फिल्म रिव्यूः ‘ड्रीम गर्ल’ कमाल-धमाल-बेमिसाल कोमेडी Mayur Patel द्वारा फिल्म समीक्षा में हिंदी पीडीएफ

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फिल्म रिव्यूः ‘ड्रीम गर्ल’ कमाल-धमाल-बेमिसाल कोमेडी

क्या कर रहा है? क्या कर रहा है? क्या कर रहा है ये लडका आयुष्मान खुराना..? दे धनाधन सिक्सर पे सिक्सर… सिक्सर पे सिक्सर… मारे जा रहा है. ‘विकी डोनर’ और ‘दम लगा के हैसा’ जैसी ओफबीट सुपरहिट फिल्में देने के बाद पिछले सिर्फ देढ साल में इस बंदे ने ‘अंधाधून’, ‘बधाई हो’ और ‘आर्टिकल 15’ जैसी तीन सुपरहिट फिल्में दी है. और अब जो ‘ड्रीम गर्ल’ लेके आया है, वो तो उसकी पीछली सारी फिल्मों के रेकोर्ड तोडनेवाली है.

इस जबरदस्त एन्टरटेनर की कहानी कुछ यूं है की… गोकुल में रहेनेवाला करमवीर (आयुष्मान खुराना) बेकार है, लाख कोशिशों के बावजूद नौकरी नहीं मिल रही. एसे हालात में उसे एक अनोखी नौकरी मिलती है. कोल सेन्टर में नाइट ड्युटी करके उसे एक फेक लडकी ‘पूजा’ की आवाज में कस्टमर्स से मीठीमीठी-चुलबुली-नटखट-नॉटी बातें करनी होती है. शुरुआत में तो करम को बडा मजा आता है ‘पूजा’ की आवाज में बातें करके पैसा कमाने में, लेकिन प्रोब्लेम तब शुरु होती है जब लोग पूजा की आवाज पर फिदा हो कर उसके प्यार में पडने लगते है, उसे अपनी ‘ड्रीम गर्ल’ समजने लगते है, उसको ढूंढने लगते है, यहां तक की उससे शादी करने को उतावले हो जाते है. करम की जिंदगी की वाट लग जाती है. उसकी लव-लाइव भी खतरे में पड जाती है. फिर करम कैसे इस काल्पनिक पूजा से पीछा छुडाता है, ये है बाकी की कहानी इस दिल्चस्प फिल्म ‘ड्रीम गर्ल’ की.

कोमेडी का धमाकेदार डॉज लेकर आई इस फिल्म में तकरीबन सबकुछ एक नंबर है. आयुष्मान खुराना का अभिनय एक बार फिर खूब रंग लाया है. लडकी की आवाज में बातें करने का करतब करनेवाले लडके की इस मूभिका में वो इतने परफेक्ट फिट बैठे है की किसी और कलाकार की कल्पना भी नहीं की जा सकती. फिल्म में जितनी भी अलग अलग टाइप की फिमेल-आवाजें हैं, वो सब आयुष्मान ने खुद निकाली है, किसी और महिला कलाकार से डब नहीं करवाई है. वो जब फोन में बोलते है ‘हलो, मैं पूजा बोल रही हूं…’ तो फिल्म के किरदारों के साथसाथ थियेटर में बैठे दर्शक भी मोहित-अचंभीत हो जाते है. उनकी हर एक अदा, हर एक अंदाज पर्दे पर खूब निखरके सामने आए है. उन्होंने सिर्फ लडकी की आवाज ही नहीं निकाली बलकी स्टेज पर अभिनय करते हुए साडी पहनकर सीता और द्रौपदी भी बने है. अच्छी बात ये है की फिल्म में वो कभी भी वल्गर या स्त्रैण नहीं लगे. बडी ही सफाई से, बडे ही सलिके से उन्होंने अपने फिमेल किरदारों को न्याय दिया है इस फिल्म में. कमाल-धमाल परफोर्मन्स.

