92 गर्लफ्रेंड्स भाग ११ Rajesh Maheshwari द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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92 गर्लफ्रेंड्स भाग ११

आनंद आगे कहता है कि दुनिया बडी रंगीन है परंतु इसको देखने के लिए धन की जरूरत होती है। वह एक घटना सुनाता है। एक दिन मैं घूमते घूमते विद्युत मंडल के परिसर में स्थित बाजार में पहुँच गया। वहाँ पर एक ब्यूटी पार्लर भी था जो पुरूष एवं महिला दोनो के लिए था। मैं भी कौतुहलवश अंदर गया। वहाँ पर मैंने देखा कि काऊंटर पर एक बहुत सुंदर लडकी बैठी हुई थी। उसने बडे प्रेम से पूछा कि मैं आपकी क्या सेवा कर सकती हूँ और उसने एक छपा हुआ पत्रक जिसमें उस पार्लर में उपलब्ध सेवाओं की जानकारी थी, मुझे दे दिया। मैंने कहा कि मुझे सबसे अच्छा वाला फेशियल कराना है और इस कार्य को क्या कोई महिला करेगी ? वह बोली की ऐसी सुविधा हमारे यहाँ नही है। मैंने उसे धन्यवाद कहते हुए बाहर जाने लगा। मैं दरवाजे तक पहुँचा ही था कि उसकी मधुर वाणी ने मुझे रोक लिया। वह बोली कि आप पहली बार हमारे पार्लर में आये है और मैं नही चाहती कि हमारे ग्राहक वापस लौटे इसलिये मैं आपका फेशियल कर दूँगी। वह मुझे अंदर ले गयी और एक कमरे में जहाँ फेशियल की सारी सुविधा उपलब्ध थी मुझे बैठाया और फेशियल के दौरान काफी बातें हम लोग करते रहे। फेशियल समाप्त होने तक उससे मेरी अच्छी मित्रता हो गई थी। उसका नाम प्रतीक्षा था। अब मैं अक्सर उसके पार्लर जाने लगा और हमारी मुलाकातें और बढ़ने लगी। मैं उसे कभी कभी अपने क्लब भी ले जाने लगा। एक दिन उसने मुझे बताया कि उसे मधुमेह की बीमारी है और वह इससे काफी परेशान है। इस संबंध में वह कई चिकित्सकों से मिल चुकी हैं परंतु अपेक्षित लाभ नही हुआ। मैंने उससे कहा कि यदि तुम मेरे साथ मुम्बई चल सको मै वहाँ सबसे अच्छे अस्पताल में पूरी जाँच करवा दूँगा जिससे तुम्हारी बीमारी ठीक हो सकती है। कुछ दिनों के बाद वह मेरे सुझाव को मान गयी और मेरे साथ मुंबई जाने के लिए राजी हो गयी। जिस दिन हमें मुंबई जाना था उसी दिन दोपहर के समय दुर्भाग्यवश उसका एक्सीडेंट हो गया जिसमें वह नही बच पायी और दुर्घटनास्थल पर ही उसकी मृत्यु हो गयी थी। मैं बहुत दुखी हुआ और सारा दिन उसकी यादों में खोया रहा। मेरी मजबूरी थी कि उसके परिवार से परिचय ना होने कारण सांत्वना व्यक्त करने के लिए उसके घर भी नही जा सका। आज भी उसकी यादें मेरे दिल में बसी है कि यदि वह आज होती तो ब्यूटी पार्लर के क्षेत्र में काफी ऊँचाईयों तक उसका नाम होता।

आनंद आगे एक वृतांत और बताता है। वह कहता है कि यह घटना एक उद्यान की है जहाँ मैं प्रतिदिन टहलने के लिए जाता था। उस समय मैंने एक नया मोबाइल खरीदा था और उसे उपयोग करना मुझे ठीक ढंग से नही आता था। एक दिन शाम को टहलते समय मेरे आफिस से फोन आया कि एक आवश्यक ई-मेल आपको भेजा गया है कृपया इसे पढकर तुरंत जवाब दे। मुझे उस समय समझ में नही आ रहा था कि इस फोन में ई मेल कैसे खोलूँ। मेरे ठीक सामने की बेंच पर तीन युवा महिलायें बैठी हुई थी