आत्मकथ्य
आज पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव में आकर हमारा युवावर्ग दिग्भ्रमित होकर अपनी सभ्यता, संस्कृति और संस्कारों को भूलता जा रहा है। आज नारी को सिर्फ विषय भोग की वस्तु समझा जाने लगा है। आज की नारी भी इस प्रभाव से अछूती नही है और अपनी किसी परिस्थिति या प्रलोभनों के कारण अपनी मर्यादाओं को भी पार करने लगी है। इस पुस्तक में हमने इस कटु सत्य की प्रस्तुति करने का प्रयास किया है। इस कृति को बनाने में श्री जसपाल ओबेराय, श्री अंशुमान शुक्ला, श्री श्याम सुंदर जेठा एवं श्री देवेन्द्र राठौर का अमूल्य सहयोग प्राप्त होता रहा है। मैं उनका हृदय से आभारी हूँ।
राजेश माहेश्वरी
106, नयागांव हाऊसिंग सोसायटी,
रामपुर, जबलपुर ( म.प्र. ) 482008
भगवान भास्कर अस्ताचल की ओर धीरे धीरे बढ़ रहे थे। आकाश में छाये बादलों से वर्षा की हल्की फुहार एवं प्रकृति की हरियाली मन को आनंदित और प्रफुल्लित कर रही थी। राकेश, आनंद और गौरव ऐसे मनोहारी वातावरण में एक रेस्टारेंट में बैठकर चाय की चुस्कियों का आनंद ले रहे थे। ये तीनों उच्च शिक्षा प्राप्त करने के पष्चात अपने घरेलू व्यवसाय को संभाल रहे हैं, तभी रेस्टारेंट में तीन सुंदर एवं आकर्षक लड़कियाँ प्रवेश करती हैं। उनमें से एक राकेश को देखकर हैलो कहती है राकेश भी उसका अभिवादन करता है और उन्हें अपने साथ ही चाय पीने का आग्रह करता है। राकेश अपने दोनो मित्रों से उस लडकी से परिचय कराते हुए कहता है कि यह मानसी है। मानसी भी अपने साथ आयी दोनो लडकियों का परिचय देते हुए बताती है कि उनमें से एक का नाम आरती और दूसरे का नाम पल्लवी है एवं वे तीनों कालेज में बी.काम की छात्राएँ हैं।
मानसी बातचीत में कहती है कि राकेश उस दिन तुमने दूसरे दिन मिलने के लिए कहा था और तुम गायब हो गये। यह सुनकर गौरव ने राकेश को कहा कि ऐसा तुम्हें नही करना चाहिए किसी को समय देकर नही मिलना अच्छी बात नही है। यह सुनकर मानसी मुस्कुरा कर बोली राकेश किसी जरूरी काम में व्यस्त हो गये होंगे अन्यथा ये अपनी बात और समय के बहुत पाबंद है। गौरव और आनंद की नजरें पल्लवी और आरती को निहार रही थी तभी वेटर चाय लेकर आ गया। चाय पीकर वे तीनों लडकियाँ चली गयी। उनके जाने के बाद गौरव और आनंद ने राकेश को कहा बडें उस्ताद हो यार इतनी सुंदर अपनी मित्र के बारे में कभी जिक्र भी नही किया। ऐसा प्रतीत होता है कि मानसी तुम्हारी काफी नजदीकी है वह कौन है, तुम्हारी कहाँ मुलाकात हुयी और बात कहाँ तक आगे बढी एवं यह चक्कर कब से चल रहा हैं। राकेश बताता है कि मानसी कामर्स की छात्रा हैं वह प्राइवेट हास्टल में रहती है एवं आर्थिक रूप से संपन्न परिवार से है। तुम लोग अपने मन में किसी प्रकार की गलतफहमी मत रखना। मेरी मानसी से मुलाकात छः माह पहले ट्रेन में हुई थी। आपस में बातें करते करते हम लोगों में मित्रता हो गई। हम लोग प्रति रविवार छुट्टी के दिन मिलते रहते हैं और आपस में विचारो का आदान प्रदान करते हुए समय व्यतीत करते है। यह बहुत ही भावुक एवं चतुर लड़की है। इसकी दोनो मित्रों को मै नही जानता। यह सुनकर गौरव बोला यार बेवकूफ मत बनाओ। तुम्हारे इतने नजदीक बैठकर तुम दोनो आँखों में आँखें मिलाकर एक दूसरे को देखते हुए बातचीत कर रहे थे। गौरव और आनंद बोले कि हमें आरती और पल्लवी से मित्रता करने की रूचि है। इतनी मदद तो तुम मानसी से कहकर करवा ही दोगे। मै कोशिश करूँगा यह कहकर राकेश चला गया।
