पागल लड़की Divana Raj bharti द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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पागल लड़की

पागल लड़की ।

दिवाना राज भारती ।

हैलो दोस्तों मै रिया हूँ । आज मेरी शादी हो चुकी है और मै अपने पति से बहुत प्यार करती हूँ लेकिन मेरा पहला प्यार मेरे पति नहीं हैं वो तो कोई और हैं । बात तीन साल पहले कि है।मैंने भी किसी को पागलों की तरह प्यार किया लेकिन मेरी जिदंगी को प्यार रास न आयी। मुझे एक बार नहीं कई बार प्यार हुआ लेकिन किसी ने सच ही कहा है प्यार तो एक बार होता है जो कि पहली बार होती है बाकी बार जो होता है वो प्यार नहीं समझौता होता है जो इंसान अपनी तन्हाई से बचने के लिए करता है। कहते है इंसान सबकुछ भूल सकता है लेकिन अपना पहला प्यार कभी नही भूलता। मै भी नहीं भूली थी अपना पहला प्यार । भूलतीं भी कैसे पांच साल बीतने के बाद भी ऐसा लगता है कुछ ही दिनों कि बात हो। बात तब की हैं जब मैं इंटर कि परीक्षा देने के बाद मै मौसी के घर आयीं थी छुट्टियां बिताने । मौसी जी शहर मे रहती थी। मै पहली बार अपनी गांव से बाहर इतनी दूर आयीं थी। मै बचपन से ही गांव कि माहौल मे पली-बढ़ी थीं। न किसी से बात करना न किसी से घुलना-मिलना था हमारा। सीधी-सादी भारतीय लड़की की तरह चुपचाप पढ़ने जाती और अपने कामों से मतलब रखती। मैं बाहरी दुनियां से बिल्कुल अंजान थी । न नेट के बारे मे कुछ जानती थी न मोबाइल के बारे मे। जिस जमाने मे मेरी उम्र की लड़की हाथों मे स्मार्टफोन लिये घूमती उस जमाने मे मेरे पास नोकिया का फोन था। पटना मे मौसी के यहां आकर मै अलग अनुभव कर रही थी। मौसी की बेटी का नाम मोनी है वो भी इंटर की परीक्षा दी थी। वो आधुनिक ख्याल की है हम से बिल्कुल अलग सोच की़। उसने मुझसे पूछी तुम्हारी किसीके साथ कोई चक्कर वक्कर है या नही। मै बोली नही मुझे ये सब पसंद नही है।

मोनी : कभी कोशिश की। या किसी लड़के ने तुम्हें प्रपोज किया ?

मै : नही। कभी किसीने नही। क्योंकि मै कभी किसी लड़के से बात ही नही की।मुझे लड़कों से बात करने मे शर्म आती है और मेरा कोई लड़का दोस्त भी नहीं है।

मोनी : फेसबुक का नाम सूनी है?

