प्रश्न-कुंडली Geeta Shri द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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प्रश्न-कुंडली

प्रश्न-कुंडली

गीताश्री

प्रेम, खौफ, धोखा, दुनिया, रचना, सपना, आकांक्षा, डर, प्रकृति, पानी, बारिश, धूप, बादल, आकाश, पृथ्वी, सौंदर्य, शोख, चंचल, दिल, कविता, लय, गीत, मंदिर, देवता, आशा...

वह कागज पर लिखती चली जा रही थी...

“बस, बस, मात्र पच्चीस शब्द लिखने हैं आपको, अपनी पसंद के। जो शब्द मन में रहे हैं इस वक्त, उन्हें आप लिखते चले जाइए।“

“आशा...” तक आते आते वह रुक गई।

“हो गया...” उसकी आवाज भर्राई हुई थी।

“ओके...आप पेपर मुझे दे दीजिए।“ उसने शिवांगी के हाथ से वह पेपर ले लिया। पेपर लेते हुए शहर की सबसे बड़ी टैरो कार्ड रीडर ने महसूस किया कि कागज नम था। चेहरा सर्द पड़ा हुआ। दिन भर बहुत लोग आते हैं उसके पास। सबसे ज्यादा औरतें आती हैं। कुछ परिवार भी आते हैं। पति पत्नी का जोड़ा साथ कभी नहीं आया। आज पहली बार कोई स्त्री पति के साथ आई है अपने बारे में. अपने संबंधो के बारे में जानने के लिए। टैरो कार्ड रीडर स्मिता दुर्रानी ने उसके पति को बाहर बिठा दिया था। वह अकेले में इस स्त्री से बात करना चाहती थी। पति के चेहरे से लगा कि वह भी यही चाहता था। वह बाहर अपने मोबाइल पर गेम खेलने में मशगूल हो गया। स्मिता ने स्त्री के जवान चेहरे को देखा, चेहरे पर सन्नाटा छाया हुआ था। भीतर किसी तूफान का साया या उसका वेग होगा जिसे वह रोके हुए होगी। रोज रोज ऐसे क्लाइंट को देखते समझते स्मिता आदि हो चुकी है। शिवांगी के लिए यह पहला मौका है जब वह तीनो काल पढने वाली किसी समवयस्क दूसरी स्त्री के सामने बैठी है। अब तक अखबारो में तस्वीरें ही देखती आई है। सामने बैठी स्त्री का वह कमरा अगरबत्ती की खुशबू से महक रहा था और एक कोने में खुशबू वाला कैंडल धीमे धीमे जल रहा था। स्मिता के माथे पर लंबी बिंदी और आंखों में मोटे मोटे काजल और घुंघराले बाल उसे बाकी स्त्रियों से अलग लुक दे रहे थे। शिवांगी को वहां का माहौल जादुई लग रहा था। बाहर से कोई शोर नहीं। अपने भीतर का शोर भी शांत हो गया था। वह अपनी बात साफ साफ सुन पा रही थी। उसके भीतर बहुत से सवाल थे जो अब साफ सुनाई दे रहे थे। उसे यहां भला लगा। सबसे मदिर तो स्मिता की मुस्कान थी जो अबूझ पहेली की तरह उसे लगी।

स्मिता ने ताश से कुछ लंबे चौड़े रंग बिरंगे कार्ड उसके सामने धर दिए। पहले ताश की तरह उसे फेंटा फिर सामने रखते हुए उसमें से एक कार्ड उठाने को कहा। शिवांगी ने एक कार्ड उठाया और अलग रख दिया। फिर कार्ड फेंटा और उसमें से एक उठाने को कहा गया। यह क्रम दस बार चला। दस चुने हुए कार्ड को एक साथ अपनी हथेलियों में लिया और गौर से उन्हें देखने लगी। एक एक कर कार्ड देखती जाती, रखती जाती, फिर दूसरा, तीसरा,,,जैसे जैसे कार्ड देखती जाती स्मिता का चेहरा जलता बुझता। कभी गंभीर होती तो कभी चिंतित दिखाई देती। शिवांगी गौर कर रही थी। उसके चेहरे के बदलते रंगों को देख कर भीतर में भय की लकीर खिंच गई। नसो में कुछ चुभा। स्मिता ने कार्ड से चेहरा उठाया। उसकी आंखें बदल-सी गई थीं। उनमें इतना तेज था कि शिवांगी ने आंखें झुका लीं।

“मैं जो कहने जा रही हूं, हो सके तो आप कहीं नोट कर लें। शायद कुछ आप भूल जाएं और वो आपके काम की बातें हों। सो नोटबुक लाईं हों तो नोट कर लेना बेहतर होगा।“

शिवांगी के पर्स में पेन तो है, नोटबुक नहीं। स्मिता ने उसे सादा कागज पकड़ाया और उसे जरुरी प्वाइंटस नोट करने को कहा।

कुछ भी कहने से पहले स्मिता भूमिका बांध रही थी। उसने पानी का गिलास शिवांगी की तरफ बढाया।

“जो पूछूंगी, सच सच बताइएगा...छिपाएंगी तो मेरे लिए उपाय बताना मुश्किल हो जाएगा।“

शिवांगी ने ना में सिर हिलाया..उसकी धड़कन बढ गई थी। क्या पूछने वाली है। लगता है, सबकुछ जान गई है। पंडित, ज्योतिषी और टैरो कार्ड रीडरो से कुछ छिप नहीं सकता। पहली बार टैरो वाली से पाला पड़ा है। उम्र में ज्यादा बड़ी नहीं दिखाई देती। बस हाव भाव, वेशभूषा तिलिस्मी बना रखा है कि कोई भी उलझ जाए इस मायाजाल में।

“क्या आपके जीवन में कोई और है..?”

