पापा कि गुड़िया Divana Raj bharti द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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पापा कि गुड़िया

पापा कि गुड़िया

भाग-2

दिवाना राज भारती

अगले दिन जब मैं शहर वापस आ रहा था, तो मैं शांत और गहरे सोच में दुबा था, क्योंकि गुड़िया कि शादी और दहेज को लेकर हि तरह-तरह के ख्याल मन मे आ रहे थे। हम कहते हैं कि हमारा देश बदल रहा, आगे बढ़ रहा हैं, आजकल लड़कियां लड़कों से कम नहीं हैं, शिक्षा का स्तर तेजी से आगे बढ़ रहा हैं, और दुसरी तरफ एक पिता दहेज के पैसे जोड़ने के लिए खुद को भी गिरवी रख देता है, फिर भी उनकी बेटी को खुशी शायद ही नसीब होती है, क्योंकि आये दिन दहेज के लिए लड़की कि हत्या की खबर आते ही रहती है। जिसमें कुछ लड़की तो घरवालों के अत्याचार से तंग आकर, अपनी जान खुद ही ले लेती है तो कुछ के परिवारवाले मिल के। और इस तरह की बातें छोटे गरीब घर मे कम, बड़े पढ़े-लिखे घर मे ही अक्सर देखने को मिलते हैं। हम आखिर किससे उम्मीद करे कि वो दहेज प्रर्था खत्म करने मे हमारी मदद करेंगे, क्योंकि जिस घर से दहेज कि मांग कि जाती है वो कोई मूर्ख अनपढ़ लोग नहीं होते है, वो लोग तो अच्छे पढें लिखें होते है, जैसे शिक्षक, इंजीनियर और सरकारी पदो पे काम करने वाले अच्छे पढें लिखें लोग। दहेज तो आजकल किसी छुआछूत बिमारी कि तरह फैलने लगी है, अब तो देखा-देखी के वजह से इसमें भी प्रतिस्पर्धा होने लगी है जैसे अगर किसी प्राथमिक स्कूल के शिक्षक को पाँच लाख दहेज मिलता है तो माध्यमिक स्कूल के शिक्षक अपनी मांग आठ लाख रखते है, उनका कथन होता है यदि उससे कम पद वाले को इतना मिला तो उसे उस से कम क्यों मिलना चाहिएं। जिस वजह से इस रिश्ते के बाजार मे निकम्मे लड़के, यानी वो जो बिना कुछ किये मुफ़्त कि रोटी तोड़ता हो, उसका भी दाम बढ़ जाता है। एक तरह से सही भी है अगर बिना कुछ किये शादी मे इतना पैसा और मनपसंद समान मिल रहा है तो कोई कुछ करना चाहेगा क्यों, उसके सपने तो घर बैठे ही पूरे हो रहे है। मुझे तो हँसी आती है उन लोगों पे,जो अपनी बेटी के शादी में दहेज देते है, मुझे तो ये समझ नहीं आ रहा है कि दहेज देते किस बात को लेकर है, ऐसा भी नहीं है दहेज देने से लड़की को, लड़के के घरवाले बड़े खुशी से महारानी की तरह रखते है, या फिर लड़की से घर का काम नहीं करवाते हो, दहेज देने के बाद भी तो उसके साथ लड़ाई-झगड़ा उसके उपर अत्याचार ही होता है। मैं कहता हूँ वो लड़का जो अपना और अपने घर के जरूरत का समान नही खरीद सकता, अपने सपने अपने दम पे पूरा नहीं कर सकता, वो आपकी बेटी को क्या खुश रखेगा। चाहे आप जितना भी पैसे दहेज मे दे दे। ऐसा भी नहीं है कि एक बार शादी हो गयी, लड़के को आपने पैसा दे दिया और टेंशन खत्म,उसके बाद जब भी रूपये कि जरूरत पड़ेगी, वो आपसे मांगते नहीं कतरायेगा क्योंकि उसका मन तो आपने ही पहले बढ़ा दिया था। मेरा मानें तो अगर आपके पास पैसे की कमी नहीं है तो किसी गरीब कि बेटी कि शादी करवा दिजिये लेकिन इसप्रकार दहेज दे कर किसी को विक्लांग मत बनाये ताकि वो अपने पैर पे खड़ा हि न हो पाये।

ऐसा ही न जाने कितना ख्याल, और विचार मेरे मन में आते रहे और मैं सोच में डूबा रहा।

शहर पहुंच कर मै अपना ध्यान पढ़ाई मे लगाने कि कोशिश किया लेकिन मेरा ध्यान अक्सर इन्हीं सब बातों पे आ जाता कि कैसे दहेज प्रर्था को खत्म किया जाये। फिर खुद को ये बोल के मना लेते कि, जब किसी को इससे कोई समस्या नहीं हो रही है तो हम क्यों इस बिच मे पड़ें, अगर दहेज ही देना हैं शादी में तो, कहीं से इंतजाम करके देकर, शादी कर टेंशन खत्म करे, फिर सोचते है शुरुआत तो किसी न किसी को तो करनी हि होगी न, दहेज को न कहने की।