मैं : नही ।

फिर मोनी ने मुझे फेसबुक के बारे मे बतायी। मेरी आइडि भी बनाईं मुझे नेट चलाना भी सिखाई । मै भी अब बाहर कि दुनियां से अबगत होने लगी थी। शहर के रंग मे रंगने लगी थी। फिर दो महीने बाद मै अपने गांव आ गयी। अब मैं अपनी नामांकन बीए मे दुसरे काँलेज मे करवा ली थी। यहाँ मेरे नये दोस्त भी बन गये लेकिन मुझे काँलेज के दोस्तों से ज्यादा फेसबुक के अनजाने दोस्तों मे ज्यादा मजा आती थी। क्योंकि मै फेसबुक पे लड़कों से ज्यादा खुल के बात कर पाती थी। मै जब से गांव आयीं थीं अपनी फेसबुक आइडि नही खोल पायीं थी। मैंने अपने भैया से जिद कर दुसरी मोबाइल ली जिसमें मै फेसबुक चला सकूँ। जब मैं महीनें बाद फेसबुक खोली तो देखी की मैसेज कि बरसात हो रखी हैं उसमें ज्यादा मैसेज एक लडके का था जिसका नाम था रिशव। हर मैसेज मे यही लिखा था कैसी हो, कहां हो, आई मिस यूँ । ये क्या बात हुई न हमारी जान पहचान हुई थी न ज्यादा बात और मुझे मिस भी करने लगे फिर या तो फेसबुक बड़ा तेज था या लड़का ये तो पता नही। बस हमारी है हैलो हुई थी, मैंने उसके फोटो पे कमेंट कर दी कि अच्छे लग रहे हो फिर क्या था लड़का तो समझो पीछे ही पड़ गया। मुझे तो पता ही नही था कि लड़के इतनी जल्दी सेट हो जाते है वरना मै भी अपनी सेटिंग कर ही लेती। मैंने भी रिशव कि मैसेज का जवाब दे दी कि मै भी ठीक हूँ। उस दिन से हमारी समान्य बात होने लगीं जल्द ही हम अच्छे दोस्त भी बन गये। एक दिन रिशव ने मुझसे कहां कि वो मुझसे प्यार करने लगा है मै उसे पसंद हूँ। उसने कहां जिस दिन हमारी बात नही होती वो परेशान हो जाता हैं और मेरे फेसबुक पर तबतक मैसेज करते रहता है जबतक मै जवाब न दूँ । हाँ ये सच था मेरे फेसबुक में सबसे ज्यादा मैसेज रिशव का ही आता था। मेरी दिन की शुरुआत उसके शुभ प्रभात और दिन का अंत शुभ रात्रि से होती। मै उनकी तस्वीर देखीं थीं वो अच्छे थे। जब उसने जिद किया तो मै भी अपने तस्वीर भेज दी। जिंदगी का पहला प्यार सोच समझ कर कहां होता है ये तो बिन बादल बरसात कि तरह होती है कहीं भी कभी भी बरस जाती है। जब किसी कि बातें अच्छे लगने लगे घर से बाहर कोई फिक्र करने वाला मिल जाये,अगर जिंदगी मे कोई आपकी सुनने वाला मिल जाये फिर दिल कहां संभलता है। शायद मै भी अपना दिल रिशव को दे बैठी थीं। अब हम दोंनो फोन पे भी बातें करने लगे थें। रिशव दिल्ली मे रहता था और वो लड़का भी था तो वो जब चाहें अपनी मर्जी से कभी भी किसी से बात कर सकता था लेकिन मैं गांव मे परिवार के साथ रहती थीं जिस वजह से मै जब मर्जी हो फोन पे बात नहीं कर सकती थीं। अगर किसीको भनक भी लग जाती की मैं किसी लड़के से बात करती हूँ तो मेरा हुक्का पानी बंद हो जाती यही कारण था मै रिशव से बहुत कम बात कर पाती थीं फोन पे, वो भी तब जब मै कोचिंग के लिए घर से निकलती तब। मेरा बहुत मन करता कि फोन पे ही बात करूँ फेसबुक पर बात करने का अब बिल्कुल भी मन नहीं करता था। ठंडे का मौसम हम लड़कियों के लिए बहुत अच्छी होती है रजाई के अंदर जो करना है करो किसे पता चलता है तो अब मै रिशव से पूरी-पूरी रात बातें करती थीं। जबतक ठंड खत्म होती हम दोंनो एक दुसरे के बहुत करीब आ गये थे एक दुसरे को समझने लगे थे। रिशव मुझसे मिलना चाहता था और मै भी। मै दिल्ली तो जा नहीं सकती थी तो रिशव ने कहां मै तुम्हारे काँलेज आ जाऊंगा बिहार अगर तुम कहो तो। पहले तो मै ये सोच के मना कर दी की मेरे लिए दिल्ली से दरभंगा अपनी काम छोड़ कर आने कि कोई जरूरत नही है लेकिन मै उनसे मिलने के लिए बेचैन थी। कुछ दिन बाद उनके कम्पनी में चार दिनों की छुट्टी होने वाली थी। वो भी बहुत चाहते थें हम दोंनो मिले फिर मै भी मान गयी और उन्हें आने के लिए कह दी।

