किसी ने नहीं सुना -प्रदीप श्रीवास्तव भाग 1 रक्षा-बंधन का वह दिन मेरे जीवन का सबसे बड़ा अभिशप्त दिन है। जो मुझे तिल-तिल कर मार रहा है। आठ साल हो गए जेल की इस कोठरी में घुट-घुटकर मरते हुए। तब उस दिन सफाई देते-देते शब्द खत्म हो गए थे। चिल्लाते-चिल्लाते मुंह खून से भर गया था। मगर किसी ने यकीन नहीं किया। पुलिस, कानून, दोस्त, रिश्तेदार, बच्चे और बीवी किसी ने भी नहीं। सभी की नज़रों में मुझे घृणा दिख रही थी। सभी मुझे गलत मान रहे थे। मेरी हर सफाई, हर प्रयास घृणा की उस आग में जलकर खाक
Full Novel
किसी ने नहीं सुना - 1
किसी ने नहीं सुना -प्रदीप श्रीवास्तव भाग 1 रक्षा-बंधन का वह दिन मेरे जीवन का सबसे बड़ा अभिशप्त दिन जो मुझे तिल-तिल कर मार रहा है। आठ साल हो गए जेल की इस कोठरी में घुट-घुटकर मरते हुए। तब उस दिन सफाई देते-देते शब्द खत्म हो गए थे। चिल्लाते-चिल्लाते मुंह खून से भर गया था। मगर किसी ने यकीन नहीं किया। पुलिस, कानून, दोस्त, रिश्तेदार, बच्चे और बीवी किसी ने भी नहीं। सभी की नज़रों में मुझे घृणा दिख रही थी। सभी मुझे गलत मान रहे थे। मेरी हर सफाई, हर प्रयास घृणा की उस आग में जलकर खाक ...और पढ़े
किसी ने नहीं सुना - 2
किसी ने नहीं सुना -प्रदीप श्रीवास्तव भाग 2 तभी मेरे दिमाग में पत्नी से पिछली रात को हुई बहस आ गई जिसकी तरफ से घर पहुंचने पर ही ध्यान हटा था। उस रात खाने के वक़्त वह उदास सी लग रही थी। मैंने तब कोई ध्यान नहीं दिया था। ड्रॉइंगरूम में टी.वी. पर देर तक मैच देखकर जब बेडरूम पहुंचा तो देखा लाइट ऑफ थी। नाइट लैंप भी ऑफ था। लाइट ऑन की तो देखा वह बेड पर एक तरफ करवट किए लेटी है। पीठ मेरी तरफ थी इसलिए यह नहीं जान पाया कि सो रही है कि जाग ...और पढ़े
किसी ने नहीं सुना - 3
किसी ने नहीं सुना -प्रदीप श्रीवास्तव भाग 3 संयोग यह कि इसे मैंने एक बार संजना के यह कहने ही खरीदा था कि यार कब तक पुराने मोबाइल पर लगे रहोगे। इससे आवाज़ साफ नहीं आती। नया लो न। आज उसी मोबाइल ने हमारी पोल खोल दी थी। मुझे हक्का-बक्का देखकर बीवी कुछ क्षण मुझे देखती रही फिर मोबाइल मेरी तरफ धीरे से उछाल दिया। उसकी आंखें भरी थीं। वह बेड से उतर कर अलमारी से अपना नाइट गाउन निकालने को चल दी। मेरी एक नजर उसके बदन पर गई मगर मेरा मन शून्य हो गया था। भावनाहीन हो ...और पढ़े
किसी ने नहीं सुना - 4
किसी ने नहीं सुना -प्रदीप श्रीवास्तव भाग 4 डेढ़-दो महीने में ही हम दोनों के संबंध अंतरंगता की सारी तोड़ने को मचल उठे। दीपावली की छुट्टी के बाद जब वह ऑफ़िस आई तो बहुत ही तड़क-भड़क के साथ। सरसों के फूल सी पीली साड़ी जिस पर आसमानी रंग के चौड़े बार्डर और बीच में सिल्वर कलर की बुंदियां थीं। अल्ट्राडीप नेक, बैक ब्लाउज के साथ उसने अल्ट्रा लो वेस्ट साड़ी पहन रखी थी। अन्य लोग जहां उसकी इस अदा को फूहड़ता बता रहे थे वहीं वह मुझे न जाने क्यों सेक्स बम लग रही थी। मिलते ही मैंने उससे ...और पढ़े
किसी ने नहीं सुना - 5
किसी ने नहीं सुना -प्रदीप श्रीवास्तव भाग 5 मगर इन सब के बावजूद मैंने कभी भी संजना के तन पाने के लिए गंभीरता से नहीं सोचा था। इसलिए जब अचानक ही उसने एल.ओ.सी. अतिक्रमण का अधिकार मुझे देने की बात बेहिचक कही तो मैं हतप्रभ रह गया था। मैं व्याकुल हो उठा था इस बात के लिए कि वह अपनी बातों को विस्तार न दे तुरंत बंद कर दे। लेकिन वह चुप तब हुई जब शाम को कहीं अलग बैठकर बात करने का प्रोग्राम तय हो गया। तय स्थान पर पहुंचने के लिए हम दोनों छुट्टी होने से एक ...और पढ़े
