मैं ही पागल थीं Divana Raj bharti द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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मैं ही पागल थीं

मैं ही पागल थी ।

दिवाना राज भारती

हैलो दोस्तों मै निया हूँ । आज मेरी शादी है। लव मैरिज नही ऐरंज मैरिज,लेकिन मै लव मैरिज करना चाहती थी । तो आप सोच रहे होंगे फिर मै ऐरंज मैरिज क्यों कर रही हूँ? वो कहते है न नसीब से ज्यादा और नसीब से कम कभी भी किसी को कुछ नही मिलती है । शायद मेरे नसीब मे ही पहले शादी और फिर प्यार थीं । पहले प्यार और फिर शादी नही थी। ऐसा भी नहीं है कि मुझे कोई लड़का पसंद नही आया या फिर मै इतनी बुरी थी कि मैं किसी को पसंद नही आती । मेरे जिदंगी मे भी वो सब हुआ जो एक लड़की की जिदंगी मे होती है। फिर पता नहीं क्यों मुझे प्यार रास नहीं आयीं।

बात चार साल पहले कि है,पापा ने अपना तबादला कोलकाता से झारखंड के एक गाँव पाकुड़ मे करवा लिए थे। ये पापा कि मर्जी नी, मम्मी कि जिद थीं। मम्मी पापा से हमेशा ये कह के लड़ती कि जब से शादी हुई है अपनी माँ का घर-आँगन छूट ही गयीं है। जब आपको नौकरी ही करनी है तो पाकुड़ मे क्यों नहीं करते, वहाँ भी तो अब इस बैंक की शाखा खुल गयी है। आप अपनी तबादला वहाँ क्यों नहीं करवा लेते, मैं शहर के माहौल से उब गयी हूँ, अब मैं अपनी बाँकी की जिन्दगी, अपनी माँ के गाँव मे बिताना चाहती हूँ। इसतरह मम्मी के बार-बार कहने पे पापा ने तबादला करवा लिए थे। एक सप्ताह बाद जब नये घर में समान व्यवस्थित हो गयीं तो मैंने मम्मी से जिद्द की, कि चलो न नाना-नानी से मिलके आते है। मम्मी बोली ठिक है शाम मे चलते है। अभी तक मुझे इस नये गाँव में, न किसी से बातचीत हुई थीं और न कोई सहेली मिलीं थीं। शाम जब नाना-नानी से मिलने आयीं तो मेरी मुलाकात मामा कि बेटी ईशानी से हुई, हमारी बातें आजतक फोन पे ही हुईं थीं, हमलोगों कभी एक-दूसरे से मिले नहीं थे। हम दोनों एक ही क्लासमेट थे। हमारी इंटर की परिणाम आ चुकी थी, और हम दोनों बीए में नाम लिखवाने कि सोच रहे थे। घर नजदीक होने के वजह अब हम बेझिझक एक-दूसरे के घर आने-जाने लगें, जिस वजह से हम दोनों अच्छी सहेली बन गयी। हमने साथ में ही, यहाँ की प्रसिद्ध काँलेज के के एम काॅलेज मे नामांकन करवा लिये थे। अब तो मेरा और ईशानी का उठना बैठना भी एक साथ ही होती, साथ मे ही मस्ती करती, यहाँ तक की लड़के भी साथ-साथ ही छेड़ते । मै इतनी बड़ी हो गयी थीं कि मै अपने लिए कोई दोस्त कोई हमसफर ढूंढने लगी थी। कभी कभार जब मैं अपनी सहेलियों को अपनी प्रेमी के साथ फोन पे व्यस्त देखती, तो मेरा दिल भी मचल उठता, किसी से बात करने को, फिर मै अपने दिल को ये कह के मना लेती की ये तो समय की बर्बादी है, भला ऐसा भी क्या रिश्ता प्रेमी से जो पल-पल की खबर दूँ कि मैने ये किया, वो किया अब ये कर रही हूँ। इसतरह किसी का गुलाम बनने से अच्छा मै अकेली ही सही थीं। पर हम