Aaj ka samaj evam Kabir books and stories free download online pdf in Hindi

आज का समाज व् कबीर

आज का समाज व कबीर

सुमन शर्मा

jahnavi-suman7@gmail-com



© COPYRIGHTS

This book is copyrighted content of the concerned author as well as Matrubharti.
Matrubharti has exclusive digital publishing rights of this book.
Any illegal copies in physical or digital format are strictly prohibited.
Matrubharti can challenge such illegal distribution / copies / usage in court.

आज का समाज व कबीर

एक स्कूल के छात्र को, शिक्षक द्वारा ‘आज के समाज पर कबीर के योगदान' विषय पर निबन्ध लिखने के लिए, कहा जाता है। वह लिखता है मुझे, ऐसा लगता ह,ै आज के समाज का जो स्वरूप है, वो कबीर की ही देन है।

समाज के स्वरूप और कबीर के दोहों में ताल मेल बैठा कर देखि, आप को मेरी बात सोै प्रतिशत सत्य लगेगी।

अगर आज़ कस्त्ूारी हिरन की प्रजाति विलुप्त हो रही है तो उसका कारण स्वयं कबीर ही तो हैं। क्या कबीर ने अपने इस दोहे से लोगों को शिकार के लिए, प्रेरित नहीं किया?

कस्तूरी नाभी बसै मिरग ढूँढे वन माहि।

एसे घट में पीर है मानस जानत नाहि।।

भोले भाले गाँव वाले कुछ जानते नहीं थे। पूजा पाठ में ध्यान लगाकर थोड़े मेंं ही संतुष्ट रहते थे। लेकिन कबीर ने उन्हे गा—गा कर बताया कि वन में जो हिरन घूम रहा है, उसकी नाभी में कस्तूरी है। हे मूर्ख मनुष्य तू इसे बेचकर मालामाल हो जा। तीर्थ स्थानों पर जाकर भगवान को क्यों ढूँढ रहा है? इसे पा ले। पैसा कमाकर स्वयं ही तू ईश्वर बन सकता है।

नव पीढ़ी को भी उन्होने ही नयन मटक्का करना सिखाया। जब भी कोई मन लगाकर पढ़ने बैठता तो कबीर उसे नसीहत देने पहुँच जाते और गाने लगते

पोथी पढ़ी पढ़ी जुग भया पं़डित भया न को ।

ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पं़डित होई ।।

अर्थात, मोटे मोटे ग्रंथ और पुराण पढ़कर भी आज तक किसी को ज्ञान प्राप्त नहीं हो सका है। इसलिए, मनुष्य तू! किताबों की बनावटी दुनिया को छोड़कर प्रेम की यथार्त दुनिया में लौट जा।

ंआज समाज को दूसरों के अवगुण उछालने की प्रेरणा उन्ही से मिली है। कबीर लोगो़ं के अवगुणो़ से उन्हे चिढ़ाते थे। उतर प्रदेश के फ़लों से लदे पेड़ छोड़कर वह, रेगिस्तान पहुँच गये और खजूर के पेड को देखकर गाने लग,े

बड़ा भया तो क्या भया जैसे पेड़ खजूर।

पंथी को छाया नही फल लागे अति दूर।।

कबीर ने उधार रुपया देने की भी संस्था खोल रखी थी। डेबिट व क्रेडिट कार्ड का प्रचलन भी उन्ही ने शुरू किया था। क्या नीचे लिखे दोहे से यह स्पष्ट नही हो जाता कि उनकी संस्था का नाम ‘हरि' था।

साधू गाँठ न बाँधिए, उदर समाता लेय।

आगे पीछे हरि खड़े, जब माेँगे तब देय।।

साधुओं को जब दान दक्षिणा मिलती थी और वह पैसों की पोटली बना कर ले जा रहे होते थे, तो कबीर उन्हें आकर कहते थे, कि सारे पैसे पोटली में मत बाँधो जितने जेब मेें रखें जाए, उतने रखो बाकी पैसे हमारी संस्था में जमा करा दो। ‘हरि' नाम की हमारी संस्था की हर स्थान पर ब्रांच है।

कबीर साफ सफाई के भी सख्त खिलाफ थे। उन्हे एसा प्रतीत होता था कि स्वयं को साफ सुथरा रखना या फिर खाने पीने की वस्तुयों को धोने से कोई लाभ नही। नीचे लिखे दोहे में यह साफ झलकता है।

नहाये धोये क्या हुआ, जोमन मैल न जा,।

मीन सदा जल मेंं रहे,? धोये बास न जाय।।

कबीर जोमन नाम के व्यक्ति को संबोधित करते हुए, कहतें ह,ैं नहाने से और कपड़े धोने से कोई लाभ नहीं। बेटा जोमन! रोज़ रोज़ नहाकर भी मछली के भीतर की दुर्गन्ध नहीं जाती। फिर तुम नहाते क्यों हो।

आज़ यदि सरकार आतंकवाद, लूटमार, बेईमानी के खिलाफ कुछ नहीं करती तो क्या हुआ? कबीर ने ही तो सिखाया है

बुरा जो देखन में चला, बुरा न मिलया कोय।

जो मन खोजा अपना, मुझसे बुरा न कोय।।

कबीर कहतें हैं चोर डाकू ढूँढने से नहीं मिलते। उन्हें ढूँढने में हमारा समय बर्बाद होता है। फिर हमारे मन को बुरा लगता है कि हमने अपना समय बर्बाद किया।

उन्होंने लोगों को अपना लाईफ स्टाईल बदलने की प्रेरणा देते हुए, कहा है,

रात गंवाईं सोय के, दिवस गंवायो खाय ।

हीरा जन्म अमोल सा, कौड़ी बदले जाए,।।

हे मनुष्य! रात को तू सो कर नष्ट ना कर, अर्थात सास बहु के सीरियल के रिपीटिड टेलिकास्ट देखकर रात व्यतीत कर। अपना दिन खाना खाकर मत बर्बाद कर, तूझे आफिस जाकर रिश्वत भी खानी है। याद रख, हीरा जन्म से ही अनमोल होता है, उसको कौड़ी में बदलने की कोशिश न कर।

— सुमन शर्मा

jahnavi-suman7@gmail-com

अन्य रसप्रद विकल्प

शेयर करे

NEW REALESED