ठीक तो हैं Jahnavi Suman द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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ठीक तो हैं

ठीक तो हैै?

सुमन शर्मा

jahnavi-suman7@gmail-com



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ठीक तो हैै?

‘अघ्यापक—अभिभवाक दिवस' पर एक छात्र के पिता हिन्दी की अध्यापिका से बहुत नाराज़ दिखाई दे रहे थे।

दोनो ओर से शब्दों की बोछार हो रही थी। कई अभिभावक वहाँ खड़े हुए तमाशा देख रहे थे। मैं भी उस भीड़ में जाकर शामिल हो गई।

छात्र के पिता, अध्यापिका से कह रहे थे ‘‘आप ही ने हमारे बेटे को ये समझाया था, कि 'हिन्दी भाषा' को जैसे बोला जाता ह,ै वैसे ही लिखा जाता है।''

उनकी नाराज़गी का कारण था, कि उनके सुपुत्र को अध्यापिका ने हिन्दी भाषा की परीक्षा में उत्तर पुस्तिका में, केवल ‘एक अंक' दिया था और वह भी सिर्फ अच्छी लिखावट के लिए।

सभी अभिभावक यह जानने के लिए इच्छुक थ,े आखिर उस छात्र ने उत्तर पुस्तिका में क्या गुल खिलाया। परीक्षा में क्या किया?

जब अध्यापिका ने उन्हें उस छात्र की उत्तर पुस्तिका दिखाई, तब सब की आँखें फटी की फटी रह गईं। आप भी एक झलक देख लीजिए उस उत्तर पुस्तिका की। प्रश्न पत्र में दिया था ‘अपने मामाजी को जन्म दिन का उपहार भेजने के लिए एक धन्यवाद पत्र लिखिए। उस छात्र ने लिखा था

ऐ मामू!

कैसा है रे?

ये जो तू बर्थडे का तोहफा भेजेला ह,ै उसे देखकर अपून का भेजा गर्म हो गया रे।

तू क्या अपून को तीन साल का बच्चा समझेला है? ये तिपहिया साईकिल किस के वास्ते भेजेला है?

कोई मस्त तोहफा भेजने का। तभी तेरे को धन्यवाद करने का। ऐसे खाली पीली काए को घन्यवाद करने का?

अखा मुम्बई में घूमकर तोहफा ढूँढने का।

देख मामू! तोहफा भेजने में तूने अगर कोई लोचा किया, तो मुम्बई आकर तेरे कान के नीचे बजाने का। मामीजी को मेरी तरफ से नमस्ते ठोकने का और चिल्लर पाटीर्, अपून का मतलब है चिंकी मिंकी को प्यार देने का। समझा क्या। चल चल, अब ज्यादा दिमाग का दही मत कर। हवा आने दे।

तोहफे के इन्तज़ार में

तेरा भान्जा

क ख ग

प्रश्न पत्र के दूसरे भाग में वर्षा ऋतु पर सुन्दर शब्दोंं में ‘प्रस्ताव' लिखना था। तो उस छात्र ने जो ‘प्रस्ताव' लिखा उसे आप भी पढ़िए।

दो दिन से आसमान से पानी टपकेला है। अखा शहर कीचड में़ डूबेला है। मेंढक की टर्र टर्र से दिमाग का दही बनेला है। स्कूल आने के लिए छाते का फालतू बोझ बढ़ेला है। गरीब का झौपड़ा फटेला है। अमीर मस्ती करेला हैं। यमुना का जल स्तर खतरे के निशान के पार पहुँचेला है। बूढ़ा दादू बारिश रुकने के इन्तज़ार में आँखें फाड़—फाड़ के बाहर देखेला है। अपून सढू टीचर के सामने परीक्षा भवन में बेठेला है।

छात्र ने उतर पुस्तिका के अंत में लिखा था।

टीचर! तूने तो बस प्रस्ताव ही सुन्दर शब्दों में लिखने को बोला है। अपून तो अखा पेपर सुन्दर शब्दों में लिखेला है।

अब वह छात्र भी अध्यापिका के पास आ गया था और सुबोध नाम के छात्र को भी साथ ले आया था। वह कह रहा था, ‘‘ए सुबोध तू याद दिला टीचर को। इसने अखा क्लास के सामने समझाया था ‘‘हिन्दी जैसे बोलने का वैसे लिखने का।''

सुबोध को तो आधा ही अंक मिला था। सुबोध ने क्या लिखा पढ़िए

मामाजी को जन्मदिन का उपहार भेजने के लिए धन्यवाद पत्र

मामाजी धन्यवाद!

तू हर साल उपहार भेजती मैं खुश होती। बहुत खुश होती। मैं खुशी से उछलती कूदती।़़

़़़तू दिल्ली घूमने आएगी, तो मै, तूझे कुतुब मीनार दिखाएगी। लालकिला की सैर भी कराएगी।

तेरा भांजा

त थ द

वर्षा ऋतु पर निबन्ध

उमड़ घुमड़ कर बादल आसमान में आती नभ पर काला छाता सा बन जाती। बून्द धरा पर गिर जाता उसे पाकर धरा खुश हो जाता। कागज की मैं नाव बनाती। कभी नाव सीधा चलता है कभी तनिक टेड़ा हो जाता।

उस छात्र ने इससे आगे भी बहुत कुछ लिखा था, जिसे पढ़कर व सुनकर हमारे चेहरे पर मुस्कान आ जाती, लेकिन मैंने सोचा, दूसरों पर हँसने से पहले हमें स्वयं के भीतर भी झाँकना होगा क्या हमारी, स्वयं ‘हिन्दी भाषा' पर पकड़ मज़बूत है?

— सुमन शर्मा

jahnavi-suman7@gmail-com