स्कूटी वाली मैम Divana Raj bharti द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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स्कूटी वाली मैम

वो स्कूटी वाली मैम।

लेखन :- दिवाना राज भारती

आज शोभा न चाहते हुये भी सज-धज रही थी। माँ उससे साड़ी पहनने की जिद कर रही थी क्योंकि उसे आज लड़कों के घर से देखने आने वाले थे। क्या शोभा सच मे बड़ी हो गयी थी शादी करने कि उम्र हो गयी थी क्या उसकी इतनी अक्ल आ गयी थी क्या उसमे की वो घर चला सके घर की जिम्मेदारी ले सके न जाने ऐसे कितने सवाल सोभा खुद से किये जा रही थी। अभी-अभी तो उसने इंटर की परीक्षा पास की है। अभी उसकी उम्र ही क्या हुई थी कि वो अपने शहजादा की सपने देखती। अगर वो कोई सपना देखी थी तो वो था अपनी गांव के स्कूल मे पढाने आने वाली मैम जैसे बनने की। अभी कुछ महीने पहले ही बहाली हुई थी इस मैम की जब वो स्कूटी पे बैठ काला चश्मा लगा के स्कूल आती तो उन्हें सब देखते रह जाते। शोभा को वो मैम भा गयी थी शोभा भी पढ के मैम बनना चाहती थी। अभी कुछ दिन पहले ही जब शोभा कि इंटर की रिजल्ट आयी तो सब कितने खुश थे। हर तरफ शोभा की ही चर्चा हो रही थी हो भी क्यों नही पूरे जिले मे जो पहली स्थान आयी थी। तब पापा ने कितने प्यार से गले लगाये थे और बोले थे बेटी मन से पढना आगे भी जहाँ तक मुझे से हो पायेगा मै पढाऊँगा। पापा ने मुझसे पूछे भी थे पढ के क्या बनना चाहती है शोभा ने झट से बोली थी की वो अपनी गांव के स्कूल मे पढाने जो मैम आती है न उसके जैसा और पापा ने कहा अच्छा वो स्कूटी वाली मैम जैसा इस बार शोभा ने हँस के हाँ बोली थी। लेकिन आज एक महीने बाद ही पता नही पापा को क्या हो गया अचानक सुबह मे बोले शोभा आज तुम घर पे ही रहना कहीं मत जाना आज तुम्हें लड़कों वाले के घर से देखने आयेंगे। शोभा को ये सुनते ही ऐसे लगा मानों किसी ने जोर का बिजली का झटका दिया हो। पापा मेरी शादी अभी इतनी जल्दी क्यों अभी हमारी उम्र ही क्या हुई है अभी मुझे और पढना है शोभा मायूस हो बोली। देखो शोभा अच्छे लड़के बार-बार नही मिलते अगर मिल भी जायें तो बहुत दहेज माँगते है और तुम अपनी पढाई तो सुसराल मे भी कर सकती हो पापा शोभा को समझाते हुऐ बोले। शोभा न चाहते हुये तैयार तो हो रही थी लेकिन उसके मन मे बहुत सवाल उठ रहे थे जैसे उसका पति कैसा होगा, सुसराल वालो को वो खुश रख पायेगी की नही, उसका पति उसे पढायेगा की नही इत्यादि इन सब सवालो मे से एक ये था जो उन्हें बहुत बेचैन कर रही थी अचानक पापा उनकी शादी क्यों करवा रहे है। मेहमान के आते ही सब उनके आदर सत्कार किये। कुछ देर बाद शोभा कि माँ आयी और शोभा को चाय का प्लेट देते हुऐ बोली जा मेहमान को दे आ। शोभा जाते हुऐ सोच भी रही थी पता नही ये कौन सी परम्परा है की चाय लड़की ही ले के जायें। मेहमानों को चाय देकर शोभा वहीं बैठ गयी फिर समान्य बातचीत हुई और लड़की पसंद कर लिया गया। पापा ने लेनदेन की बात की और शादी की तारीख भी ठीक हो गयी। लड़का का नाम शंभु था किसी प्राइवेट कंपनी मे नौकरी करता था। शोभा उन्हें बस फोटो मे ही देखी थी क्योंकि हमारे यहाँ गांवों मे लड़का-लड़की शादी से पहले मिलते कहाँ है। हर बातों का फैसला करने वाले उनके पापा आज उसकी जिंदगी का फैसला कर चुके थे। शोभा की शादी बड़े धूम धाम से हुई। जैसे ही विदाई का वक्त आया सब रोने लगे शोभा बचपन से देखते आई थी कि विदाई के वक्त सब गला फार के रोते है तो वो सोचती जब मायका जाना ही है सुसराल छोड़कर तो रोना क्यों रोने से कोई जाने से थोड़ी न रोक लेगा जाना तो है ही फिर खुशी-खुशी क्यों न जाया जायें। वो सोची थी कि वो अपनी शादी मे बिलकुल नही रोयेगी लेकिन आज पता नही क्यों शोभा कि आँखें नम थी मां को रोती देख वो भी रो पड़ी। सबसे मिलने के बाद अंत मे मां बोली आज से तुम्हारे सिर पे दो घरों की जिम्मेदारी है ठीक से निभाना सुसराल वालो की सब बात मानना उन सब को खुश रखना और किसी लड़के से बात मत करना अब तुम मायका मे नही सुसराल मे रहेगी। शोभा को मां की कही बाते दिमाग मे घुमने लगी। कही पापा उसकी शादी जल्दी इसलिए तो नही करा दिये कि उसने मुझे रवि से बात करते देख लिये थे। रवि मेरा काँलेज का दोस्त था वो मेरी पढाई मे बहुत मदद करता था उसके अलावा मै किसी लड़के से बात नही करती थी। दशमी तक तो मै किसी लड़के के तरफ देखती भी नही थी अपने पापा के बताये वसूल पे चलती लड़के से बाते मत करना उससे दुर रहना सिर्फ पढाई पे ध्यान देना मेरा इज्जत मिट्टी मे मत मिलाना वगैरह-वगैरह। मै अब तक पापा की वसूल तोड़ी नही थी काँलेज मे जब आयी तो मुझे एक दोस्त की जरूरत थी लेकिन मै दोस्ती करती किससे मेरी तरफ उठने वाली हर एक नजर निस्वार्थ नही थे अच्छे नही थे। एक दिन मै काँलेज मे फार्म भरने लाइन मे लगी थी भीड़ ज्यादा थी मै धूप मे परेसान हो गयी थी। तभी मेरी नजर रवि पे पड़ी शायद उसकी अंदर किसे से जान पहचान थी अपना और अपने दोस्तों का फार्म वो तुरंत भरवा दिया तो मै न चाहते हुये भी अपने पापा की वसूल तोड़ कर बात की उससे की वो मेरा भी फार्म भरवा दे और वो मान गया। बस उसी दिन से हम दोनों के बिच बाते होने लगी थी। वो पढने मे अच्छा था और दिल का भी वो मेरी पढाई में बहुत मदद करता। हम दोनों मे ऐसा कुछ नही था जैसा दुनियाँ समझती थी हम बस अच्छे दोस्त थे। इंटर के रिजल्ट के बाद जब मै डाक्यूमेंट लेके काँलेज से आ रही थी तो रास्ते मे रवि मिल गया था और हम दोनों को बात करते पापा ने देख लिया फिर फिर क्या बस हो गयी शादी।

