वो बचपन वाली लड़की Divana Raj bharti द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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वो बचपन वाली लड़की

खामोश प्यार (वो बचपन वाली लड़की)

लेखन :- दिवाना राज भारती

ये कहानी सिफ्र मेरी ही नही उन सभी नौजवानों कि है जो किसी से बेइंतहा प्यार करते है। और उनके इंतजार मे आज भी आँखे टिकाये हुये है, की वो आयेगी, जरूर आयेगी, आना पड़ेगा उन्हें, क्योकि मै उन्हें प्यार करता हूँ। और बहुत प्यार करता हूँ, मुझसे ज्यादा कोई उन्हें प्यार नही कर सकता। लेकिन जिनसे वो इतना प्यार करते है उन्हें तो खबर ही नही कि कोई उन्हें बेइंतहा प्यार करता है। क्योकि उन्होेंने एक दुसरे को बताने कि हिम्मत ही नही की।

ये बात तब कि है जब हम ग्यारहवीं मे पढने के लिए दरभंगा(बिहार) आये थे। वहाँ मेरे बहुत सारे दोस्त बन गये थे। जब भी हम सब मिलते बातों का सिलसिला लम्बा चलता। एक दिन बातों ही बातों मे सब एक दुसरे से बिते जिंदगी के बारे मे पूछने लगे। जैसे तुम्हारी गर्लफ्रेंड का क्या नाम है। कहाँ मिलीं थी। कैसी है इत्यादि। सबने अपने बारे मे बताया, अब मेरी बारी थी। एक ने पूछा तेरी गर्लफ्रेंड का क्या नाम है। मैनें कहा माफ करना यार, मेरी न तो कोई गर्लफ्रेंड थी और न है, आगे का पता नही। दुसरे ने कहा, क्यो झुठ बोल रहे हो यार, एैसा हो ही नही सकता, इतने हैंडसम हो, किसी न किसी का दिल तो तेरे पे आया ही होगा। मैने कहां एैसा कुछ नही है यार, अगर एैसा कुछ हुआ होता तो हम जरूर बताते। एक ने फिर टोका यार कोई तो होगी, जो तुम्हे अच्छी लगती होगी, जिसकी स्माइल अच्छी लगती होगी। जिसके लिए तुम कुछ भी कर सकते हो। बातों का सिलसिला अब खत्म हो गया था। सब अपने घर को चले गये। मै भी अपने घर चला आया। पता नही क्यो मेरा मन नही लग रहा था। कुछ करने को जी नही कर रहा था। तो मै लेट गया। दोस्तों कि बात मेरे दिमागों मे घूम रही थी। मुझे किसी कि याद आने लगी थी। हाँ यार थी एक लड़की, जिसके लिए मै कुछ भी कर सकता था। मै उसकी स्माइल का दिवाना था। उसकी स्माइल थी ही ऐसी यार, जो एक बार देख ले, वो अपना सारा गम भुल जाए। एैसा लग रहा था जैसे मानो सारे दुनियाँ का गम, अपनी स्माइल मे समा लेगी वो। मुझे आज भी वो दिन याद है, जब मैने उसे पहली बार देखा था। मै करीब छ: साल का था। मै अपनी पढाई के लिए एक प्राइवेट स्कूल मे दाखिला लिया था। इत्तेफाक से उस स्कूल का नाम रेड रोज पब्लिक स्कूल था। यानि लाल गुलाब पब्लिक स्कूल था। अब जिस स्कूल का नाम एैसा हो और वहाँ किसी को किसी से प्यार न हो कैसे हो सकता है। स्कूल का पहला दिन, मन नही लग रहा था मै बोर हो रहा था। क्योकि हमारे लिए सब नये और अजनबी थे। ये जगह, यहाँ के बच्चे यहाँ के लोग। हमारे कोई दोस्त भी नही थे क्योकि हम किसी को जानते नही थे। मै अपनी क्लास मे आके बैठ गया था। शायद उस वक्त हम वन मे थे। कुछ देर बैठने के बाद घंटी की आवाज सुनाई दी। सब बच्चे बाहर आने लगे तो मै भी आ गया। शायद प्राथना का वक्त हो गया था। सभी बच्चे पंक्ति मे खडे हो गये और प्राथना शुरु हो गयी। सभी की आँखे बंद थी और हाथ जोड़े प्राथना मे लीन थे। लेकिन मै हाथ जोड़े आँख खोले इधर-उधर झाँक रहा था। तभी मैनें देखा कि एक लड़की अपनी बैग्स लिए सामने की गेट से तेजी से आती है मेरे पंक्ति के सामने खड़े हो प्राथना करने लगती है। उसके खुले हुये बाल, हँसमुख चेहरा, होठो पे मुस्कान, जब वो गा रही थी तो पता ही नही चल रहा था की गा रही है या मुस्कुरा रही है। मै उसी को देखे जा रहा था। मेरी नजर उससे हट ही नहीं रही थी। प्राथना खत्म होते ही मै अपने क्लास मे आ गया। पता नही क्यो, अब मेरा डर, उदासी, जाती हुई दिख रही थी। मुझे इन सब अजनबियों के बिच कोई मिल गयी थी जिसे मै अपना दोस्त बना सकता था। लेकिन मेरी वो अजनबी दोस्त गयी कहाँ। मैने नजरें इधर-उधर घूमा के देखा, अरे क्या बात है यार वो तो मेरे क्लास मे ही थी। मै उसे बार-बार घूम के देख रहा था। हम दोनों कि नजरें आपस मे कभी-कभी टकरा जाती थी। तभी हमारे टीचर क्लास मे आ गये, उन्होेंने हाजिरी लेने शुरु किये। हाजिरी से हि पता चला कि हमारी अजनबी दोस्त का नाम चाँदनी है। क्या बात है जैसा नाम वैसा ही रंग रुप पायी थी उसने। उसकी तारीफ मे और क्या कहूँ यार, बस इतना समझ लो आसमान की चाँद भी उसके सामने फीका था। मेरी स्कूल के पहली दिन होने के वजह से किसी से ठिक से बात नही हो पायी थी। अगली दिन से हमारी बात एक दुसरे से होने लगी, कुछ दोस्त भी बन गये और मन भी लगने लगा था। कुल मिलाकर हमारे स्कूल के दिन अच्छे बीत रहे थे। चाँदनी को देखते हि मेरा मन खुश हो जाया करता। जब तक उसे देख न लूं, दिल को सुकून नही मिलता था। जब भी मै अप्सेट होता या उदास होता तो उसे देखते हि सब ठीक हो जाया करता था। जैसे हि वो मेरे आँखों से ओझल होती, मै परेशान हो पागलों कि तरह उसे ढूँढने लगता, जब तक वो मिल न जाऐ मेरे दिल को सुकून नही आता था। स्कूल मे आने से ले कर जाने तक का समय कैसे बीत जाते पता ही नही चलता था। स्कूल से आने के बाद फिर स्कूल जाने तक का वक्त गुजारने बहुत मुश्किल होता था। पता नही वो छ: साल की लड़की ने क्या जादू कर दिया था हमपे।

