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कृष्ण की भू लोक यात्रा

कृष्ण की भू लोक यात्रा

“नारायण,’’ “नारायण,’’-खड़ताल बजाते महामुनि नारद देवलोक में अवतरित हुए

कृष्ण ने चुटकी लेते हुए कहा—“ क्यों मुनिराज, बहुत दिन बाद इधर कैसे?’’

नारद —- “कैलाश जाते हुए सोचा कि आपको भूलोक का शुभ समाचार दे दूँ.’’

“क्या समाचार है?’’ — कृष्ण ने पीताम्बर में वंशी खोंसते हुए प्रश्न किया?

“महाप्रभु! आपकी गौओं के शुभ दिन आ गये. भाजपा सरकार गौओं की रक्षा के लिये कड़े कानून बना रही है. उनकी रक्षा के लिये गौ रक्षक दल अपनी जान की बाजी लगा रहे हैं और गौ माता की रक्षा के लिये मानव हत्या करने से भी नहीं चूकते.’’ – नारद ने मुस्करा कर उत्तर दिया तो कृष्ण ने अविश्वास से उनकी ओर देखा. इस पर नारद बोले — “महाप्रभु! हाथ कंगन को आरसी क्या, आप स्वयं भूलोक चलकर देख लीजिये.’’

राधा के कानों में नारद की बातें पड़ीं तो कृष्ण से मनुहार करते हुए बोलीं—“कान्हा! मथुरा-वृंदावन में जन्माष्टमी की धूम अभी से प्रारम्भ हो गई है. क्यों न हम इस बार भूलोक का भ्रमण कर आयें और भूलोक की सत्यता की परख भी हो जायेगी.”

कामधेनु भी अनुनय करके बोली—“हे प्रभु! मेरी संतति बहुत कष्ट में थीं. मैं भी एक बार आपके साथ चल कर उनकी सुधि ले लूँ तो मेरा जिया जुड़ा जाये.’’

कृष्ण ने राधा का हाथ थामा, बंशी पीताम्बर में खोंसी और कामधेनु को साथ चलने का इशारा करते हुए भूलोक की ओर चल दिये. एक स्थान पर उनकी दृष्टि चहल-पहल पर पड़ी तो वह अदृश्य होकर नीचे उतर आये. उन्होंने देखा—एक बड़ा शामियाना लगाया गया है. कुर्सी, मेज़, पंखे, खाने-पीने की व्यवस्था हो रही है. माइक लगाकर ‘हलो’, ‘हलो’, ‘माइक टेस्टिंग’ की आवाज़ें आ रही हैं. सामने तारों से घिरे एक बड़े मैदान में फूलों और झंडियों से साज-सज्जा की जा रही है. एक किनारे पर लगभग चालिस फुट लम्बा और बारह फुट चौड़ा भवन बना हुआ है जिसके ऊपर खपड़ैल की छत बनी है. छत पर दो पंखे लगे हैं. भवन को भी झालरों से खूब सजाया गया है. उस भवन में छे बूढ़ी, दूध न देने वाली गायें बंधी हैं. भवन के ऊपर एक चमचमाता बोर्ड लगा है जिसके ऊपर बड़े अक्षरों में अंकित है---“गौ माता रक्षक गौशाला’’, ग्राम-नया गाँव, जनपद- औरैया. मंत्री जी इस गौशाला का निरीक्षण करने आने वाले हैं. नई सरकार की नीतियों के तहत कसाइयों और दलालों से छुड़ाकर लाई गई गायें यहाँ रक्खी जायेंगी.

मंत्री जी बड़ी शान-बान से पधारे. कृष्ण के लिये भी कभी इतनी भीड़ नहीं उमड़ती थी यह देख कर राधा को ईर्ष्या हुई. कामधेनु के नेत्रों में अपनी संतति के लिये की जाती व्यवस्था देख कर हर्ष के अश्रु प्रवाहित होने लगे. उसने देखा कि एक लड़का किसी गाय के गोबर करते ही तुरंत गोबर उठाकर खाद बनाने के गड्ढे में डाल देता है और वाइपर से तुरंत गीली ज़मीन को साफ करता है. उद्घाटन के उपरांत गौशाला का निरीक्षण करते समय मंत्री जी ने आगे बढ़ कर नाद में हाथ डालकर चारे की गुणवत्ता और पोषकता का परीक्षण करते हुए फोटो खिचवाये. पानी के लिये लगाये गये पम्प देख कर वह अत्यंत प्रसन्न हुए कि पीने और नहाने के लिये पर्याप्त व्यवस्था है. (यह दूसरी बात है कि बिजली की आपूर्ति न होने पर गायें प्यासी मरेंगी).