किसी ने नहीं सुना - 6
किसी ने नहीं सुना -प्रदीप श्रीवास्तव भाग 6 ‘समझ में नहीं आता कि तुम्हारा पति कैसा है। और साथ तुम भी। तुम कहीं से भी कम खूबसूरत नहीं हो। न ही किसी बात से अनजान इसलिए आश्चर्य तो यह भी है कि तुम अपने पति की विरक्ति दूर नहीं कर सकी। बल्कि खुद ही उससे दूर हो गई।’ ‘नीरज तुमने बड़ी आसानी से मुझ पर तोहमत लगा दी। मुझे फैल्योर कह दिया। मैं मानती हूं कि मैं फेल नहीं हूं। मेरे पति के विचारों को बदलना उन्हें स्वाभाविक नजरिया रखने के लिए तैयार कर पाना मैं क्या किसी भी ...और पढ़े
किसी ने नहीं सुना - 7
किसी ने नहीं सुना -प्रदीप श्रीवास्तव भाग 7 मेरी इस बात पर संजना फिर लेट गई बेड पर उसके पैर नीचे लटक रहे थे। कपड़े पहले से ज़्यादा अस्त-व्यस्त हो रहे थे। बदन पहले से अब कहीं और ज़्यादा उघाड़ हो रहा था। उसका कामुक लुक और ज़्यादा कामुक हो रहा था। उसकी बॉडी लैंग्वेज और ज़्यादा प्रगाढ़ आमंत्रण दे रही थी। मैं उसके सामने कुर्सी पर बैठा उसे निहार रहा था। उसने कुछ क्षण मेरी आंखों में देखा फिर बोली, ‘मैंने बहुत सोच समझ कर ही तुम्हारी तरफ यह क़दम बढ़ाया है। तुममें कुछ ख़ास देखा तभी तो ...और पढ़े
किसी ने नहीं सुना - 8
किसी ने नहीं सुना -प्रदीप श्रीवास्तव भाग 8 सुबह का माहौल बहुत तनावपूर्ण रहा। सूजा चेहरा, सूजी आंखें लिए ने सारा काम किया। मुझ पर गुस्सा दिखाते हुए बच्चों पर चीखती चिल्लाती रही। मैंने कुछ कोशिश की तो मुझसे भी लड़ गई। मैं बिना चाय नाश्ता किए, लंच लिए बिना ही ऑफिस आ गया। एक तरफ मेरे चेहरे पर जहां तनाव गुस्से की लकीरें हल्की, गाढ़ी हो रही थीं। वहीं संजना खिलखिलाती हुई मिली। चेहरा ऐसा ताज़गीभरा लग रहा था मानो कोई बेहद भाग्यशाली नई नवेली दुल्हन पति के साथ ढेर सारा स्वर्गिक आनंद लूटने के बाद पूरी रात ...और पढ़े
किसी ने नहीं सुना - 9
किसी ने नहीं सुना -प्रदीप श्रीवास्तव भाग 9 मैं आज तक उसके हद भूल जाने की बात का अर्थ समझा कि क्या वह मेरे हाथ उठाने पर मुझ पर हाथ उठाने को कह रही थी या जैसे मैं संजना के साथ रिश्ते जी रहा था वैसा ही कुछ करने को कह रही थी। खैर उस दिन के बाद उसने बेडरूम में आना उसकी साफ-सफाई तक बंद कर दी। बच्चे भी नहीं आते मेरे पास। एक बदलाव और हुआ सैलरी के दिन आते ही उसने पिचहत्तर प्रतिशत हिस्सा पूरी दबंगई के साथ लेना शुरू कर दिया। सच यह था कि ...और पढ़े
किसी ने नहीं सुना - 10
किसी ने नहीं सुना -प्रदीप श्रीवास्तव भाग 10 अब मुझे यह सोचकर ही आश्चर्य होता है कि तब मेरे में कैसे अपनी पत्नी अपनी नीला को छोड़ने का विचार इतनी आसानी से आ गया था। लेकिन उस संजना को छोड़ने का विचार एक पल को न आया जिसके कारण दो पाटों में दब गया था। उस संजना का जो अपने पति की नहीं हुई थी, उसे सिर्फ़ इसलिए छोड़ दिया था उसने क्योंकि झूठ फरेब उससे नहीं होता था। जो उसकी कामुकता को गलत समझता था। उस संजना को जो मनमानी करने के लिए मां-बाप, भाई-बहन को भी दुत्कार ...और पढ़े
किसी ने नहीं सुना - 11