उस दिन से पता नही मुझे क्या हो गया था। जो उसे अच्छा लगता या जो वो करती मै भी करने लगा। वो रोज स्कूल पूजा कर के आती थी तो मुझे भी पूजा करने का जूनून हो गया। मेरे स्कूल के बाहर मनोज भुजा वाले का ठेला लगा करता था। मै वहाँ अक्सर वहाँ भुजा खाया करता था। एक दिन मैने वहाँ चाँदनी को आलू का चाट खाते देखा फिर क्या था मैंने भी भुजा खाना बंद और चाट शुरु कर दिया। यहाँ तक की मैने चाँदनी को स्कूल मे ऐलैस्टिक, रस्सी कूदने वाला खेल, आदि जो उसे खेलते देखता, मै भी घर आके वही खेलता। अभी तक हम दोनों मे कोई बाते नही हुई थी बस एक दुसरे को देख के मुस्कुरा दिया करते थे। हम बच्चे लोग पढने मे तेज होने के साथ साथ बदमाश भी बहुत होते है। अक्सर लंच हमलोग क्लास के समय हि छुपा के खाने लगते, अपना ही नही दुसरे का भी। ऐसा नही है कि हमलोगों को बहुत भुख लगा होता था बस बहुत मजा आता था। और रोज़ नये नये व्यंजन का स्वाद चखने का मौका मिल जाता था। लेकिन ये हमारी मस्ती ज्यादा दिन चली नही। हमारी चोरी पकड़ी गयीं। फिर क्या हमलोगों कि अच्छी धुलाई हुई। अब ये मजा भी बंद हो गयीं।

