प्यार का पंचनामा Namita Gupta द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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प्यार का पंचनामा

 बात अब से 20 वर्ष पहले की है। जब मैंने इंटर पास करके कॉलेज में दाखिला लिया । कॉलेज में दाखिला क्या लिया ? मैं भी आसमान में उड़ने लगा नया खून ,नई जवानी ,नया जोश, नई उमंग और नए-नए सपने मन में हिलोरे मारने लगे थे । दिल में कुछ कर गुजरने की तमन्ना दम भरती थी । दोस्तों के सामने सब कुछ करने का दम मैं भी भरने लगा था । हंसी- ठहाका, तफरी बाजी, मूवी देखना यह सब करने का अधिकार जैसे मुझे स्वतः ही मिल गया हो । मैं कुछ भी करने के लिए खुद को आजाद समझने लगा था ।  कॉलेज मे नये पुराने दोस्त अब अपने प्यार , मोहब्बत के किस्से सुनाते तो मेरा भी दिल करता था ।एक मीठी सी चुभन मुझे भी आशिकी के लिए उकसाने लगी थी ।प्यार की मीठी- मीठी कसक होने लगी थी । मैं भी अपने प्यार को पाना चाहता था लेकिन प्यार के रास्ते का दूर -दूर तक पता नहीं था । प्यार के ढेर सारे रंगीन ,सुनहरे सपने सजने लगे ।कल्पनाओं की सुन्दर सलोनी सी आकृति मेरे जेहन में आकार लेने लगी थी। ।
         मेरे कालेज जाने वाले रास्ते में एक गर्ल्स कॉलेज में पडता था । अक्सर छुट्टी के समय  वहां बहुत से लडके खड़े रहकर अपनी गर्ल फ्रेंड का इंतजार करते या प्यार की तलाश करते थे । मुझे यह ओछी हरकतें पसंद नहीं थी । लेकिन प्यार की तलाश मुझे तड़पाने लगती । तो हम भी कालेज से पहले एक पेंटर की दुकान थी जो कि मेरे दोस्त की थी। मैं वहीं पर खड़ा होकर आने -जाने वालों को देखता रहता औंर खाली समय में चित्रों में रंग भरता रहता था । पेंटिंग करते हुए सड़क पर नजर डालता रहता था । एक दिन दुकान में बैठा एक चित्र का खाका  खींच रहा था । तभी  एक मीठी सुरीली सी आवाज कानों में गूँजी –“ क्या आप एक सुंदर सा बोर्ड पेंट कर देंगे ।“
        मैं  आवाज सुनकर उस दिशा में पलटा तो देखा मेरी स्वप्नसुंदरी सामने खड़ी थी। वहीं पतले गुलाबी तराशे हुए होंठ ,गुलाबी उभरे हुए गाल ,  हिरनी जैसी आंखें ,लंबे खुले बाल , दुबली पतली लंबी काया जैसे संगमरमर की तराशी हुई मूर्ति ,यही तो हमारे ख्वाबों ख्यालों की मलिका बिल्कुल ऐसी ही तो थी । अपनी स्वप्न -सुन्दरी को अपने सामने देख कर मैं हड़बड़ा गया । मैंने अपनी आंखों को हाथों से मला कि मैं कहीं सपना तो नहीं देख रहा और खुद को भी चुटकी काटी तो उस चुभन से सत्य का एहसास हुआ कि यह सपना नहीं हकीकत से रूबरू था । मैं हडबडते हुए –“क्या कहा क्या आपने ?”
  पुनः पतली सी आवाज में –“ मुझे अपने ब्यूटीपार्लर के लिए एक सुंदर सा बोर्ड बनवाना है । “।उसने पुनः अपने शब्दों को दोहराते हुए कहा । 
    मैंने बिना सोचे समझे तपाक से हाँमी भरते हुए –” हाँ ,बन जाएगा ।“वह बोर्ड  दूसरे दिन लेने का वादा करके चली गई। मैं ठगा सा खड़ा उसे देखता रह गया । तभी मेरा मित्र उमंग वहां आया और मैंने उसे जब बताया तो उसने पूछा कि कैसे ,क्या कितना बड़ा बनाना है ? मैंने नकारते हुए –“ यार कुछ पूछ ही नहीं पाया और वह चली गई और हां कल ही लेने भी आएगी ।“ उमंग ने कहा “ यार इतनी जल्दी कैसे बनेगा और कैसे सूखेगा ?”