मैं उनके पास गया और निवेदन किया कि क्या आप मुझे ई मेल खोलने में मदद करेंगी ? मुझे एक आवश्यक मेल उसमें आया हुआ है जिसका जवाब अभी देना है। यह सुनकर उनमें से एक लडकी ने मेरा फोन लिया और कुछ देर फोन को देखने और चलाने के बाद उसने मेरा ई मेल खोल दिया। मै बहुत प्रसन्न हुआ और उसे धन्यवाद देकर उसका परिचय पूछा। उसने मुस्कुराकर कहा कि मेरा नाम शबाना है और मै एक गृहिणी हूँ। हम सभी पडोसी है और आज पहली बार उद्यान में आये हुये है। मेरे आग्रह पर उन तीनों ने मेरे साथ आइसक्रीम खायी और बातों ही बातों में हमने एक दूसरे के मोबाइल नंबर ले लिये। रात में ग्यारह बजे के लगभग शबाना का फोन आया और बोली कि आप कैसे है और क्या कर रहे है ? मुझे आपसे कुछ काम है। क्या आप कल दिन में मुझसे मिल सकते है ? मैने उसे दूसरे दिन दोपहर में एक रेस्टारेंट में मिलने के लिये कहा। वह ठीक समय पर आई और उसके साथ एक महिला और भी थी जिसका परिचय उसने अपनी बुआ के रूप में दिया। हमारे वार्तालाप के दौरान उसकी बुआ ने मुझसे पूछा कि शबाना आपको कैसी लगी ? मैंने कहा कि बहुत अच्छी। तब उसकी बुआ ने कहा कि आप भी इसे बहुत अच्छे लगते है। अब मैं शबाना के बारे में आपको पूरी बातें बताती हूँ। यह एक हिंदू लडकी है और बेवकूफी में इसने अपनी शादी एक मुस्लिम लडके के कर ली जिसकी पहले से ही एक पत्नी है। आपको मालूम ही है कि दोनो धर्मों की मान्यतायें कितनी भिन्न है। अब यह वहाँ पर सांमजस्य नही बना पा रही है और अब यह वापिस हिंदू धर्म अपनाकर किसी हिंदू के साथ शादी करना चाहती है। क्या आप इसमें इसकी मदद कर सकते है ? मै इसकी बुआ हूँ और मैं भी हिंदू थी, एक मुस्लिम डाक्टर ने मुझे झूठे आश्वासन देकर अपने साथ रख लिया और अब शादी करने से इंकार कर रहा है। यह सुनकर मैं चौक गया। उस दिन बातों ही बातों में हम सबने वाइन पी और उसकी बुआ से मैंने पूछ कि मैं अकेले में शबाना से कुछ बात करना चाहता हूँ। बुआ ने कहा कि ठीक है जहाँ आपको उचित लगे आप लोग मिलकर बात कर सकते है। मैं यही पर बैठी हूँ। मैंने उनसे कहा कि ठीक है आप यही इंतजार करिये और आपको जो भी लगे आप निसंकोच मंगवा लीजियेगा। मै शबाना को लेकर अपने मित्र के फ्लैट पर चला गया। वहाँ हम दोनो एक दूसरे प्रति प्रेम का इजहार करते हुए शारीरिक सुख में खो गये। कुछ देर बाद हम वापस रेस्टारेंट लौट आये। रास्ते में मैंने शबाना को इस बात के लिए आश्वस्त कर दिया था कि मैं तुम्हारे लिए कोई हिंदू ढूंढकर उससे शादी करा दूँगा। इसके बात हम लोग आपस में मिलने लगे। इस बात के लगभग पंद्रह दिन बाद मैने राकेश को इस मामले से अवगत कराया। यह सब सुनकर उसने कहा कि ऐसे मामले से दूर रहना चाहिए। यदि कल इस बात ने राजनैतिक स्वरूप ले लिया तो बहुत हंगामा खडा हो जायेगा और तुम्हारी भी बदनामी होगी। तुम्हे मुझे पहले ही बता देना चाहिए था तो मैं तुम्हें आग से खेलने की सलाह कभी नही देता। अभी भी वक्त है तुम अपने आपको उनसे अलग कर लो। मैंने उसकी सलाह माँगते हुए उन लोगों से अपने आप को अलग कर लिया।