मै अपना लंच रेग्युलर नही लाता था। लंच के समय एक दिन मै अपने क्लास मे अकेला बैठा था। तभी पीछे से किसी कि आवाज आई, दुसरे का लंच खाना बंद हो गया तो लंच खाना हि छोड़ दिया क्या। मैने पीछे देखा चाँदनी थी। उसने कही मै लंच मे गाजर का हलवा लायी हुँ, बहुत ज्यादा है, मुझसे खत्म नही होगा, खाओगे। ये हमारी पहली बातचीत और पहली लंच थी साथ मे, मना कैसे कर सकता था। हलवा तो सच मे बहुत अच्छी थी लेकिन उससे ज्यादा नहीं। उसके बाद से हम दोनों साथ मे ही लंच करते और खुब बाते करते। हम अब अच्छे दोस्त बन चुके थे। अब हम साथ मे एक ही बेंच पे बैठने लगे थे। वो स्कूल के फंक्शन मे भाग भी लेती थी, वो डांस अच्छी करती थी। मुझे फंक्शन मे भाग लेने से ज्यादा अच्छा उसे देखना लगता था। इस तरह हमारी बचपन गुजरने लगी। हम बडे होने लगे थे।

कुछ दिनो बाद हम स्कूल से मिडल स्कूल आ गये। वहाँ एक टीचर थे जो पढाते कम और मस्ती ज्यादा करवाते थे। वो जब भी हमारे क्लास आते तो सबको गाना गाने को बोलते। चाँदनी सारे क्लास मे अच्छा गाती थी। इसलिए उसे बेंच पे खडा होकर गाने को बोला जाता। गाना खत्म होते ही टीचर उसकी गाल खींचता था, शाबासी के तौर पे। उस समय मुझे बहुत गुस्सा आता था, मन करता की जा के दो लगाऊँ। लेकिन मै क्या कर सकता था, वो हमारे टीचर थे और मै उनका छात्र। पता है अगर आपके स्कूल मे कोई लड़की दोस्त हो तो एक फायदा तो अवश्य मिलता है। जैसे नोट्स कोपी करना हो या फाइलें बनाना ये आसानी से हो जाती है। इसके लिए अपनी दोस्त की थोडी प्रशंसा करना होता है और अंत मे थोड़ी सी लालच दे दो, बस हो गया आपका काम। तो इस तरह हमारी मिडल स्कूल भी मस्ती मे बीती। अब हम हाई स्कूल मे थे। यहाँ पे लड़की को अलग और लडकों को अलग सेक्शन मे बाँट दिया गया। जिसके वजह से हमारी दूरी बढने लगी। अब हमारी बाते कम होती थी। दशमी का परीक्षा हमारी जिदंगी का एक पराव होता है। जिसमे अच्छे नम्बर लाना हर बच्चे का सपना होता है और इस सपने को पुरा करने के लिए, हम सभी अपने पढाई पे ध्यान देने लगे थे। इस वजह से हम दोनों का मिलना जुलना भी कम हो गया।

