रेत पर लिखा
पूरा बदन बुखार से तप रहा था, मई की भयंकर गर्मी में उस दस बाई दस के कमरे में एक पुराने पलंग पर लेटी सुनयना बदन दर्द से कुलबुला रही थी, पुराने जमाने का छत से लगा पंखा भी वैसे ही खट खट करके ऐसे चल रहा था जैसे कि उसके भी बदन में दर्द हो रहा हो।
रोशन तभी डॉक्टर को लेकर कमरे में दाखिल हुआ और कहने लगा, “डॉक्टर साहब! सुनयना को ऐसी दवा दो कि ये शाम तक बिलकुल ठीक हो जाए नहीं तो मेरा हजारों रुपए का नुकसान हो जाएगा।”
डॉक्टर ने सुनयना का ठीक से मुआयना किया और पर्चे पर दवा लिख दी। रोशन दौड़ कर स्टोर से दवा ले आया और डॉक्टर के कहे अनुसार सुनयना को पहले कुछ खिला कर दवा दे दी।
थोड़ी देर में दवा असर करने लगी और सुनयना को नींद आ गयी। चार बजे के करीब रोशन फिर कमरे में आया और सुनयना को उठाकर पहले कुछ खाने को दिया और उसके बाद दवा की दूसरी खुराक दे दी।
अब सुनयना थोड़ा अच्छा महसूस कर रही थी, तभी उसने रोशन से पूछ लिया, "काका! आप कौन से हजारों रुपए के नुकसान की बात कर रहे थे डॉक्टर साहब से?"
रोशन बोला, "सुनयना बेटा! आज एक अमीर लड़का बड़ी सी मोटर में आया था, उसने सभी लड़कियों में से बस तुझे ही चुना है, पूरी रात के लिए दस हजार देगा, दो हजार तो दे भी गया है, बस तू जल्दी से ठीक होकर सात बजे तक नहा धोकर तैयार हो जा।"
"लेकिन काका, जब आपको पता था कि मुझे तेज बुखार है फिर आपने पैसे क्यों पकड़े, उसको मना कर देते, मेरा मन तो आज बिलकुल भी नहीं है, आप आज के लिए उसको मना कर दो।" सुनयना ने आग्रहपूर्वक कहा तो रोशन का चेहरा क्रोध में लाल हो गया और सुनयना को कड़े शब्दों में कहा, "सुनयना! तुझे जाना ही पड़ेगा, ऐसे नहीं जाएगी तो जबर्दस्ती जाएगी और मैं नहीं चाहता कि शेरु और कालू तेरे शरीर पर अपनी बेल्ट के निशान बनाए।"
रोशन कहने लगा, "सुनयना तुझे तो पता भी नहीं जब तुझे छोटी सी को वो कमीना आदिल पार्क में से उठाकर लाया था और सिर्फ पाँच सौ रुपए में मुझे बेच कर चला गया चला गया था। आदिल सैंकड़ों लड़कियों को उठाकर मुझे और मेरे जैसे लोगों को बेच चुका है। तब से मैं तुझे यही सोच कर पाल रहा हूँ कि बड़ी होकर मेरे लिए काम करेगी, मेरे कोठे पर आने वाले ग्राहकों को खुश किया करेगी, अब तक तो तूने खाया ही खाया है, अब जब कमाने का मौका आया तो नखरे करती है? चल जल्दी से तैयार हो जा, वो अमीरजादा आता ही होगा।"
सुनयना अपने ग्राहकों से प्यार बहुत करती थी, कभी कभी तो ग्राहक इतना भ्रमित हो जाता था कि वह सोचने लगता शायद सुनयना तेरे लिए ही बनी है, लेकिन सुनयना कहती, “साहब यह तो मेरा पेशा है, मैं प्यार नहीं दूँगी तो आप दोबारा कैसे आएंगे, जबकि मैं भी जानती हूँ और आप भी जानते हैं कि मेरा प्यार ठीक वैसा ही है जैसे रेत पर लिखा होता है, आज आपके लिए लिखा है जो बाद में आने वाली लहर के साथ मिट जाएगा फिर कल किसी और के लिए लिखा जाएगा।”
