेम्प्टिंग होगी, कहां पता..!!!” ईशान ने आंख दबाई।
हंसते हुए ईशा लहरो में समा गई। पीछे पीछे ईशान लहरों पर दौड़ता रहा।
लहरों के बीच अठखेली करते हुए भी ईशा कितनी मासूम-सी थी! उसने कितना पानी उसपे फेंका होगा और न जाने कितना खुद पे डाला होगा, पर न जाने क्यों वह ईशा को हासिल करने के साथ साथ उसकी इस मासूमियत को नहीं मारना चाहता था। वह मुग्ध, लहरों पर किल्लोल करती बेफिक्र लड़की को देखता रहा। वह पकड़ना चाहता था पर वह रेत की तरह फिसल जाती थी।
अगले दिन उन लोगों ने बैकवाटर्स का लुत्फ उठाया। ओह, कितना एडवेंचरस था सब कुछ, ईशान का उसे बार बार पकड़ना, कई बार बोटिंग के दौरान उसका ही ईशान पर गिर जाना। उलझती साँसों को समझाना, उलझी हुई धड़कन की उलझन सुलझाना। कुछ बोलना और कुछ बोलकर उसका कुछ और मतलब लेना, सब कुछ अजनबी। ईशा को लग रहा था कि जैसे लम्हे भी अजनबी हो गए थे और वह उन अजनबी लम्हों के मोतियों की माला पहनना चाह रही थी, काश ऐसा हो पाता कि ईशान के साथ बिताए हुए अर्ध रूमानी पलों को अपने स्कार्फ में कहीं बाँध लेती, पर ये तो लम्हें हैं, उड़ जाएंगे कहीं। ये किसके सगे हुए हैं जो उसके होंगे? वह शिकायत कर रही है। उसके सिर पर चपत मारते हुए, ईशान ने कहा-
“”कोई कहानी पढ़ रही हो क्या” ?”
“”हाँ, जिंदा कहानी””
”जिंदा कहानी?”
“”हाँ, उसमें हैं तुम और मैं””
“”अच्छा और क्या है, कोई विलेन है क्या”?”
“”न, जब सब कुछ सहज हो वहां विलेन कैसा?””
“”सही!
“”सब गलत समझेंगे अगर उन्हें पता चलेगा कि मैं किसी अजनबी के साथ ऐसे यहाँ पर हूँ, घूम रही हूँ, देसी दारू पी रही हूँ, पर दरअसल मैं खुद से मिल रही हूँ! मेरे अन्दर एक अजनबी संसार है, जहां पर मैं भी नहीं जा पाती, मैं उस संसार में कदम रख पा रही हूँ. मेरे अन्दर एक कहानी है, जिसके पात्रों से मैं मिल पा रही हूँ””
“ईशा, तुम ठीक नहीं लग रही “”
“”नहीं यार… मैं एकदम ठीक हूँ. हम सब एक कछुए बन गए हैं, एक कड़े खोल के नीचे ज़िन्दगी जीते हैं। और देखते ही नहीं कि खोल के नीचे हमारी ज़िन्दगी है कभी उससे मिल लें, दो चार बातें कर लें, नहीं लगे पड़े हैं सब, कोई परंपरा की खोल में, कोई शादी के खोल में और कोई...””
“”ईशा, चलो यार चलते हैं””
“”नहीं… मैं ठीक हूँ, ईशान पता हकीकत में हम सब भागते हैं, कोई खुद से कोई दूसरों से पर हम सब भागते हैं! एक खूंटी तुड़ाकर सब भागते हैं। कोई मन से भागता है तो कोई तन से, पर भागते सब हैं””
“”ईशा,चलो यार””
“”ओह, तुम्हें लग रहा मैं नहीं चल पाऊँगी, देखो...””
आज उसके इस एडवेंचर का आख़िरी दिन था। आज के रोमांटिक डिनर के बाद कल से उन दोनों को अलग हो जाना था, चले जाना था, इस अनूठे अहसास को अपने साथ लेकर कि वे एक दूसरे के साथ रहे भी और नहीं भी। एक दूसरे का हिस्सा बने भी और नहीं भी। ईशान के मन में ईशा का बहुत ही सम्मान रहा। कल दोनों को अलग होना है।
आज रात का डिनर भी अनोखा ही था। ईशा आज अपने पूरे मूड में थी। खुद को खो देने के मूड में, तो ईशान भी! ईशान सफर में हर रात में ही कुछ ऐसे पल चाहता था जब ईशा अपने बस में न हो! और उसे आज वह लग रहा था।
“जरा सा झूम लूँ मैं”
“ईशा, बहुत खुश हो!”