एक दिन स्कूल मे अचानक किसी वजह से छुट्टी हो गयी। तो चाँदनी मेरे पास आई और बोली, पता है शाहरुख की नयी मूवी आयी है, ओम शांति ओम, मैंने आजतक सिनेमा हाँल मे कोई मूवी नही देखी है, चलोगे। मै ये सोच के डर रहा था कि अगर कही पकडे़ गये तो घर पे अच्छे से धुलाई न हो जाऐ। लेकिन मना भी नही कर सकता था क्योकि मै ये मौका छोडना नही चाहता था। तो अपने दोस्तों से पैसे लिए और चल पड़े। मैने टिकट लिया और अपनी सीट पे बैठ के देखने लगे। शाहरुख की इंट्री पे उसका उछलना, खुशी से टाली बजाना, जाहिर करता था कि वो शाहरुख की कितनी बड़ी फैन थी। शाहरुख के मरते ही वो ऐसी रोने लगीं, मानो शाहरुख भैया सच का निकल लिए हो। अब वो बेजान सी हो गयी थी, कुछ बोल भी न रही थी। मध्यांतर होते ही मैने पूछा कुछ खाओगे। वो बोली हाँ चलो कुछ ले के आते है। बाहर आते ही वो अचानक खुशी से उछल पड़ी मानो उसका मरा हुआ शाहरुख फिर से जिंदा हो गया हो। वो बोली गोलगप्पे खाते है, ये मुझे पसंद है। उसको दुबारा खुश देखके मेरी जान मे जान आई। फिर मूवी शुरु हो गयी। हम देखने लगे, अचानक वो मेरे कंधे पे सर रख के बोली, तुम्हे चिकन बनानी आती है, मैने कहा नही, वो बोली सीख लो मुझे बहुत पसंद है, बना के खिलाना, मै मुस्कुरा दिया। पता है राज ये शाहरुख तो सब का है, लेकिन तुम मेरे शाहरुख हो। मुझे बहुत अजीब लगा, समझ नही आ रहा था, क्या जवाब दूँ। तो मै इस बात को इग्नोर कर मूवी देखने लगा। मूवी खत्म होते ही हम बाहर आ गये। वो बहुत खुश लग रही थी, मैंने पूछा क्या बात है आज बहुत खुश हो। वो बोली बहुत बात है, आज मै पहली बार हाँल मे मूवी देखी, गोलगप्पे खायी और तुम्हारे साथ शाहरुख की मूवी हाँल मे देखने का सपना पुरी की। उसकी बातों से ये तो पता चल गया था कि वो मुझसे प्यार करने लगीं है, मेरे सपने देखने लगीं है। मेरे तरफ से प्यार था या नही, हमे नही पता। लेकिन हम अच्छे दोस्त थे, उसको देख के खुश होना, मुझे अच्छा लगता था। हमारी दशमी कि परीक्षा भी नजदीक आ गयी थी। टेस्ट परीक्षा के बाद स्कूल भी बंद हो गये। सभी अपनी पढाई मे लगे हुये थे। अब हम सब दोस्तों का मिलना जुलना भी बंद हो गया। इस बिच मुझे चाँदनी की याद भी बहुत आती, लेकिन परीक्षा के वजह से उन सब बातों को इग्नोर कर के पढाई करने लगता।

