मार्च २०१८ की कविताएं
१.
बर्षों पहले
तुम्हारे अन्दर अनेक पगडण्डियां थीं
जहाँ मैं आया जाया करता था,
नदी का किनारा था
जिसके साथ साथ चलता था,
हिमालयनुमा पहाड़ था
जिसे चढ़ा करता था,
एक सुन्दर दृष्टि थी
जिसे देखा करता था,
अनेक पहेलियां थीं
जिन्हें सुलझाया करता था,
कपकपाती ठंड थी
जिसे गरमाहट देता था,
ऊब भरी बेरोजगारी थी
जिसे काम देता था,
अपूर्ण और असहज आकांक्षायें थीं
जिन्हें पूर्ण और सहज करता था,
एक घर थात
जहाँ उठा- बैठा करता था,
एक बचपन था
जिससे खेला करता था।
बर्षों पहले
मेरे अन्दर अनेक झाड़ियां थीं
जिन्हें तुम काटा करते थे।
***
२.
चलो, फिर विद्यालय चलें
कुछ तुम कहोगे, कुछ हम कहेंगे
कुछ ठंड अपने आप कहेगी।
चलो, फिर उन रास्तों पर चलें
कुछ तुम चलोगे, कुछ हम चलेंगे
कुछ बातों बातों में चल लेंगे।
चलो, फिर कक्षाओं में चलें
कुछ तुम पढ़ोगे, कुछ हम पढ़ेंगे
कुछ कक्षायें अपने आप कह देंगी।
चलो, फिर खेतों में चलें
कुछ किसान कहेगा, कुछ फसल कहेगी
कुछ मौसम अपने आप कहेगा।
चलो, फिर जोर से हँस लें
कुछ तुम हँसोगे, कुछ हम हँसेंगे
कुछ जिन्दगी अपने आप हँस लेगी।
चलो, आज देश के लिये चलें
कुछ तुम चलो, कुछ हम चलें
कुछ देश अपने आप चल लेगा।
***
३.
कुछ प्यार की जिद मुझमें पड़ी थी
कुछ प्यार की जिद तुझमें खड़ी थी
मोड़ टूटे जो मिले थे
कहानी पूरी कह न सके थे।
फिर इसी जहां में कोई मिला था
जो घर से देश तक ऊँचे चला था
उसने राह इतनी शुभ्र की थी
कि दादा-दादी की कहानी लगी थी।
जब ठंड ने दिशा बदली थी
पेड़ों पर बसंत दूर तक दिखा था,
कुछ प्यार के हठ में उलझा था
कुछ ज्ञान के हठ में भूला था।
***
४.
मेरी आवाज उतनी ही पुरानी है
जितना पुराना मेरा प्यार है,
मेरे शब्द उतने ही पुराने हैं
जितना पुराना मेरा देश है।
मेरे कदम उतने ही आगे हैं
जितने आगे तुम हो,
मेरे हाथ उतने ही पास हैं
जितने नजदीक तुम हो।
मेरे सपने वहीं तक हैं
जहाँ तक उड़ा जा सकता है,
मेरा संसार वहीं तक है
जहाँ से लौटा जा सकता है।
***
५.
ओ जिन्दगी
अभी अभी तो प्यार किया था
घुटने घुटने तक,
अभी अभी तो पढ़ाई लिखाई की थी
अभी अभी परीक्षा दी थी
अभी अभी तो उठा था
अभी अभी सुबह का सूरज निकला था।
ओ जिन्दगी
सारे परिणाम रोक दो
अगले साल तक, दस बीस बर्ष तक,
अगली शताब्दी तक, अगली भेंट तक।
ओ जिन्दगी इस बीच
सारे रजिस्टर बदल दो
देवदूतों को पढ़ना लिखना सीखा दो
अच्छे लोगों के हस्ताक्षर ले लो।
***
६.
लोग योंही मर जाते हैं
लड़ते-झगड़ते सो जाते हैं
लोकतंत्र में मतदान करते करते मर जाते हैं,
सरकारें कम उम्र में मर जाती हैं
प्यार देखते देखते मर जाता है
रिश्ते धीरे धीरे दिवंगत हो जाते हैं
तो मरना और मरने के बाद मरना शाश्वत सच है।
दुर्घटनाओं में मरे लोगों की गिनती
बाढ़ सूखे में दिवंगत लोगों की गिनती
अस्पतालों में मरे लोगों की गिनती
साधारण रूप से मरे लोगों की गिनती
असाधारण रूप से मरे लोगों की गिनती
मरे लोगों की गिनती हर बर्ष, हर महिने या हर दिन होती है
तो मरना भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना चलना।
***
७.