आनंद ने इसके बाद एक घटना और सुनायी। आज के शहरों में बहुत तरक्की हो गयी है। कभी वहाँ अंग्रेजी माध्यम के स्कूल इक्का दुक्का ही होते थे परंतु आज बढ़ती हुयी जनसंख्या के कारण इनकी बाढ सी आ गई है आज हर व्यक्ति अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम में ही पढाना चाहता है। इसी परिप्रेक्ष्य में एक मराठी परिवार जो कि मेरे घर के समीप रहता था, उनकी हार्दिक इच्छा थी कि उनकी तीनों बेटियाँ अंग्रेजी माध्यम से अध्ययन करके अच्छे कैरियर का चयन कर सके। उनके आर्थिक साधन सीमित थे। उन्होंने मेरे एक डाक्टर मित्र के माध्यम से शिक्षा हेतु मुझसे आर्थिक सहयोग माँगा। मैंने और मेरे मित्र ने सोचा कि विद्यादान सर्वश्रेष्ठ दान है अतः हमने उनकी मदद करने का निर्णय लिया। इस प्रकार हम उन लडकियों की स्कूल फीस, पुस्तकों का खर्च एवं स्कूल ड्रेस आदि की व्यवस्था करने लगे। इससे उस परिवार की पढाई के खर्च को लेकर होने वाली चिंता दूर हो गई। दो तीन माह के बाद एक दिन मैं अपने मित्र की क्लीनिक में उसका हालचाल पूछने के लिए गया था। वहाँ पर तीन बड़ी सुंदर लडकियाँ बैठी हुयी थी जिनके नाम ज्योतिबाला, ज्योतिशिखा और ज्योतिका थे। डाक्टर ने उनका परिचय मुझसे कराते हुये बताया कि यही वह सज्जन है जो आपकी फीस और पढाई के अन्य खर्च वहन कर रहे है। इनकी आप लोगों से एक ही अपेक्षा है कि आप मेहनत करके अच्छे अंको से उत्तीर्ण होकर उच्च शिक्षा प्राप्त करें एवं अपने आप को आत्मनिर्भर बना सके। जब उन तीनों लडकियों की मेरे बारे में पता हुआ तो उन्होने मुझे धन्यवाद देते हुए कहा कि आज के समय में निस्वार्थ सेवा देने वाले लोग बहुत कम है। ईश्वर से प्रार्थना है कि आप और आपके परिवार पर उनकी कृपा बनी रहे। एक दिन मैं और डा. ज्योतिशिखा और ज्योतिका को लेकर फिल्म देखने गया। उस दिन हाल में भीड बहुत कम थी एवं हमें आखिरी की अंतिम कार्नर की सीट मिली हुयी थी।

फिल्म काफी रोमांटीक थी तभी मैंने महसूस किया कि ज्योतिशिखा का हाथ मेरे हाथ को सहला रहा था। इंटरवल में डा. ने ज्योतिका एंव ज्योतिशिखा के स्नैक्स लाने के लिए बाहर जाने पर बताया कि ज्योतिका मेरे हाथों को जबरदस्ती अपने हाथों से सहला रही थी। मैंने उसको बताया कि ज्योतिशिखा भी ऐसा ही कुछ मेरे साथ कर रही है। फिल्म समाप्त होने के बाद हम दोनो उन्हें एक दोस्त के घर ले गये जो उसके बाहर रहने के कारण खाली पडा रहता था और घर की चाबी मेरे पास रहती थी। वहाँ हमारा प्रेम उमड पडा और काम वासना में परिवर्तित होकर शांत हुआ। इस प्रकार हम दोनो ने भरपूर आनंद लिया। एक दो साल तक हमारे संबंध इसी प्रकार आनंदपूर्वक चलते रहे। स्कूली पढाई पूरी होने के उपरांत उन्हें उच्च शिक्षा हेतु सरकारी मदद मिल गई एवं बडे शहर के अच्छे कालेज में उनका एडमिशन हो गया। आज वे दोनो मल्टीनेशनल कंपनियों में उच्च पदों पर आसीन है और हमारे बीच आज भी फोन पर कभी कभार बातचीत होती रहती है।