किसी ने नहीं सुना -प्रदीप श्रीवास्तव भाग 11 इस बार उसके और ज़्यादा इठला के बोलने ने मुझे एकदम कर दिया, कि यह उस एरिया में चलती-फिरती गर्म गोश्त की दुकान है जो खुद ही माल भी है और खुद ही विक्रेता भी। यह उनमें से नहीं है जिनके सौदागर साथ होते हैं। मैं संजना और नीला के चलते बेहद गुस्से और तनाव में था ही तो दिमाग में एकदम से एक नई स्टोरी चल पड़ी। सोचा घर जाने का कोई मतलब नहीं है, वहां बीवी-बच्चे कोई भी पूछने वाला नहीं है। और जिस के लिए अपने भरे-पूरे खुशहाल ...और पढ़े
किसी ने नहीं सुना - 12
किसी ने नहीं सुना -प्रदीप श्रीवास्तव भाग 12 बातों ही बातों में उसने डिनर का भी ऑर्डर दे दिया जिसमें मेरी पसंद भी उसने पूछी थी। खाना सब नॉनवेज ही था। जब वेटर डिनर रख कर जाने लगा था तो उसने बाहर डू नॉट डिस्टर्ब का टैग लगा देने के लिए कह दिया। साथ ही नीचे रिसेप्शन पर भी फ़ोन कर मना कर दिया। डिनर ऑर्डर करने से पहले उसने अचानक ही शॉवर लेने की बात कर मुझे चौंका दिया था। मैंने जब यह कहा कि चेंज के लिए कपड़े कहां हैं तो उसने वहां रखे दो टॉवल की ...और पढ़े
किसी ने नहीं सुना - 13
किसी ने नहीं सुना -प्रदीप श्रीवास्तव भाग 13 कई बार मन संजना पर भी गया। फ़ोन करूं या न मैंने इस असमंजस में रात में बारह बजे तक अपने को रोके रखा। फिर उसके बाद जब कॉल की तो उसने फ़ोन काट दिया। मैं गुस्से से तिलमिला उठा था। पर नैंशी के सामने जाहिर नहीं होने दिया। फिर नैंशी के मायाजाल में ऐसा डूबा था कि यह सब नेपथ्य में चले गए थे। मगर अब नैंशी नेपथ्य में थी। नीला हावी थी। एक बार भी फा़ेन न आने से मैं हैरत में था। सोचने लगा कि संजना से संबंध ...और पढ़े
किसी ने नहीं सुना - 14
किसी ने नहीं सुना -प्रदीप श्रीवास्तव भाग 14 अंदर जो हुआ वह मेरी कल्पना से परे था। जो बॉस पंद्रह वर्षों से मुझे छोटे भाई की तरह मानता था और मैं उन्हें बॉस से ज़्यादा बड़ा भाई मानता था, जिसके चलते ऑफ़िस में मेरी एक अलग ही धाक थी, उसी बॉस ने भाई, ने मुझे क्या नहीं कहा। बेहतर तो यह था कि वह मुझे जूता उतार कर चार जूते मार लेते मगर वह बातें न कहते जो कहीं। मेरी आंखें भर आईं तब कहीं वह कुछ नरम पड़े मगर आगे जो बातें कहीं उससे मेरे पैंरों तले जमीन ...और पढ़े
किसी ने नहीं सुना - 15
किसी ने नहीं सुना -प्रदीप श्रीवास्तव भाग 15 मैं बिना कुछ बोले आज्ञाकारी फौजी की तरह डाइनिंग टेबिल के पड़ी कुर्सी पर बैठ गया। नीला भी नाश्ता रखकर सामने बैठ गई। मेरे साथ ऐसे नाश्ता कर रही थी मानो सारी समस्या उसने हलकर ली है। मैं बडे़ असमंजस में था उसके इस बदले रूप से। नाश्ता ख़त्म होते ही उसने कहा, ‘कपडे़ चेंज करके आप आराम करिए मैं थोड़ी देर में खाना लगाती हूं।’ मेरी किसी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा किए बिना जाने लगी तो मैंने हौले से बच्चों के बारे में पूछा। नाश्ता करने के बाद मैं कुछ राहत ...और पढ़े
किसी ने नहीं सुना - 16
किसी ने नहीं सुना -प्रदीप श्रीवास्तव भाग 16 तुम्हारे मामले ने जो इतना तूल पकड़ा वह इस लतखोरी के ही हुआ। क्योंकि ऑफ़िस में सीनियारिटी को लेकर वो तुमसे खुन्नस खाए रहता है। दूसरे संजना की हरकतों के चलते उसे लगा कि वो आसानी से उसपे हाथ साफ कर लेगा। लेकिन वो अपने स्वार्थ में तुम्हारे सामने बिछ गई। इससे वह और चिढ़ गया। और तुम्हारे बॉस को चढ़ा दिया कि सर करना आपको है लेकिन संजना के मजे वह ले रहा है। सर राइट तो सिर्फ़ आपका बनता है। बस चढ़ गए तुम्हारे बॉस।’ ‘मगर इतनी अंदर की ...और पढ़े