दो महिने के बाद हमारी परीक्षा भी अच्छे से हो गयी। परीक्षा के खत्म होने के दो दिन बाद ही होली थी। अगले दिन सब होली खेल रहे थे, मस्ती तो हो रही थी लेकिन न जाने क्यो मेरा मन नही लग रहा था। उस दिन मै चाँदनी को कुछ ज्यादा ही मिस कर रहा था। उससे मिले बात किये, उसको देखे महिने हो गये थे। पिछली होली मे हमारे साथ चाँदनी भी थी। और हमलोगों ने जादू वाली होली मनाई थी। जादू वाली होली, आप चौंक गये न, ठीक है हम आपकों बताते है कैसी थी हमारी जादू वाली होली। हम और चाँदनी रंग का पुड़िया ले के स्कूल आये थे, और इस बार कुछ नया करेगें सोच के, बातों हि बातों मे सभी दोस्तों के कमीज के अंदर, रंग का पुड़िया खोल के डाल दिया। अब पानी के साथ खेलने के वजह से, सबकी कमीज रंगीन हो गये। बहुत मस्ती हुई थी उस दिन। आज रंगों के दिन भी चाँदनी के बिना हर चीज बेरंग लग रही थी। मुझे चाँदनी से मिलने का मन करने लगा। मै अपने बालों को शाहरुख कि स्टाइल मे सेट किया, अपनी साइकिल ओम शांति ओम के शाहरुख (मखीजा) कि तरह अपने बालों पे हाथ फेरते हुये निकल पडा़। हलांकि मुझे चाँदनी का घर देखा नही था लेकिन पता था कहां पे है। मै वहाँ पहुँच के, एक आदमी से पुछा तो उसने मुझे एक बंगले कि तरफ इशारा करते हुये बताया। मै ये बंगला पहले भी देख चुका था, लेकिन पता नही था कि वो चाँदनी का ही है। मेरे कदम लड़खड़ाने लगे, मै मायूस हो सोचने लगा, ये कहांबंगले कि मै झोपड़ी का। वो इतनी बड़ी और अमीर घर की थी ये मुझेअभी पता चला था। उसे देख के न कभी लगा या अनुभव हुआ की वो हम सब से अलग या अमीर घर की है। वो दिल की अच्छी थी तभी तो उसके दिल मे कोई भेदभाव नही थी। और ऐसा अक्सर या तो फिल्मों मे या फिर बचपन के पहले प्यार मे ही होता है। आज मेरे नजर मे उसकी इज्जत और बढ गयी थी। मै उसके घर के पास पहुँचा तो वहाँ एक आदमी था जो शायद घर कि रखवाली कर रहा था। मैने उनसे कहा कहा कि मै चाँदनी का दोस्त हूँ, मुझे उससे मिलना है, बुला दिजिये। वो बोले कि घर पे कोई नही है, सब लोग अपने किसी रिश्तेदार के घर होली मनाने गये है। कब तक आयेंगे मैने उन से पुछा। वो बोले, उनलोगों का आना न आना बात बराबर है, इतने बडे घर मे सिफ्र चार लोग रहते है, मालिक अक्सर काम के सिलसिले मे बाहर ही रहते है, मालकिन को खुद से फुर्सत ही नही है, मालिक के बेटे बाहर मे पढते है, और चाँदनी जी अकेली इस घर मे रहती है। मै चाँदनी के लिए उसका पंसदीदा चाँकलेट डेली-मिल्क ले गया था, मै वो उस अंकल को दे दिया और बोला ये आप खा लेना, और चाँदनी आये तो बोलयेगा राज आया था उससे मिलने। मै आ गया वापस अपने घर, चाँदनी से मिल नही पाया इसलिए उदास तो था ही लेकिन मै खुश था क्योकि हमारी दोस्तों कि लिस्ट मे चाँदनी जैसी दोस्त भी थी। मै आजतक यही सोचता था कि बड़े घर के बच्चे अक्सर बिगड़ जाते है, गलत रास्ते पे चले जाते है, मस्तीखोर होते है, लेकिन मै गलत था। चाँदनी बडे़ घर के रहती हुये भी अपनी संस्कार नही भुली थी, वो हमारे जैसे थी। जिस लड़की को घरवाले का प्यार सही से न मिला, वो आज प्यार बाट रही थी।

दो महिने बाद हमारी रिजल्ट भी आ गयी, और हम सभी अच्छे नम्बर से पास हो गये थे। हमारा स्कूल का सफर अब खत्म हो चला था, काँलेज का सफर अब शुरु होने वाला था। सब अपने घर से दुर अलग-अलग जगहों पर पढने के लिए जाने कि तैयारी करने लगे। मुझे भी अपने घर से दुर दरभंगा मे रहकर पढने कि हिदायत दी गयी थी। स्कूल के बाद से मै चाँदनी से एक बार भी नही मिला था, न हमारी कोई बात हुई थी। मै उनसे मिलना चाहता था, उसे ये बताना चाहता था की अब हम बराबर नही मिल पायेंगे, लेकिन हम उसे बहुत याद करेगें। क्यो न हम कोई ऐसा समय निकाले कि साल मे एक बार मिल पाये। लेकिन मै ये बात चाँदनी को बताता कैसे, मै उसके घर न जाने कितने बार गया, हर बार ये सुन के वापस आ जाता कि चाँदनी घर पे नही है। अब हम बस दुआ कर रहे थे की, मेरे जाने से पहले हमारी मुलाकात एक बार हो जायें। एक दिन मै अपने दरवाजे पे बच्चों के साथ खेल रहा था, तभी मै चाँदनी को अपने घर कि तरफ आते हुये देखा। उसकी आँखे लाल थी, शायद बहुत गुस्से मे थी। उसे देखते ही मेरे चेहरे पे खुशी आ गयी। लेकिन खुशी से ज्यादा मै डर गया, ये सोच के कि अगर घर के किसी ने देख लिया तो धुलाई तो होगी ही उपर से पढाई की भी वाट लग सकती है।

