किसी ने नहीं सुना
-प्रदीप श्रीवास्तव
भाग 7
मेरी इस बात पर संजना फिर लेट गई बेड पर उसके दोनों पैर नीचे लटक रहे थे। कपड़े पहले से ज़्यादा अस्त-व्यस्त हो रहे थे। बदन पहले से अब कहीं और ज़्यादा उघाड़ हो रहा था। उसका कामुक लुक और ज़्यादा कामुक हो रहा था। उसकी बॉडी लैंग्वेज और ज़्यादा प्रगाढ़ आमंत्रण दे रही थी। मैं उसके सामने कुर्सी पर बैठा उसे निहार रहा था। उसने कुछ क्षण मेरी आंखों में देखा फिर बोली,
‘मैंने बहुत सोच समझ कर ही तुम्हारी तरफ यह क़दम बढ़ाया है। तुममें कुछ ख़ास देखा तभी तो तुम्हें एल.ओ.सी. के अतिक्रण का अधिकार दिया। किसी और के पास तो नहीं गई। फिर मैं तुमसे तुम्हारी पत्नी, बच्चों के हिस्से का कुछ नहीं मांग रही हूं। इन सबके हिस्से से अलग जो वक़्त है तुम्हारा मैं उसी में से थोड़ा समय चाहती हूँ यह भी नहीं कह रही कि अपना सारा समय मुझे दे दो। भले ही यह समय बहुत थोड़ा होगा। लेकिन मैं उसी में ढूढ़ लूंगी अपनी खुशी। यदि तुम्हें कोई एतराज न हो।’
इतना कहकर जब वह चुप हो गई तो मैं एक टक उसे देखता रहा। उसकी वासना से भरी आंखें पूरा बदन मुझे बरबस ही खींचे ले रहे थे। जब मैं उसे कुछ देर ऐसे ही देखता रहा तो उसने दोनों हाथ बढ़ा दिए मेरी ओर ऐसे जैसे कि बांहों में भर लेना चाहती हो। बिना कुछ बोले मुझे देखे जा रही थी। अब मेरे दिमाग में तर्क-वितर्क, सोच-विचार एकदम स्थिर हो गए। मैं चेतना शून्य होता गया। मेरा नियंत्रण संजना के हाथों में चला जा रहा था। मैं खिंचा हुआ सा उठा और एकाकार हो गया उससे। और तब उसकी अफनाहट इतनी तीव्र थी कि मैं उस स्थिति में भी दंग रह गया। एकाकार होने का यह क्रम फिर रात साढ़े दस बजे तक चला। इस बीच हम कई बार एक दूसरे में समाए।
संजना की अफनाहट, चाहत, उसकी कोशिश ही इतनी जबरदस्त थी कि मैं चाहकर भी एक बार में ही ठहर नहीं सकता था। संजना का वश चलता तो सारी रात रहती मेरे साथ। इस बीच उसके और मेरे घर से फ़ोन आने लगे थे। हम दोनों ने घर वालों से झूठ बोला। मगर अब रुकना संभव नहीं था। क्योंकि जिस दोस्त ने चाबी दी थी उसके आने का वक़्त हो रहा था। इसलिए हम दोनों ने जल्दी-जल्दी हाथ मुंह धोए। कपड़े पहने, वहां की सारी चीजें व्यवस्थित कीं और चल दिए। मैंने संजना को उसके घर छोड़कर अपने घर की राह ली थी।
मन में संजना की अफनाहट को लेकर उधेड़बुन चल रही थी। कि उसकी यह अफनाहट इतनी तीव्र न होती यदि पति ने उसे वह सब दिया होता जो एक पत्नी पति से चाहती है। यदि वह न पूरा सही कुछ ही उसके मन की करता तो उसे छोड़ती नहीं। बेचारी ऊपर से कितनी हंसमुख सी दिखती है। देखने वाला कह ही नहीं सकता कि उसे इतनी तक़लीफ है। इतनी सारी तक़लीफों के बाद भी चेहरे पर उदासी नहीं आने देती। बहुत हिम्मती है। मुझे बड़ा तरस आने लगा था उसकी स्थिति पर। उसकी स्थिति का आकलन करते-करते मैं जब घर पहुंचा तो करीब बारह बज चुके थे। बच्चे खा पी के सो चुके। नीला पत्नी धर्म निभाते हुए अभी जाग रही थी। चेहरे पर परेशानी चिंता झलक रही थी। क्योंकि मैं इतनी देर तक घर से बाहर नहीं रहता था। मैं उससे नज़रें मिलाकर बात करने में कुछ असहजता महसूस कर रहा था। वह जो कुछ पूछती उसका जवाब दाएं बाएं देखते हुए देता। उसने समझा मेरा मूड खराब है तो उसने कहा,
