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व्हील चेयर


व्हील चेयर

------------ सुमन शर्मा

कुछ दिनों के लिए दिल्ली से बाहर गई थी। वहां का हवा -पानी रास नहीं आया। दिल्ली वापिस आते-आते तबियत इतनी बिगड़ गई, कि अस्पताल तुरंत भागना पड़ा। आपातकालीन विभाग में पहुँचते ही पांच सदस्यी नर्सों का दाल आ पहुँचा। वार्ड बॉय व्हील चेयर ले आया जिस पर मुझे विराजने के लिए कहा गया। तभी दो नर्से मनु और आभा की तरह मेरे दांय -बाँय आकर खड़ी हो गई और मझे सहारा देकर कुर्सी पर चढ़ा दिया।

डाक्टर तो राऊंड पर था। नर्सों ने ही मेरी साड़ी जाँच पड़ताल कर डाली और लगा दिया मुंह पर आक्सीजन मास्क और हाथ की नस में घुसेड़ दी ड्रिप ग्लूकोस चढ़ाने के लिए। एक नर्स ने कहा ," आपकी हालत बहुत खराब है ,आपको वापिस घर भेजने का रिस्क नहीं ले सकते । आपको एडमिट होना पड़ेगा।

अस्पताल में भर्ती होने का यह मेरा पहला अनुभव था। अस्पताल प्राईवेट था। एक जूनियर डॉक्टर आया। उसने , नर्सों द्वारा की गई जाँच पड़ताल को सही बताते हुए कहा कि, "स्थिति बिगड़ चुकी है, इसलिए अस्पताल में कुछ दिन रहना अनिवार्य है।"

भर्ती करने से पहले मुझसे पूछा गया, ‘‘रूम कैसा चाहिए ? इकनौमी,सेमी-ंडीलक्स या डीलक्स? एक बार तो मेरा सिर चकरा गया, यह हॉस्पिटल है या हॉटल? मैंने आक्सीजन मास्क को मुँह से हटाने का इशारा किया। एक नर्स तुरंत चुस्त आर्मी आफिसर की तरह मेरे पास आई और आक्सीजन मास्क मुंह से हटा दिया। मैंने कहा , एक फोन करने दीजिये, मम्मी से पूछकर बताऊँगी। "नहीं ,नहीं यहाँ फोन करना अलाउड नहीं है ,एक चिड़चिड़ी नर्स बोली और फिर से मेरे मुँह पर आक्सीज़न मास्क लगा दिया।

वैसे तो बीमार व्यक्ति के लिए सभी कमरे एक समान होते हैं, फि़र भी बीच का कमरा अर्थात सेमी-डीलक्स रूम लेना ही ठीक समझा। कमरे के विषय में अपने विचार व्यक्त करते ही, एक फ़ार्म पर मेरे हस्ताक्षर ले लिए गए।

रिसेप्शन से एक परी की तरह सजी धजी स्त्री ,हाथ में कलम व कागज़ लेकर मेरे समक्ष आई और मुस्कुराते हुए बोली , अपने घर का फ़ोन नंबर लिख दीजिये ,ताकि हम उन्हें इन्फॉर्म कर दें। " मैंने फोन नंबर के साथ यह भी लिख दिया , "कृपया मेरी मम्मी को ते न बताएं की मेरी हालत इतनी नाज़ुक है। "

कुछ ही देर में खबराये हुए परिवार जन भी वहां आ पहुंचे। परिवार जनों से भी कुछ कागजों पर हस्ताक्षर करवा लिए गए। ‘मरता क्या न करता’ कहावत चरितार्थ हो रही थी।

अब मुझे डॉक्टर के केबिन से कमरे में शिफ्ट किया जा रहा था। मैं अपने दाएँ हाथ से ग्लूकोज़ की बोतल सम्भाले हुए थी। डॉक्टर के केबिन से कमरे तक का सफ़र बड़ा विचित्र था। अस्पताल में तो सारे दिन ही लोग व्हील चेयर पर दिखाई देते हैं। लेकिन न जाने लोग मुझे ऐसे घूर घूर कर देख रहे थे, जैसे बावले गाँव में ऊँट आ गया हो। कमरे में मरीज़ो के दो बिस्तर लगे थे। बीच में परदा लगा हुआ था। एक बिस्तर पर एक साठ पैंसठ वर्ष की महिला, पहले से ही लेटीं हुई थी।मुझे देख कर वह ऐसे मुस्कुराईं जैसे मन ही मन सोच रहीं हों, ‘हा हा हा एक मुर्गी और फ़सी।’ मैं भी बेमन से दूसरे बिस्तर पर लेट गई। भला कौन व्यक्ति अपनी ज़िन्दगी में, यह दिन देखना चाहता है?

