किसी ने नहीं सुना
-प्रदीप श्रीवास्तव
भाग 21
इसे पागलपन या नफरत की पराकाष्ठा भी कह सकते हैं कि उसने मेरे, अपने, बच्चों के कपड़े, रुमाल तक या तो किसी को दे दिए या बेच दिए। इसमें हमारी शादी का जोड़ा भी था। उसकी तमाम बेसकीमती साड़ियां सब कुछ शामिल था। गहने भी सब बेच दिए थे। यह सब करने के बाद जब वह मुझसे मिलने आयी तब सारा वाक़या बताया तो मैंने अपना माथा पीट लिया। ये तुम मुझे सजा दे रही हो या कर क्या रही हो? उसने बेहद रूखे स्वर में जो जवाब दिया उसके आगे जो बात जोड़ी उससे मैं दहल गया। उसके अंदर दहकते ज्वालामुखी से मैं भीतर तक झुलस गया। उसने साफ कहा,
‘न्यूटन का थर्ड लॉ तो पढ़ा ही है न कि हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है। यह सब जो हो रहा है यह मैं या कोई और नहीं कर रहा है। यह तुमने जो काम किए हैं वो अच्छे थे या खराब वो तुम जानो ये सब उन्हीं करमों के प्रतिक्रिया के परिणाम हैं।’
‘मैं कितनी बार कह चुका हूं कि मैंने रेप नहीं किया है।’
‘रेप नहीं किया लेकिन उससे नाजायज संबंध तो बनाए ना। गलत काम का परिणाम कैसे गलत नहीं होगा।’
नीला के सामने अब मैं पहले की तरह उससे नजर मिला कर बात नहीं करता था। चुप हो गया उसके तर्कों के सामने। उसने कहा कि ‘तमाम कोशिशों के बावजूद तुमने कमीनी औरत से संबंध बनाए। मुझ से झगड़ा करते हुए मुझे क्या-क्या गालियां नहीं देते थे। मोटी, थुल-थुल, बदसूरत, पत्नी कहलाने लायक नहीं। कभी तुम्हारे दिमाग मंे ये नहीं आता था कि यदि पलटकर मैं यही कहती। तुम्हारी तरह मैं भी पराए पुरुषों से संबंध बनाती। मैं भी कहती कि यदि मैं दो बच्चों को पैदाकर थुल-थुल हो गई हूं, मेरे अंग लुज-लुजे हो गए हैं, लटक गए हैं तो तुम कौन सा पचीस साल के जोशीले जवान हो, तुम भी तो तोंदियल हो गए हो। सिर पर चांद नज़र आने लगा है, प्रौढ़ता तुम पर भी उतनी ही हावी है जितनी मुझ पर तो तुम्हारे पर क्या बीतती।’
मैं उसकी बातों के सामने सिर्फ़ सिर झुका सका। ‘बोलो कोई जवाब है तुम्हारे पास। मैं आज की प्रगतिशील अपने, अधिकारों के लिए लड़ जाने वाली बीवी होती तो क्या अब तक न जाने कब का तुमसे तलाक ले चुकी होती। तब बच्चों का क्या होता।’
इस पर मैंने कहा कि
‘तुम यहां मुझे जलील करने आती हो या मिलने?’
‘आती तो हूं मिलने। जहां तक जलील होने की बात है तो जरा ध्यान से सोचो कौन जलील होता है। वो पत्नी जो अपने उस पति से मिलने आती है जो रेप के केस में सजा काट रहा है। यहां का स्टाफ और बाकी लोग किस तरह घूर-घूरकर मुझे भेद भरी निगाहों से देखते हैं कभी इस तरफ देखा। मैं अपने पर लगी गिद्ध सी नज़रों से कैसे खुद को बचाती हूं सोचा है कभी।’
नीला सही तो कह रही थी कि वास्तव में जलील तो वही हो रही थी। इतना आहत हुआ कि आगे उसकी सारी बातों पर एक चुप हजार चुप रहने के सिवा कुछ न कर सका। मैं उस दिन से उसकी उपस्थिति से खुद को कुछ ज्यादा ही आतंकित महसूस करने लगा था।
जेल में बंद हुए छः साल भी न हुए थे कि एक दिन आकर उसने फिर धमाका कर दिया कि लड़की की शादी तय कर दी है। तारीख बताई तो मैंने कहा,
‘इतनी सर्दी में कैसे संभालोगी अकेले।’ लड़के के बारे में बताया कि वह भी बिजनेसमैन है। बड़ा परिवार है।’
फिर मैंने कहा,
’कि अभी वो मुश्किल से उन्नीस की है आखिर इतनी जल्दी क्यों किए हुए हो।’
‘हमारे कामों का असर कहीं बच्चों पर न पड़े वो भी कहीं हमारी राह न पकड़़ लें।’