अपनी बीती बाते याद करते हुये शोभा कब सो गयी उसे पता भी नही चला गाड़ी रुकने पर अचानक उसकी नींद खुली शायद वो अपने सुसराल पहुँच गयी थी। सुसराल वालो ने नयी दुल्हन का स्वागत किया फिर पुरे दिन नये-नये लोगो से मिलना मिलाना होता रहा। शोभा ने जिनसे भी मिली उन्हें सब अच्छे लगे और भला एक दिन मे वो किसी कि बुराई क्या जान पाती। जैसे-जैसे शाम हो रही थी शोभा की बैचेनी बढने लगी। आज उसकी सुहागरात थी और वो डरी हुई थी। गांव मे लड़की अपनी पति को नाम से नही बुलाती ये जी वो जी कह के बुलाती है। रात मे शोभा जब अपनी पति का इंतजार कर रही थी तो वो आये अभी तक उनलोगों की कोई बात नही हुई थी। वो आते ही बोले सुना है तुम आगे पढना चाहती हो मै दिल्ली जाने से पहले तुम्हारा नामांकन वहाँ बीए मे करवा दूँगा फिर तुम घर के कामों से समय निकाल कर पढाई भी कर लेना। शोभा ये सुन बहुत खुश हुई की वो आगे पढाई कर पायेगी। शोभा आजतक संभाली लोगो से बचाई इज्जत मर्यादा जवानी सब अपने पति पर न्योछावर कर दी। शंभू जाते-जाते शोभा का नामांकन करवा गये। अपनी बीती बाते याद करते हुये शोभा कब सो गयी उसे पता भी नही चला गाड़ी रुकने पर अचानक उसकी नींद खुली शायद वो अपने सुसराल पहुँच गयी थी। सुसराल वालो ने नयी दुल्हन का स्वागत किया फिर पुरे दिन नये-नये लोगो से मिलना मिलाना होता रहा। शोभा जिनसे भी मिली उन्हें सब अच्छे लगे और भला एक दिन मे वो किसी कि बुराई क्या जान पाती। जैसे-जैसे शाम हो रही थी शोभा की बैचेनी बढने लगी। आज उसकी सुहागरात थी और वो डरी हुई थी। गांव कि लड़की अपनी पति को नाम से नही बुलाती ये जी वो जी कह के ही बुलाती है। रात मे शोभा जब अपनी पति का इंतजार कर रही थी तो वो आये अभी तक उनलोगों की कोई बात नही हुई थी। वो आते ही बोले सुना है तुम आगे पढना चाहती हो मै दिल्ली जाने से पहले तुम्हारा नामांकन यहाँ बीए मे करवा दूँगा फिर तुम घर के कामों से समय निकाल कर पढाई भी कर लेना। शोभा ये सुन बहुत खुश हुई की वो आगे पढाई कर पायेगी। शोभा आजतक संभाली लोगो से बचाई इज्जत मर्यादा जवानी सब अपने पति पर न्योछावर कर दी। शंभू जाते-जाते शोभा का नामांकन करवा गये। अब शोभा घर का काम जल्दी खत्म कर लेती और अपनी पढाई करती। शहर की लड़की तो शादी के बाद भी घर का काम नही सीख पाती और गांव की मां अपनी बेटी को बड़ी होते होते घर के कामों मे निपुण कर देती है। शोभा खुश थी हो भी क्यों नही पति का प्यार था, सास-ससुर का साथ। शोभा की दिन अच्छी बित रही थी। शोभा कि बातें दिन में दो से तीन बार शंभू से हो जाती। आजकल के जमाने मे लोग दुर रहकर भी पास ही लगते है। शंभू शोभा की बहुत ख्याल रखता। शोभा कि खुशी ज्यादा दिन नही रह पाई न जाने उसकी किसकी नजर लग गई। जब शोभा बीए कि पहली साल मे थी तो शोभा की फार्म भरवाने परीक्षा दिलाने खुद आये थे। दुसरे साल वो नही आ पाये तो पापा(ससुर) के साथ जाकर फार्म भरी। परीक्षा भी उन्ही के साथ देने जाती लेकिन जब शोभा की दो पेपर बचें ही थे उनकी तबीयत खराब हो गयी वो नही जा सकते थे तो शोभा अकेली बस से चली गयी। आते समय जब वो बस का इंतजार कर रही थी तो उसे रवि मिल गया वो भी परीक्षा देकर लौट रहा था। दोनो ने थोड़ी देर बातें कि फिर रवि ने कहा चलो मै तुम्हे तुम्हारे घर छोड़ देता हूँ इस बहाने तुम्हारी सुसराल भी देख लेगें। शोभा को लगा सही है अनजान लोगों के साथ भिड़ मे जाने से अच्छा है की जान पहचान लोग के साथ आराम से जाये। वो मान गयी रवि उसे अपने बाईक पे घर तक छोड़ आया। अगली परीक्षा के बाद शोभा को पुनः घर छोड़ दिया। घर से पहले घर से बाहर ये खबर आग कि तरह फैलने लगीं कि