“क्या..?”

“आप किसी और से प्यार करती हैं...?”

“बताइए...चुप मत रहिए...चुप रहेंगी तो कभी समस्या का निदान नहीं मिलेगा..बताइए..मैं किसी से नहीं कहूंगी..मुझ पर भरोसा करिए। ये मेरा पेशा है, मुझसे किसी का राज नहीं छिपता। हम किसी की बात किसी से बताते नहीं। यही हमारे धंधे की मोरालिटी है। बोलिए...फिर मैं आपको सारी बातें बताती हूं...मैं आसानी से जड़ तक पहुंच पाऊंगी।“

मैं तो कुछ और जानना चाहती हूं। मेरे करियर और दांपत्य जीवन के बारे में बताइए। बहुत समस्याएं झेल रही हूं। मैंने सोचा पहले आप बताएंगी फिर मैं अपने बारे में बताऊंगी, लेकिन आप तो मुझसे ही पूछ रही हैं...आपको इन कार्डो से कुछ पता नहीं चला क्या...?”

“आपकी जिंदगी बहुत डिस्टर्ब चल रही हैं। ये कार्ड मुझे सबकुछ बता रहे हैं आपके बारे में, बस मैं आपसे पूछती जाऊं, आप हां ना करेंगी तो ट्रीटमेंट में आसानी होगी मुझे ..“

शिवांगी चुप लगा गई। ये सब कुछ मुझी से क्यों कहलवाना चाहती है। बड़ी पंडिताइन बनती है, खुद बताए ना कि मुझे क्या समस्या है। सब कुछ मैं ही बता दूंगी तो ये अपनी तरफ से क्या बताएंगी।

मन ही मन उधेड़बुन में थी कि स्मिता की गंभीर आवाज गूंजने लगी।

“आपने जितने कार्डस चुनें, वे सब आपकी स्थिति की भयावहता की ओर इंगित कर रहे हैं। मैं एक एक करके आपकी जिंदगी की समस्याओ का खुलासा करती जाती हूं। बीच बीच में आपको जो काम का लगे, नोट कर लेना। ये रहा आपका पहला कार्ड..”आंधी चल रही है, जगंल टूट रहे हैं, एक स्त्री तेज हवाओ से घिरी भाग रही है...” ये तस्वीर बता रही है कि आप चौतरफा मुसीबतो से घिर चुकी हैं। अकेली हैं आप और इनसे मुकाबले का साहस नही बटोर पा रही हैं...”

शिवांगी ब्याह कर ससुराल आ गई है। पहला कदम रखा ही था कि कोई कोकिल कंठी कूकी-

“बउआ जी, क्या लाए हैं मेरे लिए ? आज तो सब लुटाना ही पड़ेगा। बिना चुकाए गुजारा नहीं...और वह कंठ गा पड़ी...माई गे सुनए छलिअई, सत्यम बाबू बरा धनिक छतिन, हमर सब के नेग चुकइतिन कहिया, आज ना चुकएतन, चुकएतन कहिया...”

यह गाना उसे इतना भाया कि लगा घूंघट के भीतर से ही गा उठे। नई दुल्हिन का वेश धरे, कुछ तो लोक लिहाज निबाहना था। ज्यादा दिन नहीं, कुछ ही दिन की तो बात है। सत्यम की आवाज निकली—“बस बस..अब अंदर तो जाने दो...भाभी, आपके लिए दाई लाया हूं। सेवा करेगी आपकी...”

“जाइए..बड़े आए...सहर की लरकी को हम कहां दाई बना पाएंगे जी, हम ही न बन जाएंगे..चलिए नेग निकालिए...”

इस छेड़छाड़ के बीच शिवांगी का दिल धक से रह गया। दाई...यह पत्थर सीधे मर्म पर जाकर लगा। हुंह...दाई हूं मैं...। ये भाभी क्या बला है। सत्यम कुछ भी बोल सकते थे, दाई क्यों बोले। यह शूल तब जो चुभा, वह आज तक नहीं निकला। वह गंवई माहौल से जल्दी निकल कर जमशेदपुर और अब दिल्ली पहुंच गई। वो तो भला हो उसकी पढाई लिखाई का जिसने दाई बनने से बचा लिया। नहीं तो उस बड़े परिवार में भाभी जैसे कितनी बहूएं बूढी सासों को तेल मलते मलते खुद ही बूढा रही थीं। उन दिनों को, उस माहौल को अब वह याद भी नहीं करना चाहती। उसे अपने अतीत से नफरत होती है।

“ये आपका दूसरा कार्ड...एक स्त्री नदी किनारे खड़ी है...नाव दूर दिखाई दे रही है...उसे उस नाव की जरुरत है, उस पार जाना चाहती हैं, उसकी पुकार नाविक तक नहीं पहुंच रही है...”

शिवांगी को गंवई ससुराल से मायके वापस जाना है। सत्यम पटना वापस लौट गया है। कुछ दिनों की बात कहके। बूढी गंडक का पानी गांव में घुस आया है। आंगन तक में पानी भर गया है। छत पर सबको शरण लेनी पड़ी है। मुख्य सड़क तक जाने का रास्ता डूब गया है। सारे संचार माध्यम ठप्प और कभी कभार आने वाली बिजली भी गायब। उसके मोबाइल का सिगनल गायब, बैट्री खत्म। इतनी असहाय तो कभी नहीं हुई थी। वह पानी हेलते हुए ही गांव से भाग जाना चाहती है, पैदल। सब मजे में हैं, छत पर बैठ कर नजारा ले रहे हैं। रेडियों पर संगीत का आनंद लिया जा रहा है। वह किससे बात करे, किससे फरियाद करे..उसके और घरवालो के बीच अजीब-सी संवादहीनता है।

“ये तीसरा कार्ड...जंगली जानवरों से घिरी एक झोपड़ी...इसके अंदर....”