मैं निरूत्तर था। तभी वह बेटे के लिए बोली, ’कि मैंने उससे भी कह दिया है कि नौकरी तुझे बिल्कुल नहीं करनी है। कामभर की पढ़ाई कर ले और बिजनेस संभाल। किसी का पिछलग्गू बनने की ज़रूरत नहीं। और शादी के लिए भी बोल दिया कि कोई पसंद कर रखी हो तो बता दे वहीं कर दूंगी। मेरी बात मान सकता है तो ठीक है नहीं तो अपनी दुनिया अपने हिसाब से चला और मेरा पीछा छोड दे।’ उसकी इस बात पर भी मन में तमाम प्रश्नों का बवंडर उठा लेकिन कुछ कहने की मैं हिम्मत न जुटा सका। देखते-देखते उसने दोनों की शादी कर दी।
मैं बड़ी तैयारी में था वकील से मिलकर कि वो कानूनी रूप कुछ भी करे लेकिन शादी में कुछ घंटे ही शामिल होने के लिए मुझे निकाल ले। वकील अपने काम में सफल रहा लेकिन मैं और वकील दोनों ही नीला के सामने विफल रहे। मुझे शादी में शामिल होने से सख्त मना कर दिया। उसके इस डिसीजन से मेरा रोयां रोयां कांप उठा था। मैं फूट-फूटकर रो पड़ा। मैंने कहा कि कोर्ट से ज़्यादा भयानक सजा तो तुम दे रही हो। उसने कहा,
‘निश्चित ही तुम भी मेरी ही तरह बच्चों की भलाई ही चाहते हो। और यदि तुम शादी में वहां आए तो सब लोग तरह-तरह की पंचायत करेंगे। पूरी शादी खराब हो जाएगी। तुम नहीं रहोगे बातें तो तब भी होंगी। लेकिन इतनी नहीं कि पूरा माहौल ही बिगड़ जाए। ’
वकील ने कहा कोर्ट से आदेश ले लेते हैं तब कोई रोक नहीं पाएगा। बीवी के ही खिलाफ कोर्ट जाना वह भी नीला जैसी बीवी के खिलाफ मुझे दुनिया के सबसे बड़े अपराधों सा लगा तो मैंने वकील से ऐसा कुछ नहीं करने को कहा।
इस दौरान मैं अंदर ही अंदर बेहद टूट गया पहले कोर्ट की सजा फिर नीला द्वारा की जाने वाली बातें उसके काम मुझे हर पल एक नई सजा देने जैसा काम कर रहे थे। हां बीच-बीच में नीला अपनी बातों से मुझे एक तरह से रिचार्ज भी कर देती थी। लेकिन उसके इस रंग-ढंग से मैं अंततः जेल में बुरी तरह बीमार पड़ गया। जेल में जब हालत नहीं सुधरी तो मुझे बलरामपुर हॉस्पिटल में भर्ती कर दिया गया। नीला ने बड़ी देखभाल की।
कुछ दिन बाद वापस फिर जेल। फिर एक हफ्ते तक नीला नहीं आई उसके बाद जब आई तो उसे गौर से देखता रह गया। मुझे इन कुछ वर्षों में ही उसके चेहरे पर उभर आई तमाम झुर्रियां उस दिन दिखाई दीं। अधिकांश बाल अचानक ही सफेद हो गए थे। न जाने क्यों हमेशा टिप-टॉप रहने वाली नीला ने डाई नहीं किया था। मांग में सिंदूर भी कई दिन पहले का लग रहा था। बिंदी भी अपनी जगह पर नहीं थी। अपनी तरफ इस तरह देखते पाकर उसने कहा,
‘बहुत अटपटी सी दिख रही हूं न। सोच रहे होगे हमेशा शलीके से रहने वाली मैं इतनी अस्त-व्यस्त कैसे हूं। क्यों यही बात है न ?’
‘हां ऐसा क्यों कर रही हो?’
‘सलीके से रहने, श्रृंगार करने का कोई कारण अब नहीं रह गया। पहले या मुकदमे के समय भी कई कारण से सलीके में रहती थी। एक जिससे तुम्हारे मन का भार यह सब देखकर और ज़्यादा न हो। नंबर दो, दुनिया वाले यह न समझें कि मैं एकदम निसहाय हूं और उठाइगिरे लार टपकाते मदद को खड़े नज़र आएं। बच्चे भी और ज़्यादा परेशान न हों। लेकिन अब ऐसा कुछ बचा नहीं। और अब किसी सलीके या श्रृंगार आदि से नफ़रत और बढ़ गई है। आखिर यह करूं तो किसके लिए, यह सारी बातें तो परिवार से सीधे जुड़ी होती हैं। और परिवार जैसा तो अब कुछ रहा ही नहीं। लड़की अपने ससुराल में खुश है। और खुशी की बात ये है कि बेटा अपने कॅरियर को लेकर बहुत सेंसियर है लेकिन मेरी तरफ देखना भी उसे पंसद नहीं। कई बार पूछ चुकी हूं लेकिन वो हां, हूं में भी बात करना पसंद नहीं करता।’
‘क्यों ऐसा क्या हो गया ?’