 मैंने कहा “ तू चिंता ना कर ,मैं कोशिश करता हूं । “ 
प्रश्नवाचक नजरों से मुझे देखते हुए –“कोई प्यार ,मोहब्बत का चक्कर तो नहीं है ।“
     झेपते हुए –“यार ,ऐसा कुछ नहीं । मैं तो उसे जानता भी नहीं ।“कहकर सफाई देने की कोशिश की ।
           बस फिर क्या मैं सब कुछ भूलकर उसके बताए अनुसार बोर्ड को बनाने में जुट गया । कुछ घंटों की मेहनत से बोर्ड बनाकर कैनवस पर एक किनारे रख दिया और उमंग से बोल कर मैं घर चला गया । माँ ने देरी से आने का कारण पूछा । दोस्त के यहाँ पढ़ाई का बहाना बनाकर सवाल को टाल कर मैं अपने कमरे में चला गया । दूसरे दिन मै जल्दी ही काँलेज से आकर उमंग की पेंटिंग की दुकान पर आकर उसका इंतजार करने लगा । शाम होते ही वो वार्ड को लेने आई । उमंग ने बोर्ड उसके सामने रखते हुए  “ देखिए ठीक बना है आप तो कुछ बता के भी नहीं गई थी । “
   उसने तारीफ करते हुए कहा –“ बोर्ड वास्तव में बहुत अच्छा बना है ।“ उसने बहुत प्रशंसा की तो मेरी तरफ इशारा करते हुए यह बोर्ड मेरे कलाकार मित्र ने बनाया है जो एक चित्रकार भी हैं । उसने मेरी तरफ मुस्कुराते हुए एक कार्ड बढ़ाते हुए –“कल मेरे पार्लर की ओपनिंग है ,अपनी मां ,बहन को जरूर भेजिएगा ।“ कार्ड मेरे हाथों में थमा कर वह चली गई।
           मैं कार्ड को गौर से देखने लगा उसने लिखा पता देखकर मैं चौक गया । यह पता तो मेरे घर के पास पीछे वाली कॉलोनी का था । मैंने घर जाकर अपनी मां -बहन से उस पार्लर में जाने को इंप्रेस किया । अब मैंने अपना रास्ता बदल दिया था । अब मैं सामने की रोड की बजाय पीछे कॉलोनी की तरफ से आने- जाने लगा जिससे कि मैं उसे देख सकूं । एक झलक पा सकूँ ,। मैं एक अजीब से सम्मोहन से वशीभूत होकर खिंचा चला जाता और एक झलक पाने की तमन्ना खुदा से करने लगता । अक्सर आते-जाते उसकी नजरें मुझसे टकराती तो वह मुस्कुराते हुए एक तिरछी नजर मुझ पर डालती हुई अंदर चली जाती । एक दिन मैंने अपनी बहन को उसके साथ स्कूल जाते देखा । घर आते ही मैंने बहन से पूछा तुम किसके साथ जा रही थी ।“
      “ भैया वह मेरी सहेली मुग्धा है ।वह अपने घर के पीछे वाली  कॉलोनी में रहती है । हम दोनों एक ही स्कूल में पढते हैं ।वह मेरी क्लासमेट है इसलिए हम दोनों एक साथ ही स्कूल आते- जाते हैं।“
      वह मेरी तरफ सवालिया नजरों से देखती हुई “-  भैया ! लेकिन आप क्यों पूछ रहे हो ? “
     “बस ऐसे ही “। कह कर मैं कमरे से बाहर निकल गया कि जैसे मेरी चोरी पकड़ी गई हो ।
     एक दिन मेरी बहन मुझसे कहने लगी –“ भैया आपको कॉमर्स की अच्छी नालेज है ।आप मुझे तो पढाते ही है तो मेरी सहेली को भी पढा दिया करिए । उसे कामर्स  समझने में थोडा कठिनाई होती है ।“
      यह सुनकर मैं मन ही मन बडा खुश हुआ लेकिन ऊपर से दिखावा करते हुए –“मैं क्यों किसी को पढाऊ ।मुझसे तो किसी ने नहीं कहा ।बहन के कान पकडते हुए –“माँ से पूछा है ।“
