दोस्त का प्रेम विवाह Divana Raj bharti द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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दोस्त का प्रेम विवाह

दोस्त का प्रेम विवाह।

लेखन :- दिवाना राज भारती

आज सुबह मेरे मोबाइल पे किसी का काँल आ रहा था देखा तो विमल का था। उसका नम्बर मेरे मोबाइल मे सेव था। लेकिन पांच सालों से हमारी कोई बात नही हुई थी। हमारा क्लासमेट था विमल। हम दोनों ने इंटर की पढाई साथ मे किये थे फिर विमल आगे की पढाई करने दरभंगा से अपने गांव आ गया और मै शहर। उसके जाने के बाद थोड़े दिन बात हुई फिर धीरे-धीरे बंद हो गयी। आज पांच साल बाद उसका काँल आ रहा था। मैने काँल रिसीव किया और बोला हैलो विमल कैसे हो वो थोड़े देर चुप रहा फिर बोला कमीने तेरे पास मेरा नम्बर था फिर भी कभी काँल नही किया। मैने कहा तुमने भी तो नही किया फिर हम दोनों ने अपनी अपनी बहाने के साथ बात जारी रखा बातों से पता चला की उसकी शादी हो रही है और हम सब दोस्तों को उसकी शादी मे आना है। शादी तीन दिन बाद थी मुझे समझ नही आ रहा था क्या करु जाऊँ या न जाऊँ। शादी विमल की गांव सहरसा मे था और इस वक्त हम पटना मे ही थे। मैने सोचा अपने दोस्तों से पता तो कर लूँ कोई जा रहा हैं या नहीं अगर कोई जायेगा तो चले जायेंगे। जब मैने बात किया तो सब मना कर रहे थे लेकिन सब मान गये। फिर हम सब ने सोचा की सब दरभंगा जंक्शन पे मिलेंगे और वहाँ से सहरसा की ट्रेन ले लेगें लेकिन ये बातों विमल को पता न चले कि हमलोग आ रहे है क्योंकि ये सरप्राइज था। अगले दिन मै और अनुज दरभंगा जंक्शन पहुँच गये फिर कुछ देर बाद महेश और जितेन्द्र भी आ गये। हमसब सालों बाद मिले थे सबने मिलके गप्पें मारे पता चला कि ट्रेन दो घंटे लेट है तो हमसब वही बैठ कार्ड खेलने लगे। न जाने दो घंटे कैसे बित गये। ट्रेन आते ही हमसब ट्रेन मे बैठ गये। अब जहाँ चार यार सालों बाद मिले हो वहाँ निंद कहाँ आती है और सब चुप रहे ये भी नही हो सकता तो हमारी बातचीत चलने लगी कभी-कभी एक दुसरे की खिंचाई भी होती।

जितेन्द्र : विमल कि शादी लव मैरिज है या अरेंज मैरिज।

राज : ये तो अनुज ही बतायेगा उसको सब पता होगा विमल का करीबी दोस्त जो है।

अनुज : यार लव मैरिज है।

महेश : कौन ऐसी लड़की है जिसे ये गधा पसंद आ गया।

अनुज : यार उसकी भाई की साली है।

राज : अच्छा जिससे वो अक्सर बात करता था उसी से।

जितेन्द्र : फिर दहेज तो नही मिला होगा।

अनुज : हाँ कुछ नही मिला इसलिए सब उसके शादी के खिलाफ है। उसकी भाभी पापा कही और शादी करवाने चाहते थे जहाँ पैसा अच्छा मिल रहा था लेकिन विमल जिद पे आ गया था कि हम शादी मुन्नी से ही करेंगे नही तो नही करेंगे। फिर उसके पापा बोले जो मर्जी हो करों।

राज : अच्छा है यार दहेज के लिए बेचारा अपना प्यार क्यों कुर्बान करता।

महेश : लेकिन उसका भाभी उसके खिलाफ क्यों थी उसके लिए तो अच्छा ही था कि उसकी बहन उसी के घर आ रही थी।