दिल की तो सुन लेते है लेकिन दिल कहाँ किसीकी सुनता है, किसी अच्छे लड़के को देख ध्यान उसकी तरफ चल ही जाती और मैं उसमें अपनी प्रेमी ढूंढने कि कोशिश करतीं। लेकिन इस शहर मे मुझे अभी तक कोई ऐसा लड़का दिखा ही नही था जिसे देख के दिल मे कुछ-कुछ होता। ईशानी का भी कोई बाॅयफ्रेड नहीं था, पर पता नही कब से वो फेसबुक पर एक लडके के साथ मस्ती करती थीं, कभी बोलती टाइम्स पास है, कभी बोलती वो सिर्फ मेरा अच्छा दोस्त है, कभी बोलती मेरा बाॅयफ्रेंड है। वो खुद असमंजस मे थी की क्या रिश्ता है उसका उसके फेसबुक फ्रेंड राज के साथ, लेकिन जो भी था वो राज के साथ बहुत खुश रहती। मैने भी फेसबुक पे राज से दोस्त कर ली थी। हम दोनों ने कभी राज को नहीं देखा था, फिर भी उससे बात करके ऐसा लगता जैसे हम दोनों एक दुसरे को बचपन से जानते हो, मै अपनी सारी बात, राज से शेयर करती थीं। वो मेरा भी अच्छा दोस्त बन गया था लेकिन कभी उसके लिए भी मेरे दिल में घंटी नही बजी थीं। राज से हमारी दोस्ती इसलिए हुईं थीं क्योंकि वो पटना का था और मैंने भी अपनी प्रोफाइल मे पटना ही डाल रखी थीं, तो उसे लगता था कि हम आसपास के ही हैं, एक दिन जब वो हमसे मिलने कि जिद्द करने लगा तो मैने जल्दी से पटना का एक पता नेट से निकाली और उसे दे दी, वो अगले दिन सजधज के वहाँ आया और मैं फेसबुक ही नहीं खोलीं, वो बेचारा इंतजार कर के वापस चला गया। उस दिन मैने और ईशानी ने बहुत मस्ती किये,राज को उल्लू बना के, लेकिन कहीं न कहीं मुझे भी बुरी लग रही थीं ऐसी मजाक कर के, लेकिन मै करतीं भी क्या दिन भर मे जितने लड़के से बातें होती सबकी अलग-थलग माँगे होती, कोई बोलता फोटो भेजो, तो कोई नम्बर, कोई पता माँगता तो कोई प्रेमिका बनने को कहता। आप बताओ अगर फोटो दिखाना ही होता तो परोफाईल पे नहीं लगा लेती, फोन पे बात करना होता तो फेसबुक क्यों चलाती, पता लेके क्या करना है यार, घर पे आकर शादी की बात करनी है, और बिना देखे समझे प्रेमी-प्रेमिका बनने का तो कोई चान्स ही नही थी। बस इसी वजह से राज को भी ऐसे ही समझ बैठी, लेकिन राज सब से अलग था, वो इन लडकों की तरह नहीं था। राज हमारा अच्छा फेसबुक फ्रेंड था, क्योंकि वो हमारी हमेशा मेन्टली स्पोर्टस करता था, जब मेरे अंदर ये डर आया कि हम अपनी नादानी के वजह से एक अच्छा दोस्त न खो दूँ तब मुझे ये एहसास हुई थीं, उस दिन के बाद जब राज से बात हुई तो हमने अपनी गलती की माफी माँगी और सारी सच्चाई बता दी, फिर राज मान गया और हम और एक-दूसरे के करिब आ गये थे। राज को लेकर ईशानी की दिल मे क्या थीं वो तो ईशानी ही जाने लेकिन राज को लेकर मेरे दिल मे कोई फीलिंग्स नही थीं बस राज मेरा अच्छा दोस्त था। बस यूँही हमारी जिन्दगी मस्ती मे गुजर रही थीं ।