दूसरे दिन राकेश की मुलाकात मानसी से होती है और वह औपचारिक बातचीत के दौरान ही उसे बताता है कि उसके दोनो मित्र गौरव और आनंद उसकी सहपाठी आरती और पल्लवी से मित्रता करना चाहते है। यह सुनकर मानसी कहती है इसमें मैं क्या कर सकती हूँ मैं तो तुम्हारे दोस्तों से पूर्णतया अनभिज्ञ हूँ और वैसे भी मैं किसी के निजी मामले में दखल नही देती हूँ। वे दोनो लडकियाँ बहुत संभ्रांत परिवार से है। मैं उनसे इस प्रकार की कोई बातचीत नही कर सकती हूँ।
राकेश कहता है कि मैं तुमको एक खुशखबरी देना चाहता हूँ कि मुंबई की प्रसिद्ध जहांगीर आर्ट गैलरी ने मेरी बनाई पेंटिंग्स को एक सप्ताह के लिए प्रदर्शित करने की अनुमति दे दी है। इससे मुझे चित्रकला के क्षेत्र में बहुत मान सम्मान प्राप्त होगा। क्या तुम भी इस अवसर पर मेरे साथ चलना चाहोगी ? राकेश बताता है कि आनंद और गौरव भी उसके साथ मुंबई जा रहे है, यदि तुम्हारे साथ आरती और पल्लवी भी चल सके तो बहुत अच्छा होगा। मानसी कुछ सोचकर स्वयं के लिए हाँ कह देती है। राकेश मन ही मन बहुत खुश हो जाता है। मानसी बताती है कि अगले सप्ताह उसके कालेज में अवकाश है। यदि तुम कहीं घूमने फिरने का प्रोग्राम किसी अच्छे पर्यटन स्थल में रख सकते हो तो मैं आरती और पल्लवी को भी साथ चलने हेतु कह सकती हूँ परंतु वे जायेंगी या नही यह मैं नही कह सकती। राकेश वहीं से मोबाइल पर गौरव और आनंद से बात करता है। वे दोनो अपने जाने की सहमति दे देते है। मानसी राकेश से कहती हैं कि वह शाम तक आरती और पल्लवी से बात करके बता देगी। राकेश कहता है कि यदि वे नही भी जाती है तो तुम तो चल सकती हो ? मानसी बाद में बताने का कहकर चली जाती है।
मानसी शाम को फोन करके बताती है कि आरती और पल्लवी ने मुंबई जाने के लिए मना कर दिया है उनका कहना है कि हम घर पर क्या बतायेंगे ? मैं चल सकती हूँ मेरी मौसी भी मुंबई में रहती हैं और कई वर्षों से आने के लिए कह रही है, इसी बहाने उनसे मुलाकात भी हो जायेगी। मुझे मेरे परिवार से अनुमति मिल जाएगी। यह सुनकर राकेश कहता है कि अच्छा है इसी बहाने तुम्हारा साथ मिल जाएगा। राकेश मानसी से उसकी दोनो सहेलियों का मोबाइल नंबर मांगता है जिसे मानसी यह कहकर टाल देती है कि वह उनसे बात करने के बाद ही उनका नंबर देगी, राकेश कहता है कि अगले रविवार को उसके द्वारा एक पार्टी का आयोजन किया गया है। जिसमें तुम्हारे साथ ही साथ तुम्हारी दोनो सहेलियों को भी बुलाना चाहता हूँ। मानसी उनसे बात करके राकेश को उनका मोबाइल नंबर दे देती है। राकेश उसके सामने ही उनको अपनी पार्टी में