ईक दीन भोर अवश्य होगी - National Story Competition- Jan 2018 Neerja Dewedy द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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ईक दीन भोर अवश्य होगी - National Story Competition- Jan 2018

इक दिन भोर अवश्य होगी

नीरजा द्रिवेदी

“शुचि! घर के दरवाज़े ठीक से बंद कर लेना. मैं पड़ोस में रहमान चाचा के यहाँ जा रहा हूँ. आज ईद है मुझे आगरा से लौटने में देर हो गई अतः जा नहीं पाया.”—कहते हुए शलभ माथुर पठान सूट पहन कर बाहर जाने की तैयारी करने लगा.

“ज़रा देर रुकिये, मैं भी चलती हूँ. शाइंदा चाची से मिले बहुत दिन हो गये.”—शुचिता बोली .

“इतनी रात में बाहर जाकर क्या करोगी? इस समय साम्प्रदायिक तनाव चल रहा है.’’—शलभ ने चिंतित होकर कहा.

“आप क्या कह रहे हैं? हमारे मुहल्ले में आज तक कुछ नहीं हुआ. हिंदू-मुसलमानों में परस्पर कितना भाईचारा है. यदि ईद पर मैं चाची के यहां नहीं गई तो वह मुँह फुला लेंगी.”—शुचिता ने उत्तर दिया.

“शुचि अभी तक तो मुझे कोई चिंता नहीं रहती थी परंतु आज आगरा से लौटते समय फिरोज़ाबाद में हिंदू-मुस्लिम दंगा हो गया. दोनों धर्मों के लोग मनुष्य नहीं हिंसक पशु बन गये थे. “अल्लाहो अकबर’’ और “हर-हर महादेव’’ के नारे लगाते हुए लोगों की भीड़ एक-दूसरे के खून की प्यासी हो गई थी. हाथों में लाठी-डंडे, कट्टे, चाकू लिये वे लोग एक दूसरे के मुहल्ले में घुसकर आगजनी कर रहे थे और किसी को भी घायल कर दे रहे थे.-- पुलिस न आ जाती तो ---मेरा भी न जाने क्या हाल होता?—हिचकिचाते हुए शलभ के मुँह से निकल गया.

यह सुनकर शुचिता के मुख से कंपकपाते हुए निकला--–‘’क्या कह रहे हैं आप’’-- और उसका मुख सफेद हो गया.

शुचिता की घबराहट को देखकर शलभ ने स्वयं को संयत करते हुए कहा—“अरे शुचि, घबराहट में मैं तो यह भूल ही गया कि यह हमारा मुहल्ला है और बचपन से लेकर अब तक मुझे कभी यह नहीं लगा कि मुसलमानों के मुहल्ले में हमारा यह अकेला हिंदुओं का घर है. जल्दी चलो नहीं तो रहमान चाचा और शाइंदा चाची कभी माफ नहीं करेंगी.’’—शलभ ने कहा.

शलभ और शुचिता बच्चों को साथ लेकर रहमान बेग के यहां जाने के लिये चल दिये. साम्प्रदायिक तनाव होने के कारण पुलिस के बूटों की खट‌-पट और दूसरे मुहल्लों से ‘’अल्लाहोअकबर’’ या ‘’हर-हर महादेव’’ के स्वर बीच-बीच में सुनाई दे जाते थे. आज न जाने क्यों ये स्वर सुनकर शलभ और शुचिता सिहर उठे. मुहल्ले की दूसरी गली में चौथा दुमंज़िला मकान रहमान चाचा का है. रहमान चाचा शलभ के परिवार को देखकर खिल उठे. शलभ को गले लगाकर उन्होंने शुचिता और बच्चों को जनानखाने में भेज दिया. शलभ बोला---“ अस्सलामवालेहुकुम चचाजान, ईद मुबारक हो’’.

“वालेहुकुमसलाम, तुम सबको भी ईद मुबारक हो”. मियाँ कहाँ रह गये थे तुम? मैं तो तुम्हारा इंतज़ार करके उम्मीद छोड़ चुका था.’’—रहमान बेग बोले.