कुछ दिन बाद ईशानी की बर्थ-डे थीं। उसके बहुत सारे मेहमान आये हुये थें, उसमें एक लड़का भी था जो न जाने मुझे कब से मुझे घूर रहा था, उसकी चेहरे मे अजीब सी खिंचाव थीं, मै भी उससे नजर नही हटा पा रही थीं। ईशानी के केक काटते ही सब एक दुसरे को लगाने लगे, उस लड़के ने मौका देख मुझे भी लगा दिया, मुझे गुस्सा आनी चाहिए थीं लेकिन मै पागलों कि तरह मुस्कुरा रही थीं। शायद मेरे दिल की घंटी बज गयीं थीं और मै कितनी खुश थी ये मेरी डांस मे साफ दिख रही थीं। उस दिन तो मै ईशानी से नही पूछ पाई कि वो अजनबी लड़का कौन है जिसने मेरे दिल की धड़कने बढ़ा दी थी। अगले दिन पता चला उसका नाम कुशाल है और ईशानी की कोई दूर का रिश्तेदार है। मैंने तो मन ही मन ये सोच रही थी कि ईशानी अब तैयार हो जा तेरी दूर का रिश्तेदार अब नजदीकी रिश्तेदार बनने वाला है। मेरे और ईशानी के बीच कोई कोई बात छिपी नही रहती तो मैंने एक दिन ईशानी को बता ही दी कि मुझे कुशाल पसंद है मै उससे बात करना चाहती हूँ। ईशानी थोड़ी मुस्कुराइए और मेरी खिंचाई करते बोली, तुझे मेरे जिजा बनाने के लिए मेरा भाई ही मिला था, लेकिन बाद में वो बोली मेरे पास उसका नम्बर है दूँ, मेरा मन तो कर रहा था अभी नम्बर ले कर फोन कर बात कर लूँ, लेकिन मै खुद को संभालते हुए ईशानी से कही नही यार मै नम्बर कुशाल से ही लूँगी, पता नही वो मेरे बारे क्या सोचता है,

तू पता लगा न?, मैंने ईशानी से बोली। वो बोली ठीक है मै कोशिश करूँगी। ईशानी से पता चला कुछ दिन बाद की आग दोनों तरफ लगी है। अब मैं नानी घर कुछ ज्यादा ही आने जाने लगीं थीं। वजह नानी की प्यार नही कुशाल था क्योंकि वो भी अक्सर यहाँ आता था, उस दिन के बाद से हमारी सिर्फ एक-दूसरे को घूरने के अलावा, बस हाय हैलो ही हुईं थी। माँ को तो उनकी खोया प्यार, माँ का घर तो मिल गयीं लेकिन हमारी लव स्टोरी एक ही जगह अटकी हुईं थी। पता नहीं चल रही थी की ऐसा क्या करूँ कि अपनी लव स्टोरी ट्रैक पे आ जाये। फिर अचानक कुशाल का दिखना बंद हो गया, उसको देखें बिना तो मेरी मन बिल्कुल नहीं लगती थी किसी कामों मे, अब तो मेरी हालत ऐसी हो गयीं थीं जैसे पानी बिन मछली की। जब मुझसे रहा नहीं गया तो मैंने ईशानी से पूछ ही ली कि यार तेरा दूर का भाई कहाँ छिप गया है, आजकल नजर नहीं आता है? । वो तो वापस कोलकाता चला गया, ईशानी बोली। मैं ये सुनते ही ईशानी की तरफ इस तरह देखने लगीं, जैसे मानों उसने ऐसा बोल दि हो जो उसे नहीं बोलना चाहिए थी। हाँ वो चला गया वापस कोलकाता, वो अपनी स्मेस्टर का परीक्षा दे के आया था अपना छुट्टी बिताने, वो इंजीनियरिंग कर रहा है, इलेक्ट्रिक से, उसकी ये तीसरी साल चल रही है, अब वो फिर छः महीने बाद ही आयेगा अपनी परीक्षा दे कर अगले स्मेस्टर का, ईशानी ने ये बताते हुईं मेरी चुप्पी तोड़ी। मैं उदास हो गयीं ये सुनकर, मेरा दिल बैठ गया ये सोच के की, जब पास मे कुशाल था तो बात नहीं हो पायी,छः महीने का इंतज़ार के बाद न जाने क्या होगा, आजकल तो लोग बरसों की मुलाकात मिनटों में भूल जाते है, तो क्या कुशाल मुझे याद करेगा, मै न जाने और क्या-क्या सोचती रही। अब तो