“प्लीज...बस करिए...अब मुझे नहीं सुनना। आप मुझे लगातार डरा रही हैं। मैं यह सब सुन कर दहशत से मर जाऊंगी। मुझे मत बताइए ये सब...प्लीज...”

शिवांगी खिन्न हो उठी थी।

“आप बस मेरे कुछ सवालो के जवाब दीजिए। समस्या नहीं सुनना चाहती। तस्वीरे देख कर तो मैं भी इसकी व्याख्या कर सकती हूं...”

“लेकिन ये कार्ड तो आपने चुने हैं, ये कार्ड आपके सारे हालात बयां कर रहे हैं...”

“छोड़िए ये सब...आप मेरी प्रश्न कुंडली बनाइए...प्लीज...ज्यादा नहीं...तीन सवाल हैं मेरे..बस । उनके जवाब मिल जाएं, यही काफी है। आप प्रश्न कुंडली बनाने में माहिर हैं...मेरे सवाल सुनिए..”

“इतने से घबरा गईं आप. अभी तो जो आपने कागज पर 25 शब्द लिखें हैं, उन सबकी व्याख्या बाकी है। ये कार्डस आपके अतीत और वर्तमान के बारे में बता रहे हैं और ये शब्द जो आपने अपने मन से लिखें हैं, वे आपका भविष्य बता रहे हैं। फिर भी आप नहीं सुनना चाहती तो चलिए… पूछिए...”

“मेरा दांपत्य जीवन चलेगा या नहीं। बहुत तरह के इशूज हैं हमारे बीच। जो कभी शौटआउट नहीं हो सकते। मेरी भी कुछ विवशताएं हैं, उनकी भी कुछ परेशानियां, डिमांडस..हम बहुत उलझ गए हैं..हम जानते हैं कि हम एक दूसरे के साथ नहीं रह सकते, फिर भी रहते हैं। हम दो तरह के लोग, गलत तार एक साथ जुड़ गए हैं। हम एक दूसरे से प्यार करते हैं पर एक दूसरे को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं। आप हमारी टैरो कुंडली बना कर देखिए। इस रिश्ते का क्या भविष्य दिखता है ?”

“मैडम...मैं यही तक तो पहुंचने वाली थी, आपके कार्डस रीडिंग के थ्रू...पर आपमें धैर्य़ नहीं...मैंने आपसे पहले ही कहा था, थोड़ा वक्त लेकर आइएगा। हमें जड़ो में जाकर निदान ढूंढना पड़ता है। “

स्मिता मुस्कुराई।

“प्लीज...” शिवांगी गिड़गिड़ाई। मोबाइल साइलेंट मोड पर था। बार बार उसकी निगाहे स्क्रीन पर जा रही थीं।

वहां लगातार कुछ नोटिफिकेशन आ रहे थे। शिवांगी को उन्हें देखने की बैचैनी भी हो रही थी। यहां से जल्दी मुक्त हो तो देखे। अपने भविष्य को लेकर चिंतित भी थी और यहां से भागने की आतुरता भी थी।

उसने सोचा था कि फटाफट सवाल पूछेगी, सवाल के आधार पर प्रश्नकुंडली बनाकर जवाब देंगी। यहां तो ग्रंथ लिखवाने लगी बाबा...।

“पहले आपको आपके लिखे शब्दों के मायने जल्दी से बता देती हूं...यहीं से आपको जवाब मिलेंगे...ध्यान से सुनें..”

-प्रेम-

आपका पहला शब्द है प्रेम। आप मूलत प्रेमिल इनसान हैं। प्रेम करना जानती हैं पर आपको उसी वेग से प्रेम मिलता नहीं। आपकी अपेक्षाएं उतनी ही चाहत पाने की है। आप छटपटाती हैं, प्रेम दिए जाती हैं..वापसी की उम्मीद में...नहीं मिलता तो तुरत वहां से विद-ड्रा करना चाहती हैं। पर आप लौट नहीं पाती हैं। आप खुद को ही टुकड़ो में बांट लेती हैं। प्रेम आपके लिए देने पाने का बराबरी वाला काम है। उसी मात्रा में, उसी बेचैनी के साथ मिलना चाहिए। न मिले तो आप हिंसक भी हो जाती हैं।

उपाय—मेडीटेशन करिए और कमरे में खुशबू वाला कैंडिल जलाइए। अपेक्षाएं कम कर दें।

हां, उसने पति से प्रेम ही तो करना चाहा था। प्रेम हो जाता तो ठीक रहता। यहां करना पड़ेगा। शायद हो भी जाता लेकिन पहली बार कदम धरते ही जो चुहलबाजियां सुनने को मिली, प्रेम होने की संभावना खत्म सी हो गई। प्रेम करने की ओर ध्यान जरुर गया।

कुछ कानाफूसिया सुनी और चौकन्नी हो गई। बबुआ जी कहां करना चाहते थे ये सादी...वो तो फुलवरिया वाली चाची जी पीछे पड़ गईं। लड़की पढी लिखी है, कर ले रे..जरुरत पड़ने पर कमा भी सकती है। बड़की भाभी के कुछ और सपने थे, जो चूर चूर। जब तक शिवांगी वहां रहीं, कोई मौका नहीं छोड़ा उन्होंने उससे काम करवाने और उसके पढे लिखे होने का गुरुर तोड़ने में। शाम की डयूटी लगा दी कि तसली धोओ, मिट्टी का लेवा लगाओ, मिट्टी का चूल्हा लिपाई करके आग जलाओ। गैस का चूल्हा सिर्फ सुबह जलेगा क्योंकि सबको जल्दी होती है। ससुर जी को अठ बजिया ट्रेन पकड़ कर हाजीपुर भागना पड़ता है। सुबह ही भात दाल भरपेट खा के निकलते हैं।