इधर घर पे पापा, एक-एक कर लड़के देखते रहे, लड़के को देखने कभी लड़के के घर जाते तो कभी किसी रेस्टोरेंट मे दोनों तरफ के परिवार आते और बातचीत होती थीं। कभी लड़के वाले रिजेक्ट कर देते तो कभी पापा, अगर कहीं बात बन भी जाती तो पैसे की लेन-देन मे बात अटक जाती। इसतरह छः महीने और गूजर गये।

इस बिच पापा इतना परेशान हो गये कि अक्सर बोलते कि अगर अब कोई भी अच्छा लड़का मिलेगा तो गुड़िया की शादी कर देंगेे, जितना पैसा मांगेगा दे देंगे, चाहे इसके लिए जमीन,घर बेचना पड़ेगा तो बेच देंगे रह जायेंगे कहीं किसी घास-फूस के घर में। बड़ी दुविधा थीं समझ नही आ रही थीं कि इस समस्या से कैसे निकलें।

फिर एक दिन पापा ने बाताया कि एक लड़का है जो रेल्वे का ड्राइवर है वो मुझे ठीक लगा है वो लोग तीन दिन बाद घर आने वाले है फिर फाइनल बात होगी, तो तुम भी आना। मैंने पूछा कि ये लोग कितना मांग रहे है तो पापा बोले आठ लाख बोला है देखते है मिल के बात करेंगे।

दो दिन बाद जब मैं घर पहुंचा तो, मै सोच के आया था कि इस बार दहेज मांगने वाले के साथ थोड़ा हंगामा जरूर करेंगे। एक लोग ही सही अगर इसके बाद दहेज लेने से मना कर देगा तो समझेंगे मेरा प्लान कामयाब हो गया। जिसके लिए मुझे एक वकील से मिलना था तो मैं उनसे मिलते हुये घर पहुंचा।घर पहुंच कर सबसे मिला, पापा बताये कि कल कि तैयारी हो गयी है। मै भी अपना तैयारी कर लिया था।

अगले दिन मेहमान सब आये, उनका स्वागत किया गया, लड़की देखने के बाद, लेन-देन कि बातें शुरू हुई।

पापा ने एक ही सवाल जो न जाने कितनी बार, कितने लोगों से पूछे होंगे, एक बार फिर पूछे।

पापा - कितना तक खर्च आयेगा।

मेहमान संग आये एक व्यक्ति - दस लाख तक होगा, कम से कम आठ लाख भी तो लड़के को दहेज दिजिये गा कि नही लड़का रेल्वे का ड्राइवर है। बाकी समान जो आप देना चाहे, और बारात का मेंटिनेंस , वैसे भी ये दहेज नही हुआ, ये तो हेल्प हुआ, जिसका फायदा आपकी बेटी को ही मिलेगी।

फिर वही होना शुरू हुआ जो अक्सर होता है, किसी चीज को खरीदने से पहले, मोल-भाव, मै आराम से बैठे सुन रहा था, और भी लोग थे मेरी तरह जो सौदा पक्का होने के इंतजार कर रहे थे।

पापा - दस लाख तो बहुत ज्यादा हो जायेगा, कुछ कम कीजिए,

लड़के के पापा - नही है ये ज्यादा, हम तो कम करके ही बताये है, दुसरे जगह तो इससे भी ज्यादा दे रहा था, इतना खर्च किये है हम अपने बेटे के उपर, अपनी सारी जमा-पूँजी, खर्च किया हैं, तब जाके बेटे को नौकरी हुई हैं, तो कुछ खर्च तो आपकों करनी ही होगी, वैसे भी ये पैसा मेरे घर आयेगा तो हम घर बनायेंगे, और उस घर में आपकी बेटी ही रहेगी न।

उनका जवाब सुन, पापा को चुप देख, अब बोलना उचित समझा,

मै (राज) - आप बिल्कुल सही बोल रहे है, इतना खर्च किये है आप अपने बेटे पे बचपन से लेकर आजतक, उनको पढाया लिखाया, तब जाके नौकरी हुई है, जितना खर्च किये है आप अपने बेटे पे उतना तो बनता है आपका, कम करने कि कोई जरूरत नहीं मै आपके उपेक्षा के अनुसार पुरा पैसा दूँगा।