फेसबुक दोस्त का ही सहारा था। मै छोटी सी उम्र से ही भोले बाबा को बहुत मानतीं हूँ और उनकी नियमित पूजा भी करतीं हूँ, यूँ तो माँगने का सिलसिला उनसे चलती ही रहती है। लेकिन मैने आज फिर अपने भोले के समक्ष एक माँगे रखीं थी, कि कुशाल से मेरी बात करवा दो भगवान्, तो मिठाई चढ़ाऊँगी। आजकल तो 100 रूपये में छोटे भाई नही मानता, कोई बात पापा से छिपाने के लिए, और भगवान मिठाई के लिए मानने वाले थे?। खैर ये हमारी विश्वास है वो कहते है न कभी-कभी भगवान् शुन भी लेते है। अब मुझे कोई और रास्ता दिख भी नही रही थीं, कुशाल से अपनी बेचैनी बताने के लिए तो मै उसका इंतज़ार करने लगीं, जब कभी उसका याद बहुत सताने लगती तो, कही अकेले में बैठ अपनी अंदर छिपे कलाकार को बहार निकालने की कोशिश करतीं और अपने किताबों मे स्केच करने लगती, मै इसमें अच्छी नहीं थीं, लेकिन ये करना मुझे अच्छी लगती । उसको याद करते-करते, उसकी इंतज़ार करते, न जाने कब उससे प्यार करने लगीं। अपने हाथों पे जब मेहंदी लगाती तो अपने नाम के साथ उसका नाम भी जोड़ लेती, लेकिन इसके लिए भी मुझे बहुत सोचनी पड़ती कि ऐसा क्या करू कि नाम भी लिख लूँ और किसी को पता भी न चले। इसतरह एक महीने निकल गये।

एक दिन मेरे नम्बर पर किसी अनजान नम्बर से फोन आया, मैंने रिशीव की लेकिन किसी का आवाज नहीं आया, इसतरह पूरे दिन में करीब चार बार फोन आयीं लेकिन आवाज एक बार भी नहीं आयीं। मुझे गुस्सा आ रही थीं कि कौन पागल मुझे परेशान कर रहा हैं, क्योंकि लड़कियों के नम्बर पर इसतरह के फोन आना कोई बड़ी बात नहीं थी आते ही रहती है। पता नहीं लड़के को ये करके क्या मजा आती है, खैर जब मैने नम्बर नेट पे चेक किया तो आइडिया - वेस्ट बंगाल। ये देखते ही मेरा दिल जोड़ों से धड़कने लगीं कही ये नम्बर कुशाल का तो नहीं। मैंने झट से नम्बर सेव किया और वाट्टसप पे सर्च कि, और फोटो देख मैं जितना खुश थीं उतना हैरान भी कि कुशाल को मेरा नम्बर कैसे मिला। कही मेरे भोले ने कोइ चमत्कार तो नही कर दिये। मैंने हैलो लिख मैसेज सेंट कर दि। फिर हमारी बात होने लगी, शुरुआत मे समान्य बातें हुई लेकिन फिर धीरे-धीरे हमारी बात करने का समय बढ़ने लगीं, उनसे पता चला कि उसने मेरा नम्बर ईशानी के मोबाइल से निकाला था लेकिन हिम्मत नहीं हो रही थीं बात करने कि फिर बहुत हिम्मत करके मुझे फोन तो कर दिये थे लेकिन मुँह से आवाज ही नहीं निकल रहा था, मै ये सोच के डर रहा था पता नहीं तुम क्या सोचोंगे। ये सुन के, मेरी भी यही हाल थीं प्राण प्रिये मैंने मन ही मन बोली। उसके बाद से हमारी बात होती गईं और हम करीब आते गयीं। अब मै अपनें सहेलियों से नही जलती थीं और काॅलेज भी रोज जाती थीं, क्योंकि लड़कियों के लिए यही तो एक ऐसा वक्त होता है जहाँ वो खुल के अपनी प्रेमीयो से बात कर सकती है बिना घर वाले कि डर से, काॅलेज जाने से आने तक जब भी समय मिलती हमारी बात होने लगती, पता नही क्या बात करनी