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बेटी का जन्मदिन

बेटी का जन्मदिन

महेश के घर में आज बड़ी चहल पहल थी, पूरा घर दुल्हन की तरह सजा था, दूधिया रोशनी में नहाया घर किसी ताज महल से कम नहीं लग रहा था, एक तरफ मंडप सजा था और दूसरी तरफ खाने की मेजें सजी थी, आज महेश की इकलौती बेटी सान्या का जन्मदिन जो था।

प्रतिवर्ष महेश सान्या का जन्मदिन बड़ी धूम धाम से मनाता, सभी गरीबों को सम्मानपूर्वक भोजन कराता, जरूरतमंदों को वस्त्र भेंट करता एवं एक जोड़े की शादी करवाता, स्वयं ही कन्यादान करता। शादी के लिए महेश उसी जोड़े को चुनता जो आपस में प्रेम करते और समाज उनके प्रेम को मान्यता देने से मना कर देता।

बेटी के जन्मदिन पर बेटी की सारी बातें उसके स्मृतिपटल पर एक एक कर आने लगी, “बचपन में सान्या महेश के कंधे पर बैठ कर आम के बाग में जाया करती थी और कंधे से ही उचक उचक कर पेड़ पर नीचे की तरफ लटकते हुए आम तोड़ती। आम तोड़ कर महेश को पकड़ा देती, अगर महेश आगे बढ्ने लगता तो डांट देती, डांटते हुए महेश से कहती जब तक मैं न कहूँ आगे नहीं बढ़ना और महेश जवाब में कहता अच्छा ठीक है मेरी माँ आगे नहीं बढ़ूँगा, महेश सारे आम अपनी चादर की झोली बनाकर उसमे इकट्ठे करता रहता।

उस दिन वह कंधे पर खड़े होकर कुछ ज्यादा ही उचक गयी थी, उसके ठीक ऊपर एक पके हुए सिंदूरी आम तक सान्या का हाथ नहीं पहुँच रहा था अतः सान्या ने थोड़ा और उचक कर आम तो तोड़ लिया लेकिन कंधे से फिसल गयी महेश ने तुरंत ही अपने दोनों हाथ बढ़ाकर बेटी को अपनी बाहों में लपक लिया जमीन पर नहीं गिरने दिया, लेकिन एक झटके से ही महेश पुरानी यादों से निकल कर धरातल पर आ गया।”

सान्या की बेटी के हाथ में चाकू था और सामने रखा था एक बहुत बड़ा केक, चारों तरफ लोगों की भीड़ थी लेकिन समिति अपने नाना नानी की प्रतीक्षा कर रही थी। जैसे ही नाना नानी वहाँ पहुंचे, चाकू पर नाना नानी का भी हाथ रखवा कर अपनी माँ सान्या के जन्मदिन का केक काट दिया, पूरा हाल तालियों से गूंज गया। केक काटने के बाद ही बाकी की सभी रस्में पूरी होनी थी जिनका सभी लोग बड़ी बेसाब्री से इंतज़ार कर रहे थे। महेश को अभी भी याद है, ससुराल जाने से पहले उसने सान्या का जन्मदिन कितनी धूम धाम से मनाया था और फिर महेश के सामने वही दृश्य घूमने लगे।

“बचपन से ही सान्या का जन्मदिन बड़ी धूम धाम से मनाया जाता था, उस वर्ष तो सान्या ने अपनी पढ़ाई पूरी की थी, महेश को उसकी शादी की फिक्र थी।

महेश की निगाह में सान्या के लिए एक लड़का नोएडा का था, जो अच्छे पैसे वाले घर का इकलौता लड़का था, उनका गाँव नोएडा के बीच में आ गया था तो मुआवजे का पैसा ही पचास करोड़ मिल गया था, बाकी किराए की आमदनी भी लाखों में थी बस एक ही कमी थी कि लड़का दसवीं फेल था। महेश तो अपने मन में बेटी के लिए सपने सँजोये हुए था और सोच रहा था कि कल आराम से बैठ कर बात करूंगा आज तो बेटी का जन्मदिन धूम धाम से मनाऊँ। केक काटने का समय हुआ तो सान्या चाकू हाथ में लेकर बड़े से केक के सामने खड़ी हो गयी, महेश और उसकी पत्नी सान्या के आजू बाजू खड़े हो गए। बेटी ने मम्मी पापा दोनों का हाथ चाकू पर रखवा कर केक काटा तो पूरा हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा और हेप्पी बर्थड़े टू यू की आवाज के साथ मधुर संगीत बज उठा।

मेहमानों के बीच सान्या का एक विशेष मेहमान सोमेन्द्र, सान्या के बिलकुल पीछे खड़ा था। सान्या मम्मी पापा को केक खिलाकर एक केक का टुकड़ा हाथ में लिए पीछे घूमी और सोमेन्द्र को केक का आधा टुकड़ा खिलाया, बचा हुआ आधा हिस्सा सोमेन्द्र ने सान्या को खिलाया।