‘’चचाजान मुझे आगरा से लौटने में देर हो गई इस कारण हम लोग देर में आ पाये.’’

‘’कोई बात नहीं आज हम सब साथ खाना खायेंगे. मेरे यहां की पर्दानशीन खवातीनें अब तक अपने घर जा चुकी होंगी.’’—कहते हुए रहमान बेग ने शाइंदा को आवाज़ लगाई—‘’बेगम! सब मुसम्मात जा चुकी हों तो खाना लगवा लो. सब एक साथ खाना नोश फरमायेंगे.’’

रहमान बेग और शाइंदा के प्यार भरे आमंत्रण से सबने साथ-साथ भोजन किया. उस समय उस प्यार भरे वातावरण में शलभ और शुचिता के मन में एक बार भी यह विचार न आया कि ये लोग हमसे अलग हैं या हमारे धर्म के नहीं हैं. चाचा और चाची ने अपने बेटे, बहुओं एवं पोते-पोतियों के साथ शलभ, शुचिता और बच्चों को भी त्योहारी दी. बच्चों को नींद आ रही थी अतः शुचिता बच्चों को लेकर घर चली गई. रहमान चाचा का बेटा शाकिर उसे घर तक पहुँचा आया. चाचा ने शलभ को कुछ देर के लिये रोक लिया.

सबके जाने के बाद रहमान बेग के यहां ऊंचा-ऊँचा पाजामा, लम्बा कुर्ता, दुपल्ली टोपी लगाये काली दाढ़ी और सफेद दाढ़ी वाले कई मुसलमान एकत्रित हुए.

“जनाब आज ईद के दिन क्या काम आ गया कि आपने मीटिंग बुला ली.”—एक बुज़ुर्ग ने प्रश्न किया?

“रहमत खाँ साहब अभी-अभी आगरा से लौटे हैं. बडी सनसनीखेज़ खबर लाये हैं”—रहमान बेग ने कहा.

“मैंने सुना है कि फिरोज़ाबाद मेँ गौरक्षकों ने अब्दुल को पीट-पीट कर मार डाला. वह हमारे बगल के मुहल्ले का था. वहां भी दंगा भड़क उठा है. लोग आगजनी और तोड़फोड़ कर रहे हैं.’’—एक युवक ने तैश में आकर कहा.

“मुझे मालूम हुआ है कि विपक्ष के कुछ राजनैतिक दल जो सरकारी नीतियों की सफलता नहीं चाहते हैं वे बाहुबलियों की सहायता ले रहे हैं. उन्हें पैसे देकर कहा जा रहा है कि गले में भगवा दुपट्टा डालकर घूमो और जहां भी गोरक्षक किसी मुसलमान को रोक कर पूछ्ताछ करें वहां पहुंचकर मामले को इतना तूल दो कि दंगा हो जाये.’’—रहमानबेग बोले.

“ऐसा नहीं हो सकता. अपनी पेशबंदी में यह झूठी खबर फैलाई जा रही है.’’—एक काली दाढ़ी वाले व्यक्ति ने गुस्से से कहा.