वो साइकिल को पटकते हुये मुझे धक्का देते हुये बोली, कहां थे इतने दिन, तुम्हे मेरी याद भी नही आईं, कैसे हो, मै तुमसे मिलने के लिए बेचैन थी और तुम यहाँ बच्चों के साथ मस्ती कर रहे हो। उसके सवाल मेरे उपर बानो कि तरह बरस रही थी, वो बोली जा रही थी और मै बस सुन रहा था। फिर वो चुप हो गईं और मुस्कुरा के बोली कुछ बोलोगे भी।

मै अच्छा हुँ, और तुम्हारी याद भी बहुत आती है, मै तुमसे मिलने तुम्हारे घर कई बार गया और मुझे हर बार ये बोला जाता की तुम घर पर नही हो, किसी रिश्तेदार के घर गयी हो। वो बोली मै कही नही गयी थी घर मे ही थी। तुम्हारे साथ किसी ने मूवी देखते देख लिया था, फिर पापा को पता चल गया और उस दिन से बाहर निकलना, किसी से मिलना बंद हो गया। अब मै घर मे ही रहती हूँ अकेली। मै सोचने लगा, मतलब उस अंकल ने मेरा डेली मिल्क तो फ्री मे खा लिया। खैर तुम कैसी हो और आगे की पढाई करने कहां जा रही हो, मैनें पुछा। उसने बतायी कि उसकी रिजल्ट भी अच्छी आई है और आगे कि पढाई करने वो अपने भाई के पास दिल्ली जा रही है। लेकिन वो दुर्गापूजा मे मिलने आयेगी और साल भर की बाते करेगी। मैने उस कहा अब तुम जाओ, पापा के आने का समय हो गया है। अगर उन्होंने हम दोनों को साथ मे देख लिये तो गलत सेंस करेगें और मुझे डाँट भी पड़ सकती है। लेकिन हम दोनों एक दुसरे से दुर नही जाना चाहते थे। मै चाहता था कि वो मेरे सामने ऐसे ही बोलती रहे और मै सुनता रहूँ। तभी मैनें पापा को आते देखा, मै बहुत डर गया, उसकी साइकिल उसे देते हुये बोला, जल्दी जाओ अब। वो जाना नही चाहती थी, शायद उसकी बाते अधूरी रह गईं थी। एैसा मानो जैसे जो बात कहने आई थी वही न कह पायी हो। मैने उसे ढँका दे जाने को बोला, वो जाने लगी। जब मैने आखरी बार उसे देखा तो उसके आँख मे आँसू थे। वो मुझे ऐसी देखी थी जैसे मैंने उसे रुलाया हो, उसका दिल तोड़ दिया हो, उसके सपने तोड़ दिये हो। ऐसा मानो जैसे मैने उसे अपने घर से ही नही दिल से भी निकाल दिया हो। वो तो चली गईं लेकिन मेरा मन अब बैठ सा गया था। कही मैंने अनजाने मे कोई गलती तो नही कर दी। क्या मै इतना कमजोर था कि एक लड़की जो इतनी हिम्मत कर के, मेरा घर ढूँढी, मेरे घर आई, उसे मै अपने घर वालो से मिलाता। शायद मेरे अंदर भी हिम्मत थी कि मै चाँदनी को गर्व से अपने घरवाले से मिलाता। लेकिन शायद दुनियाँ वालो कि बदनामी का डर, और झूठी शोहरत के वजह से, मेरी वो हिम्मत खो गयी थी। उसके अगले ही दिन मै दरभंगा आ गया था।

