हाय! रे पडोसी Jahnavi Suman द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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हाय! रे पडोसी


हाय ! रे पड़ौसी

---------- सुमन शर्मा

हमारे पड़ोसी वैसे तो सभी सामान्य हैं। पर वह कभी-कभी कुछ ऐसा असमान्य सा कर देते हैं, जिसे सोच कर हँसी आती है। तो प्रस्तुत है हमारे पड़ोसियों की विचित्र झलक--

चटर्जी अंकल- एक दिन चटर्जी अंकल हमारे घर आए और बोले ‘‘आज शाम को हमारे घर पर ‘भोजन’ है। आप सब को आना है।’’ हमारी माताजी ने उनका निमंत्रण सहर्ष स्वीकार कर लिया।

पिताजी के दपतर से वापिस आते ही माताजी चहक उठीं और बोलीं,‘‘अजी सुनते हो ? हाथ मुँह धाोकर तैयार हो जाइये, चटर्जी साहब भोजन का निमंत्रण दे गए हैं।’’ माताजी- पिताजी दोनों फ्रुल्लित हदय से, चटर्जी अंकल के घर की ओर चल दिए। वहाँ भक्ति संगीत का कार्यक्रम चल रहा था। माताजी और पिताजी लगभग दो घंटे वहाँ बैठे रहे। पिताजी के पेट में चूहे दौड़ रहे थे। लेकिन वहाँ खाने का कोई प्रबन्धा नज़र नहीं आ रहा था। कुछ देर बाद चटर्जी अंकल पिताजी के पास आकर बैठे और बोले,‘‘ शर्मा जी यह ग्रुप कलकता से आया है। देखा कितना अच्छा भोजन (भजन) करता है।’’ यह सुनकर पिताजी ठगे से रह गए। असल में चटर्जी अंकल का बोलने का अन्दाज़ बंगाली था इसलिए जब उन्होने ‘भजन’ का निमंत्रण दिया तो हमें लगा कि वह ‘भोजन’ पर बुला रहे हैं।

गुप्ता अंकल - एक बार गुप्ता अंकल अपने घुटने का इलाज़ करवाने होम्योपैथ के पास गये। आप को तो मालूम होगा कि होम्योपैथ दवाई देने से पहले कई तरह के सवाल करते हैं, ताकि सही दवाई का चुनाव हो सके।

डाक्टर ने उनसे सवाल किया, ‘‘खाने में मीठा पसंद है या नमकीन?’’ गुप्ता अंकल अपने बतीस दांत निकालते हुए बोले,‘‘अरे नहीं- नहीं डाक्टर साहिब कुछ मंगवाना नहीं। मैं घर से नाश्ता करके आया हूँ ।’’ इस पर डॉक्टर साहब का मुँह देखने लायक था।

श्रीमती सक्सैना - बात तब की है जब लोग किराये की वीडियो केसैट लाकर वी सी आर पर फि़ल्में देखते थे। श्रीमती सक्सैना के बच्चे एक फि़ल्म की केसैट लाए, जिसका नाम था, ‘किसी से न कहना ’ जब बच्चे यह फि़ल्म देख रहे थे, तब वह वहाँ आईं और पूछने लगीं ‘‘ कौन सी फि़ल्म चल रही है?’’ उनके बेटे ने जवाब दिया ‘‘किसी से न कहना’’ श्रीमती सक्सैना के बार-बार पूछे जाने पर भी जब यही जवाब मिला तो श्रीमती सक्सैना आग बबूला हो गई और अपने बेटे को थप्पड़ जड़ते हुए बोलीं, ‘‘सुबह से एक ही रट लगा रखी है, किसी से न कहना। किसी से न कहना। मुझे पहले यह तो बता ‘‘मैं किससे कहने जा रही हूँ ?’’ ओह !बेचारे बंटी के गाल से थप्पड़ का निशान एक महीने बाद गया।

श्रीमती सचदेवा - श्रीमती सचदेवा हिन्दू नहीं थी , लेकिन सचदेवा अंकल से शादी करने के बाद , नवरात्रें में पहली बार कन्या पूजन कर रही थीं। वह मेरी माताजी से पूछने आईं और बोली ,‘‘मिसेज़ शर्मा कन्याओं को पूरियाँ देने से पहले जो दो पूरियाँ निकाल कर अलग रखते हैं उनका क्या करते हैं? हमारी माताजी ने कहा, ’’गाय को खिला देते हैं।’’ वह अपने घर चली गईं।

शाम को मेरी माताजी पेड़ पौधाों में पानी दे रहीं थीं। श्रीमती सक्सैना वहाँ दुबारा आईं और बोलीं, ‘‘मिसेज शर्मा मैंने चार बजे तक इन्तज़ार किया। कोई गाय नज़र नही आई। मैंने तो वो पूरियाँ खूद ही खा लीं। ये सुनते ही हम सब बच्चे खिलखिलाकर हँस पड़े। एक बार हमारे घर, पंडित जी जीमने आए ,उन्होंने गो ग्रास निकाला ,लेकिन बाहर कोई गाय नहीं थी। पापा ने चुटकी लेते हुए कहा , "मिसिज़ सचदेवा को खिला दें।

--------------सुमन शर्मा

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