परी और जादुई फूल
नैनीताल की ठंडी सड़क पर धीरे-धीरे चल रहा हूँ।सड़क के किनारे बर्फ अभी भी जमी है। इस सड़क पर बहुत बार अकेले और कुछ बार साथियों के साथ आना-जाना हुआ था।इस पर बोलता हूँ ,"वो भी क्या दिन थे?" रात का समय है। लगभग ग्यारह बजे हैं। यह कहानी वैसी नहीं है जैसे बड़े भाई साहब रूसी लेखक टाँलस्टाय की एक कहानी बचपन में सुनाते थे। सौतेली लड़की और उसकी सौतेली माँ की।कैसे 12 महिने एक-एक कर बदल जाते हैं उस लड़की की सहायता के लिये।अब हल्की सी उस कहानी की याद है।उस सफेद रात में आगे मोड़ पर एक परी खड़ी है।धीरे-धीरे उसके पास पहुँचता हूँ। वह मेरे बाँये हाथ को छूती है और उसके छूते ही मेरे सफेद बाल काले हो जाते हैं। और मैं बोल उठता हूँ ," ओह, वे भी क्या दिन थे, जब सब बाल काले हुआ करते थे?" देखते ही देखते चारों ओर एक मायावी दृश्य बन गया है।झील में अनगिनत परियां उतर गयी हैं।कुछ नहा रही हैं।और कुछ नावों में बैठी हैं।एक परी उदास किनारे पर बैठी है क्योंकि उसे एक दिन बाद मनुष्य बन जाना है।उसकी सब चमत्कारी शक्तियां समाप्त हो जानी हैं।उसके आँसुओं से झील भरते जा रही है।झील में झांकता हूँ तो देखता हूँ कि बड़ी मछली छोटी मछली के पीछे दौड़ रही है।सामने मालरोड पर लोग रुपयों के लिये लड़ रहे हैं। इतने में परी मेरा दायां हाथ छूती है, और मेरे सारे बाल फिर सफेद हो जाते हैं।चढ़ाई चढ़ता महाविद्यालय के पुस्तकालय में जाता हूँ।जैसे ही बैठता हूँ एक किताब वह अनाम परी सामने रख देती है।परी को छूना चाहता हूँ, लेकिन वह तभी गायब हो जाती है। मैं किताब पलटकर पढ़ता हूँ-
"उसने झुझलाहट में कहा-
तुम रद्दी खरीदते हो
रद्दी पढ़ते हो
रद्दी सुनते हो
तभी रद्दी लेने वाला वहाँ आया
उसने सब शब्दों को तराजू पर रखा
उठे पलड़े पर कुछ और शब्द डाले
वजन जब बराबर हो गया
शब्दों को बोरे में समेट दिया,
कुछ क्षण मुझे
सारा आकाश नहीं सुहाया,
धरती भी नहीं सुहायी,
दूसरे ही क्षण
मैं उनको महसूस करने लगा
सौन्दर्य अन्दर आ,बुदबुदाने लगा
अनुभूतियां छलक, अटकने लगीं।,
फिर एक रद्दी कागज पर लिखने लगा,
अक्षर और नये अक्षर।"
मैंने सामने शीशे में देखा और मन ही मन कहा," सफेद बालों का भी अपना महत्व होता है।और यादें गुम होने लगती हैं!" पुस्तकालय से बाहर निकलता हूँ। सामने एक बुढ़िया दिखती है। उसके पास जाता हूँ। वह मुझे गले लगाती है और मैं और बूढ़ा हो जाता हूँ। वह कहती है उसने सतयुग में राजा हरिश्चंद्र को देखा है। वह आगे बताती है-
राजा हरिश्चन्द्र इतिहास के चमकते सितारे हैं।ऋषि विश्वामित्र ने उनकी परीक्षा लेने के लिये उनका राजपाट छीन लिया था। राजपाट भी उन्होंने सपने में विश्वामित्र को दिया था। विश्वामित्र सपने में आते हैं, राज्य माँगते हैं। दूसरे दिन पहुँच जाते हैं दरबार में। बोलते हैं," राजन, आप अपना राज्य दे दीजिये।" हरिश्चन्द्र बोले,"आपको तो राज्य दे चुका हूँ, सपने में।" कैसे राजा थे तब ! राज्य चले जाने के बाद, दक्षिणा के लिये उन्होंने पूरे परिवार को बेचना पड़ा।