वसीयत Namita Gupta द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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वसीयत

रेखा घर के कामों में व्यस्त थी । तभी बाहर बड़ी तेजी से कोलाहल उठा । लगता आज फिर किसी के यहां कुछ झगड़ा हो रहा है । कॉलोनी के आखिर में कुछ मजदूरो के परिवार रहते थे । पुरुष लोग बाहर मजदूरी करते थे और घर की महिलाएं कॉलोनी में लोगों के घर में झाड़ू, पोछा ,बर्तन साफ -सफाई का काम करती थी । मजदूरोँ ने वहीं झोपड़ी डालकर अपना ठिकाना बना लिया था । वहाँ शाम को आए दिन कुछ ना कुछ लड़ाई - झगड़ा होता रहता था । रेखा ने सोचा वही कुछ हो रहा होगा , यह सोच कर वह फिर काम में व्यस्त हो गई ।
तभी बाहर से आए उसके पति ने करीब आते हुए ,” अरे ! रेखा सामने जो शर्मा जी रहते हैं वो बाथरूम में गिर पड़े हैं । तुम्हें पता चला ।
रेखा सब्जी चलाते हुए - ,”कब और कैसे गिर गए ?”
“परसों बाथरूम में नहा रहे थे कि अचानक उनका पैर फिसला और वह सिर के बल गिर पड़े उनके सर में काफी चोट आई है ।“
रेखा चिन्तित होते हुए –“किस हॉस्पिटल में हैं ?”क्या हाल है उनका ?
शर्मा जी हाँस्पिटल मे नहीं है अपितु उनका इलाज घर में ही हो रहा हैं । उनका सी.टी.स्कैनकराया गया है । डा. ने ऑपरेशन को बोला है लेकिन उनके बेटे राजन का कहना है पापा की उम्र पचहत्तर वर्ष से ज्यादा है इसलिए आपरेशन कराने में खतरा है । “
ऐसा कैसे हो सकता है ?” अंकल का इलाज अस्पताल मे कराना चाहिए था । पुनः शोर सुनकर –“अरे ! यह बाहर शोर कैसा हो रहा है ?
“ अरे यही तो बता रहा हूं –“उनकी बेटी रुपल आई हुई है । रुपल बार-बार शर्मा जी को अस्पताल ले जाने की जिद कर रही है लेकिन राजन उसकी बात नही सुन रहा है । उसका बडा भाई भी आया है । वह दोनों मोहल्ले के लोगों से कह कर राजन को फोर्स कर रहें है अंकल को अस्पताल ले जाने के लिए । रुपल ने तो एंबुलेंस भी बुला थी किन्तु राजन ने यह कहते हुए “- अस्पताल में पापा की केयर नहीं हो पाएगी, मैं घर में अच्छे से पापा की देखभाल कर लूंगा ।“ एंबुलेंस को वापस भेज दिया । इसी बात पर उन लोगों की आपस मे बहस औंर तू-तू ,मैं -मैं हो रही है ।“
राजन का कहना है कि शर्मा जी का इलाज डॉक्टर के हिसाब से ही हो रहा है । ज्यादा चिंता है तो तुम अपने घर ले जाओ वहाँ इलाज करा लो । जब दोनों भाई -बहन हॉस्पिटल ले जाने के लिए घर के अंदर जाने लगे तो उन्हें अंदर नहीं जाने दिया और यह कहते हुए रोक दिया –“ पापा हमेशा यही इसी घर में रहे हैं तो वह अभी भी यहीं अपने घर अपने कमरे में ही रहेंगे । उनका इलाज यहीं पर होगा ।“
यह सब सुनकर रेखा व्यथित और चिंतित हो उठी क्योंकि शर्मा जी के परिवार के साथ रेखा के बहुत ही अच्छे सम्बंध थे । आंटी और अंकल का इस परिवार से बहुत स्नेह करते थे । उसका मन नहीं लग रहा था । वह गैस बंद करके शर्मा जी को देखने के लिए बाहर निकल आई ।
बाहर वास्तव में काफी भीड़ थी । रेखा को देखते ही रुपल पास आते हुए बोली –“ दीदी ! देखिए चल कर पापा का क्या हाल है? कहते हुए रेखा का हाथ पकड़कर वह घर के अंदर ले गई । शर्मा जी कमरे में बिस्तर पर अर्धचेतन अवस्था मे पड़े हुए थे ।
रेखा उनके पास जाकर खड़ी हो गई । उसने आवाज देकर कहा-“ अंकल कैसे हैं आप “?