गायों की व्यवस्था से संतुष्ट और स्वागत एवं भोजन की व्यवस्था से प्रसन्न होकर मंत्री जी ने सरकारी अनुदान देने की घोषणा करते हुए अपने भाषण में कहा—“हम सब जानते हैं कि जीवित रहते हुए गऊ माता हमें अपने दूध, गोबर और मूत्र से उपकृत करती है और मरने पर अपने चर्म, सींग और हड्डियों से अनेकों को व्यवसाय करने के साधन देती है. दूध न देने पर और बुड्ढे हो जाने पर उसे कसाई को सौंप देना कहां तक उचित है? हम शपथ खायें कि हम गौ माता के दो जून चारे की जुगत करेंगे और उनके प्राणों की रक्षा करेंगे.---“ मंत्री जी के सम्वेदनात्मक भाषण को सुनकर कुछ ने आँखें पोंछीं. भीड़ ने शपथ खाई और गौ रक्षक दल बनाने की घोषणा की.

कृष्ण मन ही मन अपनी प्यारी गायों की कल्याण्कारी योजनाओं को देख सुन कर संतुष्ट एवं हर्षित हो उठे. वर्षा का मौसम था. प्रकृति राधा-कृष्ण की उपस्थिति से रस विभोर हो उठी. श्यामल घटायें उमड़ती-घुमड़ती, पवन झकोरों संग कल्लोल करती जड़-चेतन को रिझाने लगीं. मयूर द्रुति गति से छूम-छनन-छनन नृत्य करने लगे और चपलता से अपने सुंदर पंखों का प्रदर्शन करते हुए नृत्य करने लगे. मयूरियां मोहित होकर स्वर नाद की संगत देने लगीं. पक्षी चहचहाने लगे. कोयल और पपीहा परस्पर गायन प्रतियोगिता करने लगे. भला इस वातावरण की मोहिनी से कृष्ण कैसे अछूते रहते जब कि राधा उनके साथ थीं. वह वंशी अधरों पर लगाते हुए उपवन की खोज में चल दिये.

कामधेनु वंशी की मोहिनी के सम्मोहन से बचते हुए विदा लेने के लिये एक बार फिर उस भवन की ओर चल दी जहां गाय रक्खी गई थीं. उसे श्यामा गाय के नेत्रों में एक आक्रोश जनित पीड़ा का आभास मिला था. उसने गौशाला में पहुँच कर देखा कि मंत्री जी के जाते ही पंखे बंद कर दिये गये हैं. सफाई करने वाले छोकरे का भी कहीं पता नहीं है. कामधेनु ने स्नेहसिक्त वाणी में श्यामा को पास बुलाया‌‌‌--“बेटी! तुम सब मेरी ही नई पीढ़ी हो. मैं तुम्हारी आदि माता हूँ. मुझे प्रतीत होता है कि तुम कष्ट में हो. मुझे सच-सच बताओ तुम्हारे दुःख का क्या कारण है?‘’

श्यामा बोली—“हे महामाता! आप समझती होंगी कि गौशाला बना कर हमारे ऊपर उपकार किया जा रहा है. वास्तव में यह हमारे लिये अभिशाप है.’’ उसके नेत्रों से अश्रुधार प्रवाहित हो उठी.

“क्या कह रही हो श्यामा?’’‌—चौंक कर कामधेनु ने प्रश्न किया.

“यही सच है महामाता, ये गौशाला हमारे लिये यातनागृह हैं.’’—श्यामा गहरी साँस भरकर बोली—‘’जिस समय उद्घाटन होता है उस समय इन गौ शालाओं में रख-रखाव, चारा-पानी, सफाई सभी की व्यवस्था की जाती है परंतु धीरे-धीरे सब अपने कार्य कलापों में व्यस्त हो जाते हैं और हमें भुला देते हैं. जब किसी को याद आ गई तो चारा-पानी दे देता है अन्यथा भूखे-प्यासे दिन काटना पड़ता है. ये गौशाला तो पहले भी थी. दूध न देने वाली गायों को जो किसी का खेत चरने में पकड़ी जाती थीं लोग इस गौशाला में रखते थे. यहां पर बीस गाय थीं. चारे-पानी का ठीक प्रबंध न होने के कारण सब मर गईं. उनमें से केवल मैं बची हूँ. मेरी दो सहेलियों ने तो आज ही दम तोड़ा है. उनके शव को आनन-फानन में हटा दिया गया. आप कुछ देर पहले आतीं तो स्वयं यह अव्यवस्था देख पातीं. इसी चक्कर में यहाँ सफाई भी की गई है अन्यथा इस बरसात में गोबर की किच पिच से यहां जो दुर्दशा होती है उसका मैं वर्णन नहीं कर सकती.‘’

“बेटी! तुम समझ नहीं रही हो. पहले की अपेक्षा तुम अच्छी स्थिति में हो. कुछ लोग बूढ़ी गायों को कसाई को न दे कर छुट्टा छोड़ देते थे और समझते थे कि तुम्हें हत्या से बचा रहे हैं. वे कूड़े के ढेर से कचरा खाती थीं और पौलिथिन खाकर मर जाती थीं. कुछ दूसरों के खेत में चरने के लिये दो-चार मुँह मार पातीं कि अपने हाड़ तुड़ा बैठती थीं. जो कसाइयों को दी जाती थीं उनमें से कुछ झटका विधि द्वारा तुरंत मर जाती थीं और कुछ हलाल हो कर, मरणांतक यातना सहकर मरती थीं. तुम सोच कर देखो कि पहले गायों को दर-दर भटकना पड़्ता था और उनका कोई ठौर-ठिकाना नहीं था. अब तुम्हें सम्मान पूर्ण स्थान प्राप्त है और कुछ न कुछ तो खाने को मिल जायेगा.’’—कामधेनु ने समझाते हुए कहा.