सिर्फ आयुष्मान ही नहीं, इस फिल्म की पूरी कास्टिंग बहोत ही पर्फेक्ट की गई है. आयुष्मान के पिता जगजीत सिंह के रोल में ‘अन्नु कपूर’ हो या फिर उनके दोस्त स्माइली बने ‘मनजोत सिंह’, शायराना-मिजाज कोन्स्टेबल राजपाल की भूमिका में ‘विजय राज’ हो या फिर WJ बने ‘राजेश शर्मा’, हर कलाकार ने अपने किरदार को सो फिसदी ढंग से अदा किया है. महेन्द्र(अभिषेक बेनर्जी), रोमा(निधि बिस्ट), देसी जस्टिन बीबर ‘टोटो’(राज भंसाली), दादी(नीला मुलहरकर)… सबने अपने अपने रोल्स में जान डालकर काम किया है. फिल्म की हिरोइन नुसरत भरुचा ‘गर्ल नेक्स्ट डोर’ बनी है और उन्होंने अपने हिस्से में आया काम पूरी इमानदारी से निभाया है. आयुष्मान और नुसरत की जोडी पर्दे पर अच्छी लगती है लेकिन असली मजा तो बाप-बेटे बने आयुष्मान-अन्नु कपूर के बी्च के सीन्स में आता है. उन दोनों के बीच की केमेस्ट्री जोरदार है.

सभी कलाकारों का अभिनय फिल्म में खूब रंग ला पाया है क्योंकी फिल्म में उन सबको बहेतर से बहेतरिन डायलोग्स मिले है. और हर एक कलाकार ने अपने हिस्से में आए पंच जमकर फोडे है. सच कहें तो फिल्म की असली जान उसकी लिखावट में ही है. स्क्रिप्ट और डायलोग लेवल पर ही फिल्म इतनी तगडी है की कलाकार और फिल्म के डिरेक्टर का काम आसान हो गया है. निर्मान सिंह के साथ मिलकर फिल्म के डिरेक्टर राज शांडिल्यने ही फिल्म की स्क्रिप्ट लिखी है. चटपटे संवाद भी डिरेक्टर की ही कलम से निकले है. मिस्टर शांडिल्य का निर्देशन काबिलेतारिफ है. उन्होंने कहीं भी किसी कलाकार या सिच्युएशन को ओवर-द-टॉप जाने नहीं दिया. सबकुछ नपातुला-बेलेन्स्ड रख्खा है उन्होंने. हेमल कोठारी का एडिटिंग भी उतना ही चुस्त-दुरस्त है. सिनेमेटोग्राफी(असिम मिश्रा), सेट डिजाइनिंग, बेकग्राउन्ड स्कोर जैसे सभी टेकनिकल पासें उमदा है.

फिल्म का म्युजिक डिपार्टमेन्ट भी तगडा है. लंबे समय के बाद किसी फिल्म के सारे के सारे गाने कानों और आंखो को भाए है. रोमेन्टिक सोंग ‘इक मुलाकात’ का पिक्चराइजेशन बढिया है. ‘राधे राधे’ और ‘धागाला लागली’ के बीट्स मस्त है. और सिच्युएशनल सोंग ‘दिल का टेलिफोन’ के तो क्या कहेने. गाने में भी कोमेडी. भई, वाह..!

इन्टरवल से पहेले खूब रायता जमानेवाली ‘ड्रीम गर्ल’ सेकन्ड हाफ में एक परफेक्ट ‘कोमेडी ओफ एरर्स’ बनकर सामने आती है. ‘पूजा’ को ढूंढने के लिए बौखलाए हुए फिरते उसके आशिकों की भागादौडी इतनी मजेदार है की सिनेमाहॉल तालीयों-सीटीयों से गूंज उठता है. फिल्म में दो-तीन सामाजिक मेसेज भी है जिसे ‘ग्यान’ बांटने की जबरन कोशिश किये बिना बडी ही बखूबी कहानी में पिरोया गया है.

कुल मिलाकर देखें तो ‘ड्रीम गर्ल’ बडी ही मनोरंजक फिल्म है. 30 करोड के बजेट में बनी इस फिल्म के 100 करोड तो पक्के है. दर्शकों को हसा हसा के लोटपोट कर देनेवाली इस धम्माल कोमेडी ब्लोकबस्टर को मेरी ओर से 5 में से पूरे 4 स्टार्स. देखिएगा जरूर. ऐसी ‘फूल्टु पैसा वसूल’ फिल्में बार बार नहीं बनती.