उन्होंने श्मशान पर काम किया, जीविका के लिये।पत्नी तारा को किसी घर में।वे श्मशान पर दाह संस्कार का कर उसूलते थे। पुत्र रोहताश की साँप के काटने से मृत्यु हो जाती है तो उसके शव को लेकर वह उसी श्मशान में जाती है जहाँ हरिश्चन्द्र कर वसूलते हैं।वे तारा से श्मशान का कर देने को कहते हैं लेकिन उसके पास देने को कुछ भी नहीं होता है, अत: वह अपनी धोती फाड़ने लगती है, कर के रूप में देने के लिये। तभी आकाशवाणी होती है और विश्वामित्र भी प्रकट हो जाते हैं।विष्णु भगवान रोहताश को जीवित कर देते हैं और विश्वामित्र हरिश्चंद्र को राजपाट लौटा देते हैं।
आगे त्रेतायुग में राम को वन में देखा है।
द्वापर में कृष्ण को देखा है। कलियुग में आते आते बूढ़ी हो गयी हूँ।
उसके हाथ में एक फूल था। उसने उस फूल को मुझे थमाया और बोली," इस फूल को तुम जिसे दोगे वह बुढ़ापे से मुक्त हो जायेगा।" मैंने फूल पकड़ा और सोचने लगा किसे इस फूल को दूँ। सोचते-सोचते में मल्लीताल पहुंच गया। मेरे मन में संशय जगा। सनेमाहाँल के पास एक बूढ़ा बैठा था। मैंने फूल की चमत्कारी शक्ति देखनी चाही और उसे वह फूल देने लगा। लेकिन उसने वह फूल लेने से मना कर दिया। उसने कहा उसे भूख लगी है यदि देना ही है तो दस रुपये दे दीजिए, कुछ खा पी लूंगा।फूल से क्या करूंगा? कंसल बुक डिपो में एक बुढ़िया दिख रही थी। वह किताब खरीद रही थी। मैंने उसे फूल दिया और उसने वह जादुई फूल पकड़ लिया और वह जवान हो गयी। सभी लोग यह चमत्कार देखकर चकित हो रहे थे। किसी को अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था। वह बी. एसी. में हमारे साथ पढ़ने वाली लड़की थी। मैंने झट से फूल को अपने हाथ में लिया और तेजी से दुकान से बाहर निकल गया। मैं चौराहे पर रूका और वहाँ पर खड़े होकर रिक्शे वालों को देखने लगा। कुछ बूढ़े रिक्शेवाले भी थे। मैं बूढ़े रिक्शे वाले को अपने पास बुलाता और उसे फूल पकड़ता। वह झट से जवान हो जाता। जब दस बूढ़े रिक्शे वाले जवान हो चुके थे तो वह बूढ़ी परी मेरे पास आयी और फूल को वापिस मांगने लगी। बोली," इस फूल की चमत्कारिक शक्ति समाप्त हो चुकी है। मैं भविष्य में फिर तुम्हें दूसरा जादुई फूल दूंगी।" मैं उदास हो गया और बेमन से फूल उसे लौटा दिया। वह फूल को लेकर झील की ओर चली गयी।और मैं बैठा-बैठा जवान हुए रिक्शे वालों को देख, खुश हो रहा था। धीरे-धीरे रात घिरने लगी। बच्चों का एक समूह मेरे पास आया और लोककथा सुनाने का आग्रह करने लगा। मैं बचपन में सुनी कुमांऊँनी लोककथा उन्हें सुनाने लगा।
"एक बूढ़ी महिला थी। उसकी एक बेटी थी। बहुत समय बाद उसकी शादी दूर गाँव में हुई।दोनों गाँवों के बीच में घनघोर जंगल पड़ता था जिसमें शेर, भालू और लोमड़ी आदि जंगली जानवर रहते थे।जब बहुत समय हो गया तो बुढ़िया का मन बेटी के पास जाने को हुआ। ममता ऐसी शक्ति है जो असंभव को भी संभव कर देती है।जंगली जानवरों का डर उसे डिगा न पाया। उसने एक पोटली बनाई जिसमें बेटी के पसंद का सामना रखा।और निकल पड़ी बेटी से मिलने।