शोभा को उसको घर छोड़ने एक अनजान लड़का आया था। शोभा उसके साथ बाईक पे चिपक के बैठीं थी शादी के बाद वो अजनबी के साथ ऐसे घूमती है तो न जाने शादी से पहले क्या करती होगी। शोभा उस वक्त प्रेग्नेंट थी लोग उसके बच्चे पे भी शक करने लगे। लेकिन शोभा को इन बातों का कोई असर नही हुआ क्यों कि घर वाले उनके साथ थे। लेकिन इस बार जब शंभू घर आया तो उसका व्यवहार बदला-बदला सा लग रहा था वो शोभा से सीधे मुँह बात भी नही करते थे। शायद लोगों की बात सुनकर वो भी शक करने लगे थे। अब दोनों अक्सर छोटे-छोटे बातों के लिए लड़ पड़ते दोनों के ताल मेल बिगड़ने लगे। अब शोभा का पढ़ना शंभू को अखरने लगा। अब जब भी शोभा पढ़ने के लिए बैठती शंभू की आँखे लाल हो जाते और अक्सर शोभा को किसी न किसी बात के लिए डाँट देते। उसने एक दिन ये भी बोल दिया की अब तुम पढ़ना छोड़ दो क्या करोगी पढ के पढ़ने के बाद भी चौका चुल्हा(खाना पकाना) ही करना है। मुझे ये कत्तई पसंद नही की मेरे अनुपस्थिति मे तुम घर से बाहर किसी लड़के के साथ घूमों। लड़की घर की अमानत है उसे घर मे ही रहना चाहिए। वो बोलते रहे और शोभा की आँसू निकलती रही। शोभा कभी सोची भी नही थी की शंभू उसके बारे मे ऐसा सोचेंगे। वो उसके बारे मे ऐसा सोच रहे थे जिसने उनपर अपना सब कुछ न्योछावर कर दी थी। माँ पापा ने भी शोभा को समझाया कि छोड़ दे पढाई जब तुम्हारे पति नही चाहते तो। अब तुम माँ बनने वाली हो बच्चे पे गलत असर पडे़गा। शंभू को गये दस दिन हो गये थे उनका कोई फोन नही आया। जब शोभा को उनका सबसे ज्यादा जरूरत थी तभी वो मुँह फेर गये थे। जब शोभा की डिलीवरी हो रही थी तो उसे अपनी पति के फोन का इंतजार था लेकिन उनका फोन नही आया। शोभा ने एक बच्ची को जन्म दी। शोभा खुश थी क्योंकि वो अब माँ बन गयी थी। शंभू और शोभा में बातचीत तो हुए लेकिन अब पहले जैसी बात नही थी अब ये रिश्ता प्यार एहसास के बल नही समझोता के बल चल रही थी। वो इससे पहले खुद को या किसी लड़की को इतनी लाचार नही देखी थी। जिसका अपने पिछे छूट गये थे और भविष्य अपने हाथ में नही थी। आखिर कब तक अपनी जिदंगी दुसरे के सहारे जीती अपनी जिदंगी के फैसले अपनी सपने का फैसला दुसरे को करने देती। वो इतना कमजोर नही थी की अपना बोझ खुद न उठा सके। वो जब छोटी थी तो वो कैसी कपड़े पहनेंगी, किस स्कुल मे पढेगी, कहां जायेगी कहां नही जायेगी किस से बातें करेगी किस से नही करेगी सब पापा कि मर्जी से होती। बड़ी हुए तो शादी भी पापा के मर्जी से दुल्हा भी पापा की मर्जी का और शादी के बाद घूमना-फिरना पति के मर्जी से पढूंगी या नही पति के मर्जी से घर पे कौन आयेगा नही आयेगा पति के मर्जी से यहाँ तक की खाना भी पति की मर्जी से मतलब लड़की की जिदंगी मे सब कुछ दुसरे की मर्जी से ही होता है और बोझ तो लड़की के जन्म से ही आ जाती है पहले उनके माँ बाप को कि बेटी कि शादी कैसे होगी हम दहेज दे पायेंगे कि नही और शादी के बाद वो बोझ बेटी पे आ जाती है घर से बिदाई होते ही माँ बोलती है बेटी आज से मेरी घर कि इज्जत तुम्हारे कंधे पे है नाक मत कटा ना। सुसराल पहुँचते ही घर का काम, कपड़े धोना, सास-ससुर का सेवा करना, पति को खुश करना, उनके पसंद ना पासंद का ख्याल रखना, सारा बोझ लड़की पे ही तो रहती है यहाँ तक की बिंदिया कंगना सिंदूर मंगलसूत्र और घूंघट ये बोझ भी तो लड़की ही उठाती है तो वो अपनी बोझ क्यों नही उठा सकती। अपनी मर्जी से अपनी जिदंगी क्यों नही जी सकती जब वो विक्लांग नही है तो विक्लांग वाली जिवन क्यों जीयेगी क्यों अपनी बेटी का भविष्य भी किसी दुसरे के हाथ मे देगी। कुछ हो जाये अब वो अपना सपना जरूर पुरा करेगी।