अनुज : यार वही तो नही चाहती थी। इसकी वजह यह था अगर मुन्नी यहाँ आती तो उसका मान सम्मान कम हो जाता।

जितेन्द्र : छोड़ यार अंततः उसकी शादी उसकी पसंद की लड़की से हो रही है और हम लोग तो जा ही रहे है विमल को अकेला भी अनुभव नही होगा और उसके परिवारजनों को भी मना लेगें। अब ये बता की उसको गिफ्ट क्या देना है।

अनुज : महेश तो पहले से उसके लिए गिफ्ट ले के जा रहा है।

महेश : नही यार विमल ही बोला था लेके आने।

राज : लेकिन ले के क्या जा रहा है।

महेश : यार शादी वाली लहठी चूड़ियाँ है जिसपे नाम लिखा हुआ है दोनों का।

महेश के बोलते ही सब हँस पडे। फिर सबने अपनी-अपनी विचार दिये गिफ्ट को ले कर कोई बोलता ये ले लो कोई बोलता वो ले लो।

जितेन्द्र : यार विमल को कुछ समस्या था जैसे ही लड़की उसके पास आती थी उसका पसीना छूटने लगता था वो डाक्टर से दिखाया पुछा था।

अनुज : हाँ पुछा था दिखा लिया है अब वो ठीक है।

यार कमीने दोस्त कितने अच्छे होते है सुहागरात के बारे मे भी कमीने ख्याल रखते है। इसतरह हमारी बात होती रही फिर थोड़ी देर आराम किये और छ: बजे ही सहरसा जंक्शन पहुँच गये। वही जंक्शन पर हमलोग फ्रेश हुऐ मै सेविंग किये विना ही आ गया था तो सेविंग किये फिर पता चला कि अभी विमल का गांव यहाँ से दूर है और जाने के लिए बस लेनी पड़ेगी। तो हमलोग मधेपुरा वाले बस मे बैठ गये हमलोग रात मे सो नही पाये थे जिस वजह से निंद आ रही थी तो सब सो गये। हम करीब चार घंटे बाद विमल का गांव पहुँचे। विमल का गांव देख के ऐसा लग रहा था जैसे सरकार की नजर इस गांव मे पड़ी ही नही यहाँ का सड़क कच्ची थी। यहाँ के लोग घर सब नब्बे दशक के लग रहे थे। चुकी हमलोग विमल को सरप्राइज देना चाहते थे इसलिए विमल को बताये नही थे कि हम उसके गांव पहुँच चुके है। पहले हमलोग ने खुद से उसके घर का पता लगाकर जाना चाहता थे लेकिन तीन घंटे तक इधर-उधर भटकने के बाद भी नही मिला। फिर अंत मे विमल को फोन कर बताये कि हम यहाँ है ले जाओ तो उसने बताया कि हम अभी व्यस्त है तुमलोग घर के बिलकुल पास हो चलो घर पे मै आ रहा हूँ हमने कोशिश की फिर भी उसके घर नही पहुँच पाये चुँकी हमलोग बहुत थक गये थे भटक भटक के और भूख भी लग रही थी तो वही पेड़ों के निच बैठ गये और विमल के लिए जो फल सब लाये थे खाने लगें। जब विमल को पता चला कि हमलोग उसके घर नही पहुँच पाये तो इंतजार करने को बोला।

महेश : चलो तबतक फिर से कार्ड खेलते है।

जितेन्द्र : कोई देखेगा तो क्या बोलेगा।

अनुज : बोलेगा तो क्या हो गया कौन सा यहाँ हमे कोई जानता है।

राज : हँ यार पता नही कब आयेगा विमल तबतक खेलते है।

फिर हमलोग कार्ड खेलने लगे दो घंटे हो गये विमल अब तक नही आया। अब सबको गुस्सा और बुरे ख्याल भी आने लगें विमल को लेकर जैसे।