“हां यार, ये तो नौ दिन बिताए, न, दिल से याद रहेंगे, तुम्हारी बाहों के साए भी ध्यान रहेंगे”
“ओह, ईशा!” उसने उसे बाहों में कसने की कोशिश की।
“ओ मिस्टर, मैंने ये कहा कि तुम्हारी बाहों के साए याद आएँगे तो उसका मतलब ये था कि जब तुमने मुझे थामा, पर इसका मतलब यह नहीं था कि तुम मुझे बाहों में लेने लगो, यार तुम लोग इतनी जल्दबाजी में क्यों रहते हो? या मतलब कुछ और निकाल लेते हो?”
“अरे नहीं!” उसने अपनी बाहों का घेरा हटा लिया.
“देखो यार, जब जब मुझे ऐसा लगा कि मैं गिरने वाली हूँ या लडखडाई या जब किसी और ने मुझे किसी गलत तरीके से छूने की कोशिश की तो तुम आ गए, तुमने मुझे बचाया. एक दोस्त की तरह सहारा दिया, तो ये मैंने उसलिए कहा था, और तुम, छि...”
अपना छुरी काँटा मेज पर पटकते हुए ईशा बोली.
“अरे यार, देखो ठीक है मैं गलत हूँ, पर तुम जानती हो मैं तुम्हें तुम्हारी इच्छा के खिलाफ नहीं छूना चाहता, अब एक आध गलती तो माफ होती ही है न!”
ईशान विनती करते हुए बोला।
“हाँ, एक गलती माफ हो सकती है, पर बार बार नहीं, यार ये तुम लड़के लोग हर बात को निमंत्रण क्यों समझ लेते हो? लड़की हँसी तो फँसी! लड़की तुम्हारे साथ आ गयी, तो चालू, लड़की की जींस का टॉप ऊंचा है तो लड़की चालू, अब तुम्हारी ये डेफिनिशन कितनी अजीब हैं यार, यक्क ।”
“ओह, यार तुम तो न जाने कहाँ से कहाँ ले गयी बात को! अब मैंने कुछ इतना भी नहीं कहा था” सूप पीते हुए ईशान ने जैसे ईशा की सारी बातें गटक लीं।
“वैसे पार्टनर ये तो बता ही दो, तुम्हारी पोलिटिक्स है क्या?” ईशा ने उसे छेड़ते हुए कहा.
“ओहो, छोड़ो, अब तुम तो समझती नहीं हो, और मेरी पोलिटिक्स नहीं है, चलो जाओ।” ईशान ने मुंह फुलाया
“अरे, मेरा साथी तो रूठ गया, अब क्या करें, तुम रूठो या गाओ, मनो या जाओ, पर हम न पिज़्ज़ा बर्गर की तरह शरीर या संबंधों का कन्जम्पशन नहीं करते. यू नो, वे तो प्रीशियस स्टोन की तरह होते हैं, लाइफ टाइम बाई”
“तो कितने खरीदोगी,” लाइफ टाइम बाई” के लिए, अब एक तो होगा नहीं”
“हा हा, ईशान, तुम फिर, “लाइफ टाइम बाई” के लिए अभी वक्त है, उन्हें पहले ठोक बजाकर इतना परखा जाता है कि वे उंगली में आने से पहले ही इस तरह टूट जाते हैं कि सहारा देने के लिए सोने और चांदी की दीवार चाहिए, तब तो वे आ सकें,”
“मतलब ?”
“ओह, मतलब कुछ नहीं. तुम सूप पियो, और अपने इन दिनों को जियो, ये लाइफ टाइम बाई, रहने दो...”
….