शोभा ने अपनी आँसू पोंछकर रवि को फोन लगाया। और उसे अपनी बीए की अंतिम साल होने वाली परीक्षा का फार्म भर देने को कही। पहले से वो और जोश के साथ अपनी पढाई करने लगी। घर के कामों के साथ वो अपनी बेटी मनीषा का भी बहुत ख्याल रखती और अपने सास-ससुर का भी। शोभा को पता था की बीए के बाद बीएड मे एडमिशन करवाने के लिए मोटी रकम की जरूरत पडे़गी इसलिए शोभा घर पे कोचिंग भी पढाने लगी। अब शोभा और शंभू मे बिलकुल बात होना बंद हो गयी। अब शंभू घर भी नही आते। समय पे घर पैसा भी नही भेजते थे। शोभा फिर भी निराश नही हुई अब वो खुद की पैसों से अपनी घर चलाने लगीं और सास-ससुर को मां पापा की तरह सेवा करने लगी। इधर शोभा बीए पास कर बीएड मे एडमिशन ले ली। एडमिशन के वक्त पैसों की कमी हुई लेकिन फिर व्यवस्था हो गयी आखिर दहेज के पैसे कब काम आते सास बहू ने अपने गहने बेच दिये। अब शोभा क्लास करने जाती तो सासू मां मनीषा का ख्याल रखती। बीएड कम्पलीट होतें ही शोभा को वही हाईस्कूल मे नौकरी मिल गयी। फिर से शोभा की चर्चा गांवों मे होने लगीं सब पुराने बातें भुल गये थे। अब शोभा पति पे नही उसके पति उसपे निर्भर थे और अब कभी कोई अजनबी उसके घर आ जाये तो लोग कहते है कोई जान पहचान का होगा स्कुल के काम से आया होगा। एक बार फिर शोभा की जिदंगी मे सब ठीक हो गया था बस एक चीज की कमी थी जो उसके पापा ने पूरा कर दिये शोभा के लिए स्कूटी लाकर। अब शोभा भी स्कूटी वाली मैम बन गयी थी। शोभा आज भी यही सोचती है अगर वो सब की बात मानकर पढना छोड़ दी होती तो आज वो समान्य लड़की की तरह दुसरे पे निर्भर ही रहती। अपनी जिदंगी अपनी मर्जी से नही जी पाती।