आनंद ने एक भावनात्मक संस्मरण बताया। वह बोला कि श्रीनाथ जी उनके परिवार के आराध्य देव हैं और उनका मंदिर उदयपुर के पास नाथद्वारा में स्थित है इस मंदिर की बहुत मान्यता है। एक बार मैं दर्शन के लिय कुछ दिन पहले ही वहाँ पर गया था वहाँ पर भगवान की फूलों की सेवा में एक परिचित महिला मुझे सेवा करती हुयी नजर आयी। मैं उसकी ओर बढ गया और पहुँचने पर मैंने देखा कि वह तो नीरा थी। मैं उसे यहाँ पर देखकर आश्चर्यचकित हो गया। उसके पास पहुँचकर मैंने उससे कहा कि अरे नीरा तुम यहाँ कैसे ? उसने चौककर पीछे देखा तो मुझे देखकर मुस्कुराकर खडी हो गई। वह बोली कि आप यहाँ कब आए ? मैने उससे कहा कि पिछली रात ही आया हूँ। तुम यहाँ हो यह नही मालूम था। उसने मुझसे मेरे रूकने का स्थान पूछा और शाम को सात बजे मिलने का वादा किया और पुनः अपने कार्य में व्यस्त हो गई। मै भी दर्शन के उपरांत वापिस होटल आ गया। नीरा एक गुजराती महिला थी जिसका पति एक मंदिर में पुरोहित के पद पर कार्यरत था। उसका एक लडका था जिससे वह काफी परेशान थी। वह चाहती थी कि वह कोई अच्छी नौकरी करके अपने को स्वावलंबी बना ले ताकि घर व्यवस्थित हो सके। उस लडके का मेलजोल मोहल्ले के आवारा किस्म के लडको से था और पढाई की ओर उसे कोई अभिरूचि नही थी। उसके पिताजी दिनभर मंदिर के कार्यों में व्यस्त रहते थे। नीरा राकेश के यहाँ खाना बनाती थी। राकेश के यहाँ काफी आना जाना था और यदा कदा मैं उससे बात करते हुए हंसी मजाक भी कर लेता था। एक दिन अचानक उसने मुझे कहा कि आप यहाँ वहाँ क्यों भटकते रहते हैं ? इससे अच्छा आप किसी एक के प्रति दोस्ती करके समर्पित रहे। आपकी इच्छाओं की पूर्ति भी हो जायेगी और वह भी सुखी रहेगी। मैंने उससे कहा कि यदि वह तुम हो तो कैसा रहेगा ? उसने कहा कि ऐसा हो सकता हैं परंतु यह बात गोपनीय रहनी चाहिए। इसके बाद हमारा मिलना जुलना प्रारंभ हो गया और हमारे बीच अंतरंग संबंध स्थापित हो गये। उसने मुझे बताया था कि उसका लडका उसके द्वारा अर्जित धन से खरीदी गई संपत्ति को बेच कर अपना व्यापार स्थापित करना चाहता है मैंने नीरा को समझाया कि तुम इस संपत्ति को मत बेचो यह बुढापे तुम्हारे काम आयेगी और यदि बेचो तो उस धन को बैंक में डिपाजिट कर देना। उसके आने वाले ब्याज को ही खर्च करना और मूल पूंजी को सुरक्षित रखना। मैं यह सब सोच ही रहा था कि शाम के सात बज गये और किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी। मैने दरवाजा खोला तो देखा सामने नीरा खडी थी। मैने उसे बैठने को कहा और वेटर को चाय का आर्डर दिया। उसने बातों ही बातों में मुझे बताया कि उसने मेरे सुझाव को नही माना और अंततः पुत्र प्रेम में संपत्ति को बेच कर धन अपने लडके को व्यापार के लिये दे दिया। अनुभवहीन होने के कारण उसने समस्त पूंजी खो दी और वापिस माता पिता से रूपये मांगने लगा। इस कारण घर का वातावरण असहनीय रूप से खराब होने लगा तो वह अपने घर को छोडकर यहाँ पर श्रीनाथ जी की सेवा में आ गई। उसके परिवारजनों ने कोई पूछ परख नही की। उसकी बातें सुनकर मुझे बहुत दुख हुआ। मैंने उसे कहा कि जो हुआ उसे बुरा समय समझकर भूल जाओ और भगवान की सेवा मन लगाकर करो। मैंने उसे मदद के लिए कुछ रूपये देने चाहे परंतु उसने मना कर दिया और कहा कि मेरा गुजारा यहाँ अच्छे से हो जाता है। आपने इतने दिन जो साथ दिया उसके लिए मैं आपकी अहसानमंद हूँ। ईश्वर निरंतर आपको सुखी, स्वस्थ और संपन्न रखे।