यारो,इस आसमान में बहुत कम दिखता है,
मुझे दृष्टि दोष है या आसमान ही कोरा है।
कुछ नजर ऊँची करूँ तो प्यार के गुम्बद नजर आते हैं,
अगर नजर झुका लूँ तो अपनी ही जमीन दिखती है।
जब इधर उधर देखो तो आसमान नजर नहीं आता है,
जिधर देखो आदमी के कारनामे नजर आते हैं।
कभी रूक नहीं सका किसी भी मंजिल पर
ये आकाश मुझे विवश करता है।
केवल धरती में ही नहीं बसता प्यार,
आसमान में भी वह रहता आया है।
बहती रही जिन्दगी कि दूबारा न मिले,
यादों में दबती रही कि दूबारा दिखती रहे।
पुराने रास्ते टूटे-फूटे मिलते हैं,
पर चलते हैं तो खुशबू वहाँ मिलती है।
किसे कहें कि जिन्दगी आकाश हो चुकी है,
हाथ बढ़ायें तो छूने में नहीं आती है।
***
८.
ओ आसमां कुछ मेरे लिए भी खुला कर,
जिन आँखों को पढ़ा वहाँ भी दिखा कर।
तुमसे बात कर थोड़ा हल्का हो जाता हूँ
जैसे मंदिर में आकर थोड़ा खुश हो जाता हूँ।
यह प्यार है या प्यार का खुमार है
या तुम तक पहुंचने का परमानन्द है।
प्यार के बारे में अक्सर झूठ बोलता हूँ,
उसे करता भी हूँ, नहीं,नहीं कहता भी हूँ।
कितना काटोगे धरती को, आज उत्तर नहीं दे पाओगे,
पर जब कल धरती काटेगी तो सांस नहीं ले पाओगे।
***
९.
कहाँ मिली पूजा तुमको
कहाँ मिला भारतवर्ष,
कहाँ मिली हिमालय सी ठंडक
कहाँ मिला भारत सा हृदय?
कुछ पीड़ा राम छोड़ गये
कुछ पीड़ा कृष्ण मोड़ गये
बुद्ध ने दुख को परखा
महावीर ने अहिंसा को देखा।
***
१०.
मुझे मालूम है बहुत लोग मुझसे अच्छा लिखते हैं
लेकिन फिर भी मैं लिखता हूँ।
मुझे मालूम है बहुत लोग मुझसे अच्छा बोलते हैं
लेकिन फिर भी मैं बोलता हूँ।
मुझे मालूम है बहुत लोग मुझसे अच्छा सुनते हैं
लेकिन फिर भी मैं सुनता हूँ।
मुझे मालूम है बहुत लोग मुझसे अच्छा देखते हैं
लेकिन फिर भी मैं देखता हूँ।
क्योंकि मेरा जैसा कोई और नहीं
ये भी मुझे मालूम है।
***
११.
बहुत लोग पूछते हैं
कि तेरा गाँव किधर है?
शहर में आकर मैं कैसे बताऊँ कि
वह वह मेरे मन में है।
बहुत लोग पूछते हैं कि
हमारे देश के दो नाम क्यों हैं,
उनसे कैसे कहूँ कि
जमाना हो गया उसे भारत कहे हुए।
बहुत लोग पूछते हैं
कि कभी प्यार किया क्या?
उनसे कैसे कहूँ कि
दुखती रग पर हाथ मत रखा करो।
***
१२.
लगता है यादों को बनाये रखने के लिये हमारा गाँव नहीं बदला है,
वही खेत, वही धरती, वही आकाश मन से टपकते हैं।
बस, एक सर्पाकार सड़क वहाँ नयी लगती है,
पर वे वर्गाकार रिश्ते अब नहीं दिखते हैं।
यह कम बात नहीं कि हमारे गाँव से हिमालय दिखता है,
यह भी कम बात नहीं कि हमारे दिल से भारत रहता है।
शब्दों की सीढ़ियां जो बनायी समय पर बहुत काम आयी,
नहीं तो हम यहाँ नहीं होते,तुम वहाँ नहीं होते।
बर्षों पहले हुआ प्यार जुबान पर जब आता है,
तो जीभर सुस्ताने को मन होता है।
ओ जिन्दगी, जहाँ-तहाँ न फड़फड़ा,
तुझे अभी बुद्ध बनना है।
***
१३.
