बेचारी नैतिकता... Girish Pankaj द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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बेचारी नैतिकता...

बेचारी नैतिकता...
बेचारी नैतिकता शर्मसार हुई जा रही थी. लाज-शर्म के मारे जल-जल (उर्फ़ पानी-पानी) हो रही थी.

उसकी हालत उस रधिया की तरह नज़र आ रही थी, जो कभी गुंडों के बीच फंस कर अंततः परलोक सिधार गई थी. नैतिकता के दुःख का कारण यह था कि इन दिनोंवह उन नेताओं की ज़ुबानों पर थी. जो घोषित रूप से अनैतिक किस्म के नेता के रूप में चर्चित हो चुके थे.. ये नेता अक्सर एक-दूसरेपर आरोप लगाते और एक ही बात बात कहते कि 'फलाने को नैतिकता का कुछ ध्यान नहीं।'' यह सुन कर नैतिकता को तकलीफहोती मगर वो करे भी तो क्या करे . बेचारी एक शब्द भर है. वह दुखी इसलिए थी कि वह इन दिनों नैतिक लोगों से दूर है औरअनैतिक लोगों का शिकार हो रही हैं.

उस दिन नैतिकता गांधी जी की मूर्ति के नीचे बैठ कर रोते हुए मिल गई . जब-जब वह दुखी होती है, इसी मूर्ति के नीचे बैठ करअपने टसुये बहाती है.
मैंने हमेशा की तरह पास पहुँच कर पूछा, ''माते, इस बार रोने का कारण क्या है ?''

वह बोली, ''क्या करूँ, फिर ये नेता मेरा इस्तेमाल कर रहे हैं. जो जितना बड़ा अनैतिक, वो ससुरा उतना बड़ा नैतिक बना फिर रहा है .देखो, आजकल के नेताओ के बयान, क्या अखबार और क्या टीवी चैनल, हर जगह एक-दूसरे को गरिया रहे हैं और कहते हैं कि सबनेनैतिकता को ताक पर रख दिया है. क अनैतिक दूसरे की और उंगली उठा कर कहता है- ''तू अनैतिक.....तू अनैतिक'. खीझ भरी हंसीभी निकलती है. कल तक एक बूढ़ा नेता एक महिला के साथ रासलीला रचा रहा था. खूब बदनाम हुआ और डंके की चोट पर बोला कि ''मैं नैतिक हूँ क्योंकि हम आपस में सहमति के साथ रह रहे हैं''. बताओ भला, ये कौन-सी नैतिकता है? बुढ़ापे में इश्क लड़ा कर तुम नयी पीढ़ी को कौन-सी नैतिकता पढ़ा रहे हो? आज देखो, वही श्रीमान फिर नैतिकता की बाते कर रहे हैं। ऐसी एक नहीं, अनेकआत्माऐं राजनीति में पसरी हुई है. एक बूढ़े नेता के पैर कब्र में लटके हुए थे, उसने भी ब्याह रचाया है।

यह देख मुझे पहले हँसी आई, फिर रोना आया कि ये क्या तमाशा चल रहा है. सब देख रहे हैं कि अगला घोर अनैतिक कर्म में लिप्त है मगर ये लोग नैतिकता की बात कर लेते हैं और रत्ती भर नहीं शरमाते । हद है.''
बेचारी नैतिकता…

भोली नैतिकता…

उसके विलाप पर तरस खाता मैं आगे बढ़ गया.