मेरी इसतरह कि बातें करने से, सब मेरे तरफ ऐसे देखने लगे जैसे मै कोई दुसरे ग्रह से आया हो, और पापा भी गुस्सा हो कर मेरे तरफ देखने लगे, मानो बोल रहे हो, दस लाख कि तो अपनी पूरी जायदाद भी नहीं है, और तू उससे ज्यादा देने कि बात क्यों कर रहा है।

मैंने पापा को शांत रहने का इशारा किया। फिर बात को आगे बढाया।

फिर मैं अपने साथ लाया चेकबुक निकाला और दस लाख का चेक काटा और बोला। ये लिजिये दस लाख बाकी जो बराती का मेंटिनेंस और घर का समान हैं वो भी देंगे। मेरा इतना कहते हि मेहमान के चेहरे पर हँसी छलकने लगी लेकिन ये कुछ पल के लिए थीं क्योंकि मेरे प्लान के अनुसार अभी शर्त बाकी था बताना।

जब मैं घर आ रहा था तो वकील के घर मिलने गया था जहाँ से मैने दो स्टांप पेपर ले कर आया था। जिसमे पहले पे जो शर्ते थीं वो समझाते हुये कहा।

मैं - शर्ते ये है कि, शादी के बाद लड़का मेरे यहाँ रहेगा, आपकों लड़के से कोई मतलब नहीं होगी, अब ये मुझपे निर्भर करता है हम लड़के को कैसे रखेंगे, क्योंकि आपने अभी-अभी, अपने बेटे पे किये खर्च के अनुसार मुझसे पैसे लेकर अपने बेटे को बेचा है। अब कोई भी इंसान कोई समान खरीदेगा तो उसका उपयोग तो अवश्य करेगा, ठीक उसी तरह अगर मैं आपके बेटे के उपर दस लाख खर्च कर रहा हूँ तो कम से कम मेरा भी तो बीस लाख का फायदा होना चाहिएं की नही, क्योंकि मै इतना खराब व्यापारी तो हूँ नही जो घाटे का सौदा करू, तो आपके लड़के कि सैलरी और अन्य काम करवा कर मै अपने किये खर्च वसूल करूंगा। तो ये हमारी शर्ते है क्या आपकों मंजूर हैे। अगर लड़के को आप मेरे घर नही रहने देना चाहते तो दूसरी शर्त ये है कि अगर गुड़िया आपके यहाँ रहेगी तो कोई काम नहीं करेगी, जैसे खाना बनाना, बर्तन धोना, झाड़ू पोछा, कपड़ा धोना इसप्रकार का कोई काम नहीं करेगी, अपनी मर्जी से कहीं जाने आने कि आजादी होगी, किसी भी तरह कि कोई रोकथाम नही होगी, क्योंकि मै आपके लड़के को दहेज दे रहा हूँ तो फिर मेरी बहन कोई काम क्यों करेगी, वो तो ऐशो-आराम से रहेगी।

मेरी बात सून सब मेरे तरफ ऐसे देखने लगे जैसे मैंने उनके बैंक मे जमा किये पूँजी सूद समेत माँगी हो।

लड़के के पापा - ये मुझे मंजूर नही है, मैंने अपने बेटे को पढाया लिखाया है ताकि हमारी मदद करे, मेरी देखभाल करे, इसलिए उसके उपर खर्च नही किया कि मुझे छोड़ किसी और घर में रहे, या पत्नी कि गुलाम बन जाये। लड़की घर का काम करने के लिये ही होती है।

अब तक तो मुझे भी इतना पता चल गया था कि उस घर में गुड़िया कि शादी तो बिल्कुल नही हो सकती जहाँ लड़की को सिर्फ एक घर का नौकर समझा जाये, उसका भी पूरा हक था शहर कि लड़कियों कि तरह घर के काम काज से बाहर निकल लड़कों कि तरह अपनी पैर पे खड़ी हो सके अपनी जिम्मेदारी उठा सकें। मैंने उन्हें रिश्ते से मना करने हि वाला था तभी,

लड़के के पापा - मुझे आपकी कोई शर्ते मंजूर नहीं है। बिना शर्ते का शादी करना है तो बोलिये अन्यथा और भी लड़की हैं। लड़की की शादी कर रहे है तो खर्च तो करना हि पड़ेगा और बरसों से स्त्री पुरुष के कदमों में ही रही है। अगर शादी नहीं करनी थीं तो पहले ही बता देते इसतरह बदनामी करने कि क्या जरूरत थीं। इतना कहकर लड़के वाले, मेहमान सब, सब चले गये और एक बार फिर गुड़िया कि रिश्ता पक्का नही हो पायी।

आगे..... भाग-3 में,

अगर आप मुझसे कुछ कहना चाहते है तो आपका स्वागत है

(divanaraj@gmail.com)