यहाँ भी एक बार फिर सब अजनबी थे। मुझे फिर से नये दोस्त की तलाश थी। यहाँ आकर मै चाँदनी को और भी याद करता। उसकी कमी मुझे सताने लगी थी। अब तो सारे नोट्स भी खुद ही बनाने पड़ते थे। जब हम साथ थे तो कभी भी ये एहसास नही हुई कि हम दोनों एक दुसरे के बिना अधूरे है। हर वक्त उसी के यादों मे खोया रहता, जब भी पढने बैठता उसका नाम बार-बार लिखता, उसके नामों के साथ अपने नामों को जोड़ता। अब तो उसके सपने भी आने लगे थे। उससे दुर होकर मुझे ये पता चला था कि हमारे बिच सिफ्र दोस्ती नही थी, कही ज्यादा था। वो ये बात शायद पहले समझ गयी थी, और हम आज समझ पाये थे। शायद चाहने लगा था उसे, बहुत प्यार करने लगा था।

अब जब भी मै किसी लडके को उसकी गर्लफ्रेंड से बात करते देखता। मेरा भी मन करता चाँदनी से बात करने को, उसके साथ और मूवी देखने का भी मन करता। लेकिन मै बात करता कैसे मेरे पास उसके नम्बर नही थे, मैने उसे फेसबुक पे भी खोजा, वो नही मिली।

मेरे अंदर अब बदलाव आने लगे थे। बारिश मे भीगना, डूबते सुरज को देखना, चाँद से बाते करना, तारे को निहारना अच्छा लगने लगा था। चाँदनी के याद मे मै चिकन बनाना भी सिख गया था। गोलगप्पे खाने की आदत लग गयी थी। अब तो मै क्लास मे भी कही खो जाता या बेवजह मुस्कुरा दिया करता। मैंने सोच लिया था, इस बार मै अपनी खामोशी जरूर तोड़ दूँगा। अपनी दिल की बात दूँगा। इस बार दुर्गापूजा मे जब मै चाँदनी से मिलूंगा तो उसे बता दूँगा की तुम फ्रेंड नही गर्लफ्रेंड हो मेरी।

मेरा सिरदर्द अब कम हो गया था और मुझे निंद भी आ रही थी। मुझे अगले दिन घर भी जाना था, दुर्गापूजा की छुट्टीयो मे तो मै सो गया।

अगले दिन मै जब बस से घर आ रहा था तो यही सोच रहा था की मै चाँदनी से बोलूँगा कैसे। मै उसे थोड़ा अलग स्टाइल मे, थोडे अलग तरिके से प्रपोज करना चाहता था। मैने बहुत सारे मूवी मे अलग-अलग डायलॉग के साथ हिरो को प्रपोज करते देखा था। तो मैंने भी सोचा गुलाब देते हुये, डायलॉग के साथ अपनी दिल की बात बता दूँगा।

मैं जो डायलॉग बोलने वाला था वो कुछ इसप्रकार था।

हाँ चाँदनी मै तुमसे प्यार करने लगा हूँ,

तुम वो पहली लड़की हो जिसे मैं जान से ज्यादा चाहने लगा हूँ,

तुम मेरे यादों मे, तुम मेरे सपनो मे,

तुम मेरे आज मे, तुम मेरे कल,

हर जगह सिफ्र तुम ही नजर आती हो,

तुम मेरे अंदर ऐसे समा गईं हो की मै तेरे बिना बिलकुल अकेला हूँ।

मैं तुमसे प्यार और बहुत प्यार करता हूँ।

क्या तुम मेरी गर्लफ्रेंड बनेगी।

मै बहुत खुश था क्योकि मुझे बचपन की फ्रेंड, गर्लफ्रेंड के रुप मे मिलने वाली थी।

मै घर पहुँच के सबसे मिला और इंतजार करने लगा सप्तमी का, क्योकि सप्तमी के दिन ही तो चाँदनी दुर्गा मंदिर आती थी।