‘चेंज करिए मैं खाना लगाती हूं।’
मैंने खाने के लिए मना कर दिया। क्योंकि वहां इतना खा लिया था कि कुछ और खाने का मन नहीं था। दूसरे पत्नी के सामने अजीब सी झेंप महसूस कर रहा था। शादी के बाद यह पहला अवसर था जब मैंने पत्नी के अलावा बाहर किसी अन्य औरत के साथ शारीरिक संबंध बनाए थे। शादी के पहले मेरे किसी भी लड़की या औरत से संबंध इतने करीबी नहीं थे कि वह शारीरिक सीमा की हद तक पहुंचते। इसलिए मेरी बड़ी अजीब हालत हो रही थी। मैं चेंज कर के लेट गया बेड पर लेकिन अपनी इस मनोदशा के चलते नीला से यह कहना भूल गया कि वह खाना खा ले। नीला मुझे खिलाए बिना खाती नहीं थी। मेरी आंखें नींद से बोझिल हो रही थीं लेकिन न जाने क्यों सो नहीं पा रहा था। नीला मुझे गंभीर परेशानी में समझकर कुछ अजीब सी सावधानी बरतती हुई सी लग रही थी। मैं उसकी तरफ पीठ किए हुए लेटा था। कुछ देर बाद नीला ने पीछे से मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए कहा,
‘क्या बात है इतना सीरियस क्यों हो? तबियत तो ठीक है न?’
मैं नीला के भावनात्मक लगाव से भरे इस प्रश्न से एकदम से कुछ हद तक सकते में आ गया। तुरंत कोई जवाब न बन पड़ा बस हूं कर के रह गया। उसने फिर और ज़्यादा पूछताछ शुरू कर दी। उसकी पूछताछ में भावनात्मक लगाव का पुट इतना ज़्यादा था कि मैं कई बार पूरी कोशिश के बाद भी उसे चुप नहीं करा पाया बस ‘हां, कुछ नहीं, बस थकान महसूस कर रहा हूं।‘ कहकर चुप हो गया कि नीला भी चुपचाप सो जाए।
मैं गुनहगार होने के भाव से ऐसा दबा जा रहा था कि नीला की तरफ मुंह करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था। हम दोनों के बीच यह कसमकस कुछ देर यूं ही चलती रही। नीला सब कुछ जानने के लिए कुछ इस कदर पीछे पड़ी थी जैसे कोई दारोगा जिद पर आ गया हो कि अभियुक्त से सच उगलवा कर रहेगा। इसके लिए वह हर हथकंडे अपनाता है। नीला कुछ वैसे ही दारोगा की तरह पीछे पड़ी थी। मुझे लगा जैसे उसे शक हो गया है। वह मेरी चोरी पकड़ चुकी है। लेकिन मेरे मुंह से सुनना चाहती है। कुछ देर बाद उसने एक पत्नी की तरह नहीं एक शातिर बेहद चालाक औरत वाला हथकंडा अपनाया। अपने तन का बहुत ही शालीनता से प्रयोग करना शुरू किया। मुझे इस कदर प्यार करना शुरू किया मानो मैं उससे बरसों बाद मिला हूं और फिर बरसों के लिए दूर चला जाऊंगा।
मैं अंदर ही अंदर खीज से भरा जा रहा था लेकिन मन मस्तिष्क में अंदर न जाने ऐसा क्या चल रहा था कि नीला का मैं विरोध नहीं कर पा रहा था। उसे मना करने की जैसे मुझ में ताकत ही न थी। अपराध बोध ने उस वक़्त जितना पस्त कर दिया था नीला के सामने उसके पहले कभी न किया था। इसका आधा भी नहीं। जबकि पहले भी कई काम उससे छिपाकर करता रहा था।
मैं नीला से प्यार के मूड में उस वक्त दो वजहों से नहीं था। एक तो अपराधबोध के तले कुचला जा रहा था। दूसरे संजना के साथ कई घंटों तक व्यस्त रहने के कारण बुरी तरह थका था। मैं गहरी नींद सोना चाहता था। एक बात और कि आने के बाद नहाया नहीं था। इन सबके चलते मैं उस रात नीला से हर हाल में दूर रहना चाहता था। जब नीला ने कोई रास्ता नहीं छोड़ा तो मैं अचानक ही फट पड़ा। क्योंकि मेरे पास और कोई रास्ता ही नहीं बचा था। मैंने एक हाथ से उसे एक तरफ परे धकेलते हुए चीख कर कहा,
