और वो शहीद हो गयी Ved Prakash Tyagi द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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और वो शहीद हो गयी

और वो शहीद हो गयी

ऋषभ को छुट्टी नहीं मिली तो आरती अकेले ही अपने माँ-बाप से मिलने पूना जा रही थी। सुबह सुबह ऋषभ आरती को स्टेशन पर छोडने आया और ट्रेन के चलने तक आरती के पास ही बैठा रहा, जब ट्रेन धीरे धीरे चलने लगी तो ऋषभ आरती को सब समझाकर नीचे उतार गया। ट्रेन धीरे धीरे आगे बढ़ रही थी ऋषभ भी तेज तेज कदमों से आरती की खिड़की के साथ साथ प्लैटफार्म पर चल रहा था। ट्रेन की गति तेज होने लगी और ऋषभ पीछे छूटने लगा, आरती ने खिड़की से बाहर झांक कर अपना हाथ हिलाकर ऋषभ से विदा ली और ऋषभ भी भारी मन से वहीं खड़ा हो कर अपना हाथ हिलाता रहा, ट्रेन पूरी गति से आगे बढ़ गयी और ऋषभ की आँख भर आई, पहली बार आरती को अकेले खुद से दूर भेज रहा था।

पापा की तबीयत ठीक नहीं है, मम्मी ने फोन पर बताया था तभी से आरती परेशान थी और ऋषभ से पूना जाने के लिए कह रही थी। सेवा निवृत होकर आरती के पापा ने पूना में ही घर खरीद लिया था और वहीं पर उन्हे आरती के लिए एक अच्छा लड़का ऋषभ मिल गया था लेकिन उन्हे क्या पता था कि बच्चों को काम के सिलसिले में सूरत जाना पड़ जाएगा। सूरत में ऋषभ ने कंपनी का सारा काम संभाल रखा था और यही कारण थी कि कंपनी उसे ज्यादा दिन की छुट्टी देने में असमर्थ थी। आरती अपने माँ-बाप की एकमात्र संतान थी, जीवन में माँ-बाप का भरपूर प्यार मिला था, अब दोनों बूढ़े हो चले थे अतः उनको कुछ भी हो तो आरती चिंतित हो जाती थी।

ट्रेन पूरी गति से चल रही थी कि अचानक एक ज़ोर का झटका लगा, पूरी की पूरी ट्रेन नदी में गिर गयी, कुछ डिब्बे पानी में और कुछ पानी के बाहर, इसके बाद आरती बेहोश हो गयी, जब उसे होश आया तो स्वयं को ऐसी जगह पाया जहां कि उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी।

रेल दुर्घटना का पता चलते ही ऋषभ घटनास्थल पर पहुंचा लेकिन आरती उसे वहाँ नहीं मिली, खोज खबर करने पर पता चला कि उसके माँ-बाप बेहोश हालत में उसे यहाँ से ले गए। ऋषभ ने पूना में आरती के माँ-बाप से बात की तो उन्होने आरती के बारे में कुछ भी पता होने से मना कर दिया तब ऋषभ ने रेलवे प्रशासन से इसकी शिकायत की। रेलवे प्रशासन और पुलिस ने बताया कि आरती जिसका नाम बदलकर कर सुंदरी बताया और अपना नाम पीताम्बर व शीला बताकर वो लोग उसको अपनी बेटी बताकर ले गए। ऋषभ ने उनके पते पर जाकर देखा तो वो पता भी गलत निकला, तब ऋषभ ने आरती का फोटो सभी अखबारों में दिया, दूरदर्शन पर दिखाया एवं पुलिस में शिकायत भी दर्ज कराई। आरती को ढूँढने में ऋषभ ने जमीन आसमान एक कर दिया लेकिन आरती का कहीं पता नहीं चला और न ही उन लोगों का पता चल पाया जो आरती को सुंदरी बनाकर और अपनी बेटी बताकर ले गए थे।

आरती देह व्यापार के बहुत बड़े अड्डे पर पहुंचा दी गयी थी जहां पर और भी लड़कियां बंदी बनाकर रखीं गयी थी। जो भी लड़की जरा भी विरोध करती तो उसको रस्सियों से बांधकर बुरी तरह पीटा जाता एवं तरह तरह की यातनाएं दी जाती। यह सब देखकर आरती का मन बुरी तरह घबरा गया। शाम को उस कोठे की मालकिन जिसे सब बड़ी दीदी कहते थे डॉक्टर को लेकर आरती के पास आयी।

डॉक्टर ने आरती का पूरी तरह से निरीक्षण किया और बड़ी दीदी को बताया, “अब यह बिलकुल ठीक है, अब आप इससे काम करवा सकती हैं।” डॉक्टर को विदा करके बड़ी दीदी अपने दो अंगरक्षकों के साथ आरती के पास आई और आरती को कुछ अजीब से कपड़े देकर बोली, “अब तू ठीक हो गयी है, हमारे लाखो रुपए तेरे ऊपर खर्च हो गए हैं, अब कमाने का समय है, आज एक बड़ा सेठ तेरे पास आ रहा है, ये कपड़े पहन कर तैयार हो जाना और उस सेठ को खुश करना, आज की रात के लिए तेरी अच्छी कीमत दी है सेठ ने, चल अब जल्दी से तैयार हो जा।”

