रामगढ़ Jahnavi Suman द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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रामगढ़

रामगढ़

सुमन शर्मा

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रामगढ़

हमारे देश का, पिछड़ा हुआ गाँव है—रामगढ़। यहाँ नेताजी, चुनाव जीतने के लिए, जनता से, ऐसा वादा कर बैठते हैं, कि चुनाव जीतने के बाद वह मज़बूर हो जाते हैं, अपना वादा निभाने के लिए,।

वादा यह था, कि गाँव के रेलवे स्टेशन को पश्चिम देशों के मुकाबले लाकर खड़ा करना।

अपने गाँव के पास, बिना फ़ाटक वाली ‘रेलवे क्रासिंग' देखकर जीने वाले, अत्यंत ग़रीब, अनपढ़ ग्रामवासी, अत्याधुनिक रेलवे स्टेशन की कोरी कल्पना मात्र से ही बावले हु, जा रहे थे । भला फिर वह अपनी कल्पना को साकार करने के लि, नेताजी को वोट क्यों न देते। सारे गाँव में चर्चा भी थी और नारा भी— ‘नेताजी को भारी बहुमत से विजयी बनाना है, रेलवे स्टेशन को अत्याधुनिक बनाना है।'

नेताजी का तीर निशाने पर लगा। चुनाव नतीजे की घोषणा होते ही, नेताजी के गले में सेकड़ो विजय माला,ँ झूमने लगी और अनेकों चमचे तलवे चाटने के लिए, कदमों में आ गिरे।

एक वर्षा तक तो नेताजी जनता के साथ आँख—मिचोली खेलते रहे। लेकिन जब जनता ने उनका घर से निकलना दूभर कर दिया, तब अपना वादा निभाने के लि, उन्होने रेलवे स्टेशन निर्माण की गतिविधियों को तेज़ कर डाला। कार्य धीमा पड़ता, तो गाँव वालों के़ स्वर तेज़ हो जाते।

अमेरिका की तर्ज़ पर स्टेशन बनकर तैयार था। लेकिन इन आधुनिक सुविधाओं का लाभ उठाने के लि, ग्रामवासी बोधिक क्षमता में तैयार न थे। आनन— फानन में स्टेशन का उद्‌घााटन भी हो गया। सर्वप्रथम इन सुविधाओं का लाभ उठाने वाले परिवार का क्या हश्र होता है।

श्याम प्रसाद के परिवार न,े कइ महीने पहले, ‘भोपाल नई दिल्ली शताब्दी' वाया सैन्तीस गढ़ धाम से आगरा के लिए, टिकट आरक्षित करवाई थीं।

आज रेलवे स्टेशन की अति आधुनिक प्रणाली म,ें उनके परिवार का प्रवेश होता है।

उनके प्रवेश करते ही, द्वार पर बने, दो अलग—अलग हाथ जुड़ कर, नमस्कार करते हैं, ऐसा होते ही सेन्सर प्रणाली द्वारा दरवाज़े स्वयं ही खुल जाते हैं।

सवेरे के चार बजे हैं, गाँव मे चारों तरफ सन्नाटा फैला हुआ है। श्याम प्रसाद चिल्लाता है, ‘दरवाजा किसने खोला हैघ कोई दिखाई क्यों नहीं दे रहा है। वह काँपती हुई आवाज़ में भजता है,‘भूत पिशाच निकट नहीं आव,े महावीर जब नाम सुनावे'। संकट से हनुमान छुड़ावे।'

सहमी सी उनकी पत्नी ‘सुभद्रा' व पुत्री ‘आन्नदि' अन्दर प्रवेश करती है।

कम्प्यूटर प्रणाली पर आधारित, पूछताछ खिड़की से आवाज़ आती है,‘यदि आप के मन में कोई प्रश्न ह,ै तो इस कैबिन में पधारें। सुभद्रा थर थर काँप उठती है।

श्याम प्रसाद की बहिन—शारदा सबको पछाड़ती हुइर्, सबसे पहले कैबिन में पहुँचने में सफ़ल हो जाती है। वह कैबिन मैं जाकर हाथ जोड़ कर कहती है, ‘हे परमेश्वरी !मुझे तो बस यह बता दो मेरी लड़की की शादी कब होगी? तभी श्याम प्रसाद उसे कोहनी मारकर कहता है, ‘हट बावली ये रेलवे पूछताछ विभाग है, यहाँ कोई हाथ बाचने वाला पंडित नहीं बैठा हुआ ह,ै जो तेरी बेटी के भविष्य की पोथियाँ बाँचेगा।