कुछ दिन बाद रिशव दरभंगा आने वाला था। जिस दिन वो दरभंगा आने वाला था मै घर से ये बोल के जल्दी निकल गयीं कि आज काँलेज मे कुछ काम है जल्दी आने बोला है। मेरे घर से काँलेज और दरभंगा का रास्ता दो घंटे कि थीं। जिस वजह से मैं काँलेज बहुत कम आ पाती थीं। जैसे ही मै दरभंगा बस स्टेंड पहुची रिशव को फोन किया की आप कहाँ है मैं बस स्टेंड पहुंच गयीं हूँ उसने कहा मै भी दरभंगा स्टेशन पहुंच गया हूँ आ रहा हूँ बस स्टेंड। कुछ देर बाद रिशव बस स्टेंड पहुंच गया, भीड़ के वजह से हमें एक दुसरे को ढूंढने मे परेशानी तो हुई लेकिन हम मिल गये। रिशव से मिलते ही मेरा चेहरा शर्म से लाल हो गया, मैं नजर झुकाए सिर्फ उनके सवालों का जवाब दे रही थी मुझे उनसे कुछ पूछने कि हिम्मत ही नहीं हो रही थीं। उसने कहा पास मे कोई रेस्टोरेंट हो तो बताओ वहाँ चलते है मुझे भूख भी लगीं है वहीं चल के आराम से बातें करते है। हम दोंनो बात करते-करते मिथिला युनिवर्सिटी की तरफ चल दिये। उसने बताया कि वो पहले भी दरभंगा आ चुका है यही मधुबनी मे उसका घर है जहाँ दादा-दादी रहते है। दादी के गुजरने के बाद यहाँ आया था तो इधर भी घूमने आया था। उनके पापा नौकरी करने दिल्ली आये फिर वही के हो के रह गयें। वो बोलता जा रहा था और मै सुन रही थी। अब मैं भी कम्फर्ट फील करने लगीं थीं। न जाने मुझे क्या हो गया था मोबाइल पे तो मैं बोलते नहीं थकती थी और यहाँ कुछ बोल ही नहीं पा रही थीं। हमलोग टहलते-टहलते हाल ही मे खुले मनोकामना मंदिर के बगल वाली रेस्टोरेंट के पास आ गयी। अंदर आकर एक खाली टेबल देख हम बैठ गयें। रिशव ने मुझसे पूछा क्या खाओगे, कुछ भी अपने पसंद का ले लो मैं बोली। बोलते हुई पहली बार मेरी नजर उनसे टकराई थी पहली बार मैं उनको इतने करीब से देख पायी थी फिर मैंने अपनी नजरें निचे कर ली। नाश्ता करने के बाद जब हम बाहर आये तो रिशव ने बताया कि उसकी ट्रेन है चार बजे अभी तो बारह ही बजे है तब तक क्या किया जाएं। रिशव ने पूछा यहाँ कोई सिनेमा हाँल है, चलो मूवी देखने चलते है, समय भी बीत जायेगी और मनोरंजन के साथ आराम भी कर लूँगा। मुझे भी ये अच्छा लगा क्योंकि मैं डर रही थीं अगर किसी ने मुझे लड़के के साथ घूमते देख लिया फिर समस्या हो जाती, तो हमलोग पास के सिनेमा हाँल मे आ कर मूवी का आनंद लेने लगे। यहाँ बहुत सारे प्रेमियों की जोड़ी भी थी जो अपने प्रेम मे डूबे थे वो सब मूवी कम और अपने पार्टनर को ज्यादा देख रहे थें। रिशव के मन मे पता नही क्या चल रहा था वो मुझे ऐसे देख रहा था जैसे कुछ कहना चाहता हो लेकिन मैं फिल्मों मे ही खोई रही। फिल्म खत्म होने के बाद वो मुझे वापस बस स्टेंड छोड़ कर वो स्टेशन चला गया जाते वक्त रिशव ने मुझसे गले मिला फिर आ लव यूँ बोल चला गया। मै भी घर के लिए बस पकड़ ली। इसके बाद से हम दोंनो अक्सर मिलने लगे एक दुसरे का ख्याल रखने लगे, दिन मे