मन तो मैंने छोड़ दिया है
ये धुन फिर भी उसकी बजती है,
जिस उम्र को पीछे छोड़ दिया है
उसका लय फिर भी आता है,
जो गांव पहले बिछुड़ गया है
उसकी याद बार-बार खटकती है,
जिस धुन में मैंने प्यार किया है
वह धुन सहसा बजती है,
जो गीत सुनकर निकल गया है
उसकी गूंज फिर-फिर आती है।
***
१४.
इस साल मैं फिर तुम्हारे साथ रहूँगा
पुराने नये दृश्यों के साथ
एक साथ बैठ
राजा रानी की कहानियों से निकल
अपना सुदृढ़ अस्तित्व बना लेगें।
अब उन अनुभूतियों से लबालब नहीं
आशंकाओं से पराजित नहीं
बिना लाभ हानि की सोच लिए
नि:शब्द बैठ सकते हैं।
अब केवल जीना ही तो है ईश्वर के लिए,
मरना भी है ईश्वर के लिए
साथ रहना है ईश्वर के लिए।
अब जब बाँहें मासल नहीं
हड्डियां चुभ सकती हैं
अत: बांहें नहीं फैला सकते
आलिंगनबद्ध होने के लिए
लेकिन मुस्करा तो सकते हैं
एक ठोस वरिष्ठता के साथ।
***
१५.
चलना ही चलना है
सुनो, उम्र एक धोखा है।
नरम धूप ने कहा है
"मैं आज तुम्हारे लिये आयी हूँ।"
सुरसुरी हवा ने बोला है
"मैं आज तुम्हारे लिये बह रही हूँ।"
साफ आकाश ने बताया है
"मैं आज तुम्हारे लिये चमक रहा हूँ।"
हरे भरे जंगल ने गाया है
"मैं आज तुम्हारे लिये खिला हूँ।"
तो चलना ही चलना है
उम्र तो एक धोखा है।
***
१६.
कैसे कहूँ कि उल्लुओं की बस्ती होती है,
जहाँ गंदगी का अंबार लगा रहता है।
इस शहर के गंदा रहने के बहुत कारण हैं,
एक तुम हो, एक मैं हूँ, एक जनता है जो जहाँ-तहाँ थूक मारती है।
बातों ही बातों में अच्छी बातें हो जाती हैं,
जैसे मौसमों के बदलने बदलते बसंत ऋतु आ जाती है।
बहुत समय हो गया उससे प्यार चुराते हुये,
कैसे कहूँ प्यार का नशा गहरा नशा होता है।
हर कोई अपना मन धो धोकर गंगा कर रहा है,
फिर भीड़ बनकर गंदला हो जा रहा है।
***
१७.
मैं तेरी बातों को सजाता रहा हूँ,
जितना जरूरी है सींचता रहा हूँ।
तेरी बातों में अर्थ खोजता रहा हूँ,
जैसे गीता के श्लोक गुनगुनाता रहा हूँ।
बड़ी सरल बातें होती हैं प्यार में,
छोटे-बड़े एहसास बटोरने होते हैं प्यार में।
दुनिया उस जगह पर नहीं, जहाँ होनी चाहिए,
यह वहाँ है, जहाँ बचपन नहीं, बुढ़ापा अधिक है।
***
१९.
एक फूल है
कभी मेरे हाथ में
कभी उसके हाथ में
मैंने फूल से पूछा
कैसा लग रहा है
फूल बोला कविता जैसा
मैंने कहा तुम्हें कैसे पता मैं कविता लिखता हूँ
फूल बोला कविता तुम नहीं मैं करता हूँ।
***
२०.
