बड़ी बाई साब - 1 vandana A dubey द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

बड़ी बाई साब - 1

“ ॐ सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके
शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते !!.......
नीचे मंडप में पंडित जी कलश स्थापना कर रहे थे. खिड़की से सिर टेके खड़ी गौरी चुपचाप सारे काम होते देख रही है. छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी ज़रूरत के लिये भी पंडित जी बड़ी बाईसाब को याद करते हैं. हर रस्म के लिये भी उन्हें ही बुलाया जाता है. गौरी को तो यदि किसी ने खबर कर दी तो मंडप में पहुंच जाती है, वरना उसकी अनुपस्थिति में ही रस्म पूरी हो जाती है. कई बार तो गौरी भूल ही जाती है कि ये सारा सरंजाम उसी की बेटी के विवाह का है. असल में भूल तो वो ये भी जाती है कि नीलू उसी की बेटी है. गौरी का ब्याह कम उम्र में हो गया था सो मां भी कम उम्र में ही बन गयी थी.
ससुराल में लम्बे समय से कोई बच्चा न था घर में . इतने दिनों बाद बच्चे का घर में आगमन, वो भी बेटी का, सारा घर झूम उठा था बिटिया के जन्म की खबर सुन के. इस परिवार में बीसों साल हो गये थे, बिटिया का आगमन न हुआ था. परिवार में, दूरदराज के रिश्तेदारों में, हर जगह से लड़कों के जन्म की ही खबर सुन सुन के बड़ी बाईसाब को लगने लगा था कि कहीं लोग उनके घर को अभिशप्त न घोषित कर दें. जिस घर में बेटी नहीं, उस घर में रौनक नहीं, लक्ष्मी नहीं, खुशी नहीं…. ऐसे में गौरी का बेटी को जन्म देना इस परिवार के लिये वरदान सा था. बड़ीबाईसाब को लगा जैसे वे शापमुक्त हो गयीं हों. अस्पताल से घर आने के बाद नन्ही यानी नीलू उनकी गोद में तभी आती जब उसे भूख लगी होती. बड़ी बाईसाब का वश चलता तो वे उसे दूध भी बोतल में भर के पिलाने लगतीं. दस-पन्द्रह मिनट की दूरी भी वे बर्दाश्त न कर पातीं नीलू से. नन्ही का नहलाना, धुलाना, मालिश, तेल सब उनकी निगरानी में होता, उन्हीं के कमरे में होता. गौरी अपने कमरे में अकेली पड़ी रहती. शुरु में तो दादी के इस प्यार पर गौरी गदगद हो गयी, लेकिन दो-चार दिन बाद ही उसे अटपटा लगने लगा. जन्म उसने दिया, नौ महीने तक़लीफ़ उसने सही, और अब जब अपनी कृति को गोद में ले के निहारने का वक़्त है तो वो उसके पास ही नहीं!!! जैसे सरोगेट मदर हो वो….. बच्चा पैदा किया और सौंप दिया मालिकों को… दूध पिला के यदि गौरी ज़रा सा खेलने लगती नन्ही के साथ, उसकी मुट्ठियां खोल के देखने लगती तो बाहर से बड़ीबाईसाब की आवाज़ आ जाती- ’अभी तक दूध नहीं पिला पाई क्या गौरी? जल्दी भेजो नीलू को.’ और गौरी मन मसोस के बिटिया को बगल में खड़ी शीला को सौंप देती. शीला बड़ी बाईसाब की उन वफ़ादारों में शामिल थी, जो लम्बे अरसे से न केवल उनके साथ थी, बल्कि घर की हर छोटी-बड़ी बात भी जानती थी.
नीलू कब मुस्कुराने लगी, कब करवट लेने लगी, कब पलटने लगी, गौरी को पता ही नहीं. उसकी सहेलियां पूछतीं-”बिटिया अब तो पलटने लगी होगी न गौरी?

(क्रमश:)