थोड़े देर में नर्स दोनो हाथों में अंडाकार तस्तरीनूमा चीज़ लेकर दाखिल होती है। विमान का अनुभव था कि, विमान में बैठते ही परिचारिका सत्कार में नाशता पेश करतीं हैं। मैंने भी , यही सोचा कि, नर्स नाशता लाई है,लेकिन तश्तरी में सजा कर नर्स दो बड़े-बड़े इन्जेक्जन लाई थी। शरीर में बेदर्दी से इंजेक्जन ठूँसने के बाद, नर्स ने मुझ से सवाल किया,‘ कोई तकलीफ़ तो नहीं हो रही? मैंने मन ही मन सोचा ‘तकलीफ़ ही तकलीफ़ हो रही है, इसके अतिरिक्त तो कुछ नहीं हो रहा। थो़ड़ी देर में वार्ड बॉय वहाँ खाना लेकर आया। मेरे साथ वाले बिस्तर की मेज़ पर खाना रखकर चला गया। मेरे बिस्तर की तरफ़ देखा तक नहीं।

कमरे में फि़र से नर्स दाखिल हुई, एक और ग्लूकोज़ की बोतल लेकर। उसने ग्लूकोज़ चढाने की गति को बढ़ाया। पहले वाली बोतल जल्दी से खाली की और नई बोतल लगा कर चली गई। हाँ जाने से पहले वह बोली,‘‘ आज आपको खाने या पीने के लिए कुछ नहीं दिया जाएगा।’ कल थोड़ा सा सूप देकर देखेंगें। मैं मन मसोस कर रह गई। अस्पताल की खिड़की से नीचे बाज़ार नज़र आ रहा था जहाँ खाने पीने का सामान खूब धाड़ेले से बिक रहा था और खाते -पीते हुए लोग भी नज़र आ रहे थे।

पड़ोस वाली मरीज़ आंटी तो खाना खा कर कमरे में कम्पनी बाग की तरह सैर सपाटा करने लगीं। उसके बाद वही हुआ जिसका मुझे डर था। वह मेरे बिस्तर के पास रखी हुई कुर्सी पर आकर बैठ गईं। उन्होने मुझसे बांते करना 'शुरू कर दिया। बांते भी ऐसी जिन्हें सुुनकर अच्छा भला इन्सान बीमार पड़ जाए। मेरा 'शरीर शिथिल हो रहा था। मैं उनकी बांतों पर हूँ -हूँ बस हुँकारे भर रही थी। नर्स का भला हो जो उसी समय कमरे में दाखिल हो गई और आंटी को उनके बिस्तर पर लिटा गई। आंटी कहाँ बाज आने वालीं थीं? नर्स के जाते ही बोलीं, ‘‘बेटा बीच का परदा हटा दो। अभी तुम से बहुत बांते करनी हैं।

अगले दिन सुबह के ग्यारह बजे थे। तारिख थी 26 जून। मेरा परिवार एक विवाह समारोह में जाने की तैयारी कर रहा था। मैं बिस्तर पर लेटी हुई केवल कल्पना कर रही थी कि, विवाह में जाती तो क्या पहनती ?

मरीज़ों को देखने आने वाले लोगों का सिललिला 'शुरू हो गया। पता नहीं लोग मरीज़ो से मिलने के लिए इतना सज घज कर क्यों आते हैं। खुशबूदार इत्र में डूबे लोगों से मिलकर अपनी दशा ओर भी दयनीय लगती है।

सात दिन बाद जब डॉक्टर ने मुझे अस्पताल से छुट्रटी की घोषणा की, तो ऐसा लग रहा था, जैसे में किसी जेल से छूट रही हूँ। मैं वहाँ एक पल के लिए भी नहीं रुकना चाहती थी। ऐसा लग रहा था कि, यह डॉक्टर कहीं मेरी हालत खराब बताकर मुझे फि़र से दाखिल न कर लें। मैं कमरे से बाहर निकली और तेज़ क़दमों से लिफ्ट की और बढ़ चली। मुझे लग रहा यह कोई हाथ मेरा पीछा कर रहा है। नर्स ने मेरे परिवार जनों से कहा, ‘‘मरीज़ के लिए व्हील चेयर ले लो, नही तो मरीज़ को चक्कर आ जाएगा। नहीं! अब मैं व्हील चेयर नहीं लेना चाहती थी। दुबारा लोग घूर-घूर कर ऐसे देखगें जैसे कोई झांकी निकल रही हो। मैं परिवार जनों के साथ कैबिन में बिल का भुगतान करने चली गई। बिना व्हील चेयर के तो चक्कर नहीं आया, लेकिन अस्पताल का बिल देखते ही चक्कर आने शुरू हो गए। सिरे मुझे नहीं, मेरे परिवार के बाकी सदस्य भी चिल्लाये, "कोई हमारे लिए व्हील चेयर ले आए।"

-------सुमन शर्मा

contact no. 9810485427

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