‘सोने क्यों नहीं देती।’
मैं उस वक़्त यह भी भूल गया कि बच्चे चीख सुनकर उठ सकते हैं। मेरी इस हरकत से नीला एकदम हतप्रभ हो कुछ क्षण को जिस पोज में थी उसी में स्थिर हो गई। और मैं गहरी-गहरी सांसें लेते हुए नाइट लैंप की बेहद कम नीली रोशनी में छत को देखने लगा। कुछ देर बाद नीला धीरे-धीरे यंत्रवत सी बेड से नीचे उतरी, अपना गाऊन उठाया और कुछ सेकेंड मुझे देखती रही। उस कम रोशनी में भी मैंने अहसास किया कि उसकी बड़ी-बड़ी आंखें भरी हुई थीं। और शरीर का सारा तनाव विलुप्त हो चुका था। उसने वैसे ही खड़े-खड़े अपना गाऊन पहना। और हारे हुए जुआरी की तरह, थकी हारी सी कमरे से बाहर चली गई दूसरे कमरे में। मैं कुछ देर तरह-तरह की बातों में उलझा सो गया।
सुबह करीब चार बजे ही मेरी नींद खुल गई। मैं सपने में खोया हुआ था संजना के साथ। विधायक के उसी कमरे में। कि तभी नीला न जाने कहां से आ गई थी और संजना को बालों से पकड़ कर खींचते हुए विधायक निवास की गैलरी में खीचें जा रही थी। और लोग आंखें फाड़कर-फाड़कर देख रहे थे। मैं उसे बचाने के लिए उठा था कि नींद खुल गई। रात का दृश्य मेरी नजरों के सामने आ गया। मैं उठकर कमरे से अटैच बाथरूम में गया पेशाब कर, आ कर फिर बैठ गया।
तरह-तरह के विचारों में फिर उलझने लगा तो नीला कहां सो रही है यह देखने की गरज से पहले बच्चों के कमरे में गया। वहां नहीं मिली तो ड्रॉइंगरूम में गया। वहां वह सोफे पर सो रही थी। वह चादर नीचे गिरी हुई थी जो उसने ओढ़ी थी। गाऊन की जो बेल्ट उसने बांधी थी वह करीब-करीब खुल चुकी थी। गाऊन का एक तरफ का हिस्सा बेल्ट के पास तक का सोफे से नीचे लटका हुआ था। जिससे कमर के पास तक का उसका बदन पूरी तरह खुल गया था। जिसे देखकर मेरा मन अचानक ही संजना के बदन से उसकी तुलना कर बैठा कि कौन ज़्यादा सुंदर है। उस वक़्त संजना का बदन मुझे नीला से कहीं बेहतर नजर आया था। दोनों की तुलना करता मैं करीब एक मिनट वैसे ही खड़ा रह गया।
अचानक नीला कुछ कसमसाई तो मेरा ध्यान भंग हुआ। फिर यह सोचकर मैंने उसका कपड़ा ठीक कर दिया कहीं बच्चे उठकर आ गए तो नीला को इस हाल में देखना गलत होगा। मैं जाने के लिए जैसे ही मुड़ा कि गाऊन का वह हिस्सा फिर पहले जैसी हालत मेें आ गया। सिल्क का होने की वजह से तुरंत फिसल जा रहा था। अंततः मैंने उसे उठाने की कोशिश की कि चलकर सो जाए अंदर क्योंकि उसके उठने का वक़्त छः बजे है। और अभी दो घंटा बाकी है। लेकिन उसने आंख खुलते ही जैसे ही मुझे देखा तो मेरा हाथ परे झटक दिया। मैंने कहा इस हालत में बच्चे देख सकते हैं अंदर क्यों नहीं चलती। तो उसने गुस्सा दिखाते हुए गाऊन की बेल्ट कसी, चादर उठायी उसे कस के लपेटकर फिर सोफे पर ही लेट गई। अमूमन ऐसा गुस्सा दिखाने पर मैं भड़क उठता लेकिन उस दिन मैं कुछ सहमा सा एकदम चुप रहा। चला आया बेडरूम में और सिगरेट पीने लगा। फिर लेट गया। बहुत थकान महसूस कर रहा था लेकिन फिर भी दुबारा सो न सका।
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