अनुज : अब तो विमल फोन भी नही उठा रहा है।

राज : यार अपनी सरप्राइज की तो लग गयी।

जितेन्द्र : चल वापस चलते है हम दोस्त है यार उसके, उसके गांव आये है और उसको कोई फिक्र ही नही है।

महेश : इसके लिए जो समान लाये है यही रख देते है अपना जब वो आयेगा ले जायेगा।

जितेन्द्र : देख रहा है गांव के लोग भी आ आ के देखने लगें है कि कौन परदेशी उसके गांव आ गया।

राज : रुक यार इतने मेहनत से आये है ऐसे ही चले जायेगें। यार पता तो करना पडे़गा न की विमल ऐसा कर क्यों रहा है।

अनुज : तुमको रहना है रहो हम जा रहे है नही करानी हमको बेइज्जती।

सब वापस आने ही वाले थे कि विमल को आते देखा उसके आते ही सबने उसका क्लास लिया। विमल बताया कि शादी कि सारी तैयारी उसे खुद करनी पड़ रही है इसलिए इतना लेट हो गया बाजार के कामों मे उलझा था। जब हम उसके घर पहुँचे तो सबसे पहले खुद पे हँसी आ रही थी क्योंकि हम जहाँ रुके थे वो विमल के घर की पीछे का क्षेत्र था। ये थोड़ी सी गलि जैसे थी और घेरा हुआ भी इसलिए हम वहाँ तक जाते और वापस आ जाते थे। वो कहते है न बगल मे छुड़ा और शहर मे ढिंढोरा। विमल के घर पहुँच के सब से मिले फ्रेश हो के नाश्ते किये फिर मीठी-मीठी बातों से विमल के परिवारजनों को विमल की शादी के लिए मनाया। बारात निकलने वाली थी लेकिन अभी तक कुछ भी तैयारी नही हुई थी। सब दोस्तों ने अपनी पसंद का काम बाँट लिए जैसे महेश गाड़ी सजाने का। मै विमल को तैयार करने का, जितेन्द्र और अनुज बरात मे जाने वाले लोग और समान गाड़ी मे चढ़ाने का आदि। अब ये शादी मातम नही शादी लग रही थी। हमसब दोस्त पुरी मेहनत से खुशी-खुशी ये शादी करवाने मे लगें थे करते भी क्यों नही हमारे दोस्त का प्रेम विवाह जो था। अंततः खुशी-खुशी बराती निकल पड़ी दुल्हन को घर लाने।