होती थीं या क्या बात करतीं थीं, हमे आजतक पता नहीं चला लेकिन जितना भी बात करतीं कम ही लगतीं। अभी तक हम दोस्त थें शायद कहने के लिए क्योंकि हम दोनों मे से किसी ने प्यार का इजहार नहीं किया था लेकिन शायद हम दोनों ये जानते थे कि अब हम दोस्त नहीं रह गयें है, हम अब उससे आगे निकल गयें है। कुशाल ने मिलने कि इच्छा जताई थीं बोला था कि इसबार छुट्टी मे आऊँगा, तो मै तुमसे मिलने आऊँगा, और हम बाइक पे बैठ कही दूर ड्राइव पे चलेंगे। मैं इंतज़ार करने लगी कुशाल के आने का। महीने बाद कुशाल अपना परीक्षा दे के घर आया तो अगले ही दिन मुझसे मिलने मेरे काॅलेज आ गया, मेरे लिए मेरी पसंद की चाॅकलेट डेली मिल्क ले के आया था, भले ही मैं फोन पे खुल के बात कर लेती थीं, लेकिन अभी भी हम दोनों एक दुसरे से खुल नहीं पाये थें। हमारी थोड़ी इधर-उधर कि बातें हुईं और फिर वो चला गया। इसीतरह वो अक्सर काॅलेज आ जाता और हम काँलेज कि कैन्टीन मे घंटे भर बातें करते रहते थे फिर एक दिन कुशाल ने कहा कि कल जल्दी आना काॅलेज हम कल घूमने चलेंगे, मैंने तो शुरू मे न नूकर की फिर मान गयी। अगले दिन मै अपनी पसंदीदा ड्रेस पहनी,जो कुशाल ने मेरे बर्थ-डे पर नेट से पसंद कर भेजवाया था, मै अक्सर अपनी बाल बांध के रखती थी लेकिन आज मैं अपनी बाल खुली रखीं थीं, क्योंकि मेरा सपना था कि एक दिन अपने बाॅयफ्रेंड के बाइक पे बैठू और अपने हाथों को फैला के बालों और हाथों को हवा मे लहराती। शायद वह दिन आ गयी थी। मैं घर से तो काँलेज के लिए निकलीं थीं लेकिन काँलेज नहीं गयीं मैं अपनी बैंग ईशानी को दे दी, कुशाल काँलेज के बाहर मेरा इंतज़ार कर रहा था मैं बाइक पे बैठ गयीं और मै निकल पड़ी अपनी सपना को जिने। कुशाल बाइक चला रहा था और मैं अपने हाथो को हवा मे लहरा रही थीं। पहले हमलोग मोती झरना गये, फिर सिदो कान्हू पार्क गयीं, यहाँ पहली बार कुशाल मेरा हाथ पकड़ा और इधर-उधर घूमने लगे, घूमते-घूमते हमलोग एक गोलगप्पे के ठेले के पास पहुँच गये, गोलगप्पे हमेशा से मेरी कमजोरी रही हैं, हम वहाँ जा के गोलगप्पे खायें, फिर वो बोला चलो पास के रेस्टोरेंट में चलते हैं। रास्ते मे आते समय मै ये सोच रही थीं अगर कुशाल आज प्यार का इजहार नहीं किया तो मै कर दूँगी और अगर वो मान गया तो किस उसके होठों पे चिपका दूँगी। रेस्टोरेंट पहुँची तो देखीं, कुछ लोग पाटी सेलीब्रेट कर रहे थे शायद किसी की बर्थ-डे पाटी थीं, कुशाल ने पूछा क्या खाओगे, मैंने अपने लिए नूडल्स मँगवाई और कुशाल ने भी। कुशाल को देख ऐसा लग रहा था जैसे उसे मुझसे कुछ कहना हो लेकिन हिम्मत नहीं हो रही थीं, वो बार-बार कहने को मुँह खोलता फिर बंद कर लेता फिर अचानक उसने मुझे अपने जेब से कुछ निकाल के दिया और बोला ये तुम्हारे लिए हैं। मैं खोल के देखी तो उसमें रिंग थीं, मैं कुशाल के तरफ देखा और फिर रिंग के तरफ देख के सोचने लगी कि क्या हो गया इस लड़के को गल्र्फ्रेंड के लिए कभी पूछा