एक दिन एक सेठ अपनी रात गुजारने सुनयना के कोठे पर आ गया, सेठ को हुबली जाना था और रेल गाड़ी अगले दिन दोपहर में थी। स्टेशन के नजदीक कई कोठे थे, सेठ ने सोचा कि क्यों ना रात यहीं गुजारी जाए। रात में सुनयना के प्यार से सेठ इतना प्रभावित हो गया कि कहने लगा, "सुनयना! तुम यह धंधा छोड़ क्यों नहीं देती, मैं दूंगा तुम्हें जीवन भर तुम्हारा खर्चा, बस जब मैं यहाँ आया करूँ तब मेरी सेवा कर दिया करना और इतना ही प्यार मुझे देना।"
सुनयना बोली, "ठीक है सेठ जी, मैं छोड़ देती हूँ यह धंधा आप मुझे अपने साथ ले चलो, मैं हमेशा ही आपके साथ आपकी बन कर रहूँगी।"
"नहीं, नहीं सुनयना, मैं तुम्हें अपने साथ कैसे ले जा सकता हूँ, वहाँ मेरी बीवी, बच्चे हैं, मेरा परिवार है, एक समाज है और समाज में मेरी प्रतिष्ठा है, मैं तुम्हें वहाँ कैसे ले जा सकता हूँ।" सेठ जी ने सुनयना को समझाना चाहा।
सुनयना बोली, "सेठ जी, मैं जानती हूँ, कोई भी सम्मानित व्यक्ति हमारे जैसी औरतों से संबंध बस उतना ही रखना चाहता है जितना कि समुद्र किनारे रेत पर कोई प्यार भरे ऐसे शब्द लिख दे जिसे पढ़ कर हमारा मन प्रसन्न हो जाए लेकिन अगले ही पल समुद्र की लहर आकर रेत पर लिखे प्यार को मिटा कर चली जाए। फिर कोई और आएगा और उसी रेत पर अपना प्यार लिखेगा और लहरों में मिटने के लिए छोड़ जाएगा।"
सुनयना की जवानी तो धंधा करते हुए कट गयी लेकिन जब जवानी ढलने लगी और ग्राहक भी उसको नापसंद करने लगे तब सुनयना को चिंता रहने लगी।
उस रात अंधेरे में उस बड़ी सी कार वाले के पास रोशन सुनयना को लेकर जब गया और उसने अपनी गाड़ी की हैड लाइट में सुनयना को देखकर बड़े ज़ोर से आक थू किया और बड़ी तेजी से कार को भगा कर ले गया। उसकी यह बात सुनयना को कलेजे तक चीर गयी, उस दिन सुनयना को बड़ी बेइज्जती महसूस हुई क्योंकि कभी किसी ग्राहक ने सुनयना को नापसंद नहीं किया था, आज तो हद ही हो गयी।
कमरे में आकर सुनयना ने अपने को पूरी तरह निहारा और फैसला किया कि अब वह इस काम को छोड़ देगी, सुनयना ने रोशन काका को अपना निर्णय सुना दिया। सुनयना ने अपने पलंग के नीचे एक गड्ढा बना रखा था जिसमे वह कुछ पैसे जमा करती रहती थी। उस रात उसने अपने कमरे का दरवाजा बंद करके सारे पैसे बाहर निकाल कर गिने, बार बार गिन कर देखा तो पता चला कि वह 36 लाख रुपए जोड़ चुकी है। इतना धन एक साथ देख कर उसके हाथ पाँव फूल गए, उसको अब लगने लगा था कि अगर किसी को भी इतने पैसे का पता चलेगा तो वह मुझे जिंदा नहीं छोड़ेगा व पूरे पैसे भी लूट कर ले जाएगा।
सुनयना सीबीआई का एक इंस्पेक्टर सुबोध कान्त को जानती थी जिसके कहने पर सुनयना कई बार लोगों की गुप्त सूचनाएँ निकाल कर दिया करती थी, और सुबोध कान्त को अपना भाई मानती थी उसकी सारी बात बता कर सलाह ली और सुबोध कान्त की सहायता से सुनयना ने सुदूर क्षेत्र में जाकर एक स्कूल बनाया और बच्चों को शिक्षित करने में अपना जीवन बिताया।
एक दिन सुबोध कान्त सुनयना के स्कूल में गए और बच्चों के प्रति उसका प्यार देखकर कहने लगे, "अब तो सुनयना तूने पत्थर पर अपना नाम लिख दिया है, इसे तो कोई लहर मिटा नहीं सकेगी।"