आमंत्रित करता है जिसे वे दोनो स्वीकार कर लेती है परंतु पूछती है कि वापिस कब तक आ जायेंगें। राकेश कहता है कि थोड़ा लेट हो जायेंगे। आरती बताती है कि हम लोगों को शाम 7 बजे के बाद होस्टल से बाहर रहने की अनुमति नही है यदि ऐसा होता है तो इसकी सूचना हमारे माता पिता को फोन पर वार्डन के द्वारा दे दी जाएगी। आनंद यह सुनकर उसके वार्डन से मिलने जाता है और विनम्र अनुरोध करता है कि उन्हें देर रात में आने की अनुमति प्रदान की जाए। वार्डन यह जानकर कि आरती और पल्लवी नगर के दो संभ्रांत परिवार के युवकों के साथ बाहर जा रही हैं, उसे बहुत अचरज होता है। वह बताती है कि ये लडकियाँ हास्टल में आने के बाद पहली बार बाहर जाने की अनुमति माँग रही हैं। वह विनम्रतापूर्वक आनंद को कहती है कि आप को विशेष अनुमति दे देंगे परंतु हमारा भी कुछ ख्याल रखिये। आनंद पूछता है कि आप क्या चाहती हैं तो वह कहती है कि लडकियों के मेस के लिए एक बोरा चावल और एक बोरी गेहूँ की आवश्यकता है। आनंद उसका तुरंत प्रबंध कर देता है और उन्हें हास्टल से बाहर ले जाने की अनुमति प्राप्त कर लेता है।
रविवार के दिन पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार दो कारों में वे सभी लोग पिकनिक मनाने चले जाते है। दिन भर घूमने फिरने के उपरांत सभी शाम तक थक कर वापस गेस्ट हाउस आ जाते हैं और लान में बैठकर विश्राम करने लगते है। कुछ समय पश्चात गौरव अपनी अपनी स्काच की बाटल और रेड वाइन निकालकर सबको आफर करता है। तीनों लडकियाँ इसकों पीने से इंकार करती है। गौरव पुनः लडकियों से निवेदन करता है कि वाइन को थोड़ा चखकर देखिए इसमे कोई नशा नही आयेगा। इतना कहकर वह उनके लिए थोडी थोडी वाइन गिलास में डालकर उनके हाथों में थमा देता है। सब लोग चियर्स करके अपने अधरों पर इसका मजा लेते हुए खुशी का इजहार करते हैं। इसी समय राकेश गंभीर हो जाता है मानो कुछ सोच रहा हो, मानसी उससे पूछती है कि राकेश अचानक तुम्हें ये क्या हो गया ? तुम्हारी हंसी और चेहरे की प्रसन्नता गायब होकर ऐसा प्रतीत हो रहा है कि तुम किसी गंभीर बात को मन में सोच रहे हो ? राकेश कहता है कि हाँ यह सही है कि मैं आज चार साल पुरानी एक घटना को अकस्मात् ही सोचने लगा हूँ। सभी के आग्रह एवं मानसी के आश्वासन पर कि जो बात तुम बताओगे यहाँ से बाहर नही जायेगी। राकेश बताना प्रारंभ करता है।
यह बात उस समय की है जब मैं बी.काम के प्रथम वर्ष में था। हमारे परिवार की एक जैन परिवार से साथ बहुत घनिष्टता थी। वे एक व्यापारी थे और समय समय पर मेरे पिताजी से मार्गदर्शन लेते रहते थे। हम दोनो परिवारों का एक दूसरे के यहाँ आना जाना बना रहता था। उनकी एक बेटी श्रेया एवं एक बेटा रवि था। श्रेया बहुत ही आकर्षक व सुंदर लड़की थी। हमारी मुलाकात के दौरान वह अक्सर मेरे से बहुत बातचीत करती थी। उसकी मीठी और विनम्र वाणी से मैं बहुत खुश होता था और मन ही मन उसके प्रति आकर्षित हो गया था। श्रेया के पिताजी पुरातनपंथी विचारधाराओं के कारण अंतर्जातीय विवाह के बहुत खिलाफ थे।