श्यामा बोली—“ हे महामाता! आप वस्तुस्थिति समझ नहीं पा रही हैं. मेरे सामने इस गौशाला में कई गायें भूखी-प्यासी तड़प-तड़प कर मर गईं क्योंकि रखवाला बीमार हो गया था. जो गौ रक्षक कसाई के पास गाय देख कर भड़्क उठते हैं और उसे मरने-मारने पर उतारू हो जाते हैं उनमें से कोई भी दुबारा इधर नहीं झाँकता. कोई हमारी सुधि नहीं लेता कि एक बार हमारा हाल आकर देखे. आप देखियेगा कि जब हमारी संख्या ब‌ढ़ जायेगी तो भारत की असंख्य जनसंख्या वाली धरती पर हमारी और इसके साथ ही मानव समाज की कितनी दुर्दशा होगी? कहीं खड़े होने की जगह नहीं रहेगी. आज मीडिया वालों को गाय मरने की सूचना मिल गई इस कारण आप हर ओर की व्यवस्था ठीक देख रही हैं अन्यथा---“ कहते हुए श्यामा अश्रु गिराते हुए चुप हो गई.

कामधेनु ने श्यामा को आश्वस्त करते हुए कहा—“ बेटी! हिम्मत मत हारो. यह सरकार गौशालाओं को काफी अनुदान दे रही है. तुम सबकी स्थिति अवश्य सुधरेगी.”---बात पूरी करने के पहले ही आक्रोशित स्वर में श्यामा बोली---

“हमारी स्थिति या गौशाला के मालिकों की? महामाता! आप जानती नहीं हैं इन स्वार्थी लोगों को. आज भारत में भ्रष्टाचार और स्वार्थ चरम सीमा पर है. पिछली सरकार ने भी अनुदान दिये थे. परिणाम यह हुआ कि हमारी सहेलियां भूखी-प्यासी मर गईं और मालिक का दुमंज़िला मकान बन कर खड़ा हो गया. जो लोग स्कूल के छोटे-छोटे बच्चों के हिस्से का भोजन हड़पने में नहीं चूकते, जो अपने बूढ़े माँ-बाप को ठीक से नहीं रखते, उन्हें आदमखोर शेर का निवाला बना देने में नहीं हिचकते भला वे हमारी भलाई सोचेंगे ऐसा आपने सोच भी कैसे लिया?’’

कामधेनु निरुत्तर हो गई. पूछा—“अच्छा तुम ही बताओ कि क्या होना चाहिये?”

“महामाता! आप स्वयँ विचार करें कि जो लोग अपने माता-पिता को दर-दर की ठोकरें खाने को विवश करते हैं वे हमारे लिये मार-काट तो कर लेंगे पर हमारी यातनायें कम नहीं कर पायेंगे. मैं भुक्तभोगी हूँ. मेरा विचार यह है कि बूढ़े हो जाने पर जो लोग हमें ठीक से नहीं रख सकते वे हमें दर-दर ठोकरें खाने को न छोड़ें. केवल यह कानून बन जाये कि हमें जगह-जगह हलाल करके पीड़ादायक मौत न दी जाये. स्लौटर हाउस ( यांत्रिक बूचड़ खाने ) बनाकर त्वरित यंत्रणा हीन मौत प्रदान की जाये. यदि हमारा चर्म, सींग, माँस और हड्डियाँ किसी उपयोग में आ गईं तो यह हमारा सौभाग्य होगा. हम समझेंगे कि हम परमार्थ के लिये जिये और परमार्थ करके परम गति पाई.”

कृष्ण ने वंशी बजाते हुए कामधेनु को मथुरा चलने के लिये टेर लगाई. कामधेनु की चिंतित मुद्रा देख कर राधा ने कारण पूछा. कामधेनु राधा कृष्ण की प्रसन्न, मनमोहक मुद्रा देख कर सोच में पड़ गई. यहाँ की गति बदलना न उसके हाथ में है न कान्हा के तो उनकी प्रसन्नता को अवसाद में क्यों बदलूँ –यह सोच कर उसने एक गहरी साँस ली और स्नेह प्रदर्शन करते हुए कृष्ण के हाथ चाटने लगी.

अंतर्यामी कृष्ण सब समझ गये. कामधेनु के सर पर हाथ फेरा और वंशी बजाते हुए दुविधा में फँस गये कि मथुरा वृंदावन चलूँ या यात्रा यहीं पर समाप्त करके देवलोक की राह लूँ?

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