किसी ने नहीं सुना - 5 Pradeep Shrivastava द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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किसी ने नहीं सुना - 5

किसी ने नहीं सुना

-प्रदीप श्रीवास्तव

भाग 5

मगर इन सब के बावजूद मैंने कभी भी संजना के तन को पाने के लिए गंभीरता से नहीं सोचा था। इसलिए जब अचानक ही उसने एल.ओ.सी. अतिक्रमण का अधिकार मुझे देने की बात बेहिचक कही तो मैं हतप्रभ रह गया था। मैं व्याकुल हो उठा था इस बात के लिए कि वह अपनी बातों को विस्तार न दे तुरंत बंद कर दे। लेकिन वह चुप तब हुई जब शाम को कहीं अलग बैठकर बात करने का प्रोग्राम तय हो गया।

तय स्थान पर पहुंचने के लिए हम दोनों छुट्टी होने से एक घंटे पहले ही अलग-अलग निकले। सड़क, होटल, मॉल हर जगह त्योहार की छुट्टी के बाद खुलने के कारण भीड़-भाड़ काफी कम थी। एक प्रसिद्ध रेस्टोरेंट में हम दोनों बैठे कॉफी पी रहे थे। संजना के चेहरे को मैंने पढ़ने की कोशिश की तो मुझे लगा कि वहां उदासी नहीं बल्कि खिन्नता और उससे भी कहीं ज़्यादा न जाने किस बात की व्यग्रता दिख रही है। उसका मन जैसे वहां था ही नहीं, जैसे वह जल्दी से जल्दी वहां से निकल लेना चाहती हो। मैं विचारों के मकड़ जाल में खुद को उलझा सा महसूस कर रहा था। हम दोनों के बीच बातें भी छुटपुट हो रही थीं। इस बीच मैंने देखा कि जैसे वह मुझे पढ़ने की गरज से बराबर देख रही है। और मैं... मैं भी कभी पीली साड़ी में बैठी संजना को देखता तो कभी कनखियों से आस-पास के दृश्यों पर भी नज़र डाल लेता। कुल मिला कर बोरियत ज़्यादा बढ़ी तो मैंने उससे कहा,

‘तुम पति के बारे में कुछ खास बातें करना चाह रही थी।’

इस पर वह कुछ खोई-खोई सी बोली,

‘हां... लेकिन कहीं ऐसी जगह चलो जहां हम दोनों के अलावा कोई और न हो। ऐसे में मैं कोई बात कर ही नहीं पाऊंगी।’

उसने इस बात की ऐसी जिद पकड़ ली कि हार कर मैंने विधायक निवास में रहने वाले अपने एक मित्र से बात की जो अपने क्षेत्र के विधायक को मिले आवास में अकेले ही रहता था। और दिनभर नेतागिरी या ये कहें कि दलाली के चक्कर में सत्ता के गलियारों में चक्कर काटता था। और उसके विधायक जी मंत्री बनने का ख़्वाब पाले दिल्ली में पार्टी के बड़े नेताओं के यहां डेरा डाले रहते थे। मैंने कुछ घंटे के एकांत के लिए उससे आवास देने को कहा तो वह तुरंत तैयार हो गया। चाबी देते समय उसने कनखियों से संजना को देखा था फिर मेरे हाथ में चाबी थमाते हुए बोला था मैं रात दस-ग्यारह बजे के बाद आऊंगा। एक प्रोग्राम में जाना है।

उसकी बात से मैं तुरंत समझ गया था कि वह फेंक रहा है कि उसे प्रोगाम में जाना है। वह सिर्फ मुझे यह बताना चाह रहा था कि वह ग्यारह बजे तक नहीं आएगा। तब तक मैं संजना के साथ वक़्त बिता सकता हूं। मेरे घर कई बार आ चुका था जिससे वह मेरी पत्नी, बच्चों सभी को पहचानता था। संजना को देख कर वह बाकी के हालात तुरंत ताड़ गया था। यह बात तब और पक्की हो गई थी जब उसने खाने-पीने का काफी सामान अपने एक आदमी के हाथ पंद्रह-बीस मिनट में ही भिजवा दिया था। जिसमें उस एरिया में फ़ेमस ड्राई बड़े भी थे। यह सब खाने-पीने के दौरान ही हम दोनों की बातें चल पड़ी थीं।

संजना पति को लेकर ऐसी बातें कह रही थी कि मेरे कान खडे़ हुए जा रहे थे। उसकी शारीरिक भाव-भंगिमाओं और बातों में कहीं कोई सामंजस्य नहीं दिख रहा था। शरीर कुछ कह रहा था और बातें कुछ और। उसकी बातों का कुल लब्बो-लुआब यह था कि उसका पति बेहद पिछड़ी सोच का है। उसकी बात नहीं मानता था जिससे बिज़नेस में वह घर में अन्य भाइयों से एकदम पिछड़ कर सबसे दयनीय स्थिति में था और उसे शर्मिंदगी उठानी पड़ती थी। वह बहुत भाग्यवादी है।