इंतजार का घड़ी लंबी तो होती ही है लेकिन वो दिन आ गया जिसका मुझे इंतजार था। आज सप्तमी थी, शाम होते ही मै तैयार हो कर मंदिर पहुँच गया। हाथों मे गुलाब लिये, घबराता हुआ खड़े, मेरी आँखे चाँदनी को ढूँढ रही थी। मेरा दिल जोरों से धड़क रहा था इतना डर तो मुझे परीक्षा के पहले दिन भी नही हुआ था। मै कभी गुलाब को देखता तो कभी खुद को ठीक करता। मै ये सोच रहा था अगर चाँदनी ने आज हाँ बोल दी तो उसके बालो पे फुल लगाते हुये बोलूँगा, तुम अपनी बालों पे फुल लगाया करो तुम पे बहुत अच्छी लगती है। अब आयेगी, अब आती होगी, मै इंतजार करता रहा, उसकी राह देखता रहा। शाम से रात हो गयी लेकिन वो नही आई। मै उदास हो अपने घर आ गया। वो क्यो नही आयी या आना नही चाहती, वो ठीक तो है न, कही वो हमसे नाराज तो नही। इस तरह के बहुत सवाल मेरे मन मे उठ रहे थे। लेकिन इन सब बातों को नजरअंदाज करके मै यही दुआ कर रहा था कि वो कही रहे, खुश रहे, हमेशा मुस्कुराती रहे, गम उसके करीब से भी न गुजरे।

फिर मै वापस दरभंगा आ गया और पढाई मे लग गया।

ऐसा नही है की उसकी याद नही आती थी। उसकी याद तो अक्सर आती और जब भी आती चेहरे पे मुस्कान आ जाती मै उससे प्यार तो आज भी करता हूँ और शायद हमेशा करता रहूँगा। जो प्यार एक दिल से दुसरे दिल तक न पहुँचे, वो खामोश प्यार अक्सर दिल के किसी कोने मे ही बंद रह जाते है।

फिर मै अपने पढाई मे ऐसे उलझा की चार साल तक मै दुर्गा-पूजा मे घर नही जा पाया। इन चार सालो मे न चाँदनी से कोई बात हुई और न ही चाँदनी की कोई खबर आई। हाँलाकि इस बीच मुझे उसकी एक फ्रेंड मिली थी, जिससे पता चला था की अब चाँदनी के जिदंगी मे कोई और आ गया है और वो खुश है। मेरे लिए ये बुरी खबर थी लेकिन मुझे खुशी थी क्योकि वो खुश थी और मै उसकी खुशी ही तो चाहता था। एक ये भी बात थी जिसके वजह से मै दुर्गापूजा मे घर जाने कि कोशिश भी नही कि थी। वो मेरी प्रेमिका नही थी तो क्या हुआ, वो आज भी मेरी दोस्त थी। दोस्त अगर एकदम से लम्बे समय के लिए गायब हो जायें तो उसकी खबर तो लेनी ही पड़ती है। तो मैने सोचा कि अगले दुर्गापूजा मे मै घर जाऊँगा। इस बार पूजा शुरु होते ही मै घर आ गया। इस उम्मीद मे कि मै चाँदनी से मिलूंगा, मेरी नजरें अक्सर उसे ढूँढ़ती रहती। मै अक्सर उसके घर से भी गुजरता इस उम्मीद मे की वो कही दीख जायें। आज सप्तमी थी, आज मै मंदिर पहले आ गया था। मेरा दिल कहता कि आज वो आयेगी और हम जरूर मिलेंगे। मै माँ के सामने विनती कर रहा था, हे माँ तु तो सब जानती है, आज कोई ऐसा चमत्कार कर कि मै चाँदनी से मिल पाऊ। मैने माँ को प्रणाम किया और पलता ही था कि देखा चाँदनी मेरे सामने थी। ये संयोग भी बड़ी अजीब होती है कम्बख्त किसी दिन जान ही ले लेगी। चाँदनी साड़ी मे पुरी भारतीय नाड़ी लग रही थी। वो पहले से और भी खुबसूरत हो गयी थी। उसकी मुस्कान बिलकुल वैसी थी जैसा मैनें देखा था। जब मै उसे पहली बार देखा था तब भी वो प्राथना कर रही थी और आज भी। बस फ्रक इतना था वो तब गुड़िया थी और आज पड़ी। मै उसे देखे जा रहा था। वो अचानक आँखे खोली, मेरा दिल जोड़से धड़कनें लगा, मै घबरा गया, मै वहाँ से जाने लगा। उसने मेरा हाथ पकड़ ली। मै सहम गया, मेरे आँखे कुछ पल के लिए बंद हो गये।

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