एक ही रात बची है उनके पास और कल उन्हें चले जाना है अपने अपने कोटर में। ईशा के मन में बहुत कुछ चल रहा है बहुत कुछ घट रहा है। पर वह कुछ कह नहीं पा रही। इतने दिनों की यादें मन में समेटे वे कोचीन लौट रहे हैं जहाँ से उन्हें वापसी की फ्लाईट पकड़ेंगे। वहां से दोनों को अलग हो जाना है हमेशा के लिए। ईशान मन में एक कसक लिए कोचीन तक का सफर तय कर रहा है तो ईशा एक पूर्णता के अहसास के साथ। ईशान की कसक है, ईशा की चुप्पी है। किसी तरह ये सफर कोचीन तक चलता है। ईशा के मन में बहुत खुशियाँ भी हैं, जिनके फिरोज़ी रंग से वह अपने आसमान को रंगने वाली है। कोचीन में मगर होटल बुक न होने के कारण उनके विचारों के सफर में जैसे स्पीडब्रेकर आ गया।
“”यार, आधा दिन बीत गया किसी भी होटल में दो रूम नहीं मिल रहे हैं! क्या करें!””
“”होटल अलग अलग कर लेते हैं!””
“”पागल हो क्या!””
ईशान चौंका
“”वैसे भी कल अलग हो ही रहे हैं और आज एक शहर में दो होटल! नहीं बाबा, जाने वफा ये जुल्म न कर..””
“”तो क्या करें””
“”सुनो ईशा! हम लोग एक दूसरे को जान चुके हैं, परिचित हैं, भरोसा है तो क्या हम एक ही कमरे में नहीं रुक सकते?””
ईशा सकपकाई!
“”हाँ, सुनो पूरी रात अपन बात करेंगे, इन दस दिनों की. दस दिनों की धूप को अपने कमरे में छान छान कर पिएंगे! मजा करेंगे, मैं सिगरेट भी नहीं पिऊँगा, पक्का प्रॉमिस!””
“”ओहो, ठीक है! इस बहाने चार पैसे भी बचेंगे! और यहाँ पर कौन बैठा है जो ये कहे –
“चार लोग क्या कहेंगे””
“चलो”
“”ईशा, चाय तुम लोगी”?”
“”वैसे इतने दिनों में तुम्हारी काफी पसंद जान गया हूँ””
“”हाँ वाकई में! आई एम इम्प्रेस्ड””
“”मेहरबानी सरकार!””
““कितना मजा आता है, ऐसे ही अजनबी से परिचित बनना और फिर परिचित से अजनबी बन जाना, जैसे हम कल हो जाएंगे! कल मैं फिर से उसी बेगानी दिल्ली से होती हुई अरुणाचल की बियाबान ख़ूबसूरती का हिस्सा बन जाऊंगी और तुम अपनी दुनिया का.” ”
“”हाँ, यार सच में! बहुत कुछ घट गया। बहुत कुछ पोज़िटिव हुआ मैं और बहुत लिबरेट हुआ ””
ईशान भावुक हो रहा था। वह बहुत बातें कर डालना चाहता था। अलग होने के अहसास से उसके भीतर हूल उठ रही थी। वह उस बेचैनी को पकड़ नहीं पा रहा था।
“”हाँ, अच्छा सुनो, तुम्हारी बातें मुझे बहुत याद आएंगी!””
“”केवल बातें?”” ईशान का गंभीर चेहरा देख कर ईशा मजे लेने के मूड में थी।
“”न तुम! कहीं पिघलती हुई, कहीं मेरी बाहों को पकडती हुई, कहीं मेरे साथ कैंडल लाईट डिनर करती हुई, “और ताड़ी पीकर उपदेश देती हुई भी””
“”मारूंगी तुम्हें!””
ईशा ने जोर से मुक्के बरसाए पीठ पर। ईशान को लगा, कुछ फूल झरे उसकी देह पर।
और फिर चाय की सारी गर्माहट उन लोगों की हँसी के गुब्बारों में भर गयी। कुछ यादों के सिक्के उसने उठाकर अपने पर्स में रख लिए जिन्हें ईशान देख नहीं पाया। ईशान सोच रहा है कि उसने कहीं कुछ अनछुआ रखकर कुछ गलती तो नहीं की! नहीं नहीं गलती कैसी? वह बहुत कुछ अनसुलझा सुलझाने की कोशिश कर रहा है। वह ईशा को छूना चाह रहा है, पर उसके मन में उसके लिए बहुत ही इज्ज़त है, वह उसकी मर्जी के बिना छू नहीं सकता! क्या ईशा छूने देगी उसे? क्या ईशा के मन में वही है जो उसके मन में है? उसे समझ नहीं आता वह चाहता है कि ईशा के उन अनछुए कोनों की तरफ जाए वह जहां पर वह जाकर भी नहीं जा सका है! वह उन होंठों को अपना बना ले जिनसे उसने अपना नाम कई बार सुना है । पर वह नहीं छू सकता। एक कोहरे की परत दोनों के बीच है जो इस हरे भरे प्रदेश में आकर और गाढ़ी हो गयी है। परिचय बढ़ा पर देह से अपरिचय ही रहा. ओह! वह भी न जाने क्या सोच रहा है!