सुबह भाभी संभाल लेती थीं और शाम को मजे से छत पर रेडियों और गप्पे। वह भूल नहीं सकती कि उसने भाभी की पाबंदी के बाद भी एक शाम गैस चुल्हा जला लिया। झपटती हुई छत से भाभी उतरी और फटाक से नौव बंद कर दिया।

“हटो तुम.., गैस फ्री नहीं आता, मुश्किल से एक सिलिंडर का इंतजाम हो पाता है, तुम उसके पीछे पड़ा गई हो. खाना नहीं बनाना तो बता दो. हम कर लेंगे. अब तक तो हम कर ही रहे थे..तुम कुछ ही दिन तो हेल्प करोगी, करना तो हमें ही हैं..हम तो चूल्हे में ही खप गए..जब से इस घर में आए हैं, चूल्हेभाड़ में ही लगे हैं...हमको कहां सुख कि शहर में जाकर रहें। तुम्हारी तरह पढे लिखे नहीं है न..”

लगभग दहाड़ते हुए भाभी ने चौके से उसे निकाल ही दिया। मां जी आईं, देखा और खिसक गईं। अपने कमरे में फफक फफक कर रोते हुए उसने सोचा कि पति को बताएगी भाभी ने कैसे बदतमीजी की और मुझे यहां एक पल भी नहीं रहना। इनसे कोई रिश्ता नहीं रखना। हम यहां से दूर चले जाएगे। तुम्हारे कहने पर कुछ महीने रह लिए। अब हमें चलना चाहिए। वैसे भी मैं गांव के लिए नहीं बनी हूं।

यह प्रेम करने की पहली सीढी थी जिसे उसके पति को पार करनी होगी।

पति उसे लेने तो आए, पूरा वृतांत सुना और पहली सीढी क्या पार करते, पूरी सीढी ही खींच ली। सड़ा- सा मुंह बना कर बोला-“सब जानता हूं। देखो..ये मेरी फैमिली है। तुम आज मेरे साथ इन्हीं लोगो की वजह से हो। तुम्हारी वजह से मैं इन्हें नहीं छोड़ सकता...चाहो तो तुम...”

बोलते बोलते बेड पर पड़े मोबाइल को उठाया, दीवार पर दे मारा। पति का यह रौद्र रुप देखकर वह दंग रह गई। मोबाइल कई भागो में बंट कर फैल गया था। कमरे से बाहर आवाज गई होगी, कुछ कदम दरवाजे तक आती जाती रहीं..।

उसके दिल को पहली और गहरी चोट लगी। भीतर कुछ चटकने की आवाज आई थी। तन से कोई लौ बाहर निकली। कुछ खाली खाली सा अहसास हुआ। भय की अनजानी लहर देह में दौड़ गई।

-खौफ-

“आप ऊपर से निडर दिखने की कोशिश करती हैं, पर आप भीतर से निहायत ही कमजोर और डरपोक हैं।

डर का सामना करिए और जो काम करने में किसी से डर लगता हो, किसी अपने से छिपाने की नौबत आए, वो काम मत करिए।“

डरपोक न होती तो क्या चुपचाप यूं किसी अजनबी से शादी कर लेती। उसने मोबाइल के दौर में प्यार किया था और फेल हो गई थी। वो तो शुक्र था कि सिर्फ मैसेजो के आदान प्रदान हुए थे। खत लिखे होते तो वापस कैसे लेती। मैसेज डिलीट किए और सिम कार्ड बदल दिया। बस कसक बची रह गई थी। सोचा था जो मिलेगा, उसी से प्यार करेंगे। जैसे उसकी मां ने उसके पिता से किया होगा। भाभियों ने भाईयों से..दिदियों ने जीजाओं से।

धोखा-

“आप किसी मामले में धोखा खा सकती हैं। बेहतर हो सजग रहें, लोगो को पहचानना सीखें और...”

“क्या आप इस धोखे को स्पष्ट कर सकती हैं...?”

शिवांगी ने बीच में टोका। भीतर भीतर वह सिहर गई। धोखा देने के नाम पर नहीं, धोखा खाने के नाम पर। कितनी बार धोखा खाएगी।

“शिवांगी जी...!!”

स्मिता की गंभीर आवाज उस खूशबू वाले कमरे में गूंजी।

“ये तो आप बेहतर जानती होंगी। मुझे बस धोखा दिखाई दे रहा है, ये आपके चुने शब्द हैं जो धीरे धीरे आपकी जिंदगी के पन्ने एक एक कर खोल रहे हैं...”

शिवांगी के चेहरे पर उलझन की रेखाएं उभरी। उसने तो जो शब्द ध्यान में आते गए, बिना सोचे समझे लिख दिया। उन शब्दों से उसके जीवन के पन्ने खुलेंगे, कहां सोचा था।

“ये कार्ड देख रही हैं न आप..दी क्वीन्स आफ कप्स..आपकी राशि का कार्ड है, मकर राशि है आपकी..”

“मकर राशि के जातक खुद को प्यार करना तथा स्वीकार करना सीखें. आर्थिक रुप से मजबूत किसी व्यक्ति से मुलाकात होगी। बेशक आप अपनी भावनाएं व्यक्त नहीं कर पाएगी पर रोमांस और सकारात्मकता के लिए यही उचित वक्त है...”

स्मिता ने अचानक शब्दों की व्याख्या बंद करके राशि के कार्ड पढने लगी थी। शायद शिवांगी की ऊब की वजह से बीच में परिवर्तन जरुरी लगा होगा। शिवांगी के भीतर रोमांस शब्द अटक गया था।

कितना सही प्रेडिक्शन है...रोमांस...पर कहां...हवा में..तारो में..मोबाइल में...कहां है...उसे ही ढूंढ रही है अब तक.