श्याम स्वयं स्क्रीन के आगे आकर खड़ा हो जाता है। आवाज़ आती है, ‘हिन्दी भाषा के लिए ‘एक‘ अन्यथा अंग्रेजी भाषा के लिए, ‘दा'े‘ दबाए,ँ। श्याम प्रसाद आंसरिंग मशीन के सामने खड़ा— खड़ा सोचता है, ‘आखिर क्या दबाना है?' फिर वह अपने अक्ल के घोड़े दौड़ा कर और सामने पनवाड़ी की दुकान देखकर इस नतीज़े पर पहुँचता है, ‘शायद मुँह में पान दबाकर स्क्रीन के सामने दिखाना ह,ै ताकि दूर बैठी उद्‌घोषिका इशारा समझ जाए। वह अपनी पानदानी में से एक पान निकाल कर स्क्रीन के सामने मुँह फाड़कर दाँतों के नीचे दबा लेता है। अनजाने में उस के हाथ से 'एक' दब जाता है। आगे रिकॅाडिड मैसेज शुरु हो जाता है, ‘आगमन प्रस्थान की जानकारी के लिए, दो दबाए,ँ अथवा रिज़र्वेशन से संबंधित जानकारी केे लिए, पाँच दबाए,ँ।

श्याम प्रसाद अपनी पत्नी से कहता है, अरी ! भागवान दो पान और पकड़ाओ । वह फिर से स्क्रीन की ओर मुँह फाडकर दो पान दाँतो के नीचे दबा लेता है। उनका शरारती बेटा—किसन' खेलख्ेाल में दो दबा देता है। आन्सरिंग मशीन की कार्यवाही फिर शुरु हो जाती ह,ै ‘कृपया गाड़ी संख्या दबाए,ँ।' श्याम प्रसाद अपनी पत्नी ‘सुभद्रा' से कहता है, ‘अरी भागवान! गाड़ी संख्या तो बहुत बड़ी है। हम इतने पान कैसे खाँए? पत्नी भड़कते हुए, कहती हैं, ‘अरे! ‘किसन के बाबूजी तुम्हें तो कुछ भी नहीं समझ आता। दाँतों के नीचे पान नहीे दबाना। दाँतो के नाचे उँगलियाँ दबाकर दर्शाना है।

सुभद्रा, स्वयं स्क्रीन के सामने आ जाती है, तीन हजा़र, चार सो चौबीस को दर्शाने के लिए, क्रमश तीन, चार, दो और चार उँगलियाँ दाँतों के नीचे दबाकर स्क्रीन के सामने अपना चेहरा दिखाती है। आन्सरिंग मशीन से आवाज़ आती है, ‘हम आपके विकल्प की प्रतीक्षा कर रहे हैं।'

सुभद्रा का एक सोतेला पुत्र है, जिसका नाम है—‘विकल्प', उसे वह घर छोड़ आए, हैं।

सुभद्रा, श्याम प्रसाद से कहती है, ‘इस कलमुँही को विकल्प के बारे में कैसे पता चल गया।

इससे बत्तिया कर हमारा गला सूख गया और यह कलमुँही विकल्प के इन्तज़ार में बैठी है। सारे गाँव को पता चल जाएगा, हम विकल्प को साथ नहीं ले जा रहे हैं।'

श्याम प्रसाद अपने छोटे बेटे से कहता है, ‘जा रे किसन! विकल्प भैया को घर से बुला ला।'

किसन हवा की गति से घर पहुँता है। विकल्प को खींचता हुआ स्टेशन पर पहुँचता है।

उसके पहुँचते ही आन्सरिंग मशीन से आवाज़ आती है, ‘कृपया गाड़ी संख्या दबाए,ँ।‘ विकल्प भी अपने परिवार की तरह तुक्के लगाने में माहिर था, उसने गोविन्द प्रसाद के हाथ से टिकिट लिया और उस पर लिखी गाड़ी संख्या को अँगूठे से दबाने लगा। आन्सरिंग मशीन से आवाज़ आती है, ‘हम आपके विकल्प की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

सुभद्रा, विकल्प को धक्का देकर कहती है, ‘जा रे विकल्प!, वो लज्जाहीन तेरा कब से इन्तज़ार कर रही है। आज हमें तो कुछ नहीं बताएगी।'

विकल्प भी शर्मीले नयन लिए दौड गया,़ न जाने किस अनजान बगीचे की ओर।

सुभद्रा, श्याम से कहती है, ‘चलो, किसन के बापू हम किसी ओर से पूछ लेते हैं, गाड़ी किस चबूतरे (प्लेटफार्म) पर लगेगी।' सुभद्रा, वहाँ खड़े व्यक्ति से कहती है, ‘ये मशीन मानसी तो हमारे विकल्प के लिए, बावली हो गई है। तुम ही बता दा,े ‘बेटा!' आगरा जाने वाली गाड़ी किस चबूतरे पर आएगी?

व्यक्ति ने जवाब दिया, ‘चाची! आगरा की गाड़ी तो कब की स्टेशन से छूट गई।

सुभद्रा, फर्श पर बैठकर ज़ोर ज़ोर से रोने लगती है, ‘हाय हम तो लूट गए, बरबाद हो गए। मशीन मानसी, हमें बाँतों में लगाकर, हमारे विकल्प को लेकर आगरा भाग गई।'

श्याम प्रसाद भी उसके सुर में सुर मिलाने फर्श पर बैठ जाता है। दोनों एक सुर में कहते हैं, ‘अब हम कौन सा मुँह लेकर गाँव वापिस जाएँगे।

— सुमन शर्मा

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