नहीं और डारेक्ट इंगेजमेंट की रिंग। मैं सोच ही रही थीं कि अपनी कन्फ्यूजन किलयर कर लूँ पूछ के कि वो बोल पड़ा, निया आय लव यूँ, मेरी गल्रफ्रेंड बनोगे। अगले ही पल वो कुर्सी से उतर मेरे कदमों मे एक पाँव पे बैठ मुझे प्रपोज कर रहा था, मै भी बिना इंतज़ार किये झट से आय लव यूँ टू बोल चिपका दी इमरान हाशमी कि तरह, फिर कुछ पल रूकी और बगल मे हो रही पाटी मे डांस चल रही थीं, मै भी जा कर डांस करने लगी, कुशाल कुछ देर तो मेरी पागलपनती को देखता रहा फिर वो भी मेरे साथ आ के नाचने लगा, हम एक-दूसरे मे खोये ही थे की तभी ईशानी का फोन आया बोली कहा हो तुमलोग जल्दी वापस आ जाओ, काॅलेज का क्लास खत्म होने वाला है घर जाने का वक्त हो गया है। मैं भी कुशाल को अब जल्दी वापस चलने को कही, मै थोड़ी सी डरी हुईं थीं अगर घर पे किसी को पता चला तो सब गरबर हो जाती, जाते समय तो मै कुशाल से थोड़ी दूर-दूर बैठी थी लेकिन वापस आते समय पास और चिपक के बैठी थीं बिना किसी डर के। काॅलेज पहुँचते ही ईशानी से अपनी बैंग ली और घर चली आयीं। अगले दिन ईशानी के पूछने पर सारी बातें बता दि जाने से आने तक की। अब हम और कुशाल भी हर प्रेमी-प्रेमिका कि तरह बातों के अंत मे एक-दूसरे से लव यूँ बोलने लगे थे। अपने भोले को धन्यवाद बोल उनको उनके हिस्से कि मिठाई भी चढ़ा दी थीं।

इसतरह हमारी प्रेम कहानी भी दिन से महीने, महीनें से सालों मे बदल गयीं थीं। बीए कम्पलीट होते ही ईशानी कि शादी हो गयीं। ईशानी के शादी होते ही हमारे घर वाले भी शादी कि बात करने लगे थे। इधर कुशाल कि भी इंजीनियरिंग कम्पलीट हो गयीं थीं और नौकरी के लिए कोशिश कर रहा था। मैं अक्सर कुशाल को कहती कि अपने घर में मेरे बारे में बता दो और बोलो मेरे घर आके शादी कि बात करले लेकिन वो हमेशा ये बोल के टाल जाता कि नौकरी मिलने दो किसी अच्छी सी प्राइवेट कम्पनी मे भी मिल जायेगी तो घर मे बता दूँगा। अब वो मुझसे बात भी कम करता था कभी-कभी तो हमारी बात भी नही होती थीं। अक्सर हमारी झगड़ा हो जाती थीं शादी को लेकर। मैं कितनी बार ये भी बोली कि घर मे बता दो कि मेरे घर मे बात कर ले, हम शादी बाद में ही कर लेंगे, लेकिन वो यहीं कहता कि मैं बिना नौकरी से पहले घर मे नहीं बता सकता, तुम्हें जल्दी है तो तुम बता दो कि आके बात करे मेरे घर। मैं फिर चुप हो जाती कि वो लड़का हो के अपने घर नही बता पा रहा था तो मैं लड़की हो कैसे बताती। सालों का सजाया मेरा प्यार अब बिखरने लगी थीं, मैंने अपने भोले से कितनी दफा बोलीं थीं कि कुशाल को जल्दी से कोई नौकरी दिला दे, लेकिन शायद भगवान् ने भी मुँह फेर लिए थे। इधर मेरे शादी के लिए लड़के वाले भी देखने आने लगे थे, मैं कुशाल से अलग होने के डर से उदास और अपसेट रहने लगी थीं और जब मैं अपसेट होती तो अपने फेसबुक दोस्त राज से बात करती कुछ देर के लिए ही सही मेरे मिजाज ठीक हो जाती, एक राज ही था जो मुझे सुनता और समझता था। मैं उससे