एक दिन ठंड के मौसम में मैं किसी काम से उसके पास गया था। वह रजाई ओढ़े अपने अध्ययन की किताब पढ़ रही थी। मुझे देखकर वह बोली कि राकेश बहुत ठंड है रजाई में अंदर आ जाओ। यह सुनकर मैं उसके पास बैठ गया और उसने अपनी आधी रजाई मुझे ओढा दी और वो मेरे एकदम नजदीक आ गयी। उसने मेरी आँख से आँख मिलाकर मुझसे पूछा कि अब ठंड गायब हो गयी या नही। इसी समय उसका भाई आ गया तो उसने उसे पान लाने के लिए बाहर भिजवा दिया। इसी बीच अचानक ही उसका पैर मेरे पैर से छू गया। मेरे सारे शरीर में एक झुनझुनी सी आ गयी। यह मेरा उसके प्रति पहला आकर्षण था परंतु जिसे मैं शब्दों में बयां नही कर सकता। इसी दौरान मेरे घर से कुछ जरूरी काम के लिए मुझे बुलावा आ गया और मुझे ना चाहते हुए भी घर वापस जाना पड़ा। मैं रातभर श्रेया के विषय में सोचता रहा और यह मेरे जीवन में प्रेम की पहली अनुभूति थी। मैं इस बारे में श्रेया से बात करना चाहता था परंतु एक अजीब से डर के कारण मैं कभी उसे बात नही कह पाया और एक दिन उसकी शादी किसी दूसरे शहर में पक्की होने की खबर मेरे पास आ गयी। यह खबर सुनकर मैं बहुत विचलित होकर काफी दुखी हो गया। मैंने यह बात अपने एक परिचित वकील साहब को जो कि हम दोनो के परिवारों को जानते थे उन्हें बताई। उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या तुम वाकई श्रेया को चाहते हो और विरोध के बावजजूद भी अंतर्जातीय बावजूद विवाह करने की हिम्मत रखते हो। मेरे हाँ कहने पर उन्होंने कहा कि मै आज रात ही उससे बात करता हूँ और तुम्हे फोन पर बता दूँगा। वे श्रेया के पास गये और उसे मेरी भावनाओं से अवगत कराया, श्रेया ने कहा कि मै तो राकेश को बहुत चाहती हूँ, मैने पता नही कितनी बार इशारों में उसे यह बात बताने की कोशिश की परंतु उसने मुझे कोई तवज्जो नही दी। मैं समझ गया कि उसको मुझमें कोई रूचि नही है। इसी बीच मेरे जीवन में एक दूसरा लड़का श्रेयस धीरे धीरे मेरे नजदीक आता गया हम लोगों में आपस में प्यार होकर हम एक दूसरे के प्रति समर्पित हो गये। राकेश ने बहुत देर कर दी उससे कहना कि मै उसकी अच्छी दोस्त थी और आगे भी अच्छी दोस्त रहूँगी। वकील साहब ने यह बात फोन पर बता कर राकेश को कहा कि यह बात तुम्हें मुझे पहले बतानी चाहिए थी अब कुछ भी संभव नही है। राकेश आगे बताता है कि श्रेया ने लव मैरिज की थी जिससे उसके परिवारजन बहुत नाराज एवं अचंभित थे परंतु वह अपने निर्णय पर दृढ़ रही और आज वह सुखी जीवन व्यतीत करते हुए अपने पति के साथ अमेरिका में है। आज भी उसकी यादें कभी कभी मेरे दिल और दिमाग में टीस पैदा कर देती हैं और मैं उसे भूल नही पाता हूँ।
यह सुनकर आरती एवं मानसी ने उससे कहा कि राकेश इसमें पूरी लापरवाही एवं गलती तुमसे हुई है। किसी भी व्यक्ति को उसकी उम्र के अनुसार अपने में गंभीरता एवं विचारों में परिपक्वता होना चाहिए। तुम्हें अपरिपक्वता के कारण यह सब झेलना पडा। अब भविष्य के लिए सतर्क हो जाओ।