आज हम सब बहुत मस्ती कर रहे थे। क्योंकि दोस्त का शादी था लेकिन किसे पता था कि आज से हमारी निंद और चैन जाने वाली थी आज हमारी जिदंगी मे भी कोई लड़की आने वाली थी जो मुझे अपना दिवाना बनाने वाली थी। हुआ यूँ कि एक जगह बिच मे बरात रूकी तो मुझे ठंडा पीने का मन हुआ फिर सब दोस्त वही पास के दुकान मे आये मैने कोक देने को बोला दुकान पे एक लड़की थी जो ला के दी और हम पीने लगे जितेन्द्र को वो लड़की पसंद आ गयी थी। रास्ते भर वो उसी की बातें करने लगा लेकिन हममें सो कोई जितेन्द्र के अलावा उस लड़की के लिए गंभीर नही था। जब हम लड़की वाले के यहाँ पहुँचे तो हमारा स्वागत हुआ फिर जयमाला के समय दुल्हन के साथ एक लड़की आयी। जबसे मै यहाँ आया था किसी लड़की को देखा नही था जो पसंद आये ये अलग थी उसके हाथों मे कैमरा था सब जयमाला मे व्यस्त थे और वो खुद से ही खुद की फोटो खीचने मे लेकिन वो नाकाम रही और अपना मुहँ बनाने लगी शायद वो अपनी छोटी बहन को बुला रही थी जो जयमाला की भीड़ मे बहुत पिछे रह गयी थी। मै उसे ही तबसे देखे जा रहा था जबसे वह आयी थी जैसे ही उसकी नजर मुझसे टकराई मैने उससे उसका कैमरा मांगा उसने दे दी और मै उसके कैमरे मे उसी का फोटो खीचने लगा कुछ देर बाद उसकी छोटी बहन मेरे पास कैमरा लेने आयी तो उसकी बड़ी बहन बोली खीचने दो उन्ही को। जयमाला खत्म होने तक वो लड़की सभी के कैमरे और मोबाइल मे कैद हो चुकी थी। भीड़ खत्म होते ही मै विमल के पास गया और पूछा ये लड़की कौन है तो उसने बताया की मुन्नी की सहेली है और ये घर से बाहर रहती है। मैनें सोचा तभी तो इतनी फास्ट है। मै बहुत देर से खड़ा था मुझे बैठने के लिए कोई जगह नही मिल रही थी तो विमल को बोला यार तुम उठो बहुत देर बैठ लिया अब मुझे बैठना है वैसे भी तुम दुल्हा हो घर वाले कोई न कोई व्यवस्था कर ही देगें तुम्हारे लिए। कुछ देर विमल खड़ा रहा फिर घर वाले उसको आंगन ले गये रीति-रिवाज करने। मै सोचा यार हर कोई मुझे बोलता रहता है कि तु इतना हैंडसम है फिर भी तेरी कोई ग्रलफ्रांड नही है। मै आजतक कोशिश भी नही किया था लेकिन पता नही क्यो आज कोशिश करने का जी कर रहा था ऐसा नही था मुझे उससे प्यार हो गया था बस अच्छी लगी क्योंकि इस ब्लैक एंड वाइट गांव मे एक वही कलरफुल लगी रही थी तो विमल के साथ मै भी आ गया अब जहाँ दुल्हा रहेगा वहाँ दुल्हन तो आयेगी ही और जहाँ दुल्हन आयेगी वहाँ उसकी सहेली भी। अब हमारी नजरें उस लड़की से मिलने लगी और एक दुसरे को देख के मुस्कुराने लगे। कुछ देर बाद हमारी बातें नजरें से होने लगी मै उसे बाहर आके मिलने को बोलने लगा और वो मना करने लगी वो बोलती मेरे पास मे कोई है जो मुझपे नजर रखी है शायद उसकी माँ उसके पास थी लेकिन मेरे बार बार बोलने और मेरे जिद के वजह से वो मान गयी वो बोलीं मै उसका बाहर इंतजार करूँ वो आ रही है। मै शादी के मंदप से बाहर आ गया और गाड़ी मे लगा गुलाब निकाला थोड़ी मुरझाई थी लेकिन बात बन जाता और अपना नम्बर भी कागज पे लिखा और इंतजार करने लगा वो बाहर आयी मै उसे ये सब देने ही वाला था कि बरात मे आये लोग और गांव के लड़के सब आ गये थे फिर वो वापस चली गयी। शायद सबको पता चल गया था कि हम दोनों के बिच क्या खिचड़ी पक रही है चार घंटों से। हाँलाकि अनुज ने एक अंतिम कोशिश करना चाहा और वो एक बच्चे को मेरा नम्बर दिया कि वो उस लड़की को देकर आये लेकिन उस बच्चे को एक लड़के ने पकड़ लिया मुझे लगा बात आगे बढे़गी लेकिन सब ठिक हो गया। मै वापस गाड़ी मे आकर बैठ गया मुझे इसका अफसोस नही था कि मेरी बात नही बनी मुझे ये अफसोस था कि मेरे फायदे के लिए एक बच्चे को घसीटा गया। इधर हमे हमारी मस्ती के चक्कर मे पता ही नही चला की कब विमल कि शादी भी हो गयी और कब सुबह हो गयी। हम दुल्हन ले के अब निकल पड़े। चुकीं पुरी रात मै जग गया था इसलिए मुझे निंद आ रही थी तो मै सो गया जो हुआ अच्छा हुआ सब भुलके लेकिन मुझे एक बात समझ मे नही आयी महेश तो चलो संयासी है इसलिए हमारे साथ नही था लेकिन जितेन्द्र क्यों नही था। मुझे समझते देर न लगी की वो दुकान