“अमां मेरी बात तो सुनो’’ –रहमत खां ज़ोर से बोले. रहमत खाँ सफेद दाढ़ी वाले एक समझदार मौलवी थे. अपनी आंखों पर सुनहरा चश्मा ठीक करते हुए बोले तो सब एकदम चुप हो गये. रहमत खान ने खाँस कर गला साफ किया और कहने लगे----“आज मैं आगरा से लौट रहा था तो मैंने पूरा वाकया अपनी आंखों से देखा था. फिरोज़ाबाद में अब्दुल एक गाय व बछडे को खरीद कर ट्रक पर लदवा रहा था. उसी समय तीन-चार भगवा डुपट्टे डाले युवकों ने गाय के बारे में जानकारी की. वे पूछ्ताछ कर हटने वाले थे कि न जाने कहां से पाँच-छे भगवा डुपट्टे वाले आये और अब्दुल को गाली देकर पीटने लगे—“झूठ बोलता है. मुझे मालूम है कि गौ माता को काटने को ले जा रहा है. उनकी हरकतों से वहां उपस्थित लोगों में उत्तेजना फैल गई. मैं ट्रैफिक जाम में टैक्सी में फंसा यह सब देख रहा था. इतने में जो दल बाद में आया था उन्होंने अब्दुल पर डंडे व चाकू से हमला शुरू कर दिया. इसी बीच में एक आदमी ने अब्दुल पर तड़ातड़ कट्टे के वार कर दिये और भाग निकला. मैंने उस आदमी को अच्छी तरह देखा था. वह बदायूँ का नामी बदमाश कल्लन खान था. उसके साथ वाले दो व्यक्तियों को मैंने अक्सर उसके साथ देखा है.”—रहमत खान ने घटना का विवरण सुनाया.

“हो सकता है कल्लन ने अब्दुल को बचाने को गोली चलाई हो और अब्दुल को धोखे से लग गई हो.”—एक व्यक्ति बोल पड़ा.

“मियां क्या बात करते हो? मेरी आँखों के सामने का वाकया है. क्या मैं मरने और मारने का अंतर नहीं समझता. अमाँ मेरी दाढ़ी धूप में सफेद नहीं हुई है. मुझे तज़ुर्बा है कि किस घटना का क्या मकसद है? मैंने उड़ती-उड़ती खबर सुनी थी कि माहौल खराब करने के लिये विपक्षी दलों द्वारा अपने-अपने दल के हिस्ट्रीशीटरों और बाहुबलियों का सहारा लिया जा रहा है. मेरी आँखों के सामने यदि यह घटना न घटती तो मैं इसे अफवाह समझता.”—रहमतखान बोले.

“आपने हमें क्यों ज़हमत दी है? पुलिस अपना काम करेगी.’’ एक युवा स्वर उबासी लेते हुए उभरा.

रहमान बेग बोले—“ क्या हम इस देश में नहीं रहते? क्या हम भारतीय नहीं हैं? हमारा अपना कोई फर्ज़ नहीं है?’’

“हमें मुसलमान समझ कर हमारे साथ भेद-भाव किया जाता है. हमारी कौम गरीबी के कारण एक-एक चीज़ के लिये मोह्ताज है---‘’ एक युवक तैश में आगे बोलने जा रहा था तो मौलवी साहब ने उसे चुप करा दिया और बोले—

“अपने सीने पर हाथ रखकर देखो और सोचो कि क्या यह सच है? क्या हमारी कौम अपनी गरीबी और मोहताज़ी के लिये स्वयं जिम्मेदार नहीं है? हमारे लड़के पढ़ते-लिखते नहीं और बुरी सोहबत में फँस कर बुरे ऐब अख्तियार कर लेते हैं. जो इक्के-दुक्के पढ़ लिख जाते हैं तो बताओ कि इस देश में उन्हें आगे बढ़ने से कब रोका गया? वे ऊंचे-ऊंचे ओहदों पर हैं. ज़ाकिर हुसैन और अब्दुल कलाम जैसे भारत में मुसलमान राष्ट्रपति बने हैं. अभी हाल तक नसीम ज़ैदी चुनाव आयुक्त थे. उत्तर प्रदेश में जावेद अहमद पुलिस महानिदेशक थे. अहमद हसन मंत्री थे. जम्मू का एक मुस्लिम युवक आई.ए.एस. बन गया. योग्य बनो और तब भेद-भाव हो तब यह बात कहना. जितना यहां तुम्हारा ध्यान रक्खा जाता है उतना तुम्हारे सपनों के देश में नहीं.’’ कुछ देर साँस लेकर वह फिर कहने लगे---‘’रही गरीबी और मोहताज़ी की बात. यदि ध्यान दो तो तुम्हें इसका कारण स्वयं पता चल जायेगा.’’

‘’क्या कारण है?’’—युसुफ ने प्रश्न किया.

