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पतझड़

पतझड़

पंडित नारायण राव अक्सर सोहन के पास आकार बैठ जाया करते, अपनी कोयले वाली प्रैस से सोहन लोगों के कपड़े प्रैस करता रहता और पंडितजी उसको देश दुनिया की तमाम बातें बताते रहते।

पूरे गाँव में सोहन ही एकमात्र धोबी था, पूरे गाँव के लोगों के कपड़े धोना और प्रैस करना उस अकेले की ही ज़िम्मेदारी थी।

सोहन की पत्नी ललिता को नौवाँ महीना चल रहा था अतः ऐसे में वह सोहन का हाथ भी नहीं बंटा सकती थी, ना जाने कब प्रसव पीड़ा हो जाए यही सोच कर सोहन ने ललिता को घर में ही आराम करने को कह दिया, फिर भी ललिता घर के छोटे मोटे काम करती रहती थी।

कपड़ों को साफ सुथरा धोने के लिए सोहन भट्टी पर बड़ा सा कड़ाहा चढ़ाता पानी गरम करके उसमे रेह मिलाता और फिर कपड़े डाल कर पानी को भली भांति उबालता।

पानी उबालने के लिए सोहन भट्टी में पत्तों से आग जलाता था, पत्तों की आग सरल होती है, पानी तो उबाल देती है लेकिन कपड़ों को जलाती नहीं।

पतझड़ के मौसम में सोहन बाग के सारे पत्ते इकट्ठे करके अपने घर में भर लेता और उन्ही से पूरा साल निकाल देता।

पंडितजी बैठे थे, सोहन प्रैस कर रहा था तभी अंदर से बड़े ज़ोर से चिल्लाने की आवाज आई.......

सोहन प्रैस छोड़ कर तुरंत घर के अंदर गया, पत्नी प्रसव पीड़ा से कराह रही थी........

सोहन ने पत्नी को अपनी बाहों में उठा लिया उसका सिर अपनी गोद में रख कर सिर सहलाने लगा एवं पंडितजी को आवाज देकर बाहर से अंदर बुला लिया।

“पंडितजी मैं यहाँ ललिता को संभालता हूँ आप दौड़ कर गाँव की दाई माँ को बुला लाएँ।”

पंडितजी तेजी से गए, दाई माँ भी घर पर ही मिल गयी, पंडितजी उसको साथ लेकर जल्दी ही वापस आ गए।

दाई माँ ने उन दोनों को बाहर निकाल स्वयं ललिता को संभाल लिया।

सोहन ललिता से बहुत प्रेम करता था, उसका दर्द सोहन से सहन नहीं हो रहा था और उसका मन बार बार ललिता के पास जाने को कर रहा था, जैसे ही वह दरवाजे से अंदर झाँकने की कोशिश करता दाई माँ उसको डांट देती।

पंडितजी अपना पत्रा खोल कर कुछ गणना करने लगे........

ज्योतिषिय गणना करने के बाद पंडितजी ने अपना पत्रा झोले में रख लिया एवं उसके चेहरे पर उदासी छा गयी।

सोहन ने पंडितजी से इस तरह अचानक उदास होने का कारण पूछा तो पंडितजी ने टाल दिया लेकिन सोहन के बार बार आग्रह करने पर पंडितजी को बताना पड़ा........

“तुम्हारी पत्नी एक सुंदर स्वस्थ कन्या को जन्म देने जा रही है लेकिन आने वाली इस कन्या को माँ का प्यार नहीं मिल पाएगा और जब यह कन्या जवान हो जाएगी तब इसके पति को सर्प काट लेगा।”

सोहन को पंडितजी की यह बात अच्छी नहीं लगी और वह आग बबूला हो गया यहाँ तक कह दिया कि तुमने दोस्त बन कर मेरे साथ दगा किया, तुम मेरे दोस्त नहीं हो सकते, अब आप कृपा करके यहाँ से चले जाएँ।

पंडितजी चुपचाप वहाँ से चले गए और सोचने लगे कि क्या मुझे सोहन को यह सब नहीं बताना चाहिए था.......

ललिता का कराहना बंद हो चुका था और बच्चे के रोने की आवाज घर में गूंजने लगी थी। ललिता का शरीर बिलकुल ठंडा हो चुका था, कंबल रज़ाई उढ़ाने पर भी उसको गर्मी नहीं आ रही थी, सोहन ने आग भी जलायी लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। दाई माँ ने बच्ची को नहलाया उसकी नाल काटी और ललिता का पहला दूध बच्ची को पिला दिया। दूध पीकर बच्ची चुप हो गयी।

दाई माँ ने सोहन से कहा, “तुम्हारे घर में बहुत सुंदर कन्या आई है, साक्षात लक्ष्मी है, लेकिन ललिता का खून ज्यादा बहने के कारण उसका शरीर ठंडा हो गया है, तुम्हें रात भर बैठ कर देख भाल करनी पड़ेगी और जैसे ही इसको होश आए उसे यह काढ़ा पिला देना।”

अपनी तरफ से हिदायत देकर दाई माँ तो चली गयी लेकिन ललिता होश में ना आ सकी और वह ठंडी पड़ती चली गयी। सुबह होने तक ललिता का शरीर निष्प्राण हो चुका था, सोहन का रो रोकर बुरा हाल था।

पंडित नारायण राव रात में उस समय जब सोहन को गुस्सा आया हुआ था तब तो चले गए थे लेकिन सुबह सुबह ही सोहन के घर पहुँच गए। पंडितजी की पत्नी ने बच्चे को संभाला एवं गाँव की कुछ औरतों को बुलवाकर ललिता को नहला कर उसका पूरा शृंगार करके अंतिम संकार के लिए तैयार कर दिया।

