डायबिटीज Jahnavi Suman द्वारा पत्रिका में हिंदी पीडीएफ

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डायबिटीज


डायबिटीज़

--------- सुमन शर्मा

हाय ! ये अंग्रेज़ भी क्या कर गए। स्वयं तो खिसक गए। लेकिन अपनी भाषा यहीं छोड़ गए और ऐसे छोड़ कर गए कि ,इसका रस्वादन करने को प्रत्येक मनुष्य लालायित रहता है , अंग्रेजी शब्दों का अर्थ यदि समझ न आए , तो शर्म से उसका अर्थ,किसी से नहीं पूछता ,इसके विपरीत यदि हिंदी के किसी शब्द का अर्थ स्पष्ट न हो तो बड़ी शान से कहता है,"हमें हिंदी नहीं आती। "

अब चम्पतलाल का किस्सा ही सुनो -----------

चम्पतलाल अपने गाँव के इकलौते पढ़े लिखे व्यक्ति थे। वैसे तो वह हिन्दी माघ्यम से पढ़े थे, लेकिन गाँव के लोग उन्हें अंग्रेजी के ज्ञाता समझते थे। सभी ग्रामवासी अपनी अंग्रेजी के कठिन 'शब्दों का समाधाान भी उन्ही से करवाते थे। चंपतलाल जी अंग्रेजी के विषय में लगंभग 'शून्य थे लेकिन फि़र भी वह अपनी अक्ल के घोड़े दौड़ाते हुए ,हालात के हिसाब से उस अंग्रेजी शब्द का, कोई न कोई हिन्दी में अर्थ निकाल ही लेते थे। लोगों की कठिनाईयों का सामाधाान करते-करते उन्हें लगता था,उनके जैसे पढ़े लिखे व्यक्ति को तो 'शहर में होना चाहिए था। इसलिए वह गाँव में रहते हुए भी अक्सर शहर में बस जाने के सपने देखते रहते थे।

