किसी ने नहीं सुना
-प्रदीप श्रीवास्तव
भाग 17
अरे! भाभी जी इन लोगों ने लिमिट क्रॉस कर दी है ऑॅिफ़स हॉवर में ही जाने कहां घंटों बिताकर आ जाते हैं। भाभी जी आपको यकीन न हो तो जब मैं कहूं तो आ जाइए सब दिखा देता हूं। ऐसी तमाम बातें सुनती तो मैं अंदर ही अंदर रो पड़ती, खीझ जाती। मगर संभाले रहती खुद को। वह इतनी आत्मीयता से बातें करता कि मेरे मन में उसके लिए सम्मान उभर आया। उसकी बातों ने एक बार मुझे इतना भावुक कर दिया कि मैंने रिक्वेस्ट करते हुए कहा, ‘‘भइया किसी तरह उस चुड़ैल से इनको बचाओ।’‘ फिर कुछ बातों के बाद उसने अगले दिन मुझे ऑफ़िस के पास बुलाया। मैं जाने को तैयार हो गई।’
‘कमीने फ़ोन करते रहे और तुमने मुझे बताया तक नहीं। जिसके पास गई थी वो कौन था उस हरामजादे का नाम बताओ।’
‘बताती हूं... । मेरी स्थिति का शायद तुम्हें अंदाजा हो गया होगा। तुमने संजना के साथ जो रिश्ते रखे उससे मुझ पर क्या बीतती है। लोगों के फ़ोन आए चुगुलखोरी के लिए तो तुम्हें इतना बुरा लगा।’
‘मैंने नाम पूछा कि जब गई तो वहां कौन मिला।’
‘मैं नहीं गई।‘
‘क्यो ?’
‘क्योंकि उसी दिन करीब सात बजे उसका फ़ोन फिर आया। नमक, मिर्च लगा कर बताया कि तुम संजना के साथ ऐश कर रहे हो। मैंने कहा जगह बताइए में वहीं पहुंच जाऊंगी। तो बोला आप नहीं पहुंच पाएंगी। आप मेरे पास आइए मैं ले चलूँगा आपको। कुछ और बहस के बाद धीरे से हंसते हुए बोला क्या भाभी जी इतना टेंशन लेकर कोई काम नहीं होता न। थोड़ा प्यार से काम करिए। आप आइए मैं आपको अपनी बाइक पर बैठा कर ले चलूँगा । उसकी नीचताई पर मैंने सोचा कि आपसे पहले क्यों न उसी हरामजादे को पकडूं।
यह सोचकर मैंने कहा ठीक है मैं आपके साथ चलूंगी आप अपना नाम तो बताइए, परिचय दीजिए तो वह धूर्त बोला फलां जगह आप पहुंचिए मैं आपको वहीं मिलूंगा। मैंने कहा आपको पहचानूंगी कैसे कुछ तो बताइए। मैंने उसको पकड़ने की ठान ली थी इसलिए जानबूझ कर ऐसे अंदाज में बोली कि उसको ये न लगे कि मैं उसकी हरकतों से नाराज हो रही हूं। लेकिन इससे उसकी हिम्मत एकदम बढ़ गई।
वह आहें भरते हुए बोला अरे! भाभी जी आप डर क्यों रही हैं आप जैसी सेक्सी भाभी का मैं सेक्सी देवर हूं। आपको पूरा एंज्वायमेंट दूंगा फिर आपको पति देव के पास ले चलूंगा। मैं गुस्से से अपना आपा खोने ही जा रही थी कि बिना रुके ही वह आगे बोल पड़ा अरे! भाभी जी आपकी कर्वी बॉडी का असली कद्रदान तो मैं ही हूं आइए में आपको पूरा... इसके आगे मैं चिल्ला पड़ी। जीभरकर गाली देते हुए कहा जा अपनी बहनों का कर्वी बदन देख। इस पर उसने तुरंत फ़ोन काट दिया।
मैंने तुरंत कॉल बैक किया लेेकिन पहले ही की तरह पी.सी.ओ. का ही नंबर मिला। मैंने पी.सी.ओ. वाले से बाइक का नंबर देखकर बताने को कहा तो उसने टालमटोल कर फ़ोन काट दिया। इससे मैं इतना आहत हुई कि बहुत देर तक रोती रही। कि दुनिया में कैसे-कैसे नीच लोग हैं। पति को दूसरी औरत के साथ देखा तो पत्नी को भी चरित्रहीन समझकर उसी के पीछे पड़ गए। उसको सड़कछाप, चरित्रहीन औरत समझ लिया।
‘तुम उसकी आवाज़ पहचान सकती हो।’
‘किसकी-किसकी पहचान करोगे। कई करते थे। एक-दो को छोड़कर बाकी सब कुत्तों की तरह लार टपकाते कुछ न कुछ बोल ही देते थे।’
