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रिजर्वेशन की टिकिट

कुछ साल पहले हम लोग समूह में अमरनाथ जी की यात्रा के लिए जम्मू जा रहे थे हम सबका रिजर्वेशन था सो अपनी अपनी बर्थ में हम सब इत्मीनान से बैठ कर गपियाते चले जा रहे थे । दिन का सफर बैठे बैठे बीत गया अब रात हो गयी थी सबको सोने की जल्दी मच गई । एक बर्थ पर एक परिवार बैठा था जो हमारे ग्रुप का नही था । उसे अपने बर्थ पर बैठा देख कर उसे सब गरियाने लगे। कोई कहता कि ये लोग चोर उच्चके हैं जो चुपचाप इस बर्थ में आ गए हैं ,,,कोई कहता कि ये लोग रात में यहाँ कुछ कांड करने वाले हैं यात्रियों के बीच मे सोकर वे सामान पार कर देते हैं,,, वे बेहोश करके लूट ले जाते हैं । सब उन्हें वहाँ से भगाने लगे । वे बिचारे सहम कर चुपचाप हमारी बोगी से दूसरी बोगी के बीच बैठ गए । सब लोग उन्हें शक की निगाहों से घूर रहे थे । उनसे कोई हमदर्दी नही बता रहा था ।

उन्हें भला बुरा कहते हुए उन्हें उनके हाल में छोड़कर हम सब सतर्क होकर अपनी अपनी बर्थ में चादर तान कर सो गए ।
पूरी रात हम सबकी नाक बजती रही,,,खर्र,,,, खो,,,,,खो,,,,,,खटा,,,,क,,,कटा,,,,क,,, फुस्स फिस्सस,,,बज्ज्ज्,,,

इन खर्राटों के बीच सुबह मेरी आँख खुली तो मै पहले टॉयलेट की ओर गया देखता हूँ ,वे सब जिनके वहां रहने से हमारे कीमती सामान के चोरी हो जाने का डर था टॉयलेट के पास एक दूसरे से सटे सो रहे थे । उस परिवार में कुल 6 लोग थे । एक अधेड़ उसकी पत्नी,एक नवजवान उसकी पत्नी, एक छोटी लड़की और एक 12,13 साल का लड़का ।

मुझसे रहा नही गया मैंने पूछा

"कहाँ जा रहे हैं आप लोग ,,?

पहली बार किसी ने उनसे कुछ पूछा था ,वरना इसके पहले कोई उनकी सुनना भी नही चाहता था।
उस अधेड़ ने जो छतीसगढ़ का था अपनी बोली में बताया कि

"हमन कसडोल गावँ के हवन ईटा भट्ठा म मजूरी करे बर जम्मू जाथन साहब ।" (हम लोग कसडोल गांव (छत्तीसगढ़ का एक कस्बा) के हैं और वहां के ईंट भट्ठे में मजदूरी करने जा रहे हैं )

मैंने पूछा कि

"अतेक लंबा सफर म तुमन बिना टिकिट के कइसे जावथव जी ,,,,?"(इतना लंबा सफर बिना टिकट और रिजर्वेशन के कैसे कर रहे हो)

उसने फिर अपने पास की टिकिट दिखाई
की टिकट रिजर्वेशन की थी और अगली बोगी के 4 बर्थ उन्हें आर ए सी कोटे में एलॉट थे । पर वे इस सिस्टम को समझ नही पा रहे थे और टी टी पूरी रात उस बोगी में चेकिंग के लिए नही आया था। वे इस सम्बंध में किसी से पूछना चाह रहे थे पर हम सारे लोग एक सुर में उन्हें केवल गरिया रहे थे ।

मुझे उन पर बहुत दया आयी और बेहद अफसोस हुआ कि उनके बारे में पूरी जानकारी लिए बगैर मैं उन्हें चोर,डकैत समझ रहा था ।
दिनभर और रातभर एक कोने में बैठे रहने के कारण वे बुरी तरह थक गए थे और उनके छोटे बेटे का शरीर बुखार से तप रहा था ।
उस अधेड़ के बड़े बेटे की शादी अभी अभी हुई थी और वह भी अपनी नई नवेली दुल्हन के साथ जा रहा था ।
मैंने उसकी टिकट लेकर साथ मे उस अधेड़ को लेकर उस बोगी के बर्थ में गया जो उन्हें मिली थी, उस बर्थ में 2,3 युवा लेटे थे । उन्हें उठाकर मैंने उन्हें बताया कि ये चारों बर्थ उनकी है । उस अधेड़ के चेहरे में खुशी की लहर दौड़ गयी वो तुरंत अपने परिवार को लेकर वहाँ बैठ गया ।
सुबह हो गयी थी और आज भी सारा दिन ट्रेन में ही रहना था । ये ट्रेन रात तक जम्मू पहुँचने वाली थी सो सारा दिन उनके लिए वो बर्थ किसी वरदान से कम नही था । जो उनके ही हक की थी।

केवल भय,संकोच और लोगों के तीखे तेवर देखकर वे डर गए और अपनी समस्या नही बता सके ।
मैंने अपने पास की दवा उसके बच्चे के लिए दी और जो कुछ खाने का सामान था हमने उन्हें दिया। उनके चेहरे की खुशी देखकर मुझे ऐसा लगा कि सच्चा तीरथ तो यहीं हो गया ।

उसके बेटे बहु ऊपर की बर्थ पर बैठे एक दूसरे को प्रेम से देख कर बतिया रहे थे । वे दोनो पास पास थे और अपने कल के सुनहरे ख्वाब में डूब उतरा रहे थे ।।

वे जानते थे कि जहाँ वे जा रहे थे वहां भी ईंट के भट्टो में उन्हें दिनरात खपना है । बिना चैन आराम के कुछ माह में पैसे कमाकर अपने गावँ लौटना है। पर जो बीती रात और पिछला सारा दिन जिस दुर्गति में बीता वो किसी यातना से कम नही था।

कुछ अप्रिय परिस्थितयों के निर्मित होने और उनका विवेकपूर्ण समाधान न ढूंढने से यह ऐसे भोले भाले और गाँव से शहरों की ओर रुख करने वालो के लिए बेहद तकलीफदेह हो जाता है ।

काश,,,, टी टी आ गया होता जो उनके टिकट की जांच कर उन्हें उनकी जगह दिला देता,,,

काश,,,, हम उन्हें भगाने,डांटने,धमकाने की जगह उनसे कुछ पूछ लेते तो सारी बात स्पष्ट हो जाती,,

काश,,,, वे अपना भय संकोच छोड़कर हमे कुछ बता पाते,,, गावँ से निकल कर सीधे शहरी लोगों के बीच सफर का उनका पहला अनुभव उनके लिए नारकीय नही होता,,,

काश,,, जिस आदमी ने यानी जिस एजेंट ने उन्हें टिकट कटा कर बिठाया था वो इनके साथ होता या उन्हें सारी बातें समझा कर ट्रेन में बैठाता,,,


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