‘’देखो बेटा समय के साथ बदलते रहते हैं तो तरक्की होती है नहीं तो गरीबी और ज़हालत होती है.’’---रहमान बेग बोल पड़े.

“कैसे---?”-एक साथ कई स्वर उभरे. शलभ इस महौल में असहज अनुभव कर रहा था अतः धीरे से उठने का उपक्रम करने लगा तो रहमान बेग ने उसे कंधा पकड़ कर बैठा लिया. उपस्थित लोगों का ध्यान भी उधर गया पर उसके पठान सूट को देख कर वे सशंकित नहीं हुए.

“मुसलमान योद्धा पर्शिया, अफ्गानिस्तान, काबुल, अरब् देशों से भारत को लूटने आये थे. कुछ यहां रह गये. अधिकांश यहाँ मज़हब बदलकर मुसलमान बने हैं. उस समय युद्ध में हज़ारों व्यक्ति मारे जाते थे. उस स्थिति में मुसलमानों को चार पत्नी रखने, जनसंख्या बढ़ाने, बेवा मुसम्मातों को संरक्षण देने का चलन मज़हब के अनुकूल माना गया. अल्लाह की इबादत करो और कुरान की अन्य तर्कसंगत बातों को मानो परंतु आज के समय यदि अनेकों निकाह करोगे और अपने साधन से अधिक जनसंख्या बढ़ाओगे तो गरीबी और मुफलिसी का सामना तो करना पडेगा.”—रहमत खान ने अपनी सफेद दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए कहा.

“आज हम लोग दूसरे मसले पर बात करने इकट्ठे हुए हैं. “---रहमान बेग ने बातों का रुख मोड़ते हुए कहा.

सब लोग उनकी तरफ ध्यान से देखने लगे. रहमान बेग ने कहा—“अभी-अभी मौलवी साहब ने जैसा बताया है हम सब को चौकन्ने रहने की आवश्यकता है और अपने साथियों को भी आगाह करना है कि माहौल को बिगड़ने से बचाने के लिये कदम उठायें.”—रहमान बेग ने कहा.

कुछ सदस्य नये थे अतः रहमान बेग ने फिर से सब नियम दुहराये.

1. अपने-अपने मुहल्लों में शरारती तत्वों पर निगाह रक्खी जाये और कोई संदेहास्पद बात पता चले तो मौलवी रहमान खान साहब को या मुझे बताया जाये. हम उसकी तफ्तीश करके जनपद के अधिकारियों को सूचित करेंगे.

2. अपने क्षेत्र के मंदिर-मस्जिद पर निगाह रक्खी जाये कि कोई शरारती व्यक्ति उसमें छेड़खानी करके माहौल न बिगाड़ दे. एक बार मस्जिद में सुअर का मांस फेंकते हुए हमारी कौम का आदमी हमारे साथियों ने पकड़ा था.

3. कोई भी उत्तेजनात्मक घटना की सूचना मिलते ही भीड़ में पहुंच कर दंगे में शामिल हो जाने की जगह मामले की तह तक पहुँचने की कोशिश करो और समझदार लोगों की सहायता से दंगा भड़कने न दो.

4. यदि कोई व्यक्ति उत्तेजनात्मक और भड़काऊ बातें करता है तो चाहे वह किसी भी कौम का है, हमें तुरंत बताओ.

5. युवा वौलंटियरों के नाम और मोबाइल नम्बर की सूची मुझे और मौलवी साहब को दे दो. हर वौलंटियर को सप्ताह में अपने मुहल्ले में दो दिन पहरा देना है. सबके पास सीटी, टौर्च और मोबाइल होना चाहिये. उन्हें हमारे फोन नम्बर भी मालूम होने चाहिये.