ईशा चाय पीते पीते उन सभी लम्हों को भी जैसे पी रही है। ईशान ने उसे बहुत अच्छी कंपनी दी, उसके लिए वह शुक्रगुजार थी। वह भी भावुक हो रही है। परिचय का रंग इतना गाढ़ा हो जाएगा, ये तो उसने सोचा ही नहीं था। इस परिचय को उसे लगता है, ईशान आगे ले जाना चाहता है, पर वह यहीं पर रोकना चाहती है। उसे पता है कि इसके आगे का सफर उसके लिए सम्भव नहीं है। दिल से तो वह अभी भी मैनपुरी के आँगन की ही गौरैया है, जिसे कहीं न कहीं शरण लेनी ही है। वह अपनी उंगली में पहनी हुई अंगूठी को घुमा रही है जैसे वह सवालों को ही घुमा रही हो। उसे लग रहा था कि कुछ अजीब हो रहा है, कुछ गलत हो रहा है। उसके मन का एक पलड़ा इधर है और दूसरा उधर कहाँ जाएगी वह? पर कहीं न कहीं तो जाना ही है वह परिचय के रंगों को जैसे उतार कर फ़ेंक देना चाहती है जैसे अरुणाचल की निर्जनता को उठाकर फ़ेंक दिया था वैसे ही वह अब इस परिचय के गाढे रंग को हल्का कर कहीं फ़ेंक देना चाहती है तो कहीं पर सहेजना भी चाहती है। उफ क्या करे वह! क्या करे! वह पागल हो रही है! वह समझ नहीं पा रही कि वह कौन से शेड को खुद पर लौटाए, उफ...!
“”क्या हुआ चाय सही नहीं बनी क्या?”
“”नहीं, ठीक है””
“”हाँ तुम ठहरी ताड़ी वाली, चाय क्यों पियोगी?””
“”ओहो ईशान, अब कौन-सा पियूंगी कुछ””
“”सुनो ईशा, इन लम्हों को पी लो न”, अपनी पलको को ऐसे ही झुकाए रखो, मुझे रहने दो उन पर सिर टिकाए...”
वह बुदबुदा रहा था।
“”कुछ कहा क्या?””
“”नहीं””
“जो तुम्हारे मन में है, उसे वहीं रहने दो। बाहर न आने देना। ये जो रिजेक्शन होता है, बहुत मुश्किल से दिल उसे स्वीकार कर पाता है?””
“”रिजेक्शन?””
“”हाँ, शरीर का रिजेक्शन! तुम मेरे पास आओ और मैं अपने शरीर को तुमसे छिपाकर कहीं और ले जाऊं, ये रिजेक्शन ही तो हुआ! और तुम्हें पता अपनी देह को ठुकराया जाना किसी को भी पसंद नहीं””
“”हाँ, पर तुम... मेरा मतलब मैं...”
“”जाने दो, मेरे साथ तुमने जो जिया है, उसके सामने शरीर कुछ भी नहीं है””
“”वो तो है, पर अगर लम्हों को वह शरारत भी कर लेने देते तो बुरा तो नहीं था न कुछ भी””
““हाँ… बुरा तो नहीं, पर मैं नहीं कर सकती””
“”ठीक है, आज हम अपने जीवन की एक नई सुबह की शुरुआत एक दूसरे के साथ बात करते हुए करेंगे. चियर्स करेंगे, चिकन टिक्का खाएंगे और जीवन में ताड़ी का नशा लेकर हम जाएंगे, कहो क्या कहती हो?””
“”हाँ… वैसे आइडिया बुरा नहीं, पर पनीर टिक्का भी””
“हा हा… और एक हँसी घुल रही है, उसमें शायद ईशान की कसक कहीं घुल रही है और ईशा, वह गिन रही है, खुशियों को, गम को। उधर उसके मन में अम्मा भी चीख रही हैं- ““अरे गज्जब कर रही बिटिया, एक ही कमरे में पराए मौड़ा के साथ. अरे नाक कटाय दई! हाय दैया!””