शेर सबका राजा था
सुन्दर वन में वह रहता था,
बच्चे शेर से मिलने जाते
ऐसा नाना कहते थे।
तड़क भड़क में वह रहता था
राज सिंहासन उसका था,
जब जंगल में आग लगी
वह जंगल में गरजा था।
उस जंगल के सभी जानवर
उसे आज्ञा लेते थे,
बहुत समय तक राज किया वह
ऐसा नाना कहते थे।
***
२१.
मुझे प्यार की बर्षगाँठ याद नहीं
लेकिन उसमें नदी सा बहाव था
हवा सी सनसनाहट थी
पहाड़ सी अडिगता दिखती थी,
बादलों सी घुमड़ता थी
पगडण्डियों से मोड़ लगे थे
वृक्ष सी वृद्धि होती थी
झील की लहरों सा उलझाव था,
पहाड़ी घराट की भाँति नाच था
बर्फ की तरह ठंडक थी
अमिट मुस्कान की सुगबुगाहट थी
बर्षों - बर्षो के तप और तीर्थ थे।
***
२२.
इतनी कहानियां कहाँ से आती हैं, दोस्त,
मन भरता भी नहीं, खाली भी नहीं होता।
इतनी प्यार कहाँ से आता है, बन्धु,
इसका कहीं आरम्भ भी नहीं, अन्त भी नहीं ।
प्यार जब जुनून नहीं, जीवन बन जाता है,
तो वह राधा-कृष्ण सा सामने होता है।
***
२३.
प्यार का सावन कब बूँदा बाँदी कर गया
पता ही नहीं चला
सावन में ही मेरा जन्म हुआ था
तब धरती में नमी थी
प्यार भरी नमी,
पौधे उग रहे थे
हरियाली ही हरियाली थी
लगा,हम प्यार करते हैं
क्योंकि प्यार उम्रभर का पहरेदार है।
***
२४.
जो प्यास लगी थी
वही मुझे घूमा रही थी
या कहूँ, सुख दुख वही बता रही थी।
फिर आकाश को निचोड़ा
सब नक्षत्रों के संग
और आँखों की तंग गलियों को
फैलाने लगा इन्द्रधनुष सा।
जब उड़कर देखा धरती को
सीधी रेखा में ताना उसको,
असंख्य परिवर्तन थे
जो सुख-दुख बता रहे थे।
जो प्यास लगी थी
वही सच थी जो मुझे उड़ा रही थी।
***
२५.
प्रेम पत्र प्रेषित किया
पता लिखना भूल गया तो
डाक विभाग ने उसे लौटा दिया,
बहुमूल्य समझ कर।
उस पत्र में लिखा था-
प्रिय,सपना जो मल्लीताल में देखा था
तल्लीताल आने तक टूट गया था,
क्योंकि वह मछली की तरह तैर नहीं पाया
हवा की तरह बह नहीं पाया
बादल की भाँति उड़ नहीं पाया
पानी की तरह उछल नहीं पाया।
पत्र को फिर चिपकाया
बार-बार पता जाँचा
फिर उसे भेजा,
इस बार चूहे ने
उसे कुतर दिया।
चूहे को पता नहीं था
कि प्रेम क्या होता है
कुतरना उसका स्वभाव था
अतः उसने कुतर दिया।
बर्षों बाद लगा
जो पक्षियों की तरह उड़ रहा है
वृक्षों में हर भरा है
आकाश में टिमटिमा रहा है
किसी मुस्कान में बुदबुदा रहा है
विद्यालयों में पढ़-लिख रहा है
रास्तों में आ-जा रहा है
झील के किनारे उठ-बैठ रहा है
पहाड़ियों को लांघ रहा है
जवान और किसान बन रहा है
मुझे धीरे-धीरे छू रहा है
मेरा ही प्यार है।
***
२६.
मैंने, तुम्हें अन्दर तक देखा
यह लगभग चालीस साल पहले की बात होगी,
तब मेरे अन्दर विकास था
उड़ते बैठते विचार थे,
चलने के लिये पगडण्डियां थीं
जंगल की छुटपुट शान्ति थी
धूप की जीवित लालसा थी
सुन्दरता के लिये अभेद्य दृष्टि थी
आकाश को देखने की चाह थी
धरती से जुड़ाव था
ज्ञान का अजस्र बहाव था
तब मैंने तुमसे कुछ कहा नहीं था
बस, अनुभव किया था सच को
जो तितर- वितर था इधर-उधर।
***