   भैया ,आप माँ की चिंता न करो ।मैं माँ से बात कर चुकी । तभी माँ उधर से गुजरते हुए –“बेटे, उसे भी पढा दिया कर ।  कल मै पार्लर गयीं थी तो सविता जी मुझसे भी कह रही थी तो मैंने हाँ , कह दिया । तुम छोटी के साथ उसे भी पढा दिया करना ।“
    हिलोरें मारती खुशी को दबाते हुए धीरे से बोला –”ठीक है माँ “ । मैं आसमान में उडता हुआ  बहन से बोला –ठीक है कल से बुला लेना मैं तुम दोनों को पढा दिया करुंगा ।“ 
       मेरी तो जैसे मन मांगी मुराद पूरी हो गई थी । मारे खुशी के मेरा दिल धडक रहा था । दिल बल्लियों उछल रहा था । मैं खुद सोच रहा था कि उसका सामना कैसे करुगा ? मैं कैसे उसे पढाऊगा । कैसे अपने दिल औंर भावनाओं पर काबू रख पाऊंगा ? “ 
     दूसरे दिन छोटी मुग्धा को लेकर आई । उसे देखकर मेरा दिल कंठ मे जैसे अटक गया । मुझे देखते ही वह हौले से मुस्कराई । मैं भी मुस्कुराते हुए दोनों को पढ़ाने लगा और बीच-बीच में कनखियों से उसे भी देखता रहता। हफ्ता भर बीत गया इधर मेरे सब्र का बांध टूट रहा था । मैं उससे बोलना चाहता था । अपने प्यार का इजहार करना चाहता था लेकिन मैं कैसे करूं ? इश्क का भूत सर चढकर बोल रहा था ।इसी उधेड़बुन में हर समय खोया रहता । एक दिन डरते - डरते बड़ी हिम्मत कर उसकी किताब में एक छोटी सी पर्ची “ आई लव यू “ लिखकर रख दी । उसके उत्तर का इंतजार करने लगा । दो दिन तक तो वो नहीं आई तो मैं डर गया कि कहीं उसे बुरा न लगा हो ,या कहीं वो अपनी मां से मेरी शिकायत ना कर दे ।  ढेर सारे सवाल मेरे दिमाग में घूमने लगे । मैंने बहन से पूछा तो उसने कहा हम भैया मुग्धा कॉलेज नहीं आई । उसके घर में कुछ काम था तभी वह नहीं आई । तीसरे दिन देखा तो वह बहन के साथ बैठी मेरा इन्तजार कर रही थी । मुझे देखते ही अपने पन से मुस्कराई । मैं समझ गया आग दोनों तरफ लगी है।
       थोड़ी देर बाद मैंने बहन को पानी लेने के बहाने भेज दिया । उसकी तरफ देखा ,तो उसने झट से एक पर्चा मेरे हाथ में थमा दिया । मैंने पर्ची खोलकर देखा एक  प्यारे से दिल में ,बहुत ही प्यार से “आई लव यू “लिखा देख में आसमान में कुलांचे भरने लगा । आवेश में मैंने उसके दोनों हाथ कसकर पकड़ लिए उसको तहे दिल से धन्यवाद दिया । उसने बताया उसका भी हाल मेरे जैसा है वह भी मुझे बहुत प्यार करती है । मुझसे अपने प्यार का इजहार करना चाहती थी । हम दोनों अपनी हर भावनाओं औंर प्यार को पत्र के माध्यम से शेयर करते । हम दोनों  की लव स्टोरी शुरू हो चुकी थी ।अब  मेरी भी गर्लफ्रेंड हो गई थी । मैं भी अपने प्यार को पाकर उसके रंगीन सपनों में खोया रहता । हम दोनों ही अपनी दुनिया में डूबे रहते औंर एक दूसरे के साथ जीने मरने ,साथ निभाने के वादे भी कर डालें । आंखें हमेशा उसके इंतजार में रहती थी । छोटी को शायद एहसास हो गया था । 
    एक दिन पिता जी को कुछ लिखने की जरूरत पड गई उन्होंने अलमारी से मेरी नोट बुक निकाल ली । उस का पन्ना खोलते ही एक पत्र उनके हाथ लग गया । जिसमें लिखा था—" तेरे बिना भी क्या जीना ?”