काम काज का आधा वक़्त पूजा-पाठ और मंदिरों के चक्कर में बिता देता है। वह पति और पिता का रोल ठीक से नहीं निभा रहा था। वह जानते ही नहीं कि पति-पिता का रोल क्या होता है। सहस्त्राब्दियों पहले की बातें करते हैं कि पत्नी केवल संतानोंत्पत्ति के लिए है। हद तो यह कि महीने में पांच-छः दिन उनके व्रत में निकल जाते हैं। व्रत वाले दिन उसे छूते नहीं थे। कोशिश करो तो दूसरे कमरे में चले जाते थे। उनके रहते टी.वी. पर मनचाहे सीरियल नहीं देख सकती। कहने पर दुनिया भर का लेक्चर दे डालते थे। और तीन इंच लंबा तिलक अलग लगाते हैं। कहीं घूमने-फिरने लेकर नहीं जाते थे। कपड़े ऐसे पहनों कि चेहरे और हाथ के अलावा कुछ नहीं दिखना चाहिए। खाना-पीना साधुओं सा।

बाहर की चीजों फास्ट-फूड की बात नहीं कर सकते। विरोध करो तो दुश्मनों की तरह झगड़ा करते हैं। यह सब हद से ज़्यादा हो गया, ज़िंदगी नरक हो गई तो वह छोड़ आई उन्हें। क्योंकि अब वह अपनी ज़िंदगी व्यर्थ नहीं काटेगी। अब किसी के लिए वह मुड़कर नहीं देखेगी। वह अब हर जगह से अपने लिए सुख का एक-एक कतरा बटोर लेगी। जीभर कर अपना आक्रोश निकालने के बाद वह उठकर बाथरूम चली गई। जब लौटी तो मुंह-हाथ धोकर।

अब उसके चेहरे पर विषाद की जगह काफी हद तक ताज़गी नज़र आ रही थी। उसने कमरे में बेड पर रखे अपने बैग में से अपनी हैंकी निकाल कर चेहरा पोछने के बाद वापस रखा और बेड पर लेट गई। उसके पहले उसने सीलिंग फैन को स्लो स्पीड पर चला दिया था। हालांकि मौसम में अच्छी खासी खुमारी थी। लगता था कि ठंडक दस्तक देने के लिए कहीं नजदीक आ चुकी है। मगर फिर भी फैन चला दिया, आंचल बेड पर फैला था। और उसके दोनों हाथ भी। उसकी छाती ऊपर-नीचे उठ कर गिर रही थी। मैं अब भी प्लास्टिक की कुर्सी पर बैठा था। कुछ ही क्षण शांत रहने के बाद उसने पूछा,

‘नीरज तुम व्रत रखते हो ?’

‘हां’

‘महीने में कितने दिन ?’

उसकी अब तक की बातों से मेरा मूड पहले ही खिन्न हो चुका था लेकिन फिर भी मैंने कहा,

‘मैं केवल मंगल का व्रत रखता हूं।’

‘मतलब महीने में चार व्रत तुम भी रखते हो ?’

‘हाँ’

‘और तुम्हारी पत्नी ?’

‘वह प्रदोष वगैरह जैसे व्रत रखती है। महीने में दो-तीन व्रत तो उसके भी हो जाते हैं। लेकिन तुम यह सब क्यों पूछ रही हो ?’

‘कुछ समझना चाहती हूं। ये बताओ जिस दिन तुम्हारा व्रत होता है उस दिन यदि तुम्हारी पत्नी तुम से सेक्स की डिमांड करती है तो क्या तुम व्रत की वजह से उसे मना कर देते हो ?’

‘ये कैसी बातें कर रही हो। क्या जानना चाह रही हो तुम मैं समझ नहीं पा रहा हूं।’

‘मैं जानना नहीं, तुम्हें बताना चाह रही हूं। तुम्हें वह बातें बताना चाह रही हूं जिन्होंने मेरा सुख-चैन सब बरबाद ही नहीं कर दिया है बल्कि मेरे हिस्से का सुख-चैन कभी मुझ तक पहुंचने ही नहीं दिया। जब शादी हुई तो ससुराल में धन-दौलत सारी सुख-सुविधाएं थीं। वह सब देखकर मैं फूली नहीं समाई थी। लेकिन पति ने पहली ही रात जीवन की शुरुआत ही खराब की। यह जानकर तुम्हें यकीन नहीं होगा कि सुहागरात को मेरा पति मेरे साथ इसलिए संबंध बनाने से मना करता है कि वह बरसों से बृहस्पति का व्रत रखता आया है। और क्योंकि रात आधी से ज़्यादा बीत चुकी थी यानि कि बृहस्पति आ चुका है इसलिए वह व्रत में शारीरिक संबंध नहीं बनाएगा। इससे उसका व्रत भंग हो जाएगा।