स्मिता की आवाज आ रही है...”आप सफलता के करीब हैं...कोई परंपरा विरोधी काम करना चाहती हैं...कठिन मेहनत का उत्तम फल मिलेगा..जीवन साथी की समस्याओ को लेकर परेशान रहेंगी। अपने आत्मविश्वास को कम न होने दे...बहुत उथल पुथल दिखाई दे रही है. आपका लिखा, बस एक आखिरी शब्द है...आशा...। इसका दामन कभी न छोड़िएगा. आप विपरीत परिस्थितियों में भी उम्मीद का सिरा नहीं छोड़ती...यह बहुत पोजिटिव बात है आपमें.. आपके लिखे शब्द आपकी मनोदशा जाहिर कर रहे हैं...”

“खुद को संयत करके कुछ उपाय करें, कहीं लिख लें..उपाय ताकि याद रहे...”

“मेरे सवालो का जवाब नहीं मिला मुझे...आप सीधे मेरी प्रश्न कुंडली बना दें। मुझे कुछ सवालों के जवाब दे सकें तो बेहतर...बहुत बेचैन मनोदशा में आई हूं..कुछ समझ नहीं आ रहा, जिंदगी किधर ले जा रही है...बस मैं सैलाब में बहती चली जा रही हूं..मैं बहुत संदिग्ध हो गई हूं. अपने ही घर में, अपनी ही नजर में..”

“आपको मेरे पास नहीं, किसी मैरिज काउंसिलर के पास जाना चाहिए...”

सारे कार्ड समेटते हुए वह मुस्कुराई। कमरे में अगरबत्ती की महक कुछ कम हो गई थी। सामने वाले टेबल पर अगरबत्ती की दो समानांतर रेखाएं जो उसके राख से बनीं थीं, दिखी। बीच बीच में लाइन टूटी हुई सी थी। दोनों की नजरें उधर एक साथ गईं और लौटीं भी साथ। दोनों आंखों से राख की अदृश्य परतें झर रही थीं...।

“क्या आपके पास मेरे सवालो के सीधे जवाब नहीं ? फिर मुझे अर्चना ने आपके पास क्यों भेजा ? आप तो रिलेशनशीप एक्सपर्ट मानी जाती हैं..कुछ तो जवाब होगा आपके पास..?

“आप समझीं नहीं...हमारे कहने का एक तरीका होता है..हमने बता दिया..समझदार को इशारा काफी है..अगर आप धैर्य रखती तो सारे शब्दों के अर्थ बताती जिससे आपकी जिंदगी ज्यादा स्पष्ट हो सकती थी। मैंने उपाय भी बताए आपको...”

“मेरा दांपत्य जीवन...??? वह खतरे में है..मेरे पति को मुझसे बहुत प्रोब्लम...मैं कहीं नहीं जाती..कुछ नहीं करती..फिर भी..हर समय मुझ पर संदेह की दृष्टि गड़ी रहती है। जैसे दो आंखें हमेशा मेरी निगरानी कर रही हों..मुझे अपनी सांसो का भी हिसाब देना पड़ता है...”

शिवांगी के सवाल जैसे बेताल की तरह लटके हुए थे उस सुगंधित कमरे में..

स्मिता उसे बोलने देना चाहती थी. अब वह टैरो कार्ड रीडर से एक सामान्य स्त्री में बदल चुकी थी जो ध्यान से दूसरी स्त्री का दर्द सुन और बांट लेना चाहती हो। सामने वाली स्त्री अब उसके लिए क्लाइंट नहीं रह गई थी जिससे उसे मोटी फीस वसूलना था। वह सचमुच द्रवित हो रही थी। इसे लगा, इस स्त्री को सहारे की जरुरत है जो अपने ही संस्कारो से जूझ रही है और बाहर निकलने के लिए छटपटा रही है। संस्कारो की कैद से मुक्ति आसान नहीं होती, स्त्रियों के लिए कई बार उम्रकैद साबित होती है।

उसे भी तो उन संस्कारो से निकलने में बहुत वक्त लगा। जैसे कभी वह अपनी पहली कैद में छटपटाया करती थी। कितना हंगामा मचा था जब उसने सोमेश से कहा था-“मैं एन जी ओ सेक्टर ज्वाइन करना चाहती हूं।“

जैसे उस पांरपरिक घर में बम फूटा हो। सोमेश ठाकुर समेत सबका चेहरा ऐसे बना जैसे इंडिया गेट पर कैंडल मार्च में हिस्सा लेने आए हों। सासु मां ने कहा-कोई और नौकरी कर लो, टीचिंग जाब सबसे सेफ रहती है, ये गली गली मोहल्ले में घूमने वाली नौकरी होती है क्या कोई। सोमेश चुप रहा। स्मिता ने मौन स्वीकृति समझ कर कदम उठा लिए। आए दिन, बेतरतीब से कुछ झोला छाप लोगो का घर आना जाना शुरु हुआ और कलह भी साथ ही शुरु हुई। तमाशा तो तब हुआ जब उसे किसी सेमिनार में प्रेजेंटेशन देने के लिए बंगलोर का इनविटेशन आया। चहकती-फहकती घर पहुंची। वही हुआ जिसका डर था। टूर को लेकर बहस शुरु। सोमेश की अपनी दलीलें थी। स्मिता की अपनी। तभी उसका कुलीग सुकेश टपक पड़ा। पूरे मुद्दे की पीपीटी फाइल बना कर पेन ड्राइव में ले आया था। गदगद स्मिता ड्राईंग रुम में सुकेश से लहराती हुई मिली। सोमेश वहीं आकर बजर गया। और उसका विद्रोही मन भड़क उठा और बिना आगे पीछे सोचे, सुकेश का हाथ थाम कर घर से निकल पड़ी।