  इतन पढते ही पिता जी आगबबूला हो गए। उन्हें सारा माजरा समझते देर नहीं लगी । वह माँ को देते हुए बडबडाने लगे –“ आजकल के बच्चे  माता-पिता की कोई वैल्यू ही नहीं समझते । जिस लडकी से मिले 2 दिन ही हुए, वह साहबजादे की जिंदगी हो गई  लेकिन जिस माता-पिता ने पाल- पोस कर इतना बड़ा किया । तुम्हारी सारी जरूरते पूरी की उनके प्रति क्या तुम्हारी कोई जिम्मेदारी नहीं है ?” तुम लोगों के भविष्य के लिए अपना सारा जीवन हमने कुर्बान कर दिया ,तुम्हें इसकी कोई फिक्र नहीं ।  औंर बरखुरदार अपनी जिंदगी को प्यार ,मोहब्बत के चक्कर में उस दो टके की लड़की के पीछे खत्म कर लेने पर आमादा है साहबजादे ।  उस दिन मेरी जमकर डाँट पडी । वह बड़े ही सख्त शब्दों में चेतावनी देते हुए बोले –“  यह सब क्या चल रहा है ? यहसब तुरन्त बंद कर दो ।  हमारा औंर उनका  जमीन-- आसमान का अंतर है। हमारे धर्म अलग है । दिन में सपने देखना छोड़ो और अपनी पढ़ाई पर पूरा ध्यान दो । “ बाहर आकर छोटी को हिदायत देते हुए –”आज के वह लडकी यहाँ दिखाई न पडे । “पिता जी सख्त लहजे में धमकाते हुए चले गए ।
          बेटे प्यार का भूत उतार कर फेको ,पिता जी के सामने तुम्हारा कुछ भी नहीं चलने वाला है । यह कहकर माँ अपने काम में लग गई । मेरे काँटों तो खून ही न निकले ,।मेरी चोरी रंगे हाथों पकड़ी गई थी । एक ,दो दिन तक तो मैं शांत रहा ।अब मुग्धा का आना भी बंद हो गया । मुझसे नहीं रहा गया तो मैं फिर पीछे वाली गली से निकलने लगा । कभी  मैं अपने दोस्त की दुकान पर बैठा था उसी के इंतजार करता ।हफ्तों तक मेरी उससे बात नही हो पाई ।बस दूर से ही उसे देख पाता था ।हम दोनों ही एक, दूसरे के दिल का हाल  औंर तडप जानने को बेचैन थे ।एक दिन मैं अपने मित्र की दुकान में गमगीन बैठा था तभी वह बडी तेजी से आई और एक पत्र मेरे हाथों मे पकडाती हुई बोली –“इसका जवाब जल्दी देना  “कहकर जैसे आई थी वैसे ही चली गई ।
 मैंने झट से पत्र खोल कर पढने लग ।उसने लिखा था घरवाले उसकी  शादी तय कर रहें हैं । मैं उसके घरवालों से बात करु नहीं तो उसकी शादी कहीं औंर कर दी जाएगी । यह पढकर मैं चेतना शून्य हो गया । मैं सोचने लगा शादी करु तो कैसे ? मैं कोई काम तो करता नहीं था ।अभी तो मैं पढाई ही कर रहा था । प्यार का नशा अब भारी पडने लगा था ।अब मैं देवदास बना घर मे पडा रहता । एक दिन किसी काम से पिता जी ने मुझे ननिहाल भेज दिया । वहाँ मुझे महीने भर तक रुकना पड गया ँजब मैं वहां से वापस आया औंर मुग्धा को देखने गया लेकिन वह नहीं दिखाई दी ।मैंने धीरे से छोटी से पूछा  तुम्हारी सहेली मुग्धा आजकल दिखाई नहीं देती हैं ।
      “ उसने मुझे बताया मुग्धा की शादी हो गई । “
    “ तुमनें मुझे फोन क्यों नहीं किया ?"मैं तड़प कर बोला ।
  माँ ,पिता जी ने मना किया था ।“
यह सुनकर मैं कटे बृक्ष की तरह वहीं ढह गय । उसने एक परची मेरे हाथों में रखते हुए कहा –“ यह मुग्धा ने आप के लिए दिया है और हाँ भैया आप को मुग्धा की शादी की वजह से जानबूझकर मामाजी के यहाँ भेजा गया था ।“
      मैंने टूटे दिल से पत्र खोला,  डियर ! मैं अपने घर में किसी को मनाने में कामयाब नहीं रही । तुमसे प्यार की बात सुनकर यह हुआ कि मेरी पढ़ाई छुड़वा दी गई और शादी भी जल्दी तय कर दी गईऔंर धमकी भी दी गई कि मैंने तुम्हारा नाम भी लिया तो , मेरी मां अपनी जान दे देगी क्योंकि हम दोनों के धर्म अलग-अलग है इसलिए मैं मां -पापा की लाश से गुजर कर आपसे शादी नहीं कर सकती । मैं तो अब हमेशा के लिए यहां से जा रही हूं । अब आप भी मुझे भूल जाना और अपनी जिंदगी नए सिरे से शुरू करना। औंर हाँ , एक दिन आँटी ,मेरी मां के पास आई थी । उसी दिन के बाद मेरा बाहर आना आना  बंद कर दिया गया ।“ इसके बाद क्या लिखा वह सब आँसुओ में धुल गया था । मैं सब समझ गया ।
         इस किस्से के बाद मै कुछ महीनों तक तो देवदास बना रहा । धीरे-धीरे मैंने खुद को संभाला । अब तो मेरी  नौकरी बैंक में लग गई । एक सुघड़ ,समझदार पत्नी औंर दो प्यारे बच्चों का पिता हूँ । वक्त के साथ मुग्धा की यादें धुंधली हो गई मगर कसक प्यार की आज भी बाकी है । आज भी बसंत आते ही प्यार का वह खुमार याद आने लगता है क्योंकि जेहन में मुग्धा आज भी जीवित है।