रेखा को देखते ही शर्मा अंकल की आंखों से आंसू बहने लगे । उनके हाथ में ड्रिप लगी हुई थी , नाक में नली पड़ी थी , उनकी सांसें उखड़ रही थी, उन्हें ऑक्सीजन की आवश्यकता थी क्योंकि वह अस्थमा के मरीज थे फिर भी उनके आँक्सीजन नहीं लगी थी । सर की चोट का ऑपरेशन भी नहीं करवाया गया था ।उनकी हालत काफी दयनीय सी लग रही थी और इलाज के नाम पर कुछ भी उनके आसपास नहीं था । वह बार-बार अपने हाथ के इशारे से कुछ कहने की कोशिश कर रहे थे लेकिन स्वयं को लाचार पाते हुए बिस्तर पर अपना हाथ पटक रहे थे । शर्मा जी जिंदगी और मौत से संघर्ष कर रहे थे उनकी इस हालत को देखकर रेखा अपने आँसू न रोक सकी ।
उनकी हालत देखकर रेखा से रहा नहीं गया तो वह राजन की तरफ मुखातिब होकर कहने लगी कि –“ अंकल की हालत काफी सीरियस है इन्हें हॉस्पिटल ले जाओ ।, वहां इलाज ढंग से मिलेगा तो यह ठीक हो जाएंगे । “
“ दी, यहीं तो मैं भी कह रही हूं ।“ रुपल व्यंग्य से बोली –“ मम्मी का सारा जेवर ,रुपया तो अपने नाम करवा लिया । हाथ जोड़कर रुधे गले से बोली -“ भाई पापा का इलाज करवाने दो ,न तो हमें हॉस्पिटल ले जाने दे रहे हो और न खुद अस्पताल ले जा रहे हो ?” राजन अनसुना करके बाहर दरवाजे के पास खड़ा हो गया ।
अपनी बेबसी से उग हो रेखा का हाथ पकड़ कर बाथरूम की तरफ ले जाकर दिखाते हुए –“ देखो दी पापा यही बाथरूम में गिर पड़े थे । इसने मुझे खबर तक नहीं की , यही के किसी व्यक्ति ने फोन करके मुझे बताया कि पापा की हालत बहुत खराब है उन्हें आखरी बार देखना चाहती हो तो देख लो क्योंकि उनका बचना मुश्किल लगता है ।“ यहां पर आने यहां आने पर देखा कि पापा की हालत वास्तव में बहुत खराब है । “ जैसे कि वह रेखा को कुछ दिखाना चाहती थी ।
रेखा ने देखा बाथरूम बहुत चिकना था जैसे कि फर्श पर तेल गिरा हुआ लग रहा था । यह शर्मा जी का पर्सनल बाथरूम था । रुपल सुबकते हुए बोली –“ दी पापा का क्या हाल राजन ने कर दिया है ? वैसे तो पापा बहुत स्ट्रांग है । उन्हें कुछ नहीं हो सकता था लेकिन आज इस हालत में देख कर मुझे बहुत डर लग रहा है ।“ मुझसे सवाल पूछते हुए –“ पापा ठीक तो हो जाएंगे ?”
रेखा ने हिम्मत बधाते हुए कहा –“ हॉस्पिटल ले जाओ ठीक हो जाएंगे “।
यह सुनते ही रूपल फिर एंबुलेंस को फोन करने लगी । यह देख कर राजन मैं रुपल से फोन छीनकर चिल्लाते हुए –“ पापा का इलाज घर पर ही होगा। यह कहीं नहीं जाएंगे । बाहर भीड़ की तरफ देखते हुए -“ यह मेरा घर है । यहां मेरा ही हुकुम चलेगा , यहाँ कोई कुछ नही कर सकता ।“ राजन सपरिवार खड़ा अपने भाई- बहन और मोहल्ले वालों से अकेला मोर्चा ले रहा था ,और,जोर जोर से चिल्ला कर सब की आवाज को दबा रहा था । रेखा रुपल को ढाढस बनाती हुई बाहर निकल आई ।
घर आकर पति से बोली –“ जी जानते हो मुझे लगता है अंकल जी गिरे नहीं ,उन्हें गिराया गया है ।यह सारी साजिश उन्हें मारने की चल रही है। वह तिल- तिल कर मौत की तरफ बढ़ रहें हैं , तड़प रहे हैं । उनको सही इलाज न देना किसी साजिश की तरफ इशारा करता है । इलाज और ऑक्सीजन ना मिलने से वह जल्दी ही स्वर्गवासी हो जाएंगे ।“
अभी शाम के 4:00 बजे थे बाहर फिर कुछ जोर -जोर से झगड़े की आवाजें आने लगी । रेखा ने खिड़की से झाँक कर देखा तो देखा मालूम हुआ की शर्मा जी चल बसे । बडा बेटा ,बहू उनकी तिजोरी खोलने की बात कर रहे थे लेकिन राजन ने यह कहते हुए उनके कमरे का दरवाजा बंद करके ताला लगा दिया कि पहले दाह संस्कार हो जाने दो उसके बाद इनका कमरा खोला जाएगा तभी तिजोरी भी खुलेगी इसी बात में आपस में भाइयों में झगड़ा हो रहा था । सब लोगों ने समझा-बुझाकर झगडा शांत कराया यह कहते हुए कि –“ पहले अपने पापा का दाह संस्कार तो करवा दो बाद में तुम लोग फैसला करना । “