पूछती बता राज मै क्या करूँ। वो मुझे कहता था निया तुम पागल हो, कब तक इसतरह उदास रहोगी, खत्म करो अपनी समस्या, कुशाल को फोन करके साफ-साफ पुछो कि वो तुमसे शादी करेगा अगर हाँ तो बता दो अपने घर मे कि तुम किसी से बहुत प्यार करती हो और शादी करना चाहती हूँ, जब प्यार करने कि हिम्मत कि है तो बोलने कि भी हिम्मत करनी होगी। अगर जवाब न है कुशाल का तो अपने पापा कि पसंद कि लड़के से शादी कर लो और इसे जिंदगी कि एक भूल बचपना समझ के भूल जाओ। किसी कि जरूरत बनने से अच्छा है किसी कि ख्वाहिश बनो। अगर प्यार सच्चा हो तो कुछ कर जाने के लिए दिल मे जोश आ ही जाती है ये मैं सुनी थीं आज देख भी ली थीं, मैं भी रोज-रोज कि झंझट से परेशान हो गयीं थीं तो एक दिन मैने कुशाल को फोन कर ही दी वो कुछ बोलता उससे पहले मै बोल पड़ी कुशाल तुम मुझसे शादी करना चाहते हो या नहीं? उसका जवाब था ना। मैं फोन काट दी कुशाल को भले अपना पति बनाने से रोक दि हो लेकिन अपनी आँसुओं को नहीं रोक पाईं, ये सिर्फ मेरा ही प्यार नहीं था, जो शादी से पहले दम तोड़ दी थीं। शायद मेरा प्यार भी उसी प्यार की तरह था जो जल्दी मे बिना सोचें कसमें वादे तो कर जाती है लेकिन जरूरत पड़ने पर साथ भी खड़े नहीं हो पातें है, मैं तो फिर भी खुशनसीब थीं जो शादी से पहले पता चल गया कि मेरा प्यार मेरा हाथ पकड़ वक्त के साथ नहीं चल सकता। मैंने कुशाल के दिये गिफ्ट, रिंग लेटर उसको भेजवा दी। जो इंसान साथ न रहा उसकी यादों को क्यों रखना संभाल कर। फिर मेरी शादी ठीक हो गयीं। आज मेरी शादी थीं पापा कि मर्जी के लड़के से, और मैं इतना कुछ होने के बाद भी यहीं सोच रही थीं कि किसी फिल्म कि तरह कोई चमत्कार हो जायेगा, और कुशाल दुल्हा बन कर आयेगा। मैं ही पागल थीं जो उस दुनिया मे प्यार ढूँढ रही थीं जहाँ लोग प्यार करना तो दूर एक-दूसरे से बातें करना भी भूल गये थे। मैं ही पागल थीं जो भगवान् जितना दिये है उस मे खुश नहीं थीं और उम्मीदें किये जा रही थीं। मै ही पागल थीं जो भगवान् के चमत्कार की इंतजार में पास आया प्यार और खुशी छोड़ पिछला प्यार याद करने बैठ गयीं थीं।

राज सही कहता था अगर आप किसी से प्यार करते हो तो उससे पुछो क्या वो तुमसे प्यार करता है अगर नहीं तो उसके लिए खुद को कुर्बान करने से अच्छा है कि आप उससे प्यार करो जिसको आप से खुशी मिलती हो और इस वक्त मेरी खुशी मेरा प्यार मेरे होने वाले पति ही थे। जिन्हें मै खोना नही चाहती थीं।

दो शब्द

दोस्तों आपका बहुत-बहुत धन्यवाद जो आप अपनी कीमती वक्त निकाल के मेरी लिखी रचना को पढते है और सराहना करते है। आपको मेरी रचना कैसी लगती है आप अपना सुझाव अवश्य दे। आपका सुझाव मेरे लिए मार्गदर्शक का काम करती है। मै अपने परिवारजनों और दोस्तों का भी शुक्रगुजार हूँ जिन्होंने मुझे इस काबिल बनाया । अब आप मुझे फेसबुक पर भी फ्लो कर सकते है, मेरा पेज मेरे नाम से ही है। धन्यवाद ।

दिवाना राज भारती