सान्या और सोमेन्द्र के बीच इतनी घनिष्ठता देख महेश सोच में पड़ गया और उसने अगले ही दिन आनन फानन में सान्या का रिश्ता नोएडा में पक्का कर दिया। सान्या और उसकी माँ ने महेश को काफी समझाने की कोशिश की लेकिन वह टस से मस नहीं हुआ और उसने पढ़ी लिखी सान्या की शादी एक दसवीं फेल लड़के और अनपढ़ परिवार में कर दी, महेश को बस उनके पैसे की चकाचौंध ने अंधा कर दिया था।

महेश ने बड़ी धूम धाम से बेटी की शादी की और खुशी खुशी उसको विदा किया लेकिन वह नहीं जानता था कि उसकी बेटी की खुशिओं को ग्रहण लग चुका है।

सुंदर, सुशील पढ़ी लिखी होने के बावजूद सान्या पूरा दिन घर में नौकरानी की तरह काम करती, घर के मर्द तो कुछ करते नहीं थे, उनका काम तो सिर्फ अय्याशी करना और शराब पीकर घर की महिलाओं से मार पीट करना था, इसमे ही वे अपनी शान समझते थे।

सान्या को प्रतिदिन कम दहेज लाने के लिए प्रताड़ित किया जाता। सास ससुर कहते कि इसके बाप ने हमारे साथ धोखा किया है, गाँव में हम सबसे अमीर हैं, हमारा एक ही बेटा है और उसको भी गाँव में सबसे कम दहेज मिला, तेरे बाप ने हमारी इज्जत का बिलकुल भी ख्याल नहीं किया, पूरी बिरादरी में हमारी नाक कटवा दी। कई बार सान्या को भूखा ही सोना पड़ता और पति द्वारा शराब पीकर पिटाई की जाती। सान्या यह सब महेश को नहीं बताना चाहती थी क्योंकि महेश को पता चलता तो वह दुखी होते।

इस बीच सान्या गर्भवती हो गयी और उसने एक सुंदर सी लड़की को जन्म दिया। सान्या ने उसका नाम समिति रखा परंतु घर में कोई भी बेटी के होने से खुश नहीं था। अब ससुराल में सान्या की परेशानी और बढ़ गयी, उसको और ज्यादा यातनाएं दी जाने लगी।

समिति अभी कुछ ही दिन की थी कि सान्या की दादी ने अपनी नवजात पोती को मारने की कोशिश की जिसका सान्या ने भरपूर विरोध किया, परिणाम स्वरूप सब ने पकड़ कर सान्या को बांध कर छत से उल्टा लटका दिया।

भाग्यवश उसी दिन उसी समय महेश अपनी नातिन का छूछक लेकर आ गया तो दोनों माँ बेटी की जान बच गयी। छूछक एक तरह का रिवाज है जिसमे बच्चे के नाना नानी सब घर वालों के लिए कपड़े, मिठाई और खाने का अन्य सामान लाते हैं।

लेकिन बकरे की माँ कब तक खैर मनाती और एक दिन उन दहेज के दानवों ने सान्या की जान ले ली।

आज महेश को अपने फैसले पर बहुत पछतावा हो रहा था, वो समिति को अपने साथ ले आया।

गर्मी की भरी दोपहर, सब सुनसान, सान्या का पति और सास-ससुर वातानुकूलित चलाकर अपने अपने कमरे में गहरी नींद में सो रहे थे कि तभी उनके घर में जोरदार धमाका हुआ, पूरे घर में भयंकर आग लग गयी और उन तीनों के परखच्चे उड़ गए। गैस लीक होने व सिलिंडर फटने से हादसा हुआ महेश पर तो किसी को दूर दूर तक शक नहीं था लेकिन उस दिन महेश ने दहेज के दानवों से अपनी बेटी की मौत का बदला ले लिया था।

उस दिन भी सान्या का जन्मदिन था और यह एक मौन श्रद्धांजलि थी महेश की तरफ से बेटी को।

पूरे परिवार के उस हादसे में गुजर जाने के बाद सारी संपत्ति समिति के नाम पर आ गयी एवं महेश को उसकी देख रेख के लिए नियुक्त कर दिया गया। महेश की भी सारी जमीन जायदाद समिति की ही थी उसका भी कोई और उत्तरधिकारी नहीं था।

इस बीच सोमेन्द्र को सान्या के बारे में पता चला तो वह महेश से मिलने चला आया और महेश की मनःस्थिति देख कर उन्हे पश्चाताप ऐसे करने की सलाह दी। पश्चाताप करने के लिए महेश प्रत्येक वर्ष एक ऐसे जोड़े की शादी अपनी बेटी के जन्मदिन पर करवाता था जिनका समाज विरोध करता था। उस नवविवाहित जोड़े की गृहस्थी की जरूरत का सब सामान उपलब्ध कराता और गरीबों को भोजन कराता, वस्त्र आदि दान करता, इस सब में सोमेन्द्र महेश का पूरा सहयोग करता था।”

महेश विचारों में खोया ही था कि पंडितजी ने आवाज लगाई, “महेश जी अब आप कन्यादान करने के लिए आगे आइए।”

उस दिन उन दोनों प्रेम करने वालों को सदा सदा के लिए विवाह-बंधन में बांध कर महेश को अच्छा लग रहा था यही उसकी अपनी बेटी को श्रद्धांजली थी।

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