यह सब भूल बैठी थी। फिर कोई उसकी छाया-सी स्त्री सामने बैठ कर जख्म हरे कर रही है। भीतर में कहीं दर्द चिलक उठा। यह यह दर्द सोचने का वक्त नहीं...उसके सामने एक केस है, जिसे उसको हल करना है। किसी अंधेरी गहरी गुफा से बाहर आई।

बहुत बेदम सी आवाज में आई-जैसे गुफा की पथरीली भुजाओं ने जकड़ रखा हो।

“ऐसी नौबत क्यों आई ? पांच साल ही तो हुए हैं आपकी शादी को. इतनी जल्दी रिश्ता कंपलीकेटेड कैसे हो गया ? खुल कर बताइए तो शायद मैं कुछ समझा पाऊं आपको.

“स्मिता जी...”

वह फफक पड़ी।

“अरे...रे रे..आप रोइए मत...सब ठीक हो जाएगा...सब आपको हाथ में हैं..सच में..मैं आपके लिए प्रे करुंगी, कुछ उपाय बताऊंगी, आप घर जाकर करना और सबसे बड़ी बात कि आप इस रिश्ते को जरा टैक्टफुल्ली हैंडल करो...”

पति से टकरा कर घर में आप कुछ हासिल नहीं कर सकतीं...उन्हें या तो प्यार से बस में करें या मूर्ख बनाएं...आपको रास्ता चुनना है,,,?”

स्मिता के भीतर से कोई और चतुर स्त्री है जो समझा रही है।

उसने शिवांगी की हथेली थाम ली। गरम गरम आंसू उस पर टपकते रहे। आंसू नहीं, घुटन के कतरे थे जो टूट टूट कर गिर रहे थे। बूंदों की गरमाई से दर्द की तीव्रता का पता चलता है कई बार। स्मिता ने कितनी ही स्त्रियों के आंस संभाले हैं अपनी हथेलियों पर। उसकी ज्यादातर क्लाइंट स्त्रियां ही हैं। अकेली आती हैं और घरेलू समस्याओ के लिए उपाय पूछ कर जाती हैं। उसके पास आने वाली स्त्रियों में ज्यादातर प्रौढ़ होतीं हैं, पैंतीस पार जिंनकी सिर से शादी का हैंगओवर खत्म होने लगता है और रिश्तो में टकराव शुरु। सबके सब चाहती हैं या तो पति उनके वश में हो जाए या उनकी हर बात माने। कुछ पति के विवाहेतर संबंधों को लेकर तबाह रहती हैं कि कैसे वापस उन्हें अपनी तरफ मोड़ लें। बेवफा पतियों को अपनी तरफ मोड़ने की इच्छुक स्त्रियों की अच्छी खासी तादात होती है। यह स्त्री तो सबसे अलग दिख रही है और उम्र भी ज्यादा नहीं दिख रही है। वह उसे बोलने देना चाहती है ताकि मवाद फूट कर बह निकले।

यह भी एक किस्म की थेरेपी है जिससे खुद स्मिता को बड़ी राहत मिलती है। पर क्या स्मिता कहीं और रोने जाती है,,,नहीं..उसकी देह क्षण भर को तनी।

शिवांगी की समस्या कुछ पल के लिए फिर ओझल हुई और अपनी जिंदगी फ्रेम दर प्रेम घूमने लगी। नहीं..वह रोने धोने में यकीन नहीं करती। टैरो विधा जानते हुए भी उसकी जिंदगी में क्या हुआ। खुद अपने लिए कुछ उपाय कर पाई क्या...

“स्मिता जी...आप कहां खो गईं...?”

शिवांगी चुप हो चुकी थी। वह हैरान सी स्मिता के चेहरे पर तनाव के रेखाओं को बनते मिटते देख रही थी। नसें फूल उठीं थीं। लगभग तमतमा उठा था पूरे चेहरा।

“हां...आं...ओह...सौरी...आयम सो सौरी...कहीं खो गई थी...नथिंग टू वरी..यूं हीं..कुछ खयाल आ गया..एक गाना है न...हुई शाम उनका खयाल आ गया..”

“वही जिंदगी का सवाल आ गया...” शिवांगी ने दूसरी लाइन पूरी की और दोनों हंसे..फीकी और बदरंग हंसी।

दोनों में से कोई न सवाल पूछने लायक बचा न जवाब देने लायक. अजीब मोड़ पर वह पल ठिठक-सा गया। स्मिता उठी, फिर से अगरबत्ती जलाई। जासमीन की खूशबू फिर से फिजां में तैरने लगी। स्मिता संजीदा दिख रही थी और शिवांगी सामान्य हो रही थी धीरे धीरे।

“आप कोई फैसला क्यों नहीं ले लेती...आपके पास वक्त है, उम्र है, पढी लिखीं हैं, क्यों सहती हैं ये सब..आपके सवालो के जवाब हमारी विधा में नहीं, आपके पास ही है। सबकुछ आपके हाथ में। फैसला आपको लेना है, या तो इस पार या उस पार।“

वह चुप रही।

“आप उन्हें लेकर किसी मैरिज काइंसिलर के पास जाइए...शायद सब लाइन पर आ जाए। हो सकता है उन्हें आप पर शक हो, गलतफहमी हो, दूर हो जाएगी।“

आप दोनों में बात होती है न ?