आनंद आज काफी भाव विभोर था और धाराप्रवाह अपनी बीती हुयी जिंदगी के संस्मरण एक के बाद एक बता रहा था। इसी क्रम में उसने बताया कि पिछले माह ही वह अपने किसी काम से प्रतापगढ उत्तरप्रदेश गया था। वहाँ पर उसके दूर के रिश्ते के मामाजी रामप्रकाश जी रहते थे। उनका एक लडका था जिसका विवाह पिछले साल ही हुआ था। वह भी अपने पिताजी के कामकाज में हाथ बँटाता था और अक्सर प्रतापगढ के बाहर व्यापारिक सिलसिले में जाता रहता था। मैं जब रामप्रसाद जी के पास पहुँचा तो वे मुझसे मिलकर बहुत खुश हुये। तभी उनकी बहू जिसका नाम रानी था चाय नाश्ता लेकर आई। मामाजी ने उससे कहा कि ये आज अपने घर पर ही रूकेंगें। मेरे ना करने के बाद भी वे नही माने और उन्होंने मेरे रूकने की पूरी व्यवस्था कर दी। मैं वहाँ खेती से संबंधित एक फार्म हाऊस को देखने गया था जिसकी अच्छे उत्पादन के कारण बहुत प्रसिद्धि थी। मुझे मामाजी वहाँ पर ले गये परंतु उसका मालिक किसी कार्यवश इलाहाबाद गया हुआ था इसलिये उस दिन उनसे चर्चा नही हो पाई। उस समय गर्मी का मौसम था तो मैं छत पर जाकर सो गया। मैं बहुत थका हुआ था इसलिये मुझे तुरंत ही नींद आ गई। रानी ने मुझे उठाया और कहा कि बाबूजी ने आपके लिये दूध भिजवाया है। वह बोली कि आपने अपने बारे में कुछ बताया ही नही, मुझे तो इतना ही पता है कि बाबूजी आपके दूर के रिश्ते के मामाजी है। मैंने उसे अपने पास बैठा लिया और उससे उसकी पढाई, घर के कामकाज और उसके पति के बारे बात करता रहा। वह बोली कि और सब तो ठीक है परंतु मेरे पति अधिकांश समय बाहर रहते हैं और जब यहाँ रहते हैं तो भी बहुत व्यस्त रहते है इनके पास तो जैसे मेरे लिए समय ही नही है। उसके हाव भाव देखकर मैं समझ गया और उसका हाथ पकडकर कहा कि दूध तुमने बहुत अच्छा बनाया है। वह मुस्कुराकर बोली कि धन्यवाद। तभी मैंने उसकी कमर पर हाथ रख दिया तब भी उसने कोई विरोध प्रकट नही किया। मेरा हौसला और बढ गया और मैंने सीधे अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिये। वह तडपकर मेरी बाहों में आ गई और बोली के मैं रात को आऊँगी, दरवाजा खुला रखना। वह लगभग रात में 12 बजे के आसपास झीना सा नाइट गाउन पहनकर आई और धीरे से मेरे बिस्तर में आ गई। हम लोग रात भर प्रेमालाप करते रहे। वह बहुत खुश थी और उसने बताया कि जो आनंद उसे आज मिला है उसके लिए वह साल भर से तडप रही थी। उसकी बातचीत से पता हुआ कि उसका पति नपुंसक है। वह चाहती थी कि मैं प्रतापगढ में कोई कार्य शुरू करूँ जिससे मेरा वहाँ आना जाना बना रहे। मैं फार्म हाऊस के कार्य के बहाने तीन दिन वहाँ रूका रहा और हर रात भरपूर आनंद लेता रहा व रानी को भी जिंदगी के असली सुख से परिचय कराता रहा। जिस दिन मैं लौट रहा था वह बहुत उदास थी। मैने उसे समझाया और जल्दी लौटने का वादा किया। जब वासना की पूर्ति ना हो तो वह सिर पर चढ जाती है और फिर सारे संबंध भूलकर उसे