आज भी शोभा जब निराश होती है तो टीवी पे सूनी ये लाईन उसकी उदासी मिटा जाती है॥..........

तु खुद कि खोज मे निकल,

तु किसलिए हदास है,

तु चल तेरी वजूद की,

समय को भी तलाश है।

जो तुझसे लिपटी बेड़ियाँ,

समझ न इनको वस्त्र तु,

ये बेड़ियाँ पीघलाके,

बना ले इनको वस्त्र तु।

चरित्र जब पवित्र है,

तो क्यों है ये दशा तेरी,

इन पापियों को हक नही,

की ले परीक्षा तेरी।

जला के भस्म कर उसे,

जो कुर्त्ता का जाल है,

तु आरती की लौ नही,

तु क्रोध की मिशाल है।

चुनर उड़ा के ध्वज बना,

गगन भी कपकपायेगा,

अगर तेरी चुनर गिरि,

तो एक भूकंप आयेगा।

तु खुद कि खोज मे निकल,

तु किसलिए हदास है,

तु चल तेरी वजूद की,

समय को भी तलाश है।

आपको मेरी लेखन कैसी लगीं।।।

आपका विचार आमंत्रित है।

divanaraj@gmail.com

मेरे द्वारा अब तक लिखी गईं कहानी

1. बचपन और जवानी

2. खामोश प्यार (वो बचपन वाली लड़की)

3. लड़की का नम्बर

4. स्कूटी वाली मैम

5. दोस्त का प्रेम विवाह

और कविता संग्रह

1. जिवन सतरंगी भाग 1.

........... समाप्त..........