वाली लड़की को अपना दिल दे बैठा है और उसीकी याद मे सांत बैठा था। ये सब सोच के पता नही कब निंद आ गयी।जब वापस विमल के घर पहुँचे तो सोचा यार अब दोस्त कि शादी तो हो गयी अब चलते है अपने लोग वापस अभी ट्रेन भी मिल जायेगी।

अनुज : शादी तो हो गयी लेकिन अभी तक हनीमून नही हुआ यार।

महेश : तुम्हे हनीमून से क्या मतलब है बे।

जितेन्द्र : यही तो लालटेन ले के खड़ा रहेगा वहाँ पे।

राज : चल विमल के पापा को बोलते है कि हमलोग जा रहे है अब।

जब उनके पापा को बताये कि अब हमलोग जाना चाहते है तो वो बोलें आज रुक जाओ बेटे कल चले जाना आज पुजा है घर पे। फिर सोचें यार रूक जाते है जब इतने प्यार से बोल रहे है उनका बात भी नही काट सकते थे क्योंकि अतिथि आते है अपनी मर्जी से लेकिन जाते है घरवालों की मर्जी से। अब आज जाना नही है तो चल सोते है फिर आके सब सो गये। करीब तीन घंटे बाद अनुज और जितेन्द्र मुझे उठाया और बोला उठ तेरे लिए एक खुशखबरी है मैनें बोला क्या है तो वो बोला तुम्हारी जयमाला वाली का नाम पता चल गया है उसका नाम मिठू है और वो आज शाम पुजा मे आने वाली है। अब ज्यादा बैचैन मत हो आज तेरा काम बन जायेगा। मै जितेन्द्र के तरफ देखा और बोला पता है कौन किसके लिए कितना बैचैन है।

मै : वैसे तुमलोग ने ये पता कैसे किया।

जितेन्द्र :भाभी से और सुनों चलों बजार जाना है।

मै: क्यों।

अनुज : विमल कि हनीमून के लिए उसका रुम सजाने है और तेरी मिठू भी तो आ रही है वैसे भी हमलोग ने भाभी को कोई गिफ्ट नही दिया तो यही गिफ्ट होगा उनको हमलोगों के तरफ से।

मै : ठिक है।

हमलोगों ने कमरे अच्छे से सजाया और रात मे पुजा हुई लेकिन मिठू नही आयी। जब विमल हमलोगों को सुवह छोड़ने जंक्शन आया तब।

अनुज : विमल रात मे कुछ हुआ कि नही।

विमल : नही कुछ नही बहुत ठके थे जाके सो गया।

जितेन्द्र : यार इतना मेहनत किये हमलोग और तुम कुछ नही किया।

महेश : ठिक है आज कर लेना और भाभी को खुश रखना।

हमसब ट्रेन मे चढ गये और ट्रेन चल पड़ी। बिते दिनो बहुत मजे किये थे। हमसब अब आगे निकल गये थे मेरा दिल मेरे पास ही था जाते जाते रुक गया था इसका वजह एक तो ये था कि मिठू विमल की भाभी कि बहन की बेटी थी हमसे छोटी उम्र की थी। मुझे उससे प्यार भी नही था तो क्यों समय बर्बाद करते और मुझे उसका नाम तो बिलकुल पसंद नही आया ऐसा लगता है किसी तोते का नाम उसे रख दिया हो मै एक हसीन पल और मस्ती समझ के उसे भुल गया लेकिन जितेन्द्र का दिल कही पीछे छुट गया था अब वो भी प्रेम विवाह करना चाहता था। हम वापस दरभंगा आके सब अपनी जगह अपनी कामों पे वापस लौट गये।