आखिर एक दिन वह नौकरी की तालाश में 'शहर आ ही गए। नौकरी ढूँढते-ढूँढते चंपतलाल जी थोड़े से अस्वस्थ हो गए। लोगों सें अच्छे डाक्टर का पता पूछते-पूछते वह एक अच्छे डॉक्टर के पास पहुँच जाते हैं। क्लीनिक में डॉक्टर की प्रतीक्षा में बैठे लोगों में वह भी 'शामिल हो जातें हैं। अघिकांश लोग अंग्रेजी में बात कर रहे होते हैं। हर व्यक्ति की बात पर चंपतलाल जी ऐसे हांमी में सिर हिलाते हैं जैसे सब कुछ समझ रहें हों। यह बात अलग है कि उनके पल्ले कुछ नहीं पड़़ रहा था। जब चंपतलाल जी की बारी आई तो उन्होने डाक्टर के केबिन में जाकर आदर से सिर झुकाते हुए कहा, ‘‘डाक्टर साहब प्रणाम!’’ डाक्टर के मुँह से कुछ बोल तो नहीं फ़ूटे , लेकिन सिर हिला कर डाक्टर साहिब ने प्रणाम स्वीकार किया। चंपतलाल ने अपनी बीमारी का व्याख्यान करना प्रारम्भ किया। डाक्टर साहिब ने सारी व्यथा सुनने के बाद,पर्चे पर दवाईयाँ लिखनी प्रारम्भ कर दीं। पर्चा लिखते -लिखते डाक्टर साहिब को याद आया कि,आजकल मधाुमेह बहुत लोगों को है और उन्होने चंपतलाल से यह नहीं पुछा कि उसे यह समस्या तो नहीं है। डाक्टर साहिब ने नाक पर लटके हुए अपने चज्मे को सीघे हाथ की उंगली से आखों की ओर धाकेला। गर्दन चंपतलाल की ओर घुमाकर उससे पूछां, ‘‘चंपतलाल! तुम्हे डायबिटीज़ की प्रोब्लम तो नहीं है?’’चंपतलाल अपने अक्ल के घोड़ो को सरपट-सरपट दौड़ते हुए यह अनुमान लगाते हैं कि 'शायद दवाईयाँ अधिाक कीमती हैं इसलिए डाक्टर साहिब यह पूछना चाहते होंगे कि हमारे आर्थिक हालात कैसे हैं? चंपतलालजी तुरंत जवाब देतें हैं, डाक्टर साहिब सारी प्रोब्लम तो डाइबिटीज़ की है। चंपतलाल का मतलब आर्थिक तंगी था। वह डबडबाई आँखों से डाक्टर की ओर देखते हुए कहता है, ‘‘सारी कठिनाईयों की जड़ तो,यह डाईबिटीज ही है। डाक्टर साहिब ने गर्दन हिलाते हुए कहा, ‘‘अच्छा- अच्छा!’’ चंपतलाल बोला,‘‘डाईबिटीज़़ न होती तो हम गाँव छोड़कर 'शहर क्यों आते?’’ चंपतलाल बोलता ही जा रहा था,‘‘ सिर्फ हमारा परिवार ही नहीं,सारे गाँव पर छाई हुई थी डाइिर्बटीज़। हमारे पिताजी ने तो डाईबिटीज़ से तंग आकर,आत्महत्या ही कर ली थी। डाईबिटीज़ के कारण मेरी दो बहनों की 'शादी भी नहीं हुई। डाक्टर साहिब अपना सिर पकड़ लेते ,ैं फि़र हाथों को मसलते हुए कहते हैं, ‘‘यह तो बहुत दुख की बात है। लेकिन गाँव वाले इसका ईलाज़ क्यों नहीं करवाते। चंपतलाल ने कहा,‘‘गाँव वाले क्या कर सकतें हैं? एक तो इस साल फ़सल कम हुई और जो पैदावार हुई ,उसके औने पौने दाम ही मिले। डाक्टर साहिब ने कहा, ‘‘पूरे गाँव की तो नहीं लेकिन हम तुम्हारी डाईबिटीज़ जरुर दूर कर देगें।’’ चंपतलाल बोला, ‘‘हमारे गाँव की डाईबिटी़ज़ तो बड़े-बड़े नेता भी नहीं दूर कर सके,आप कैसे दूर करेंगें। चुनाव के समय आते हैं, हमारे गाँव में नेता, अभिनेता। भा"षण देते हैं, बड़ी -बड़ी बातें करते हैं, वादे करके जाते हैं। लेकिन चुनाव जीतने के बाद कोई नहीं आता है। साल दर सालगॉंव में डाईबिटीज़ के हालत बिगड़ते जातें हैं। डाक्टर साहिब ने कहा, ‘‘इसमें नेता और अभिनेता क्या करेेगे?’’ तुम्हें इससे स्वयं ही लड़ना होगा। लेकिन डॉ साहिब हम सारे किसान सुबह अंघेरे मुहँ उठकर खेतों में चले जातें हैं और 'शाम ढले लौटते हैं। फ़सल काटने के बाद भी रात भर पेहरा देना पड़ता है कोई कटी कटाई फ़सल उठा न ले जाए। न हमारा कोई अवकाश होता है। हमारी फ़सलों को फि़र भी बाजार में अच्छी कीमत नहीं मिलती है। अब आप ही बताओ ऐसे में गाँव में डायबिटिज़ की समस्या तो बढ़ेगी ही ना? प्रतीक्षा में बैठे मरीज़ घड़ी की ओर देखकर बैचेन हो रहे थे। एक व्यक्ति का तो सब्र का बाँधा ही टूट गया वह चिलाकर बोला, ‘‘ भैया भा"षण देना है तो लालकिले पर खड़े होकर दो ना। हम सब का समय क्यों बर्बाद कर रहे हो? चंपतलाल मन ही मन में विचार करता है कि गरीब व्यक्ति की भावनाओं को कोई नहीं समझता आज यदि मुझे डायबिटिज की परेशानी ़ न होती,तो मैं भी सूट बूट पहन कर आता और यहाँ लोग मुझे सम्मान की निगाह से देखते मगर सब किस्मत का खेल है। कोई भला किस्मत से कैसे लड़ सकता है? डॉक्टर साहिब ने जैसे उसके दिल की बात पढ़ ली हो वह बोले, ‘‘ हर व्यक्ति अपने हाथों सें अपनी किस्मत लिखता है। जीवन में तो बड़ी बडी समस्याए आती रहती हैं। यदि तुम डायबिटिज़ जैसी छोटी -छोटी बांतो से डर जाओगे तो जीवन में कुछ नहीं कर सकते। चंपतलाल का जवाब देने के लिए फि़र से मुँह खोला , तो डॉ साहिब ने डायबिटिज की दो गोलियाँ उसके हाथों में रख दीं। वह बोले, ‘‘ चंपतलाल यह लो। सुबह और 'शाम खाने से पहले एक- एक गोली खा लेना तुम्हारी डायबिटिज़ की समस्या में दिन प्रतिदिन सुघार आता जाएगा।’’ चंपतलाल का खुला मुँह बन्द हो गया। अब उसकी आखें फ़ट गईं। वह मन ही मन सोचने लगा। यह डॉक्टर है या ओझा? मेरी आर्थिक हालत केवल इन दो गोलियों से सुधार जाएगी।

वह घर जाकर अपने बड़े भाई को गाँव में पत्र लिखता है, ‘‘ भाई दिनेज! तुम भी कुछ दिनों क लिए 'शहर आ जाओ! यह जादुई नगरी है। हम गाँव में बरसों से गरीबी से लड़ रहें हैं। लेकिन 'शहर में तो एक सूट बूट वाला ओझा है,जो दो गोलियाँ देकर दावा करता है कि,इससे आर्थिक स्थिति में बहुत सुघार आएगा। और हाँ बड़े भैया जब तुम 'शहर आओ तो इस बात का घ्यान रखना 'शहर में आर्थिक तंगी को,‘डायबिटिज़’ कहतें हैं।

कहीं ,आप के इर्द -गिर्द भी तो कोई चम्पतलाल नहीं बैठा ? चलिए उसे भी इस भ्रम जाल से मुक्ति दिलाएँ।

------------सुमन शर्मा

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