फोन पर चार-पाँच बार बात हो जाती थी हमारी। रिशव मुझे इतना पसंद आ गया था कि उसे मै अपनी पति के रुप मे देखने लगीं थी, मैं अब शादी रिशव से ही करना चाहती थी। मैं रिशव के प्यार में इतना पागल हो गयी थी की मैं अपना घर तक छोड़ने के लिए तैयार हो गयी थी। मै जानती थी मेरे घरवाले कभी भी इस शादी के लिए राजी नही होगें। रिशव कभी शादी करने की बातें नहीं करता था ऐसा लगता था जैसे या तो वो शादी से डरता था या फिर शादी मे उसकी कोई रूचि ही न हो। एक दिन जब मै शादी के लिए जिद की तो वो अपसेट हो गया और बताया की उसकी शादी हो गयी है। ये सुनते ही मै सुन सी हो गई ऐसा लगा जैसे किसी ने उच्चे पहाड़ से ढका दे दिया हो और मेरे शरीर से जान ही निकल गई हो। कुछ देर बाद जब मुझे होस आई तो देखा मेरे दोंनो आँखों से आँसू निकल रही थी। मै खुद को समभारते हुए उठी और फोन कट कर सो गयी। सुबह जब फेसबुक खोली तो देखी रिशव का मैसेज आया था। मैं नहीं चाहती थीं कि रिशव का मैसेज देखूँ लेकिन दिल को रोक नहीं पायी। उसने अपनी सारी राम कहानी लिख रखी थी। उसने लिखा था कि मुझे माफ कर दो, कि मैं ये बात तुम से छुपाई, हाँ मेरी शादी हो गयी हैं लेकिन बस नाम की, हम साथ नहीं रहतें, मेरे साथ धोखा हुआ था, मुझे झूठ बोल के शादी करवायी गई थी एक पागल लड़की से। पापा को दहेज चाहिए था उन्होंने सिर्फ पैसे पे ध्यान दिये लड़की पे नहीं की वो कैसी है। मै नहीं चाहता था ये शादी करना लेकिन पापा के दबाव मे आके उनकी मान रखने के लिए ये शादी तो कर ली थी लेकिन तुम बताओ उस लड़की के साथ मैं कैसे रहता जिसको कुछ भी नही पता था कपड़े कैसे पहनते है, खाते कैसे है, बोलते कैसे है, उसकी दिमाग बचपन से ही डिस्टर्ब थी। जब मैंने ये बात पापा को बताई तो उन्होंने कहा मुझे नही बताया गया था कि लड़की की दिमाग डिस्टर्ब है ये पहले पता होता तो तुम्हारी शादी उससे नहीं करवाते लेकिन अब क्या कर सकते है शादी तो हो गयी है भगा तो सकते नही तो हमे ही मैनेज करनी होगी। अब तो मैं असमंजस मे फस गया था समझ मे नही आ रहा था क्या करे। शुरू मे तो मैंने सोचा कि मुझे नही रहना इस पागल लड़की के साथ और मै लड़की को उसके पापा के पास छोड़ आया। शुरू मे तो बहुत हंगामा हुई लेकिन बाद मे तलाक के लिए लड़की के पापा मान गयें लेकिन एक शर्त थी मै उनका दहेज का पैसा वापस करूँ और लड़की की खर्च भी मैं उठाव। दहेज के पैसे तो सारे खर्च हो गये थे तो मैंने उनसे कहा कि मै नौकरी कर के उन्हें धीरे-धीरे पैसे वापस करूंगा तो वो मान गये लेकिन मेरे सामने एक शर्त थी कि मै तबतक दूसरी शादी नहीं कर सकता जबतक सारी पैसे वापस न कर दू। तब से लेके आजतक तीन साल से मैं वही पैसे भर रहा हूँ अभी तक नही लौटा पाया सारा पैसा। मेरी सारी सैलरी इसी मे चली जाती है। अबतक एक बात तो समझ मे आ गयी थी कि दहेज मांगना तो बहुत आसान है लेकिन देना बहुत