‘तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया। खैर एक न एक दिन पता करके ही रहूंगा। सालों को छोड़ूंगा नहीं।’
‘पहले अपनी नौकरी ठीक करो फिर निपटना इन सबसे। तुम अगर नहीं भी निपटोगे इन सबसे तो भी मैं छोड़ने वाली नहीं। मैंने भाई से बात कर रखी है। खासतौर से लतखोरी के लिए क्योंकि सारे फसाद की जड़ वही है।’
नीला को इसके बाद मैं इस श्रेणी में आने वाले लोगों के बारे में विस्तार से बताता रहा। खासतौर से लतखोरी के बारे में कि वो औरतों को फंसाने के लिए कैसे पहले उनकी मदद करता है। घर छोड़ने, सामान खरीदने से लेकर ज़रूरत पड़े तो चप्पल पहनाने तक। इसके बाद धीरे से काम के बहाने घूमाने निकलता है फिर असली रूप में सामने आता है। शबीहा के साथ उसने यही किया था। उसका आदमी शराब का लती था। टी.बी. हो गई थी। डॉक्टरों ने कहा तुम्हारे लिए जहर है छूना भी नहीं लेकिन वह नहीं माना फिर एक दिन सोया तो कभी न उठा।
फिर एक लंबी थकाऊ प्रक्रिया के बाद उसकी बेगम शबीहा को नौकरी मिली। डिस्पैच का काम देखने में अनजान थी तो मददगार बड़े पैदा हो गए। सबसे आगे लतीफ था। जो अपने कर्मों के कारण लतखोरी नाम लिए घूमता है। इसकी बहुत सी हरकतें एक अनाम से साहित्यकार जी.सी. श्रीवास्तव की एक किताब के करेक्टर से मिलती-जुलती हैं। उसका नाम लतखोरी ही था किताब में, बस सबने उसे ही यह नाम दे दिया। उसने शबीहा का हर काम बडे़े मनोयोग से करके सबसे पहले उसे अपने वश में किया था। फिर उसके कान भर-भर के उसने पहले उसे सास-ससुर, देवर से अलग कर अलग मकान तक दिला दिया।
अलग कुछ इस तरह किया कि किसी से बात तक न करे। इसके लिए उसे ऐसा भरा कि वह सब को दुश्मन मानती। अचानक एक दिन लंच के बाद ही शबीहा के रोने की आवाज़ और साथ ही अनगिनत गालियां सुनाई देने लगी। लोग पहुंचे तो पता चला लतखोरी कई चप्पल खा चुका। शबीहा ने सारी पोल खोल दी सबके सामने कि कैसे यह जबरदस्ती घर पहुंच जाता है। पिछले कई महीने से शारीरिक संबंध के लिए तरह-तरह से नाकेबंदी कर विवश कर रहा है। आए दिन अश्लील फोटो, मोबाइल पर ब्लू फिल्में दिखाता रहता है। इसके चक्कर में वह घर वालों से लड़ गई अब न घर की रही न घाट की। दस साल के बेटे के साथ कैसे चलाए ज़िंदगी।
इस घटना को कई कारणों से दबा दिया गया। किसी नेता ने फ़ोन करे थे। अल्पसंख्यकों के बीच शहर में उसकी बड़ी पकड़ थी। मगर साजिशें बंद न हुईं। महीना भर भी न हुआ कि एक दूसरे मामले में शबीहा को फंसा दिया गया। जांच के बाद डिमोट कर दी गई इसके बाद भी लतीफ जैसे लोग उसे नोचने में लगे रहे।
फिर एक दिन पता चला कि वह अपने एक चचाजात भाई के साथ हैदराबाद भाग गई। निकाह उसने कई महीने पहले ही कर लिया था। उसके साथ उसे एक-दो बार देखा गया था। जब वह बाइक पर छोड़ने आया था। ऐसी स्थिति मानसी, श्रद्धा के साथ भी आई थी। दोनों पति के न रहने पर नौकरी करने आयी थीं। भाई लोग उन दोनों पर भी पिल पड़े थे। लेकिन उनके घर वाले भारी पड़े। लोगों को लेने के देने पड़े तो उनसे किनारा कर लिया। वह दोनों आज भी पूरी हनक शान से कार्यरत हैं।
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