किसी ने नहीं सुना - 17
किसी ने नहीं सुना -प्रदीप श्रीवास्तव भाग 17 अरे! भाभी जी इन लोगों ने लिमिट क्रॉस कर दी है हॉवर में ही जाने कहां घंटों बिताकर आ जाते हैं। भाभी जी आपको यकीन न हो तो जब मैं कहूं तो आ जाइए सब दिखा देता हूं। ऐसी तमाम बातें सुनती तो मैं अंदर ही अंदर रो पड़ती, खीझ जाती। मगर संभाले रहती खुद को। वह इतनी आत्मीयता से बातें करता कि मेरे मन में उसके लिए सम्मान उभर आया। उसकी बातों ने एक बार मुझे इतना भावुक कर दिया कि मैंने रिक्वेस्ट करते हुए कहा, ‘‘भइया किसी तरह उस ...और पढ़े
किसी ने नहीं सुना - 18
किसी ने नहीं सुना -प्रदीप श्रीवास्तव भाग 18 मैं ऑफ़िस की ऐसी ही तमाम घटनाओं में डूबता-उतराता सारी रात रहा। और नीला में लंबे समय बाद एकदम से उभर आई हनक और उसकी शान भी देखता रहा। इस लंबी बात के बाद उसने मानो बरसों से ढो रहे किसी बोझ को उतार फेंका था। विजयी भाव उसके चेहरे पर तारी था। अपनी विजय का उसने जश्न भी अपनी तरह खूब मनाया था। बच्चों के न होने का भरपूर फायदा उठा लेने में कोई कोर कसर उसने नहीं छोड़ी थी। बरस भर की अपनी प्यास उसने जीभर के बुझाई,। बेसुद्ध ...और पढ़े
किसी ने नहीं सुना - 19
किसी ने नहीं सुना -प्रदीप श्रीवास्तव भाग 19 मेरा सस्पेंशन और उसका कंफर्मेंशन रुकना अपने आप में इस ऑफ़िस पहली घटना थी। और उससे भी ज़्यादा यह कि मेरा सस्पेंशन चौथे दिन न सिर्फ़ खत्म हो गया बल्कि पांचवें दिन ही संस्पेंड करने वाले बॉस ने ही बुला कर प्रमोशन लेटर भी थमा दिया। इस आर्श्चयजनक घटना पर खुशी व्यक्त करने वालों में लतखोरी लाल सबसे आगे था। उसके दोगलेपन पर मैं भीतर-भीतर कुढ़ा जा रहा था। मगर साथ ही मन में नीला के भाई को धन्यवाद भी देता जा रहा था। पक्षताता हूं आज इस बात पर कि ...और पढ़े
किसी ने नहीं सुना - 20
किसी ने नहीं सुना -प्रदीप श्रीवास्तव भाग 20 मुझे अंदर भाग कर नीला को बताने की ज़रूरत ही नहीं वह पहले ही सब सुनकर भाई को फ़ोन लगा चुकी थी। भाई ने इंस्पेक्टर से बात कराने को कहा तो उसने बहुत घुड़कियां देते हुए मुश्किल से बात की, ‘थाने तो लेकर जाना ही पड़ेगा। रेप का मामला है उसे मारने की कोशिश भी की गई है चोट के निशान हैं उसकी बॉडी पर। सॉरी यह नहीं हो सकता मैं इन्हें ले जा रहा हूं।’ नीला रोने लगी। वह हक्का-बक्का कभी मुझे तो कभी पुलिस को देखती, शोर सुनकर बच्चे ...और पढ़े
किसी ने नहीं सुना - 21 - अंतिम भाग
किसी ने नहीं सुना -प्रदीप श्रीवास्तव भाग 21 इसे पागलपन या नफरत की पराकाष्ठा भी कह सकते हैं कि मेरे, अपने, बच्चों के कपड़े, रुमाल तक या तो किसी को दे दिए या बेच दिए। इसमें हमारी शादी का जोड़ा भी था। उसकी तमाम बेसकीमती साड़ियां सब कुछ शामिल था। गहने भी सब बेच दिए थे। यह सब करने के बाद जब वह मुझसे मिलने आयी तब सारा वाक़या बताया तो मैंने अपना माथा पीट लिया। ये तुम मुझे सजा दे रही हो या कर क्या रही हो? उसने बेहद रूखे स्वर में जो जवाब दिया उसके आगे जो ...और पढ़े