आनन-फानन में शर्मा जी का दाह संस्कार किया गया और घर आकर उनके कमरे का ताला खोला गया जहां कुछ मोहल्ले वाले और घर के सभी सदस्य एकत्रित थे ।उनकी तिजोरी खोली गई तो पूरी तिजोरी खाली थी उसमें कुछ भी नहीं था हां एक कागज जरूर पडा हुआ था । तिजोरी खाली देख कर राजन तो सन्न रह गया वह सोच ही रहा था कि तभी रूपल कागज उठाकर कर पड़ने लगी ।
“ राजन ! तिजोरी खाली देख कर तुम्हें बड़ा आश्चर्य हो रहा होगा लेकिन मुझे ऐसा करना पड़ा । तुम लोगों की हरकतों ने मुझे ऐसा करने के लिए मजबूर कर दिया । वैसे तो मैं तुम लोगों को सब कुछ दे चुका था । घर दुकान पैसा सब कुछ दे चुका था । बड़े भाई को तो तुम पहले ही लड़ झगड़ कर घर से बाहर कर चुके थे । दिन-ब-दिन तुम्हारे और बहू के बढते हुए अत्याचार ने हम दोनों को काफी तकलीफ दी थी ,फिर भी मैं इस उम्मीद के साथ तुम्हारे रहता रहा कि तुम मेरे बेटे हो कुछ भी हो हम लोगों का ध्यान तो रखोगे ही लेकिन शायद मैं गलत था । मेरे पास सिर्फ यह मकान और कुछ बैंक बैलेंस था। राजन तुम्हें याद है एक दिन जब तुम्हारी मां की शुगर काफी बढ गई उनकी हालत अचानक बहुत खराब हो गई थी और मैंने उन्हें हॉस्पिटल ले जाने के लिए कहा तो तुम उस दिन उनको हॉस्पिटल ना ले जाकर अपनी गाडी मे ही पूरे शहर में घूमाते रहे और आखिरकार इलाज के अभाव में तुम्हारी मां ने दम तोड़ दिया ,और तुम्हारी हठधर्मिता के आगे मैं बेबस होकर अपनी पत्नी के लिए कुछ न कर सका । “
यह पढ़कर रुपल के आंसू बहने लगे । उसने बहुत ही गहरी नजरों से राजन उसके परिवार को देखा औंर रोते हुए फिर उसने आगे पत्र पढ़ना शुरू किया -“यह बात मुझे उस दिन कांटे की फाँस की तरह मेरे सीने में घुस गई । उसके बाद तुम चाहते थे कि मकान औंर सारा बैंक बैलेंस तुमको दे दूं लेकिन मेरे मना करने पर तुम्हारे जुल्म मुझ पर बढ़ते ही चले गए । तुमने मेरा घर से निकलना बंद कर दिया किसी से बोलना बातचीत करना बंद कर दिया । यहां तक की किसी का मेरे पास आना - जाना और मेरा खाना भी बंद कर दिया गया । मैंने उसी समय अपनी स्थित को समझ लिया था । मैंने उसी दिन सोच लिया अब मेरा भी यहां से दाना -पानी यहाँ से उठ चुका है । जब अपनी मां के साथ तुमने ऐसा किया है तो मेरे साथ भी कुछ भी गलत कर सकते हो । एक दिन जब तुम लोग बाहर घूमने गए हुए थे तब मैने अपने प्लान के मुताबिक, इस घर को अनाथ आश्रम और वृद्धाश्रम के नाम कर दिया और मैंने अपनी सारी जमा पूंजी और जेवर को बेचकर उसका पैसा इसके रखरखाव और भविष्य के लिए दान कर दिया ताकि उसमें किसी भी प्रकार का व्यवधान ना आने पाए और हमारे जैसे लोगों का वहां पर अच्छे से गुजारा हो सके। बेटा तो पिता की दाहिनी भुजा होता हैं ,उनका बुढ़ापे का सहारा होता हैं । लेकिन आज उन कहावतों को तुम लोगों ने गलत साबित कर दिया । तुम लोग यह मकान खाली कर देना क्योंकि मैं यह मकान बेच चुका हूं । अच्छा अलविदा मेरे बच्चों ! “
मोहल्ले वाले और रिश्तेदार सभी लोग राजन को अछूत समझकर बडबडाते हुए उसको अकेला छोड़ कर अपने -अपने घर खिसक लिए । राजन सर झुकाए चुपचाप बैठा जार -जार आंसू बहाता रहा क्योंकि आज वह खुद अपनी ही साजिश का शिकार हो चुका था । जिसका प्रयश्चित भी नहीं था ।

(नोट – पाठक गण कृपया कहानी पढ़कर जरूर बताएं कि आपको कहानी कैसी लगी । अपनी राय भी अवश्य देंकर मेरा उत्साहवर्धन करें , धन्यवाद । )
नमिता गुप्ता
( स्वरचित मौलिक कहानी )