इसके बाद रहमानबेग ने शलभ का सबसे परिचय कराया. बोले—“यह मेरे बेटे जैसा ही है. इसके कहने पर मेरे दिमाग में भी यह बात आई कि जैसे यह मेरा अज़ीज़ है ऐसे ही अनेकों हिंदू और मुस्लिम एक दूसरे के अज़ीज़ होते हैं. लोगों की नफरत फैलाने वाली हरकतों के कारण जो एक दूसरे से अजनबी होते हैं वे दंगे में एक दूसरे को नुक्सान पहुँचाते हैं. तोड़फोड़ करते हैं. आगजनी करते हैं और हत्यायें करते हैं. ध्यान से देखा जाये तो वास्तव में जो तमाशबीन होते हैं वे ही पकड़े जाते हैं और बेकसूरों को ही नुकसान उठाना पड़ता है. जो दंगा भड़का रहे थे वे तो तोड़-फोड़ करके वहाँ से गायब हो जाते हैं. बस में आग लगाना, ट्रेन में तोड़-फोड़ करना, सरकारी सम्पत्ति को नुकसान पहुँचाना—ये सब क्या है? ये सरकारी नुकसान सरकार का नहीं हम सबका है क्योंकि जो भी टूट-फूट होती है उसका खामियाज़ा हम सब भरते हैं नये-नये टैक्स भर कर. शलभ ने हिंदू स्वयँसेवकों की एक संस्था बनाई है और उसके नियम भी इसी प्रकार के हैं.”

शलभ ने उठकर सबको ईद मुबारक कहा और बोला—“आप लोग सोच-समझ कर इस बात पर गौर करेँ. मैं आपके संज्ञान में एक और तथ्य लाना चाहता हूँ. मैं रहमान चचाजान के करीब रहा तो मुझे इस बात का ज्ञान है कि सब मुसलमान गलत नहीं होते हैं. मैंने अधिकांश सज्जन व्यक्ति देखे हैं पर हर हिंदू को यह सौभाग्य नहीं मिलता है. ऐसे में कुछ मौलवी, मुल्ला और गलत व्यक्तियों की बातें देख सुन कर सब भ्रमित हो जाते हैं. इसी प्रकार कुछ हिंदू अतिवादियों के दुष्प्रचार से दोनों कौमें एक-दूसरे को गलत समझने लगती हैं. वास्तव में हिंदू धर्म बहुत सहिष्णु है. ( कुछ विरोधी स्वरों की फुसफुसाहट होती है, जिसे रह्हमत खान और रहमान बेग हाथ उठाकर शांत कर देते हैं.) यदि दोनों कौमों के विद्वान इन सम्वेदनशील विषयों पर चर्चा करने लगें. लेख लिखने लगें तो आपस के दृष्टिकोणॉं में सुधार होगा. इसके अलावा यदि हम दोनों की संस्थायें एक दूसरे से सम्पर्क रक्खें और सूचनाओं का आदान-प्रदान करें तो हम दंगों की भीषण त्रासदी से बच जायेंगे और ईद की सिँवैयाँ और होली की गुझियाँ सभी के लिये स्नेह की सौगात लेकर आयेंगी.”

सब लोगों ने ताली बजाकर इसका स्वागत किया. वे एक दूसरे के गले मिले और नई कार्य प्रणाली पर विचार करते हुए सौहार्दपूर्ण वातावरण में विदा हो गये.

शलभ जब घर पहुँचा तो उसके हृदय से फिरोज़ाबाद की घटना का दुष्प्रभाव कम हो गया था. फिरोज़ाबाद में अब्दुल की हत्या के बाद लोगों ने उसकी कार में आग लगाने की कोशिश की थी. मन ही मन वह थरथरा गया था. पुलिस ने आकर उसे बचा कर निकाल दिया था. उसने घर आकर शुचिता को कुछ बताया नहीं था कि वह घबड़ा जायेगी पर मन में निश्चय कर लिया था कि उसे मुस्लिम बहुल मुहल्ले से निकल कर कहीं और रहना है जहां हिंदू आबादी हो. रहमान चचा के यहाँ से लौट कर उसकी नकारात्मक सोच खत्म हो गई और मन में आशा की किरण जगी कि एक दिन भोर अवश्य होगी.

***