पंडितजी ने शमशान जाकर ललिता के संस्कार की पूरी तैयारी करवाई।

सोहन को कुछ भी होश नहीं था, अचानक उसके हँसते खेलते जीवन में यह क्या हो गया, दुखों का पहाड़ ही जैसे उस पर टूट पड़ा था।

बच्ची को पंडिताइन अपने साथ ले गयी एवं उसका नाम लक्ष्मी रख दिया। पंडिताइन ने बच्ची को बड़े लाड़ प्यार से पाला....... अभी लक्ष्मी चार साल की ही हुई थी कि पंडित नारायण राव और उनकी पत्नी गाँव छोड़ कर हमेशा के लिए अपने बेटे के साथ शहर रहने के लिए चले गए। दोनों की आयु काफी हो चुकी थी अतः इस उम्र में बेटा माँ बाप को अकेला नहीं छोडना चाहता था और वैसे ठीक भी था उन दोनों का उम्र के आखिरी पड़ाव में बेटे के साथ रहना।

लक्ष्मी बड़ी होने लगी, सोहन ने लक्ष्मी को माँ व बाप दोनों बन कर पाला।

कई लोगों ने सोहन को दूसरी शादी करने के लिए भी कहा लेकिन उसने मना कर दिया वह नहीं चाहता था कि कोई सौतेली माँ आकार उसकी बेटी को दुख दे।

पतझड़ में जब भी पत्ते गिरते वह पत्ते इकठ्ठा करने के लिए बाग में लक्ष्मी को भी अपने साथ लेकर जाता और दोनों बाप बेटी मिल कर पत्तों का ढेर लगा लेते फिर उस ढेर को गठरियों में बांध कर घर में लाकर रख लेते और पूरे साल उन पत्तों से ही भट्टी गरम करते।

ऐसे समय पर सोहन को ललिता की बहुत याद आती और बाग के एक कोने में लक्ष्मी से दूर जाकर सोहन रो लेता फिर अपने आँसू पोंछ कर बेटी के पास आ जाता।

एक दिन जब सोहन का स्वास्थ्य ठीक नहीं था तो उसने लक्ष्मी से कहा, “आज मेरी तबीयत ठीक नहीं है लक्ष्मी, तू चली जा बाग में, पत्ते इकट्ठे कर लेना, ढेर बना कर किसी चीज से दबा देना कल गठरी बना कर ले आएंगे।”

लक्ष्मी अकेले ही बाग में जाकर पत्ते इकठ्ठा कर रही थी, हवा तेज थी, वह जितने पत्ते इकठ्ठा करती उसमे से आधे उड़ जाते। तेज हवा से वृक्षों के पत्ते भी तेजी से झड रहे थे एवं हवा की सांय सांय की तेज आवाज आ रही थी।

बहुत बड़ा बाग था, बाग में ही एक सुंदर सी हट बनी हुई थी और एक ट्यूब वैल लगा था।

उस दिन मालिक का लड़का रंजन बाग में ही था, ठंडी ठंडी तेज हवा उसको बहुत अच्छी लग रही थी। अचानक रंजन की निगाह लक्ष्मी पर पड़ी, तेज हवा से लक्ष्मी के वस्त्र अस्त व्यस्त हो रहे थे।

अठठारह पार कर चुकी लक्ष्मी का सुडौल और सुंदर शरीर किसी को भी आकर्षित कर सकता था। लक्ष्मी कभी पत्ते समेटती कभी अपने कपड़े, इस सब से बेखबर कि कोई उसे देख रहा है।

पत्तों को इकठ्ठा करके लक्ष्मी जैसे ही ढेर के पास पहुंची, रंजन भी वहीं पहुँच गया और उसने हथेली से लक्ष्मी का मुह बंद कर लिया। लक्ष्मी ने चीखना चाहा लेकिन चीख ना सकी और रंजन ने वहीं पतझड़ के पत्तों के बीच में लिटा कर उसके साथ जबर्दस्ती शारीरिक संबंध बना लिया।

लक्ष्मी को नग्न अवस्था में वहीं पत्तों के ढेर में छोड़ कर रंजन वहाँ से जाने लगा, कुछ कदम ही चल पाया था कि पत्तों के ढेर में छुपे एक सर्प की पूंछ पर उसका पैर पड़ गया। रंजन का पैर पूंछ पर पड़ते ही साँप ने तुरंत रंजन को काट लिया, साँप जहरीला था, जहर ने असर किया और उसी समय रंजन का पूरा शरीर नीला पड़ गया एवं देखते ही देखते उसकी मृत्यु हो गयी।

यह सब देखकर लक्ष्मी अपना दुख भूल कर अपने कपड़े ठीक करके तुरंत घर की तरफ भागी और उसने सारी बात अपने पिता सोहन को बताई। सोहन ने कहा, “बेटा, यह तो होना ही था, यह भविष्यवाणी तो पंडित नारायण राव ने तेरे जन्म से पहले ही कर दी थी।”

सोहन बेटी को लेकर पंडित नारायण राव के पास शहर पहुंचा। पंडितजी काफी बूढ़े हो चुके थे फिर भी उन्होने पहचान लिया, “यह लक्ष्मी हैं ना, बिलकुल अपनी माँ जैसी शक्ल पायी है।” “हाँ पंडितजी” सोहन ने कहा और गाँव की पूरी घटना पंडितजी को बता दी। पंडितजी ने कहा, “भाई, यह तो होना ही था, अब तुम किसी से भी इस घटना का जिक्र न करना और अच्छा सा लड़का देख कर इसकी शादी कर देना, अब इस पर या इसके पति पर कोई संकट नहीं है, वो तो एक पतझड़ था जो चला गया, अब नई कोंपलें आएंगी और हमारी लक्ष्मी की बगिया को महकाएंगी।”

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