वह माँ को चुप करा रही है- ““रोओ मत, कुछ नहीं करूंगी”...”
भाग रही है अम्मा की चीख से और खुद से और ईशान के साथ आकर सोफे पर बैठ गयी है. घड़ी की टिकटिक समय के गुजरने की आहट दे रही है.
कोचीन से दिल्ली तक का सफर। और अब दिल्ली एयरपोर्ट पर खड़े हैं दोनों...विदा की बेला आ गयी है. ईशान और ईशा दोनों ही खुद में सिमटे हैं, दोनों के ही मन में सवाल ढेरों, कौन पूछें! कौन बिल्ली के गले में घंटी बांधें? विदा है, गला भी रुंध रहा है पर कुछ न कुछ ऐसा है जिसे पूछे बिना ईशा को चैन नहीं था। वह रुकते रुकते पूछती है, और पूछते पूछते रुकती है पर अब उसकी जुबां स्पष्ट है, वह विदा लेते हुए ईशान से पूछ ही लेती है, एक ऐसे सवाल को जो उसे इतने दिनों से परेशान कर रहा था--
“”सुनो..एक बात पूछूं..तुम अपनी जेब में कंडोम लेकर क्यों चलते हो ?””
चौंका ईशान.
““क्या...तुम्हे कैसे पता..ओह तुमने मेरी जेब चेक की, जासूसी की”?”
“ईशान को तेज गुस्सा आया, इतना गुस्सा कि आसपास के लोग उसकी तरफ देखने लगे”।
“”दिस इज नॉट फेयर ईशा””
“”व्हाई नॉट ईशान...आई एम नौट फोर्सिंग यू फौर आंसर, मर्जी हो तो जबाव दो नहीं तो जाओ””
ईशा चल पड़ी, सवालों की पोटली को अपने साथ ही लेकर कि जाओ, रखो अपना जबाव अपने ही पास, मुझे नहीं चाहिए।
“”सुनो”...” उसने हाथ पकड़ लिया--
“”मुझे लगा कि बहुत आजाद खयाल की लड़की है, शायद इसे मेरी सेवा की जरुरत होगी। मैं तैयार होकर आया था, सेवा देने के लिए। पर क्या पता था कि तुम अपने खोल में वहीं पांरपरिक लड़की हो जो सदियों से दैहिक शुचिता के बोध तले दबी हुई है, जिसके लिए शरीर से जुड़ना अभी भी पाप है। वह पाप और पुण्य के फेर में है”।“
““अच्छा! थैक्स… वाकई बहुत ही शुक्रिया…हम आजाद खयाल लड़कियों के बारे में ऐसा सोचने के लिए।” अब मैं चलती हूँ, “बाय, अगली बार जब किसी के साथ जाना तो इस सेवा को...”
और चल पड़ी वह.
“”एक मिनट ईशा...”
ईशान ने आवाज़ लगाई’
“”अब जब तुमने मुझसे पूछ ही लिया है और मैंने तुम्हें बता दिया है तो अब क्या तुम बता सकोगी कि तुम्हारे पर्स में चाकू और मिर्ची का स्प्रे क्यों रहता है ?””
अब चौंकने की बारी ईशा की थी-
वह रुक गई। सांस थम गई। ओह... तो इसने देख लिया। कब देखा होगा..? उसी रात..जब हम बाथरुम गए थे..पर्स तो हमेशा मेरे साथ रहता है...तभी देखा होगा...उसे तेज गुस्सा आया। इतनी हिम्मत..पर्स को छुआ कैसे..क्यों”?
उसके मन में सवालों की बौछार हो रही है। वह गुस्से में ईशान पर टूट पड़ना चाहती है। यात्रा की सारी रुमानियत इस बंदे ने खराब कर दी।
ईशान मुस्कुरा रहा था।
उसकी मुस्कान को झटका देते हुए ईशा ने जबाव दिया-
““मेरे पर्स में चाकू हमेशा इसलिए होता है कि जब भी तुम जैसे सेवकों पर सेवा का नशा आए, तो उस नशे को उतार सकूं…””
दोनों पलट गए थे, उन्हें अलग अलग दिशाओं में जाना था। दोनों जानते थे कि वे झेंपते हुए मुस्कुरा रहे हैं।
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