“नहीं. संवादहीनता की स्थिति है...जब भी बात होती है, लगता है काट खाएगा..मैंने फिर बातचीत कम कर दी है..गाली उसकी जबान पर रहती है..तोड़ फोड़ रोज की बात..कितनी बार मेरा मोबाइल तोड़ चुका है..कई बार मोबाइल छुपा कर साथ ले जाता है..पता नहीं क्या चेक करता है..दो दो दिन तक मेरा मोबाइल लिए फिरता है..उनकी वजह से मैंने फेसबुक अकाउंट तक डी-एक्टिवेट कर दिया है। अब ले दे के दुनिया से जुड़ने का एक ही माध्यम बचा है मोबाइल...वह भी हमेशा संकट में रहता है..”

“घर आता है तो कांप उठती हूं..डर से मोबाइल छूती नहीं..पता नहीं कब रिएक्शन हो और उसे तोड़ दे..”

“मारपीट भी करते हैं क्या..?”

“नहीं, मुझ पर कभी हाथ नहीं उठाया, पर चीजो को तोड़ते समय चेहरे पर जो भाव रहता है वह मैं समझती हूं..हर चोट मुझ पर पड़ती है, वह मेरे लिए होती है,..”

“आपकी सेक्स लाइफ कैसी हैं ?”

सीधे पूछे गए इस प्रश्न से वह थोड़ी सकपकाई। जवाब दे या न दे, कुछ पल ठिठकी। स्मिता ने टोका- “कोई जल्दी नहीं, सोच कर जवाब दें, जरुरी है, तभी किसी नतीजे तक हम पहुंच सकते हैं..”

“बिल्कुल न के बराबर..वह हाथ नहीं लगाता। मैं छूती हूं तो कहता है, मूड नहीं है, थका हुआ हूं..सो जाओ..फालतू तंग मत करो...डाक्टर ने इलाज शुरु किया और उसका कोई फायदा न हुआ. कैसे होगा जब वह इनसान कुछ करेगा ही नहीं..। रात को इतनी गहरी नींद सोता है कि पता ही नहीं चलता बगल में उसकी पत्नी किस दुख में कराह रही है। सारी सारी रात नींद नहीं आती..हजारो सूईंयां चुभती हैं रात भर..

उसके घरवाले मुझसे दस सवाल पूछते हैं..बच्चा क्यों नहीं करते ? क्या बताऊं कि तेरा बेटा...तेरे बेटे के पास टाइम नहीं..बहुत बिजी है..पूरी साफ्टवेयर कंपनी उसी के दम पर चलती है...नींद में भी वही बड़बड़ाता है...नींद में कभी मुझे छूता है जैसे लैपटाप का की-बोर्ड छू रहा हो।“

शिवांगी सबकुछ उगल रही थी, दांत किटकिटाते हुए। गाल पर इंद्रधनुषी रेखाओ की परछाईयां उभर कर लोप हो गई थीं।

“अच्छा..!! फिर कैसे चलता है घर ? दो ही लोग हैं आप लोग...कैसे रहते हैं उस घर में ? आपको बताऊं ? मैं भी गुजरी हूं इस सिचुएशन से..मैंने लांघ दी चहारदीवारी..पिता की पसंद को ठुकरा आई, दूसरा आप्शन मैंने खुद चुना, वहां भी फेल हुई, उसे भी छोड़ आई, अब मैंने थर्ड आप्शन के साथ हूं...इसे मैंने थाम रखा है मजबूती से..इसके बाद मुझमें फैसले लेने का दम नही..भगवान की दया से अब सब ठीक चल रहा है..टचवुड.”

उसने लकड़ी की मेज छू ली और राहत की सांस ली।

“आपने तीन शादियां की ?” उसकी आंखें फैल गईं।

स्मिता मुस्कुराई। सवाल पूछते हुए कितनी मासूम सी यह स्त्री चौंक रही है जैसे इसने कभी किस्से कहानियों में ना पढी हो इतनी शादियों के बारे में। शायद एलिजाबेथ टेलर का नाम नहीं सुना होगा। अधिकतम शादी का रिकार्ड बनाने वाली स्त्री...।

“ओ गौड...”

कुछ पल के लिए वह भूल गई कि क्या क्या बके जा रही थी उस अजनबी स्त्री के सामने। हालांकि बकने के बाद खुद को कुछ हल्का जरुर महसूस कर रही थी। अब हैरान होने की बारी उसकी थी।

बड़े शहरो में कितनी आसानी से औरते तीन शादियां कर डालती हैं...हमारे हाजीपुर में तो कोई लड़की सोच भी नहीं सकती। जब तक कि पति उसे तलाक न दे दे या वह विधवा न हो जाए। पुनर्विवाह इन्हीं दो स्थितियों में संभव। कपड़े की तरह पति बदलने का खयाल ही बड़ा डरावना लगा उसे। गुड्डे गुड़िया का खेल नहीं कि मामूली सी लड़ाई पर दोनों को अलग कर दिया करते थे। बचपन में यह खेल खूब खेला तब कहां सोचा था कि जिंदगी उसे इस मोड़ पर ले आएगी। यहां तो शादी बचाने की चुनौती जान को लगी है। उसे फेल नहीं होना है। बिस्तर पर पड़ी, असहाय, बूढी मां की आखिरी ख्वाहिश उसके सपनो में भी दीमक की तरह लग गई है। वह नोंचना चाहती है पर दो बूढी आंखें...गड्डे में फंसी हुईं पुतलियां फड़फड़ाने लगती हैं...जैसे बुरी खबर सुनते ही शांत हो जाएंगी हमेशा हमेशा के लिए। उन आंखों के लिए वह अपना शेष जीवन होम कर देगी। क्या कभी गुड़िया की तरह अलग कर पाएगी खुद को।

नहीं....बार बार शादी नहीं..फिर फिर पति नहीं...फिर से गृहस्थी नहीं...फिर कोई नया मर्द, नया बिस्तर, नए तरह से फिर खुद को किसी के सामने नंगा करना...क्या वही पहली कोमलता दे पाएगी कभी...वह तो सूख गई है. कहां से लाएगी वह द्रव जो रिश्तो को तरल बनाए रखता है। नहीं..अब नहीं. जुआ नहीं खेलना..अगर इसके ठीक होने की कोई संभावना बची है तो उम्मीद बांध कर बुरा वक्त निकाल देगी। नहीं तो...