मुश्किल। अबतक ये भी समझ मे आ गया था मुझे कि उस बाप पे क्या गुजरती होगी जिसकी जान सी बेटी और खून पसीने कि कमाई किसी और के घर चली जाती होगी। बाद मे वही बाप खुद को कैसे संभालता होगा जब उन्हें पता चलता होगा कि उसकी बेटी को खुशी नसीब ही नही हुई। काश मेरे पापा भी दहेज नहीं लिए होते तो मैं आज खुश होता। बस इसी सब वजह से मै अपसेट रहता था मुझे संभलने के लिए एक दोस्त कि जरूरत थी और तुम मिल गयी। मुझे नही पता कि हम एक दुसरे से प्यार करने लगेंगे। अब तुम ही बताओ मैं क्या करता अगर अभी भी लगता है कि मैंने तुम्हें धोखा दिया है तो मैं तुम्हारा भी गुनहगार हूँ । मुझे माफ कर दो लेकिन अब मैं क्या करूँ ये सजा भी सुना दो।रिशव कि मैसेज पढ़ते-पढ़ते मेरी आँखें नम हो गयी थी। समझ मे नहीं आ रही थीं कि मै क्या करूँ, रिशव से दूर चली जाऊँ या उसे माफ कर के, उसके साथ शादी करके उसके साथ रहूँ। रिशव की अच्छाई मुझे भा गयी थी तभी तो हमारा प्यार इतना दिन चला नहीं तो आज कल का प्यार तो पर भर की नज़र मिलते ही एक फूल कि तरह खिलती है और जल्द ही होटल के किसी कमरे मे मुरझा भी जाती है। रिशव मुझसे मिलने इतनी दूर आता था लेकिन न कभी मेरे पास आये और न कभी किस की भी बात की। मै बाबरी रिशव के प्यार मे इतना पागल थी कि उसके बोलते ही अपने आपको उसके हवाले करने को तैयार हो जाती। रिशव की शादी जिस लड़की से हुई थी उसका नाम नीतु हैं। मैंने रिशव को मैसेज किया कि अगर तुम सचमुच मुझसे प्यार करते थें तो मेरा एक बात मानों तुम नीतु को अपने पास ले आओ और उसे समय दो। माना कि वो पागल हैं लेकिन उसका भी तो दिल हैं। उस बेचारी कि बात तो कोई सुनने वाला भी नहीं हैं। आप उसे घर ले आये और अच्छे से अस्पताल मे उसकी इलाज करवाये। पहले बात कुछ और थी अब बात कुछ और हैं अभी नये-नये तकनीकें हैं मुझे पुरा विश्वास है नीतु ठीक हो जायेगी। अगर आप सचमुच मुझसे प्यार करते थे तो मेरी बात मान लिजिये और नीतु का घर बसा दिजिये। एक पिता का बोझ कम कर दिजिये । अब आप मुझे तभी मैसेज करना जब नीतु को घर ले आयेंगे ।

मेरे मैसेज का जवाब एक महीने बाद आया।

रिशव : मै अपनी नीतु को घर ले आया हूँ और उनका इलाज दिल्ली के एम्स अस्पताल मे चल रही है डाक्टर ने कहा हैं नीतु पुरी तरह ठीक हो जायेगी। धन्यवाद रिया तुम्हारी वजह से मैं अपनी टेंशन से निकल पाया और नीतु की जिदंगी मे खुशी दे पाया। अब तुम अपनी भी ख्याल रखना और नीतु के ठीक होते ही हम तुम से मिलने आयेंगे।

मैं उदास थीं क्योंकि मेरा पहला प्यार मुझे नही मिला लेकिन उससे कहीं ज्यादा मैं खुश थीं क्योंकि मेरे प्यार कि वजह से किसी की खुशी वापस मिल गयी थीं। उसके बाद मैने रिशव को भुलाने के लिए फेसबुक पे और भी बाॅइफ्रेंड बनाये लेकिन दिल किसी से नहीं लगा। कुछ दिनों बाद मेरी शादी हो गयी और सब कुछ भुलाकर अपनी पति के साथ खुश रहने लगी ।