‘पता नहीं उसका बिहेवियर कुछ इस ढंग का हो गया है कि तुम्हारा या मेरा नाम आते ही जैसे उसका मुंह कसैला हो जाता है। घर में करीब डेढ़ दो सालों से मैंने उसके चेहरे पर हंसी छोड़िए मुस्कुराहट भी नहीं देखी। उसकी बीवी का भी यही हाल है। बहन से भी कोई ज़्यादा संपर्क नहीं रखता।’
‘पहले तो ऐसा नहीं था। इतना ज़्यादा चंचल था। तुम जैसे यहां मेरे साथ दुश्मनों सा ट्रीट करती हो वैसा ही उसके साथ करती होगी। तुम्हीं ज़िम्मेदार हो इसके लिए।’
‘आखिर फिर अपनी खोल में पहुंच ही गए। आज आखिरी बार एक बात बहुत साफ बता दे रही हूं कि अब कुछ ही साल रह गए हैं यहां से छूटने में । छूटने के बाद यदि दुबारा भूल कर भी किसी औरत की तरफ देखा या ऐसी कोई हरकत की तो मैं जो करूंगी, जो मैंने निश्चित कर लिया है उसकी तुम कल्पना भी नहीं कर सकते।’
‘जब तयकर लिया है तो बता भी दो कि क्या करोगी ?’
मेरे यह कहने पर वह कुछ क्षण मुझे घूरती रही। फिर बोली-
‘तुम को और खुद को गोली मार दूंगी। जिससे मेरे बच्चों का जीवन तुम्हारे कुकर्मों के कारण और नर्क न बने। मेरा तो बना ही दिया।’
‘हद से कुछ ज़्यादा ही बढ़ गई हो।’ मेरे यह कहते ही वह फिर कुछ क्षण मुझे घूरने के बाद बोली-
‘हद से ज़्यादा नहीं बढ़ गई हूं। मेरी और तुम्हारी हद क्या है वो बता रही हूं। इसलिए बता रही हूं जिससे तुम दुबारा अपनी हद न पार करो।’
इसके बाद नीला ने कई और कठोर, दिल दहला देने वाली बातें कहीं और चली गई। मैं हक्का-बक्का मुंह बाए पड़ा रहा अपनी कोठरी में। बातों की चाबुक इतनी जबरदस्त थी कि अगले कई दिनों तक मैं सो न सका। रह-रहकर मेरा गुस्सा कानूून पर टूट पड़ता कि यह इस तरह अपाहिज है कि शातिर लोग साजिश रचकर इसे अपना हथियार बना अपना स्वार्थ सिद्ध कर लेते हैं। यह अंधा ही नहीं साक्ष्यों का मोहताज भी है। इस उधेड़बुन ने मुझे एक काम सौंप दिया। कि अभी जो तीन साल जेल में और रहने हैं। उस समय का उपयोग करूं। एक ऐसी किताब लिखूं दुनिया के लिए जिसमें मेरा और मुझे फंसाने वालों का पूरा कच्चा चिट्ठा हो। कानून कैसे साजिशकर्ताओं के हाथों यूज हो जाता है यह भी तो लोग जाने और कानून में आवश्यक संसोधन हो इसका भी प्रयास हो।
यह निर्णय करते ही मैंने दो दिन बाद ही पेन और राइटिंगपैड मंगा कर लिखना शुरू कर दिया। इस प्रयास के साथ कि रिहा होने से पूर्व किताब छपकर आ जाए। एक बार फिर मैंने छपाई के लिए छुट्भैय्ये साले की मदद लेने की भी सोच ली। मैं एक निवेदन अपने सारे देशवासियों से भी करता हूँ, कि यह किताब आए तो एक बार अवश्य पढ़ें। जिससे मेरी तरह साजिश का शिकार न बनें । मुझे जीवनभर इस बात का भी इंतजार रहेगा कि लतखोरी, संजना और बॉस की गिरेबॉन तक कानून के लंबे हाथ कब पहुंचेंगे जिससे कानून पर मेरी खंडित आस्था फिर बन सके।
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