आरती बुरी तरह से फंस चुकी थी लेकिन उसने परिस्थिति से लड़ने की योजना बनाई। आरती के पिता सेना से सेवा निवृत हुए थे। अपनी पूरी सेवा के दौरान पूरे परिवार को वहीं छावनी में सदैव अपने साथ ही रखा था जिससे आरती के अंदर इतनी बहदुरी तो थी कि वह आसानी से हार मानने वाली नहीं थी।

आरती ने सेठ की गर्दन पर एक वार किया जिससे वह बेहोश हो गया और वह वहाँ से भाग निकली लेकिन भाग कर भी कहाँ जा सकती थी, बाहर भी पान वाला बड़ी दीदी का ही आदमी बैठा था। जैसे ही आरती जीने से नीचे उतरी तो पान वाले ने दो और लोगों के साथ मिलकर आरती को वापस कोठे पर पहुंचा दिया जहां पर आरती को रस्सियों से बांध कर बुरी तरह से पीटा गया और फिर एक दीवार को, खिसका कर आरती को उसमे बंद कर दिया गया। दीवार में आरती सिर्फ सांस ले सकती थी, हिल डुल भी नहीं सकती थी और न ही हाथ पैर चला सकती थी।

पूरे दिन दीवार में कैद करने के बाद जब आरती को निकाला गया तो वह पीली पड़ चुकी थी, तुरंत डॉक्टर को बुलाया गया एवं उसको ग्लूकोस चढ़वाया गया। आरती समझ चुकी थी कि यहाँ से निकला भागना इतना आसान नहीं है। उसने दूसरी लड़कियों से बात की जिन्होने तुरंत ही मना कर दिया क्योंकि उन्होने भी कई बार वहाँ से भागने की कोशिश की थी लेकिन तुरंत ही पकड़ी गईं।

मिलिट्री छावनी में पली बढ़ी और मिलिट्री स्कूल मे पढ़ी हुई आरती इतनी जल्दी हार मानने वाली नहीं थी और उसने फिर से एक बार वहाँ से भागने की कोशिश की। इस बार वहाँ से भागने के लिए उसने गुप्त रास्ता चुना लेकिन बाहर निकलने से पहले उसको कुछ लोगों की आपस में बातें करने की आवाजें सुनाई दी, उन लोगों की बातों से लग रहा था कि वहाँ पर कुछ देश-विरोधी गतिविधियां चल रही हैं।

आरती ने छुप कर उनकी बातें सुनी तो पता चला कि वे सभी लोग पाकिस्तान से भेजे गए आतंकवादी हैं, बड़ी दीदी के नेतृत्व में ये सब चल रहा है। आरती को यह समझते देर नही लगी कि बड़ी दीदी ISI की एजेंट है और वह यह भी समझ गयी थी कि ये लोग काफी खतरनाक हैं और इनसे उलझना भी खतरे से खाली नहीं है। आतंकियो की बात से आरती यह भी समझ चुकी थी कि उनका पूरे शहर को दहलाने का इरादा है इसलिए उसने शहर को आतंकियों के धमाके से बचाने का निर्णय ले लिया।

आरती के मन में अब एक बलिदान की भावना भर गयी थी जिससे उसके अंदर का भय समाप्त हो गया था अतः वह वहाँ से बाहर निकल आई। बाहर बैठे पान वाले और उसके दो आदमियों ने आरती को रोकने की कोशिश की लेकिन वह उन तीनों को ज़ोर से धक्का मार कर वहाँ से भाग निकली और भागती ही चली गयी। पान वाले ने शोर मचा दिया तो कुछ हथियार बंद आदमी गाड़ी लेकर उसके पीछे भागे, आरती पूरी ताकत से थाने की तरफ दौड़ रही थी, वह थाने में घुसने ही वाली थी कि उनमे से एक आतंकवादी ने आरती को गोली मार दी। गोली की आवाज सुनते ही थाने से पुलिस दौड़ कर बाहर आ गयी, पुलिस को देखकर आतंकवादी वहाँ से भाग गए। पुलिस ने आरती को अंबुलेंस से हस्पताल पहुंचाने का भरसक प्रयास किया लेकिन उसने रास्ते में ही दम तोड़ दिया।

आरती ने मरने से पहले अपना पूरा ब्यान रेकॉर्ड करवा दिया और पुलिस ने तुरंत ही छापा मार कर बड़ी दीदी सहित सभी आतंकवादियों को पकड़ लिया। ऋषभ को जैसे ही पता चला वह आरती के माँ-बाप को लेकर हस्पताल पहुँच गया। आरती के इतने बड़े काम के लिए उसको सैनिक सम्मान दिया गया और उसी तरह ही उसका अंतिम संस्कार भी किया गया। आरती देश के दुश्मनों से लड़ते हुए शहीद हो गयी शायद भगवान ने आरती को रेल दुर्घटना से इसलिए ही बचाया था कि वह देश के काम आ सके।