सवालों की सूली पर बार बार अटक जाती है।

मैं कभी अपनी जिंदगी को एक्सपेरिमेंटल नहीं बनाऊंगी। मैं इतनी मजबूत हूं कि अकेली राह चुन सकती हूं। उन बूढी आंखों को भरोसे में लेकर...उनकी रौशनी में...। मुझे तीन पुरुषो की जरुरत नहीं स्मिता...तुम तो अभी भी घर, पति जैसे भ्रामक शब्दों में उलझी हो...तुम बिना पुरुष के रह सकती थी...क्यों तुमने इतने प्रयोग किए...क्या पुरुष के बिना तुम्हारी जिंदगी नहीं चलती..., आह...

मुंह से कराह निकली। वह तो उपाय पूछने आई थी, शायद टोना टोटका से काम बन जाता। पूनम ने तो यही समझाया था कि स्मिता बहुत अच्छी टैरो रीडर है, भविष्य भी बता देगी और उपाय भी। बता तो रही हैं, संकेत भी दे रही हैं, जो उसकी सोच और चाहत के ठीक उल्टा है। वह तो बस इतना चाहती थी कि पता चले, ग्रह दशा कब साथ देंगे और दांपत्य जीवन की दशा दिशा बदलेगी या भी नहीं.

स्मिता ने उसके हाथ से उसका मोबाइल लिया और उसमें से कुछ ऐप डिलीट करने लगी।

“क्या कर रही हैं आप..? मत करना...प्लीज..”

उसने अपना मोबाइल झपट लिया और उठ खड़ी हुई।

“देखना आपकी आधी समस्या खत्म हो जाएगी। थोड़ा उन पर कंशंट्रेट करिए...जब आपको लेकर यहां तक आ सकता है, इतनी देर तक बैठ सकता है तो कुछ भी कर सकता है..वो मर्द क्या जिसे आप जैसी हसीन औरत कंट्रोल न कर सके...अपनी खोल से बाहर निकलो यार..या बी रेडी फौर सेकेंड आप्शन..”

“मैं आपकी तरह अपना सुख विकल्पो में नहीं तलाशूंगी...मुझे बार बार मर्द बदलने की जरुरत नहीं...मुझे ऐसी सलाह की जरुरत भी नहीं। मैं खुद को सहेज संभाल सकती हूं। जब मैं आपके पास आई थी तब टूटी हुई, बिखरी हुई जरुर थी पर लौटते हुए वैसी नहीं रही। हम सारा सुख एक ही जगह तलाशते रहते हैं, उम्मीद का सारा बोझ एक रिश्ते पर डाल देते हैं...हम उसे अपने हिसाब से ढालना चाहते हैं, नियंत्रित करना और होना चाहते हैं...हम जिंदगी को उसकी विराटता में देख ही नहीं पाते..मैं तलाश करुंगी उसकी..

“और हां...आप जो ऊपर प्रेम और धोखे की बात कर रही थीं...यह परस्पर होता है। दोनों जुड़े हैं, आपस में...धोखा खाने वाले, धोखा देते जाते हैं...प्रेम पाने वाले, प्रेम करते नहीं, प्रेम देने वाले, प्रेम पाते नहीं...। यहां डुएट परफार्मेंस नहीं होता..जिंदगी बेसुरे संगीत में बदल कर रह जाती है। अब विवाह बचाने या गंवाने में मेरी कोई दिलचस्पी नही रही...मैं इस गुलाम मंडी में अपने लिए कोई जगह नहीं देखती हूं। जिन्हें आप्शन की तलाश हो, वे करें। उनकी हिम्मत की दाद देती हूं...वे नहीं जानती कि चाहे जितनी बार आप्शन चुनो, विवाह उन्हें वस्तु में बदलता देता है...वस्तु में...इससे ज्यादा कोई हैसियत नहीं, एक बार बस्तु बन कर जी रही हूं...मुक्ति का मार्ग खुद ही तलाशना होगा। मैं खुद को आगे इस आतंक से बचाए रखने की हिमायती हूं...शुक्रिया..आपका...”

स्मिता हतप्रभ । ये अचानक रोती बिसुरती हुई स्त्री को क्या हो गया है। यह तो कोई और है। चेहरा दिपदिपा रहा है। तमतमाए हुए गालो पर ललछौंही आभा। ऐसी ललछौंही आभा चेहरे पर तब उभरती है जब हम भीतर भीतर कुछ तय कर लेते हैं। ढृढ निश्चयात्मक आभा..निश्छल, निष्कलुष और निष्पाप।

स्मिता ने प्रवेश द्वार पर टंकी तस्वीर को देखा और उसका चेहरा फक्क पड़ गया। उसे लगा मानो अब तक ध्यानस्थ साध्वी की आंखें खुल गई हैं..

शिवांगी ने उसके फक्क पड़े चेहरे को गहरी निगाह से देखा. जैसे एक पागल दूसरे पागल को गहरी निगाह से देखता है। शिवांगी ने कंधे झटके, अपना मोबाइल आन किया और फिर से व्हाटसअप और फेसबुक मैसेंजर डाउनलोड करने लगी जिसे स्मिता ने डिलीट कर दिया था। ऐसा करते हुए उसके चेहरे पर अदम्य शांति थी जो दूसरो का जीवन-कुंडली पढने वाली स्मिता के लिए अबूझ थी।

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