इसके बाद आनंद ने अपने साथ घटित हुयी घटना के विषय में जानकारी दी कि मैं अपने आफिस के कार्य से मुंबई जा रहा था इटारसी स्टेशन पर मेरे ए.सी. फर्स्ट के कोच में एक बहुत ही शालीन सी दिखने वाली महिला ने प्रवेश किया उसका रिजर्वेशन भी मुंबई तक था। ट्रेन के स्टेशन से रवाना होने के बाद उस महिला ने जिसका नाम उर्वशी था मुझसे औपचारिक बातचीत शुरू की। उसने बताया कि वह मुंबई में ही निवास करती है एवं उसका साड़ी का बहुत बड़ा व्यवसाय है जिसके लिए उसे काफी यात्राएँ करनी पड़ती है। उससे बातचीत के दौरान मुझे आभास हुआ कि उसे व्यापार, शेयर मार्केट, एवं पूंजी निवेश के विषय में काफी जानकारी है।
शाम के समय मेरी इच्छा स्काच पीने की हुई तो मैंने उस महिला से अनुमति लेकर अपने बैग से बाटल निकालकर अपने लिए पैग बनाया। मैंने औपचारिकतावश उससे पूछा क्या आप भी मेरा साथ देंगी ? उसने सहमति दे दी तो मैंने उसके लिए भी एक पैग बना दिया। हम लोग मदिरापान के साथ साथ विभिन्न विषयों पर बातचीत करते रहे। थोडी देर के बाद मैं बाथरूम गया और लौट कर आने पर मैंने देखा कि वह हम दोनो के लिए एक एक पैग और बना चुकी थी। उसने उसी गिलास से एक घूंट पीकर मुझे दे दिया और कहा कि ये पैग हमारी मित्रता के नाम पर स्वीकार कीजिए। यह देखकर मैं मन ही मन बहुत गदगद हो गया और मंत्रमुग्ध होकर उसे निहारते हुए तुरंत ही उस पैग को गटक गया। बातचीत के दौरान हम लोग एक दूसरे से काफी खुल चुके थे। वह मेरे बिल्कुल नजदीक बैठकर बात कर रही थी और मै उसे एकटक निहारते हुए वार्तालाप कर रहा था। कुछ देर पश्चात उसने विश्राम करने के लिए कहा। मैं भी हाँ कहते हुए अपनी ऊपर की बर्थ पर जाकर बहुत ही गहरी नींद में सो गया और सुबह नासिक आने पर मेरी नींद खुली। मैंने नीचे झांककर उर्वशी को गुडमार्निंग कहने के लिए देखा तो वह बर्थ पर नही थी मैं नीचे उतरा तो यह देखकर चौक गया कि मेरा पूरा सामान ही गायब था उसमें पाँच लाख रू. कैश था। यह देखकर मैं तुरंत अटैंडेंट के पास गया और उसे इस घटना की जानकारी देते हुए मैंने पूछा कि वह महिला कहाँ हैं जो मेरे साथ मुंबई तक जा रही थी उसने बताया कि साहब वो तो भुसावल में ही अपने एक साथी के साथ सामान के साथ उतर गयी। यह सुनकर मेरे होश उड़ गये। मैं समझ गया कि मेरे साथ दुर्घटना घट चुकी है और मुंबई पहुँचने पर मैंने लैब में गिलास की जाँच कराई जिससे पता चला कि उस गिलास में बेहोशी की दवा का प्रमाण पाया गया। मैं समझ गया जब उर्वशी ने अपने होंठो से गिलास लगा कर दिया तभी यह खेल हो चुका था। यह सुनकर गौरव और राकेश बोले कि यह बड़ी आश्चर्यजनक एवं गंभीर बात तुमने बताईं। ईश्वर का शुक्र है कि तुम सही सलामत हो वरना उस महिला के चक्कर में ना जाने क्या हो जाता।
