मैं ब्राह्मण कुल में जन्म लेकर अपने भाग्य सराहता हूँ क्यों ???
1. हिंसा से दूर-- बचपन से मांस, मछली का भक्षण और क्रूरतापूर्वक पशुवध का मंजर देखने से दूर रहा,,,
2. सात्विक भोजन का संस्कार -
जब कोई मनुष्य बिमार पड़ता है तो डॉक्टर उसे पहली सलाह देता है कि शराब, सिगरेट पीना और मांस खाना छोड़ दो,,डॉक्टर कभी सादा भोजन छोड़ने नही कहता,, बिमार और सेहत दोनो अवस्था मे सात्विक भोजन ही श्रेष्ठ विकल्प है ,,जो मुझे जन्म से मिला,,,
3. पूजा पाठ -- बचपन से भगवान के प्रति आस्था जीवन को एक सकारात्मक भाव देता है ,दिनचर्या स्वास्थ्यवर्धक होती है,,प्रातः स्नान,फिर पूजा, ध्यान मंत्र का पाठ उसके बाद ही कुछ अल्पाहार इसकी आदत पड़ जाती है जो आगे आत्मिक उन्नति में बहुत सहायक होती है । योग,ध्यान के लिए आवश्यक है कि आप आसन सही लगा सकें और आसन में पहली आवश्यक बात है आप पालथी मोड़कर बैठ सकें जो बचपन से अभ्यास के कारण सरल हो जाता है .
सम्मान आदर - आपका आचरण शुभ होता है विचार शुद्ध होते है तो उसका प्रभाव आपके समूचे व्यक्तित्व पर पड़ता है। इसलिए आप कभी अवहेलना या अपमान का सामना नही करते,,,नीच आचरण व्यक्ति को समाज मे निंदनीय बना देता है । ऐसे आचरण से दूर,,,
पेड़ पौधे ,पशु पक्षी से प्यार -
गौ सेवा, सर्प काकपक्षी,स्वान,गौरैया, तुलसी,पीपल,बरगद,नीम सब आराध्य हैं,,,प्रकृति के सरक्षण का ऐसा संस्कार और कहां मिलेगा,,,
अब तो पर्यावरण की शिक्षा दी जा रही है हमे तो बचपन से संस्कार मिलता है इसका आदर करने का, पूजा करने का,,,पेड़ के नीचे पेशाब करना पाप है ,,,
नदी, तालाब, कुएं की पूजा,,, इतनी ममता नदियों को जहां माता कहकर बुलाते हैं । ऐसा भाव बना रहता है आजीवन,,,
कहते हैं कि जो प्रकृति का आदर करते हैं प्रकृति उनका कभी नुकसान नही करती,,, ऐसा प्रत्यक्ष देखने को मिलता है,,,
मित्रों ,
ब्राह्मण मेरी जाति नही ,जीवन जीने की कला है
आप भी ब्राह्मणत्व हासिल करें और पर्यावरण की रक्षा करें,,,धरती माँ की सेवा करें,,,
बहुत हो गया भोग विलास का जीवन,,, अब लौटें,,,सादगी की ओर,त्याग करें भोग का,,,पशु वध का,,,
वस्तुतः जीवन की वास्तविक खुशी औरों को खुश करने में है इसका मतलब यह नही की हर किसी की चापलूसी की जाय इसका मतलब है कि हमसे किसी को दुःख न पहुँचे ,,,दुःख का कारण है अपेक्षा, संचय और जो संचय किया है उसकी सुरक्षा की चिंता,,,,
क्या आपने देखा नही की आज तक कोई अपने नाम की एक भी वस्तु मरने के बाद अपने पास नही रख सका है ,,,ब्राह्मण ईश्वर से कहता है
तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा,,,,
वो जब आहत होता है तब कहता है
तुम्ही हो माता पिता तुम्ही
तुम्ही हो बंधु सखा तुम्ही हो,,,,
वो सबमे उस परमात्मा को देखता है इसलिए अपने हाथ से चींटी को भी मराना पाप समझता है ।
अब आप सवाल करेंगे की हमे नुकसान पहुचाने वाले जीवों को मार देना चाहिए इसमे क्या बुद्धिमानी है कि उन्हें भी न मारा जाय ।
ब्राह्मणत्व प्रकृति में परमात्मा को देखता है तो उन जीवों से भी एक प्रेम का संबंध बन जाता है और वे उसका कभी अहित नही करते,,,
जितने भी ऋषि मुनि हुए है अब वन में ही वास करते थे उस वक्त तो वनों में हिंसक जानवरों की भरमार थी तब तो एक भी ऋषि मुनि जिंदा नही बचते,,,आज भी हिमालय के दुर्गम स्थानों में तपस्वी रहते हैं और उन्हें आजीवन किसी से नुकसान नही होता ,,,
जब समर्पण और प्रेम आ जाय तो कोई बैर नही,,,,
यही ब्राह्मण का स्वरूप है,,,
......अजय अवस्थी