सिर्फ स्त्री और पुरूष का शारीरिक सुख ही नजर आता है। आज भी वह मेरी यादों में बसी हुयी। आनंद गौरव से कहता है कि तुमने तो मेरे जीवन की सभी घटनाओं को सुन लिया है और खुद चुपचाप बैठे हो, तुम भी तो कुछ कहो। राकेश ने तो अपने आप को मानसी तक सीमित कर लिया है और मानो पुरानी सब बातों को तिलांजलि दे चुका है। यह सुनकर गौरव कहता है कि मैने अपने बीते हुए जीवन की अधिकांश स्मृतियों से आप लोगों को अवगत करा दिया ही दिया है परंतु कुछ घटनायें मैंने नही बतायी हैं वह मैं बताता हूँ। गौरव कहता है कि चार माह पहले ही मेरी मुलाकात हवाई जहाज में दिल्ली का सफर करते वक्त पूर्णिमा नाम की एक लडकी से हुई थी वह एक कंपनी में सेल्स मैनेजर के पद कार्यरत थी और दिखने में बहुत ही सुंदर, मिलनसार और आधुनिक विचारों की लडकी थी। हम लोगों के बीच में दो घंटे की विमान यात्रा के दौरान अच्छी दोस्ती हो गयी। संयोगवश हम दोनो के कार्यक्रम एक ही होटल में थे और हमारे रूकने की व्यवस्था भी उसी होटल में थी। अपना कार्य समाप्त करके मैंने पूर्णिमा को रात के खाने पर आमंत्रित जिसे स्वीकार करके वह आ गई। हम लोग जीवन के विभिन्न विषयों पर बातचीत करते रहे। इस प्रकार मेरी दिल्ली की यात्रा बहुत आनंद में बीती और वापिस लौटते समय पूर्णिमा की दोस्ती की याद करता हुआ बहुत प्रसन्न था। वह भी मुझसे काफी प्रभावित थी। इसके बाद हमारी फोन पर प्रायः बात होने लगी। वह हैदराबाद में कार्यरत थी। कुछ ही दिनों बाद संयोगवह मुझे किसी कार्य से हैदराबाद जाने का अवसर प्राप्त हुआ। वहाँ पर मेरा प्रवास तीन दिन का था इस दौरान मेरी प्रतिदिन पूर्णिमा से मुलाकात होती थी। हैदराबाद में हुई उससे मुलाकात के बाद हमारी दोस्ती एक गहरी आत्मीय मित्रता में बदल गयी। हैदराबाद से लौटने के बाद अब हमारी प्रतिदिन ही फोन पर बात होने लगी। हमारे बीच अब प्रेम के बीज प्रस्फुटित होने लगे। एक दिन उसने बताया कि उसे किसी कार्यवश मुंबई जाना है। मैं भी उससे मिलने के लिए वहाँ पहुँच गया। एक दिन रात्रिभोज के दौरान मैंने उससे अंतरंग संबंध बनाने का अनुरोध किया तो उसने कहा कि ऐसे संबंध शादी के बाद ही उचित लगते हैं अन्यथा वे प्यार की जगह वासना का स्वरूप बन जाते हैं। उसने शालीनता के साथ मेरे अनुरोध को ठुकराते हुए मुझसे विवाह का प्रस्ताव रखा। जिसे स्वीकार करने में असमर्थता व्यक्त करते हुए मैंने कहा कि मैं किसी और लडकी से विवाह करने का इच्छुक हूँ। यह सुनकर वह भडक गई और कहा कि तुमने मुझे धोखा दिया है यह बात तुम्हें मुझे पहले ही बता देनी चाहिए थी। मेरे आधुनिक ख्यालों के कारण क्या तुमने मुझे ऐसी वैसी लडकी समझ रखा है। मैंने तुमसे दिल से प्यार किया था परंतु तुम इतने स्वार्थी निकलोगे इसकी कल्पना भी नही की थी। आज मुझे जो तकलीफ हो रही है उसका अनुभव तुम्हें उस दिन होगा जब तुम किसी को चाहोगे और वह तुम्हें छोडकर चला जाएगा। इतना कहते वह गुस्से में तमतमाते हुए चली गयी। एक अनजाने भय से मैं उसे चुपचाप जाता हुआ देखता रहा और आरती से बिछुडने की कल्पना मात्र से मैं सिहर उठा।