आरती और पल्लवी यह सुनकर बोली की हमे सरकार के द्वारा बनाए गये नियमों पर ध्यान देकर उनका अनुसरण करना चाहिए। ट्रेन में यात्रा के दौरान शराब पीना वर्जित है। यह हमारे हित के लिए ही नियम बनाया गया है। यदि तुम इसे मानते तो शराब का सेवन नही करते और तुम्हें यह नुकसान नही होता। हमें नियमो का पालन करना ही चाहिए। पल्लवी ने गौरव की ओर देखकर कहा कि आप के साथ भी कुछ घटित हुआ हो तो आप भी अपनी आपबीती सुनाए। आनंद बोला ये बडे भाग्यवान है और इतने चतुर है कि लडकियों से अपने ऊपर धन खर्च करवा लेते है। वह बोला कि गौरव तुम दिल्ली वाली बात इन्हें बता दो।
गौरव ने बताया कि मै किसी कार्यवश दिल्ली गया हुआ था। वहाँ पर दिन भर अपना काम करने के उपरांत रात में 9 बजे एक डिस्को में समय व्यतीत करने चला गया। मैं टेबल पर बैठा ही था कि तभी एक सुंदर और आकर्षक लडकी ने प्रवेश किया और यहाँ वहाँ देखते हुए वह मेरे पास आकर मेरे साथ बैठने की अनुमति माँगी और मेरे हाँ कहने पर मेरे साथ बैठ गयी। उसने अपना परिचय चंडीगढ के फैशन डिजाइनिंग इंस्टीट्यूट में द्वितीय वर्ष की छात्रा के रूप में देते हुए अपना नाम नीरजा बताया। मैंने भी अपना परिचय देते हुए उससे बातचीत करनी प्रारंभ कर दी। मुझे आश्चर्य हुआ कि उसने अपनी ओर से दो पैग विस्की का आर्डर देकर मुझे बिल नही चुकाने दिया और स्वयं उसका भुगतान कर दिया। उसने बातचीत के दौरान एक बहुत ही अच्छा प्रश्न मुझसे किया कि हमें जीवन में सफलता पाने के लिए किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए। एक बार तो मै उसके इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए अचकचा गया परंतु मैंने संभलकर तुरंत इसका जबाव दिया कि हमें तीन बातों पर हमेशा ध्यान रखना चाहिए। पहली अपने आत्मविश्वास,आत्मबल एवं आत्मअनुभूति पर विश्वास होना चाहिए, दूसरा सच्चे मित्रों एवं पत्नी की बातों को तिरस्कृत नही करना चाहिए और तीसरा अपने सत्कार्यों एवं प्रभु की भक्ति पर पूर्ण विश्वास रखते हुए जीवनपथ में आगे बढ़ना चाहिए।
वह मेरे जवाब से इतनी प्रसन्न हो गई कि एक एक पैग और आर्डर देकर उसे जल्दी से समाप्त करके मुझे डांसिंग फ्लोर पर ले जाकर मेरे निकट आकर नृत्य करने लगी। उसका शरीर मेरे शरीर से इतने नजदीक था कि मुझे अजीब से आकर्षण का अहसास हो रहा था। वह कुछ समय डांस करने के बाद मुझे होटल के काउंटर पर ले गई और एक रूम लेकर यह कहते हुए कि थोडी देर आराम करेंगे, अंदर ले गई। वहाँ जाकर उसने एक और पैग का आर्डर किया और मेरे ना कहने पर भी जबरदस्ती, अपने हाथों से पिला दिया। उसकी बातों में इतना आकर्षण था कि मैं उसके प्रति सम्मोहित होता चला गया। हम एक दूसरे से आलिंगनबद्ध होकर दो जिस्म एक जान हो गये थे। सारी रात ऐसे बीत गयी लगा जैसे एक पल की ही बात हो। सुबह होने पर वह यह कहकर कि उसे मुंबई जाना है, होटल का बिल चुकाकर टैक्सी में बैठकर मुझे फिर मिलेंगें कहती हुई चली गयी। मैं भी दूसरी टैक्सी लेकर अपने गंतव्य पर चला गया। मैंने उससे संपर्क करने का प्रयास किया परंतु उसके द्वारा दिया गया नंबर गलत था और उसने भी मुझसे कभी संपर्क नही किया। मैं उसकी तलाश में चंडीगढ तक गया और वहाँ के फैशन डिजाइनिंग इंस्टीट्यूट में नीरजा नाम की पाँच लडकियों से मिला परंतु उनमें से वह कोई भी नही थी।