एक हाथ में लाठी और सिर पर पोटली।रास्ते में उसे पहले लोमड़ी मिली और बोली," मैं भूखी हूँ, तुझे खाऊँगी।" इस पर बुढ़िया बोली," मैं अपनी बेटी के पास जा रही हूँ, उससे मिल कर, मोटी-ताजी होकर, आऊँगी तब खाना।अधिक मांस तुझे खाने को मिलेगा।" लोमड़ी लालच में आ गयी और बुढ़िया को उसने जाने दिया।फिर कुछ मील चलने के बाद उसे भालू मिला उससे भी बोली," मैं अपनी बेटी के पास जा रही हूँ, उससे मिल कर, मोटी-ताजी होकर, आऊँगी तब खाना।अधिक मांस तुझे खाने को मिलेगा।" भालू भी लालच में आ गया और बुढ़िया को उसने जाने दिया। चलते-चलते कुछ घंटों बाद उसे शेर मिला उसे भी वह बोली," मैं अपनी बेटी के पास जा रही हूँ, उससे मिल कर, मोटी-ताजी होकर, आऊँगी तब खाना।अधिक मांस तुझे खाने को मिलेगा।" शेर भी लालच में आ गया और बुढ़िया को उसने जाने दिया।शाम होते-होते बुढ़िया बेटी के घर पहुँच गयी। माँ को देख, बेटी खुशी से गदगद हो गयी। और बोली," जंगल में जानवरों से सुरक्षित होकर कैसे आयी।" बुढ़िया ने पूरी कहानी उसे सुनायी।धीरे-धीरे समय बीतता गया।एक माह बाद बुढ़िया को अपने घर लौटना था।उधर शेर, भालू और लोमड़ी की प्रतीक्षा चरम स्थिति में थी कि कब बुढ़िया मोटी-ताजी होकर आय और उसके मांस का आनन्द उठाया जाय।जीभ अपने स्वाद के लिये लपलपाती है, दूसरे के जीवन के प्रति निष्ठुर बनी रहती है।बेटी की चिंता दिनोंदिन बढ़ने लगी। फिर उसके दिमाग में एक युक्ति सूझी।उसने एक बड़ी तुमड़ी ली जो स्वचालित थी।ठीक माँ के विदा होने के दिन, उसने माँ को उस तुमड़ी में बैठाया और हाथों में पिसी मिर्च की थैली थमा दी।तुमड़ी में बैठने से पहले दोनों गले मिले और अश्रुपूरित आँखों से एक दूसरे को विदा किया। मन में शंका भी थी कि कहीं यह अन्तिम भेंट न हो।क्या पता फिर अगले जनम में मिलें या न मिलें? तुमड़ी चलने लगी, और चलते-चलते शेर दिखाई दिया।शेर सोच रहा था कि," बहुत दिन हो गये हैं, बुढ़िया अभी तक आयी क्यों नहीं?" तुमड़ी शेर के पास पहुँची तो शेर ने पूछा," तुमने बुढ़िया को देखा क्या?" तो तुमड़ी से आवाज आयी," चल तुमड़ी रह बाट, मैं क्या जाणूँ बुढ़िये बात?" और तुमड़ी आगे चल दी। शेर निराश होकर इधर-उधर देखता रह गया।थोड़े समय के बाद भालू मिल गया उसने भी पूछा, " तुमने बुढ़िया को देखा क्या?" तो तुमड़ी से आवाज आयी," चल तुमड़ी रह बाट, मैं क्या जाणूँ बुढ़िये बात?" और तुमड़ी आगे चल दी।भालू निराश हो बैठ गया और बुढ़िया की प्रतीक्षा करने लगा। चलते-चलते,कुछ समय बाद लोमड़ी मिली, उसने भी तुमड़ी से पूछा," " तुमने बुढ़िया को देखा क्या?" तो तुमड़ी से आवाज आयी," चल तुमड़ी रह बाट, मैं क्या जाणूँ बुढ़िये बात?" लोमड़ी चालक थी ,उसे लगा कि,"आवाज बुढ़िया की जैसी लग रही है, हो सकता है तुमड़ी में बुढ़िया हो।" जैसे ही तुमड़ी आगे बढ़ने लगी,उसने उसे रोका। और तुमड़ी को फोड़ दिया, तुमड़ी के फूटते ही बुढ़िया ने लोमड़ी की आँखों में पिसी मिर्च डाल दी। और लोमड़ी आँख मलते लुढ़क गयी। बुढ़िया माँ फिर अपने घर सुरक्षित पहुँच गयी।"ध