यह सुनकर मैं दंग रह गई। मुझे लगा कि जैसे मैं किसी संन्यासी के साथ बंध गई हूं। शादी से पहले सहेलियों से इस पहली रात के बारे में न जाने कितनी बातें की थीं। नई-नई शादी-सुदा सहेलियों और अन्य के साथ जो हसीन बातें हुईं थीं उससे मैंने भी एक से एक रंगीन सपने बुन रखे थे। उन सपनों को और रंगीन बनाने के लिए अपनी अनुभवी सहेलियों से जो कुछ जाना था उन सब के सहारे मैंने अपने को हर तरह से खूब तैयार किया था। मगर यह नहीं जानती थी कि मैं तो एक संन्यासी से ब्याह दी गई हूं। जो ऋषि-मुनियों से भी बड़ा हठी-व्रती है। औरत की जिस कमनीय काया के काम बाण से ऋषि-मुनि, देवता भी पल मंे सारे व्रत भूल स्खलित हो जाते हैं, उस अजेय कामबाण के सारे वार मेरे पति को छू भी न पाएंगे।

मेरे सारे जतन धरे के धरे रह जाएंगे। मेरी कमनीय काया के सामने पति ऐसे निर्विकार बना रहेगा कि ऋषि-मुनि भी पानी मांगेंगे। यह सपने में भी नहीं सोचा था। ऐसा नहीं कि यह तान के सो गए, सारी रात बात करते रहे, मगर सारी बातें ऐसी जैसे कि हमारी शादी के पंद्रह-बीस साल हो गए हों। मैं अंदर ही अंदर कुढ़ती रही, सुनती रही उनकी बकवास। हालत यह थी कि चाह कर भी न तो मैं सो पा रही थी। और न ही जो हसीन सपने बुने थे उन्हें हक़ीक़त में तब्दील कर पा रही थी।’

‘बड़ी अजीब दास्तान सुनाई तुमने, यकीन ही नहीं कर पा रहा हूं कि कोई आदमी ऐसा भी होगा। पहली रात केवल उबाऊ बातों में बिताएगा इससे बड़ी बात तो यह कि तुम यह सब सुनती भी रही।’

‘यार तुम भी हद करते हो। मैं क्या कर सकती थी।’

‘क्यों नहीं कर सकती थी। आखिर पत्नी थी। बोल सकती थी कि आज पहली रात है। तो बातें पहली रात वाली हों न कि पंद्रह साल बाद वाली। और फिर पंद्रह साल बाद भी पति-पत्नी की बातें ऐसी तो नहीं होतीं।’

‘अच्छा तो मैं उनसे कहती कि आओ रोमांटिक बातें करो, मुझे प्यार करो।’

‘किसी को तो आगे आना ही होता हैै।’

‘अच्छा तो मुझे ये बताओगे कि अगर पहली रात तुम यही सब करते और तुम्हारी बीवी रोमांस के लिए, सेक्स के लिए पहल करती तो उस समय तुम क्या करते। अपनी पत्नी को किस रूप में लेते। सच बताना ज़रा भी झूठ नहीं बोलना।’

‘संजना जिन हालात से गुजरा नहीं, जिस बारे में कुछ जानता नहीं उसके बारे में क्या कहूं।’

‘क्यों सोचो और अपने को उस हालात में ले जाकर सोचो फिर जवाब दो। मैं यह अच्छी तरह जानती हूं कि तुम जवाब दे सकते हो, यदि तुम देना चाहोगे।’

‘तुम्हारी इस जिद पर सिर्फ़ इतना कह सकता हूं कि मैं आश्चर्य में पड़ जाता। शायद इस आश्चर्य में पड़ जाने के बाद मैं सेक्स कर ही न पाता। फिर उसे परे धकेलकर किसी और कमरे में चला जाता।’

‘और फिर अगले दिन क्या करते ?’

‘अगले दिन ?’

‘हां अगले दिन तुम क्या करते। बीवी को रखते या उसे करेक्टरलेस या फिर न जाने क्या-क्या समझ कर वापस कर देते।’

‘ओफ्फ यार मुझे इन बातों में मत उलझाओ। मैं तुम्हारे आदमी की ऐसी विचारधारा को सुनकर सिर्फ़ हैरत में हूं। कोई आदमी पहली ही रात में ऐसा व्यवहार कैसे कर सकता है। ऐसी हरकतें तो आदमी उसी हालत में करता है जबकि वह सेक्सुअली कमजोर हो। नहीं तो अमूमन औरतों की शिकायत यह होती है कि पहली रात को उसका पति इतना दिवाना था कि बातचीत तो बाद में आते ही टूट पड़ा। या और मन की करके तान कर सो गया। बात तो की ही नहीं। तुम्हारे आदमी के साथ क्या ऐसी कोई प्रॉब्लम है।’

‘नहीं, भगवान ने शारीरिक दृष्टि से तो उन्हें एक जबरदस्त मर्द बनाकर भेजा है। जो किसी भी औरत के लिए पसंदीदा मर्द हो सकता है। लेकिन विचारों की दृष्टि से वह एक विरक्त इंसान हैं। ऐसे में उनके जबरदस्त मर्द होने का कोई मतलब नहीं रह जाता है। ऐसे विरक्त मर्द से तो एक कमजोर मर्द ही सही है। कुछ तो करेगा। न पूरी सही कुछ तो भूख शांत करेगा।’

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